संसद को भरोसे में लेकर निरस्त किया गया अनुच्छेद 370: SC में बोले वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी

अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करने का निर्णय अकेले राजनीतिक कार्यपालिका का नहीं था, इसमें संसद को भी भरोसे में लिया गया था। सुनवाई के दौरान शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में हस्तक्षेप याचिका दायर करने वाले वकील अश्विनी उपाध्याय की तरफ से यह दलील रखी गई। बहस 4 सितंबर को भी जारी रहेगी। उपाध्याय की तरफ से दलील रखते हुए वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने कहा, अनुच्छेद 370 (3) में उल्लिखित ‘सिफारिश’ शब्द का अर्थ यह था कि अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के लिए जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा की सहमति आवश्यक नहीं थी।

उन्होंने आगे कहा, प्रावधान को निरस्त करना एक कार्यकारी निर्णय नहीं था और संपूर्ण संसद को विश्वास में लिया गया था जिसमें जम्मू-कश्मीर के संसद सदस्य (सांसद) भी शामिल थे।

अनुच्छेद 370 (3) कहता है कि इस अनुच्छेद के पूर्वगामी प्रावधानों में किसी भी बात के बावजूद, राष्ट्रपति सार्वजनिक अधिसूचना द्वारा घोषणा कर सकते हैं कि यह अनुच्छेद लागू नहीं होगा या केवल ऐसे अपवादों और संशोधनों के साथ और ऐसी तारीख से लागू होगा जो वह निर्दिष्ट कर सकता है बशर्ते कि राष्ट्रपति की ओर से ऐसी अधिसूचना जारी करने से पहले खंड (2) में निर्दिष्ट राज्य की संविधान सभा की सिफारिश आवश्यक होगी।

द्विवेदी ने जम्मू-कश्मीर संविधान सभा और भारतीय संविधान सभा के बीच को अंतर को स्पष्ट किया। उन्होंने कहा, जम्मू-कश्मीर के लिए संविधान बनाते समय इसकी संविधान सभा को वही स्वतंत्रता नहीं मिली थी जो भारत की संविधान सभा को प्राप्त थी।

द्विवेदी ने कहा, जम्मू-कश्मीर संविधान सभा भारतीय संविधान के विभिन्न आदेशों सहित विभिन्न चीजों से बंधी हुई थी। उन्होंने कहा, इसे न्याय, स्वतंत्रता, भाईचारा सुनिश्चित करना था। यह अनुच्छेद 1 के जरिये भी बंधा हुआ था। वह यह घोषित नहीं कर सका कि हम भारत की संघीय इकाई नहीं हैं। वे यह नहीं कह सकते थे कि उनके क्षेत्र का कोई भी हिस्सा भारत का हिस्सा नहीं हो सकता।।

सरकार के फैसले का बचाव करते हुए द्विवेदी ने कहा कि अनुच्छेद 370 को हमेशा एक अस्थायी प्रावधान ही माना गया। डॉ. बीआर आंबेडकर, एनजी आयंगर (संविधान सभा में), जवाहर लाल नेहरू और गुलजारी लाल नंदा (संसद में) के भाषण स्पष्ट संकेत देते हैं कि जम्मू-कश्मीर राज्य को अन्य राज्यों के समान देश में पूरी तरह से शामिल करने की परिकल्पना शुरुआत से ही की गई थी। इसलिए, भारत के संविधान में अनुच्छेद 370 का जिक्र एक अस्थायी और तत्कालिक व्यवस्था के रूप में किया गया है।

सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को अनुच्छेद 370 को खत्म किए जाने के खिलाफ दायर याचिकाओं पर 14वें दिन सुनवाई हुई। इसमें अखिल भारतीय कश्मीरी समाज की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता वी गिरी ने कहा कि संविधान सभा की अनुशंसा शक्ति का उद्देश्य संविधान सभा के जीवन के साथ सह-समाप्ति करना था जिसे राज्य का संविधान बनने के बाद भंग कर दिया गया था।

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत की संविधान पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है।

शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में अपनी दलील देते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता वी गिरी ने कहा कि इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन 27 अक्टूबर 1947 का है। जिसमें महाराजा हरि सिंह के बेटे युवराज कर्ण सिंह की घोषणा पर एक नजर डालें। युवराज के पास अनुच्छेद 370 समेत पूरा संविधान था। एक बार 370 हट जाए और जम्मू-कश्मीर का एकीकरण पूरा हो जाए तो संप्रभुता का प्रतीक कानून बनाने वाली शक्ति है। यह कानून बनाने की शक्ति संघ और राज्य दोनों के पास है।

उन्होंने कहा कि युवराज कर्ण सिंह के पास कोई भी अवशिष्ट संप्रभुता नहीं थी। उन्होंने सवाल उठाया कि अनुच्छेद 370 को स्थायी बनाने का तर्क क्यों है? क्या कोई अधिकार प्रदान करने के लिए यह तर्क दिया जा रहा? स्पष्ट रूप से नहीं। तो सवाल उठता है कि फिर किसलिए? उन्होंने आगे सवाल किया कि वह कौन सा अधिकार है, जिसके बारे में याचिकाकर्ता चिंतित हैं? यहां यह तर्क नहीं दिया जा सकता कि अनुच्छेद 370(3) के तहत राष्ट्रपति की शक्ति का उपयोग नहीं किया जा सकता है।

(जे.पी. सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

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