गुजरात हाईकोर्ट के कोर्ट रूम में खुलेआम दो जजों में हुई तकरार, घटना से न्यायपालिका भी हैरान

गुजरात हाईकोर्ट में सोमवार को एक हैरान कर देने वाली घटना हुई। यहां पर कोर्ट रूम में जमकर झगड़ा हुआ। आप सोचेंगे कि यह तो आम बात है। बहस के दौरान कई बार वकीलों के बीच तीखी नोक-झोंक होती है। दो पक्षों के बीच वाकयुद्ध होता है लेकिन यह मामला अनोखा है। इस में दो वकीलों या पक्षों के बीच नहीं बल्कि हाईकोर्ट के दो जस्टिस के बीच विवाद हुआ।

गुजरात हाईकोर्ट के दो न्यायाधीशों के बीच अदालत कक्ष के अंदर तीखी नोक-झोंक हुई। जस्टिस बीरेन वैष्णव और मौना भट्ट के बीच बहस सोमवार को अदालत कक्ष के अंदर लगे कैमरे में रिकॉर्ड की गई।

गुजरात उच्च न्यायालय अपने यूट्यूब चैनल पर सभी पीठों की सुनवाई को लाइव-स्ट्रीम करता है। हालांकि, दोनों न्यायाधीशों के बीच विवाद को कैद करने वाले लाइव-स्ट्रीम किए गए वीडियो को बाद में यूट्यूब से हटा दिया गया।

खुली अदालत में दोनों जजों के बीच हुई नोक-झोंक के बाद सुनवाई भी टाल दी गई। घटना का एक वीडियो सोशल मीडिया पर प्रसारित हो रहा है जिसमें न्यायमूर्ति वैष्णव एक आदेश पारित करते हुए दिखाई दे रहे हैं। न्यायमूर्ति भट्ट न्यायमूर्ति वैष्णव से असहमत प्रतीत होते हैं।

न्यायमूर्ति वैष्णव को यह कहते हुए सुना जा सकता है, “तो आप अलग हैं। हम एक में भिन्न हैं, हम दूसरे में भिन्न हो सकते हैं।” न्यायमूर्ति भट्ट ने तब कहा, “यह अलग होने का सवाल नहीं है।” जिस पर जस्टिस बीरेन ने कहा, “तो बड़बड़ाओ मत, आप एक अलग आदेश पारित करें।”

खंडपीठ एक मामले में सुनवाई कर रही थी। इस दौरान दो जज एक दूसरे से सहमत नहीं थे। दोनों के बीच बहस होने लगी। यह बहस इतनी बढ़ी कि वरिष्ठ न्यायाधीश ने कनिष्ट को जमकर सुनाया। पीठ के पीठासीन सदस्य उठे, दूसरे को खूब फटकार लगाई और गुस्से में सुनवाई बीच में ही छोड़कर अपने कक्ष में चले गए। इस घटना से वहां मौजूद हर कोई भौचक रह गया।

कराधान संबंधी मामलों की सुनवाई के दौरान इस तरह की घटना से वकील भी हैरान रह गए। गुजरात अधिवक्ता संघ (जीएचएए) के एक वरिष्ठ सदस्य ने इस घटना को रेयर बताया। उन्होंने कहा कि शायद ही इससे पहले ऐसा हुआ होगा।

सुनवाई के दौरान, वरिष्ठ न्यायाधीश ने कनिष्ठ न्यायाधीश के आचरण, विशेष रूप से उनके दृष्टिकोण से असहमत होने की उनकी प्रवृत्ति पर असंतोष व्यक्त किया। एक आदेश का हवाला देते हुए, वरिष्ठ सदस्य ने कनिष्ठ न्यायाधीश से कहा, ‘तो आप यहां अलग हैं।’ जैसे ही जूनियर ने खुद को समझाने की कोशिश की, वरिष्ठ न्यायाधीश ने हस्तक्षेप किया, ‘आप एक मामले में अलग हैं, फिर दूसरे में अलग हैं।’

कनिष्ठ सदस्य ने समझाना जारी रखा, ‘यह अंतर का सवाल नहीं है..’ लेकिन वरिष्ठ सदस्य ने गुस्से में जवाब दिया, ‘तो फिर बड़बड़ाना मत।’ जैसे ही कनिष्ठ सदस्य ने यह कहना जारी रखा, ‘यह अंतर का सवाल नहीं है..’, वरिष्ठ ने अपना आपा खो दिया और कहा, ‘फिर एक अलग आदेश पारित करें। हम कोई और मामला नहीं ले रहे हैं। वह उठकर अपने कमरे में चले गए।

सूत्रों ने कहा कि पीठ दोपहर के भोजन के बाद के सत्रों में फिर से एकत्र हुई और मामलों की सुनवाई की। जीएचएए के सदस्य के अनुसार, न्यायाधीशों को सामान्य आधार नहीं मिलना कोई नई बात नहीं है और कनिष्ठ न्यायाधीशों की असहमति के विचार दर्ज करना आम बात है, लेकिन इस तरह की असहमति को खुले तौर पर और द्वेषपूर्ण तरीके से प्रसारित किया जाना असामान्य है।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

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