वाराणसी/चंदौली। पैंतालीस डिग्री सेल्सियस तापमान। 32 किलोमीटर की तेज रफ़्तार से बहती गर्म पछुआ हवा। आग उगलते सूरज की वजह से सिर पर दहकता आसमान। दिन गुरुवार और समय यही कोई कलाई घड़ी में दो बजाकर मिनट की सुई आगे बढ़ रही है। 18-20 आम के पेड़ों के बगीचे की रखवाली में जुटे एक बुजुर्ग कभी बाग़ के इस कोने, कभी बाग़ के उस कोने थोड़े-थोड़े अंतराल पर जाकर पेड़ों से टपके कच्चे-पके आम को चुन रहे हैं।
वह एक हाथ में लाठी और एक हाथ में आम को लेकर वापस बगीचे के बीच घनी छाया में रखे झोले में रखते जा रहे हैं। अब ढाई बज चुके हैं। छोटे-बड़े साइज के आम से थैला भर गया है। वाराणसी से लगे चंदौली जनपद स्थित बरहनी विकास खंड के सत्तर वर्षीय आम बागवान राधे बिन्द को इस साल आम से मुनाफा की कोई उम्मीद नहीं बची है। लहकती दोपहर में भी उनका मोह आम के बगीचे के प्रति कम नहीं हुआ है।
अड़ा रहा पछुआ
राधे कहते हैं कि “फरवरी-मार्च में आम के पेड़ों में अच्छी बौर (मंजरी) आई थी। लेकिन बाद के दिनों में एक के बाद एक आई आंधी, बारिश, ओले और तूफ़ान ने बौर व टिकोरों को बेरहमी से झाड़ दिया। इतना ही नहीं फलों से लदे बड़ी-बड़ी टहनियों और डालों को तोड़कर जमीन पर धराशायी कर दिया। मेरे बाग में लंगड़ा आम के चार पेड़ हैं, एक को छोड़ सभी ने निराश किया है। कुदरत का कहर यहीं नहीं थमा। फरवरी में तापमान के औसत से ज्यादा होने से गेहूं, सरसों और अन्य तिलहनी फसलों के उत्पादन पर बुरा असर पड़ा।”
राधे आगे कहते हैं कि “वहीं, वातावरण समय से पहले गर्म होने से कई अहम् किस्म के आम के फलों का सामान्य से कम विकास हो पाया। हम लोग मई के पहले हफ्ते तक पछुआ के रुख बदलने का इंतज़ार करते रहे कि पछुआ घूमकर जब हवा पुरुआ बहेगी तो शायद आम के फलों के साइज की दिक्कत ख़त्म हो जाएगी, लेकिन न हवा का रुख बदला और न ही आम के फलों का विकास हो पाया। अब जो हैं उसी से संतोष करना पड़ रहा है। पिछले सालों में कम से कम फल-कृषि मंडी में बीस हजार रुपये का आम बेच देता था।”
भरपाई का कोई विकल्प नहीं
भारत में आम के सबसे बड़े उत्पादक राज्य में उत्तर प्रदेश अग्रणी है। देश का करीब 23 फीसदी आम का उत्पादन यूपी में होता है। इसमें लखनऊ बेल्ट के अलावा पूर्वांचल में वाराणसी, सोनभद्र, चंदौली, भदोही, इलाहाबाद, गाजीपुर, बलिया, मऊ, जौनपुर और आजमगढ़ में आम का उत्पादन होता है। इसमें बनारस के लंगड़ा आम का कोई सानी नहीं है। वाराणसी जिला बागवानी विभाग के आंकड़ों में 1600 से अधिक किसान सिर्फ लंगड़ा आम के उत्पादन से जुड़े हैं।
इसके अलावा वाराणसी समेत पूर्वांचल में दशहरी, सफे़दा, आम्रपाली, स्वर्णरेखा, चुस्की, कलमी, चौसा, तोतापरी, कोकिलवास, ज़रदालू, अषाढिया आदि किस्म के आम उत्पादक किसानों की संख्या करोड़ों में हैं। जैसे-तैसे बागों में आम की फसल तैयार हो चुकी है, लेकिन किसानों में इसकी खरीद-बिक्री को लेकर उत्साह देखने को नहीं मिल रहा है। किसानों का कहना है कि साल 2023 में आंधी, बढ़ते तापमान से कम उत्पादन मिला है। जिससे हुए आर्थिक नुकसान की भरपाई का कोई विकल्प नहीं दिख रहा है।
मैंगों ग्राउंड पर जीआई टैग बेअसर
चोलापुर प्रखंड के बरिसियानपुर में पचास बीघे में लगे आम बगीचे के बागवान राजेंद्र मौर्य, लंगड़ा आम को जीआई टैग मिलने के बाद भी नुकसान झेल रहे हैं। वह बताते हैं कि “120 लंगड़ा आम के पेड़ों के बाग को कुछ साल पहले मैं 62,000 रुपये में एक सीजन के लिए लीज पर देता था। अब मौसम की मार और कीटों का हमला झेलने के बाद 40,000 रुपये भी बड़ी मुश्किल से मिल रहे हैं।”
वो कहते हैं कि “इतना ही नहीं पहले आम का उत्पादन तकरीबन 60 टन (1 टन =1,000 किलोग्राम) होता था, अब उत्पादन घटकर लगभग आधा यानी 30 टन पर आ गया है। जो उत्पादन हो भी रहा है, उसमें बिचौलियों की समस्या है। वहीं जमीन, बाग, सिंचाई, कीटनाशक, खाद, निगरानी के लेकर तमाम अन्य चीजों पर पैसा खर्च होता है। इतना कुछ निवेश करने के बाद भी हमारे ही आम की फसल का हमसे ज्यादा मुनाफा बिचौलिया कमाते हैं। प्रशासन को इस पर ध्यान देना चाहिए।”
मौसम की मार से परेशान आम किसान
भारत में करीब 1500 वैरायटी के आम पाए जाते हैं। ऐतिहासिक शहर वाराणसी का लंगड़ा आम भी इसमें से एक महत्वपूर्ण और लजीज किस्म है। जापान, ब्रिटेन, दुबई, बांग्लादेश समेत गल्फ, एशिया व यूरोपीय देशों को अपने स्वाद का दीवाना बनाने वाले लंगड़ा आम के लाखों बागवान मौसम की मार, रोग और महंगाई से परेशान हैं। विदित हो कि लगड़ा आम के किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए 31 मार्च 2023 को प्रतिष्ठित भौगोलिक संकेत (जीआई) टैग के साथ प्रमाणित किया गया था। लेकिन इसका कोई खास असर मैंगों ग्राउंड पर नहीं दिखता है।
बनारस में अच्छे क्वालिटी का लंगड़ा आम 150 रुपये प्रतिकिलो बिक रहा है, जो एक बड़ी आबादी की पहुंच से बाहर है। वहीं, आम उत्पादक किसानों का कहना है कि बागवानों से व्यापारी 30-35 रुपये प्रति किलो के हिसाब से कच्चा आम खरीदकर ले जा रहे हैं, और बाजार में महंगे कीमत पर बेच रहे हैं। इससे आम उत्पादन का अधिक फ़ायदा बिचौलिए, आउट व्यापारी कमा रहे हैं।
‘इस बार भी कर्ज का बोझ चढ़ा रहेगा’
वाराणसी जनपद के सेवापुरी विकासखंड के पारवंदपुर-सजोई गांव के 39 वर्षीय कन्हैया की पीढ़ी आम के उत्पादन से जुड़ी हुई है। वह बताते हैं कि “दो साल से आम का उत्पादन अच्छा नहीं मिल रहा है, रोग की वजह से पौधे भी सूख रहे हैं। इस साल बौर और टिकोरा खूब आया। बाग़ में अच्छे बौर (मंजरी) देखकर तीस हजार रुपये में बाग़ लीज पर लिया था।”
कन्हैया बताते हैं कि “जनवरी के बाद फरवरी और मार्च में आई आंधी-तूफ़ान से आम के फलों को बहुत नुकसान हुआ। अप्रैल के अंत में सिर्फ एक दिन आई आंधी में मेरे बगीचे से पांच कुंतल आम के फल गिरकर बर्बाद हो गए। इतना नुकसान झेलने के बाद आम की बागवानी से मन उचट रहा है। मुझे उम्मीद थी कि इस बार फल बेचकर कुछ कर्ज चुकाऊंगा लेकिन, ऐसा मालूम पड़ रहा है कि लीज के रुपये भी निकलना मुश्किल होगा।
शोध रिपोर्ट ने बताई वजह
हीट वेव (लू) और क्लाइमेट चेंज बड़ी मुसीबत बन गए हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण बदलते मौसम और हीट वेव का कृषि और बागवानी पर क्या असर हुआ है, इसे लेकर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) से मई 2022 में आई रिपोर्ट में बताया गया कि “यूपी में इस साल (2022) मार्च के महीने में सामान्य से लगभग पांच डिग्री सेल्सियस ज्यादा तापमान होने से आम के मंजरी (बौर) को नुकसान हुआ है।
वहीं, परागण की क्रिया भी ठीक से नहीं हो पाई। इस कारण बहुतायत में झुमका रोग की समस्या देखने को मिली है। आम में झुमका रोग लगने पर यह मटर के दाने के बराबर होने के बाद गिर जाते हैं। वर्ष 2023 सीजन में किसानों का कहना है कि आंधी और बढ़ते तापमान से फल का पर्याप्त विकास नहीं हो सका है।”
रिपोर्ट में बताया गया कि “यूपी की तरह बिहार, मध्य प्रदेश और झारखंड के कई जिलों में भी हीट वेव की वजह से मंजरी गिरने के मामले आए हैं। मध्य प्रदेश के टीकमगढ़, झारखंड के गोड्डा और बिहार के दरभंगा जिले में फल का आकार छोटा रह जाने के मामले भी देखे गए। इस वर्ष फरवरी माह से चढ़े तापमान ने सरसों, गेहूं और फलों के उत्पादन पर असर देखने को मिला है।”
‘बढ़िया उत्पादन के लिए आम किसानों को जागरूक करेंगे’
वाराणसी जिला बागवानी अधिकारी ज्योति कुमार सिंह ने ‘जनचौक’ को बताया कि “हमने इस साल 2,100 टन लंगड़ा आम उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किया था। अब तक 1400 टन आम का उत्पादन दर्ज कर लिया है। विभाग द्वारा समय-समय पर किसानों को रोग, खाद, सिंचाई, तुड़ाई के लिए जागरूक किया जाता है, लेकिन जो किसान वैज्ञानिकों की सलाह को गंभीरता से नहीं लेते हैं, वे लक्ष्य से पिछड़ जाते हैं। लिहाजा, लंगड़ा समेत अन्य आमों के बढ़िया उत्पादन के लिए किसानों को जागरूक किया जाएगा।”
वहीं, कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) के क्षेत्रीय कार्यालय के मुताबिक जापान, बांग्लादेश, कोरिया और खाड़ी देशों में अच्छी डिमांड होने की वजह से इस बार 100 टन से ज्यादा लंगड़े आम के निर्यात का लक्ष्य रखा गया है।
मुनाफे के लिए मोनोपॉली
वाराणसी कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता और एक्टिविस्ट वैभव कुमार त्रिपाठी “जनचौक” से कहते हैं “बनारसी लंगड़ा आम को जीआई टैग मिलना अच्छी बात है। इसकी उपयोगिता को आम किसानों के बढ़ी आमदनी और सुविधा से लगाएंगे तो बनारस में लंगड़ा आम के किसान घाटे और कम कीमत मिलने से बदहवाश हैं। जीआई टैग का फायदा किसानों को न मिलकर कुछ मुट्ठी भर बिचौलियों को मिल रहा है।
वैभव कहते हैं कि “बिचौलिये बाजार में जीआई टैग की मोनोपॉली क्रिएट कर सबसे अधिक मुनाफा कमा रहे हैं। वहीं, बड़ी तादात में आम उत्पादक बागवान अच्छे बाजार और डिमांड को तरस रहे हैं। आम तुड़ाई के पीक पर अचानक से बाजार के डाउन होने से किसान संभल नहीं पाए हैं। कच्चे माल को अधिक समय तक रख भी नहीं सकते हैं, लिहाजा, जो भाव मिलता है, उसी में बेचने को विवश हैं।”
सरकार तय करे एमएसपी
वैभव आगे कहते हैं कि “मौसम की मार और बदलते पर्यावरणीय दशाओं ने आम के उत्पादन पर नकारात्मक असर डाला है। बेहतर होता कि सरकार और सम्बंधित विभाग आम किसानों के नुकसान का आकलन कर आर्थिक सहायता पहुंचाते। साथ ही साथ एक पारदर्शी और आसान बाजार मुहैया कराते, जिसमें आम किसान अपनी फसल को बगैर किसी बिचौलिए के चंगुल में आये बेच पाते।”
उन्होंने कहा कि “सराकर अन्य अनाजों की तरह आम का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) घोषित करे ताकि, बिचौलिए बागवानों की आम की फसल को औने-पौने दामों में नहीं खरीद सकें। तभी सही मायने में जीआई टैग का जमीन पर असर दिखेगा और बागवान/किसान भी खुशहाल होंगे।
(उत्तर प्रदेश के वाराणसी और चंदौली से पवन कुमार मौर्य की रिपोर्ट।)
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