नई दिल्ली। बिहार सरकार ने धार्मिक जुलूसों में तलवार, भाले, आग्नेयास्त्र, लाठी और अन्य हथियारों के साथ-साथ उच्च-डेसीबल सार्वजनिक संबोधन प्रणाली और माइक के इस्तेमाल पर रोक लगा दी है। ऐसा सांप्रदायिक तनाव को रोकने के लिए किया गया है। नीतीश कुमार सरकार ने गुरुवार को सभी जिला मजिस्ट्रेटों और पुलिस अधीक्षकों को एक आदेश जारी कर अपने फैसले की जानकारी दी।
विशेष सचिव (गृह विभाग) और आईपीएस अधिकारी के.एस. अनुपम ने पत्र में कहा कि “ऐसे उदाहरण हैं जिनमें माइक्रोफोन या लाउडस्पीकर से उच्च-डेसीबल नारे लगाए गए और त्योहारों के समय धार्मिक जुलूसों के दौरान हथियारों के साथ प्रदर्शन किया गया, जिससे सांप्रदायिक तनाव और गंभीर कानून-व्यवस्था की स्थिति पैदा हो गई।”
बिहार सरकार ने सांप्रदायिक तनाव को रोकने के लिए धार्मिक जुलूसों में तलवार, भाले, आग्नेयास्त्र, लाठी और अन्य हथियारों के साथ-साथ उच्च-डेसीबल सार्वजनिक संबोधन प्रणाली और माइक के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया है। इस साल की शुरुआत में बिहार में कई सांप्रदायिक दंगे हुए थे।
पत्र में कहा गया है कि सिख धार्मिक समारोहों जैसी विशेष परिस्थितियों जिसमें कृपाण (घुमावदार ब्लेड वाले चाकू) ले जाने की अनुमति होती है, को छोड़कर धार्मिक जुलूसों के दौरान हथियार ले जाना शस्त्र अधिनियम के तहत प्रतिबंधित है।
पत्र में ये भी कहा गया है कि, ”अगर किसी धार्मिक जुलूस में किसी विशेष कारण से तलवार या कोई अन्य हथियार ले जाना जरूरी हो तो इसे ले जाने वाले व्यक्ति को प्रशासन से अनुमति लेनी होगी। इसके अलावा, प्रत्येक धार्मिक जुलूस की अनुमति देते समय 10 से 25 लोगों से उनके नाम, पते और आधार संख्या के साथ एक शपथ पत्र भी लिया जाएगा कि वे कानून-व्यवस्था को बनाए रखेंगे।”
धार्मिक जुलूसों के लिए अनुमति इस शर्त पर दी जाएगी की माइक और सार्वजनिक संबोधन प्रणाली का उपयोग केवल भीड़ को काबू में करने के लिए किया जाएगा और उनका डेसिबल स्तर किसी भी परिस्थिति में उस इलाके के लिए मुमकिन सीमा से ऊपर नहीं जाएगा। सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध मोबाइल ऐप्स की मदद से डेसीबल स्तर की जांच की जाएगी।
अनुपम ने द टेलीग्राफ को बताया कि, “हम स्कूलों, अस्पतालों, पूजा स्थलों और दूसरे अलग-अलग इलाकों के लिए डेसीबल स्तर पर सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों का पालन करेंगे। हमारा इरादा लोगों को परेशान किए बिना और नफरत फैलाए बिना धार्मिक जुलूसों की अनुमति देना है।”
उन्होंने कहा कि राज्य पुलिस का आतंकवाद निरोधी दस्ता कुछ समय से इस तरह के आदेश की मांग कर रहा था। प्रशासन यह सुनिश्चित करेगा कि धार्मिक जुलूसों की तस्वीरें और वीडियो कम से कम तीन महीने तक रिकॉर्ड और संग्रहीत किए जाएं, ताकि उनका उपयोग उल्लंघन करने वालों की पहचान करने और उन पर मामला दर्ज करने के लिए किया जा सके।
(‘द टेलिग्राफ’ में प्रकाशित खबर पर आधारित।)
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