ग्राउंड रिपोर्ट: छात्राओं की चीत्कार से गूंजता बीएचयू, कब सुनेगी सरकार?

वाराणसी। गुरुवार 23 नवंबर 2023 को दिन के यही कोई 2 बजने को हुए थे, जगह बीएचयू कैंपस, एक 22 वर्षीय लड़की एक हाथ में यही कोई दो पुस्तकें, एक रफ कापी को सहेजते अपनी हमउम्र एक अन्य लड़की के साथ तेज कदमों से मुख्य गेट से अंदर की ओर जा रही थी। लेकिन थोड़ा आगे बढ़ने के बाद दोनों लगातार पीछे की ओर भी मुड़ कर देखती जा रही थीं, दोनों के चेहरे दूर से बताने के लिए काफी थे कि उन्हें कोई भय है।

रुककर पूछे जाने पर वो कैमरा और बैग देख पूछ बैठती हैं कि “आप मीडिया के लोग हैं क्या?” हां कहते ही दूसरा सवाल दाग देती हैं, पहले कैमरा अंदर रखे.. उनकी बात पूरी होने से पहले ही जब उन छात्राओं से मुखातिब होते हुए कहा जाता है कि हम आपकी फोटो या बाइट नहीं लेंगे, बस यह जानना चाहते हैं कि आप दोनों थोड़ी घबराई हुई लग रही थीं, क्या बात है कहीं कोई परेशानी तो नहीं है?

इतना सुन दोनों एक लंबी सांस खींचकर बोलती हैं, नहीं कोई बात नहीं है। फिर क्यों घबराई हुई थी? सवाल करते ही दोनों छात्राएं बोल पड़ती हैं, कहती हैं “सर, दरअसल यहां मामला ही कुछ ऐसा है कि फूंक-फूंक कर कदम रखना पड़ता है। यहां के हालिया घटनाक्रम से आप अवगत ही होंगे, ऐसे माहौल में भला कैसे बिंदास होकर चला जाए?”

परिचय पूछने पर दोनों छात्राएं बस इतना ही बताती हैं कि वह दिल्ली से 2 वर्ष पूर्व शिक्षा ग्रहण करने यहां आई हैं। लेकिन हाल के दिनों में छात्राओं के ऊपर हो रहे हमले और भंग होती उनकी लज्जा को देख भय के मारे रोम-रोम सिहर उठता है।

इन छात्राओं की बातों और उनके डर में दम भी दिखाई देता है। यह तस्वीर वाराणसी के उस बीएचयू कैंपस की है जिसे महामना मदनमोहन मालवीय ने बसाया है। जहां के सांसद कोई और नहीं बल्कि देश के प्रधानमंत्री हैं। फिर भी यहां बेटियां (छात्राएं) अपने आप को सुरक्षित महसूस नहीं कर रही हैं।

दरअसल, इस भय के पीछे की वजह है काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) कैंपस में गन प्वाइंट पर छात्रा के साथ गैंगरेप के घटना। इस मामले ने यूपी सरकार के लॉ एंड ऑर्डर की पोल खोलकर रख दी है। इस मामले में दो संदिग्धों की गिरफ्तारी- जो फर्जी बताई जा रही है- के बाद मामले में पूरी तरह से पुलिस की चुप्पी पीड़िता के साथ खड़े हुए छात्र छात्राओं को कचोट रही है।

आश्चर्य की बात यह है कि इस घटना को हुए 23 दिन से ज्यादा होने को जा रहे हैं, लेकिन पुलिस के हाथ अभी तक खाली हैं। ठोस कार्रवाई और दुराचारियों की गिरफ्तारी अभी तक न होने से कैंपस में अशांति, अराजकता और भय का माहौल बना हुआ है।

बीएचयू के शोध छात्र रोशन कहते हैं, “बीएचयू में गैंगरेप की घटना को 23 दिनों से अधिक हो गए हैं, लेकिन न तो अभी दोषियों की पहचान हुई है और न ही कोई कार्रवाई। बीते कुछ सालों में परिसर में यौन हिंसा की कई ऐसी घटनाएं सामने आई हैं। लेकिन बीएचयू प्रशासन और यूपी पुलिस निष्क्रिय बने हुए हैं।”

रोशन चिंता प्रकट करते हुए कहते हैं, “हमेशा दोषियों को पकड़ने के बजाए पीड़िता को न्याय दिलाने की मांग करने वाले आम छात्र- छात्राओं पर फर्जी मुकदमें किए जाते हैं। आंदोलन को बदनाम किया जाता है और छात्रों को आपस में लड़ाकर पूरे मामले में लीपापोती की जाती है। आज भी यही हो रहा है।”

शोध छात्र रोशन की चिंता भी जायज है। उनके शब्दों में दर्द और कसक होने के साथ-साथ बीएचयू कैंपस में घटित होने वाली घटना को लेकर पीड़ा भी है। आखिरकार हो भी क्यों ना? ऐसे भय भरे माहौल और आराजकता के वातावरण में भला वह क्या अध्ययन और शोध कर पाएंगे। यह चिंता किसी एक छात्र की नहीं, बल्कि उन हजारों छात्रों की है जो यूपी ही नहीं दूसरे राज्यों से आकर यहां भविष्य की तलाश जुटे हैं लेकिन उनका सपना चकनाचूर होता नजर आने लगा है।

छात्रों की नाराज़गी के बाद बढ़ी सुरक्षा

छात्रा से गैंगरेप की घटना को पूरे 23 दिन हो गए हैं। बावजूद इसके पुलिस के हाथ मुख्य आरोपियों तक नहीं पहुंच पाए हैं। पुलिस ने नाम मात्र की दो गिरफ्तारी दिखा कर चुप्पी साध ली है। जिससे छात्रों का आक्रोश थमा नहीं है। दूसरी तरफ आईआईटी के छात्रों में भी पुलिस की इस शिथिलता से काफी नाराज़गी है।

बीटेक की छात्रा से बदलसलूकी के बाद जब बीएचयू के छात्रों ने अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए धरना-प्रदर्शन किया तब जाकर जिला प्रशासन ने पुलिस की कुछ टुकड़ियां सिंह द्वार से लेकर आईआईटी के गेट पर तैनात कीं। परिसर के कुछ तिराहों और चौराहों पर भी सुरक्षाकर्मियों के साथ एक-एक पुलिसकर्मी बैठने लगे हैं।

परिसर में लगभग दर्जन भर स्थानों पर यूपी पुलिस के बोर्ड लग चुके हैं जिन पर लिखा है- ‘आप सीसीटीवी कैमरे की निगरानी में हैं’। इसी के साथ ही बीएचयू कंट्रोल रूम, आईआईटी कंट्रोल रूम, बीएचयू चौकी, वोमेन हेल्पलाइन, सिटी कंट्रोल रूम, एसीपी भेलूपुर, एसएचओ लंका और डायल 112 का नम्बर लिखा हुआ है।

छात्र नेता आकांक्षा आजाद “जनचौक” को बताती हैं कि “शैक्षिक संस्थानों में महिलाओं पर बढ़ती यौन हिंसा और प्रशासन की अभूतपूर्व नाकामी, ठोस कार्रवाई के बजाय मामले को दबाने की कवायद बेहद चिंतनीय है।” वह कहती हैं कि “बीएचयू की दो छात्राओं के साथ हुई लज्जाजनक घटनाओं ने देश का सिर शर्म से नीचे कर दिया है। दोनों घटनाओं की रिपोर्ट विश्वविद्यालय प्रशासन को बिना देरी किए दी गयी, बावजूद इसके प्रशासन ने कुछ भी नहीं किया, जो छात्र-छात्राओं के आक्रोश का कारण बना हुआ है।”

आकांक्षा बताती हैं, “जब छात्र दोषी लोगों को पकड़ने और दंडित करने की मांग पर अडिग रहे तो पुलिस द्वारा उन पर हमला कराया गया, छात्र-छात्राओं को पीटा गया, उन्हें अपमानित किया गया। सबसे दुःखद पहलू तो यह रहा है कि छात्रों का ही एक समूह- जो सत्ता के बहुत निकट है- इस हमले में शामिल रहा।”

बकौल आकांक्षा आजाद “हम विश्वविद्यालय प्रशासन और राज्य प्रशासन से मांग करते हैं कि बीएचयू में छात्राओं के साथ घटी घटनाओं के दोषी लोगों को बिना देरी और बिना पक्षपात के पहचाना जाये, उन्हें दंडित किया जाये और आंदोलनकारी छात्रों के आवाज़ उठाने के अधिकार को सुरक्षित किया जाये।” वह कहती हैं “वास्तव में प्रशासन को तो ऐसी घटनाओं को नियंत्रित न कर पाने के लिये आम छात्रों से माफ़ी मांगनी चाहिये। लेकिन यहां तो गलत के खिलाफ आवाज उठाने वाले लोगों को ही फंसाया जा रहा है।”

वाराणसी के पत्रकार राजीव मौर्य बीएचयू की हालिया घटना को शर्मनाक बताते हुए कहते हैं, “एक तरफ तो सरकार नारी सुरक्षा और नारी स्वावलंबन की बात करती है। बढ़े बेटियां-पढ़े बेटियां का नारा बुलंद करती है। वहीं दूसरी ओर शिक्षण संस्थानों में महिलाओं और बेटियों का चीरहरण हो रहा है, जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह सरकार किस प्रकार से बेटियों की सुरक्षा कर रही है।”

सोशल वर्कर प्रज्ञा सिंह बीएचयू की घटना पर कहती हैं, “यह दुर्भाग्यपूर्ण नहीं तो और क्या कहा जाएगा कि यह घटना उस क्षेत्र में घटती है जहां के सांसद देश के प्रधानमंत्री हैं। और इससे भी घोर आश्चर्य की बात यह है कि अभी तक ना तो इस मुद्दे पर देश के प्रधानमंत्री ने और ना ही किसी सत्ताधारी दल के जनप्रतिनिधि ने कुछ बोला और ना ही पीड़ित छात्रों से मिलकर उनके आंसू पोछना मुनासिब समझा।”

सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता मनीष शर्मा का मानना है कि “बीएचयू और वाराणसी पुलिस प्रशासन पूरी तरह से किसी के दबाव में कार्य कर रहा है। जिस प्रकार से बीएचयू कैंपस में छात्रा के साथ यौन हिंसा की घटना घटित हुई है वह निंदनीय तो है ही उससे भी निंदनीय पुलिसिया कार्रवाई है, जो छात्रों को उद्वेलित कर रही है।” वह सवाल दागते हैं कि “आखिरकार ऐसी घटनाएं कब थमेंगी, कब पुलिस और बीएचयू प्रशासन कठोर रुख अख्तियार करेगा?”

दीवार खड़ा कर बिगाड़ रहे बीएचयू का स्वरूप

बीएचयू के हालिया घटनाक्रम को लेकर छात्रों के साथ समाज के प्रबुद्ध लोगों में भी आक्रोश है। लोगों का कहना है कि इस तरह की घटनाएं अशोभनीय होने के साथ-साथ महामना की सोच और सपने के भी विपरीत हैं। इस घटना के बाद कैंपस में जगह-जगह दीवार उठाए जाने को लेकर भी सवाल उठाए जा रहे हैं।

लोगों का कहना है कि यह तो कैंपस के स्वरूप को ही कुरूप बनाए जाने जैसा है। सुरक्षा और ठोस कार्रवाई के बजाय सुरक्षा के नाम पर दीवार का खड़ा किया जाना नाकामियों पर पर्दा डालने सरीखा है। जिसे कहीं से भी उचित नहीं कहा जा सकता है। लोगों का सामूहिक मत है कि कैंपस में जगह-जगह दीवार उठाए जाने से महामना द्वारा बसाई गई बगिया की हरियाली और भव्य दृश्य विलुप्त हो जायेगें।

वैशाली पांडेय तंज कसते हुए कहती हैं “बीएचयू के पूरे कैम्पस में बाउंड्रीवॉल है, बावजूद इसके छात्राएं सुरक्षित नहीं हैं, फिर हर फैकल्टी के लिए बाउंड्रीवॉल खड़ा करने से क्या सुरक्षा व्यवस्था दुरुस्त हो जाएगी? और तो और फिर तो यूनिवर्सिटी का कॉन्सेप्ट ही खत्म हो जाएगा?” वह कहती हैं “यह तो समस्या का समाधान नहीं है, यह तो महामना पंडित मदनमोहन मालवीय की मूल भावना से खिलवाड़ जरूर कहा जाएगा।”

छात्र संगठन ABVP को मिल रहा सरकारी संरक्षण

बीएचयू कैंपस के लंका गेट पर 3 नवम्बर से पीड़िता को न्याय दिलाने, दीवार उठाने के फैसले के ख़िलाफ़ और परिसर में छात्राओं की सुरक्षा के लिए GSCASH का गठन करने जैसे तमाम मुद्दों पर धरनारत छात्र-छात्राओं पर एबीवीपी द्वारा हमले और न्याय की मांग करने वाले छात्राें पर ही एफआईआर दर्ज़ करने की छात्र संगठनों ने कड़ी निन्दा की है।

आइसा, बीएसएम और दिशा संगठन ने साझा बयान ज़ारी करते हुए कहा कि “पुलिस प्रशासन, एबीवीपी और विश्वविद्यालय प्रशासन का त्रिकोण परिसर के जनवादी माहौल को तहस-नहस करने में लगा हुआ है। आन्दोलनरत छात्र-छात्राओं पर हमला करना और उन पर गम्भीर धाराओं में एफ़आईआर दर्ज़ करना इनकी मंशा को दर्शाता है।

बताते चलें कि 3 नवंबर 2023 को बीएचयू के छात्रों द्वारा यह धरना शुरू किया गया था। धरने के तीसरे दिन 5 नवम्बर को धरना स्थल पर प्रॉक्टोरियल बोर्ड ने धरने में शामिल छात्र-छात्राओं के साथ मारपीट की। यही नहीं प्रदर्शन में शामिल बीएचयू के आयुर्वेद संकाय के शोध छात्र रोशन को पुलिस उठा भी ले गयी।

लोकतांत्रिक तरीके से प्रदर्शन कर रहीं छात्राओं के साथ भी प्रॉक्टोरियल बोर्ड द्वारा बदसलूकी की गयी। पुरुष गार्डों ने छात्राओं के साथ धक्का मुक्की की और महिला सुरक्षा गार्डों ने छात्राओं के गुप्तांगों पर बेरहमी से हमला किया। आरोप है कि इस दौरान बड़ी संख्या में एबीवीपी के कार्यकर्ताओं ने हमला किया। उन्होंने यह झूठ फैलाना शुरू किया कि धरना कैम्पस के सवालों पर नहीं हो रहा।

पुलिस प्रशासन की उपस्थिति में एबीवीपी के कार्यकर्ताओं ने आंदोलनरत छात्र-छात्राओं पर कई बार हमला किया। कई छात्राओं के कपड़े फाड़ दिए गए। उनके साथ छेड़खानी, गाली गलौज करते हुए धमकियां दी गईं। जो पुलिस छात्रों पर लाठी बरसाने के लिए तैयार थी, वह इनकी (एबीवीपी) गुंडागर्दी पर मूकदर्शक बनी रही।

बाद में एबीवीपी के लोगों ने नकली मरहम-पट्टी करवाकर उल्टे आन्दोलनरत छात्र संगठनों पर ही हिंसा का आरोप मढ़ दिया तथा टीवी चैनलों और सोशल मीडिया के माध्यम से दुष्प्रचार करना शुरू कर दिया। प्रदर्शनकारी छात्रों पर ही गम्भीर धाराओं में मुकदमें दर्ज़ कर दिये गये।

धरना स्थल पर एबीवीपी द्वारा हमला करना कोई अकस्मात घटना नहीं थी, यह सुनियोजित साज़िश थी। इस पूरे मामले की सच्चाई को इसी से समझा जा सकता है कि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की जो छात्राएं हमला करने के बाद मीडिया को बयान देते समय बिलकुल ठीक थीं, उन्होंने शाम को मरहम पट्टी कराकर ख़ुद के पीड़ित होने का झूठ फैलाया।

इतना ही नहीं, पहले दिन आन्दोलन में शामिल होने वाली छात्राओं को एबीवीपी की ओर से रोकने की कोशिश की गयी। आन्दोलन के समर्थन में एमएमवी में अभियान चला रही छात्राओं को एबीवीपी की महिला कार्यकर्ताओं द्वारा धमकी दी गयी। एबीवीपी द्वारा धरनास्थल पर पहुंच कर अराजकता फैलाने की कोशिश की गई। जिसकी आशंका प्रदर्शनकारी छात्रों ने पहले ही प्रॉक्टोरियल बोर्ड से लिखित रूप में जाहिर की थी।

दिशा के प्रभारी अमित की माने तो “एबीवीपी जैसे संगठन पूरे कैम्पस में दीवार उठाने के नाम पर इस पूरे प्रकरण को एक भावनात्मक मुद्दा बनाने में लगे हुए थे, उनके बरक्स इस धरने में पीड़िता को न्याय और सुरक्षा के सवाल को एक ठोस सवाल बनाते हुए प्रशासन की जवाबदेही सुनिश्चित करने की बात की जा रही थी, जिससे प्रशासन घबराया हुआ था। पुलिस प्रशासन और सरकार पर सवाल न उठे, इसलिए विद्यार्थी परिषद के द्वारा इस तरह के फर्ज़ी दुष्प्रचार किए जा रहे हैं।”

छात्रों की माने तो इस मामले पर बीएचयू के चीफ प्रॉक्टर शिव प्रकाश सिंह ने एबीवीपी का पक्ष लेते हुए झूठा बयान दिया कि एबीवीपी की दो छात्राओं के हाथ और पैर में फ्रैक्चर हुआ है, जिसका इलाज उन्होंने ट्रॉमा सेंटर में करवाया है। चीफ प्रॉक्टर होकर भी उनके द्वारा ऐसा बयान देना शर्मनाक है। इस पूरे मामले को लेकर छात्रों की तरफ़ से भी तहरीर देने का प्रयास किया गया, लेकिन चीफ प्रॉक्टर ऑफिस ने उसको फॉरवर्ड करने से साफ़ इंकार कर दिया, जिससे इनका पक्षपात साफ़ नज़र आता है।

 छात्रों की मांगों से क्यों भाग रहा प्रशासन?

गैंगरेप मामले को लेकर बीएचयू के छात्र शुरू से ही 6 सूत्रीय मांगों को लेकर अपनी आवाज बुलंद करते आए हैं, लेकिन बीएचयू प्रशासन शुरू से ही उन्हें नजरअंदाज करता आया है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिरकार क्यों पीड़ित छात्रों की मांगों पर कार्रवाई के बजाय बीएचयू प्रशासन चुप्पी साधे हुए है। पीड़ित छात्रों की माने तो वह शांति पूर्वक न्योचित कार्रवाई की बात करते आ रहे हैं जिनमें यह मांगें शामिल हैं..

1. पीड़िता को जल्द से जल्द न्याय सुनिश्चित किया जाये, अपराधियों की जल्द से जल्द गिरफ्तारी की जाए।

2. आन्दोलनकारी छात्रों पर दर्ज मुक़दमे रद्द किये जाएं।

3. एबीवीपी की तरफ से एफआईआर दर्ज़ कराने वाली छात्राओं की मेडिकल जांच करायी जाए।

4. झूठे बयान देने पर चीफ प्रॉक्टर छात्रों से माफ़ी मांगें और इसके लिए उनको बर्खास्त किया जाय।

5. कमेटी गठित करके पूरे प्रकरण की जांच कराई जाये।

6. आन्दोलनरत छात्रों की मांगें जल्द से जल्द पूरी की जाएं।

आइसा की नेशनल जॉइंट सेक्रेटरी चन्दा का कहना है कि “चीफ प्रॉक्टर दबाव में आकर दोहरी नीत अपनाते आ रहे हैं। वह पीड़ित छात्रों से सहानुभूति जताने के बजाय उनकी आवाज को कुचलने का कुचक्र करते आ रहे हैं। जो कहीं से भी उचित नहीं कहा जा सकता।” चन्दा तंज कसते हुए कहती हैं कि “क्या बीएचयू कैंपस एक विशेष संगठन की निजी जागीर बनकर रह गया है।”

कैंपस में छात्राओं को मिले सुरक्षित माहौल

मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल ने उत्तर प्रदेश के विश्वविद्यालय परिसरों में छात्र-छात्राओं पर बढ़ते दमन के प्रति अपनी चिंता व्यक्त की है। पीयूसीएल उत्तर प्रदेश की अध्यक्ष सीमा आज़ाद कहती हैं, “एक महीने के अंतराल पर उत्तर प्रदेश स्थित 3 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में घटी घटनाएं यह बताती हैं कि विश्वविद्यालय कैंपस न तो छात्राओं को सुरक्षित माहौल दे पा रहे हैं, न ही छात्र- छात्राओं के मौलिक, संवैधानिक, राजनीतिक अधिकारों की रक्षा कर पा रहे हैं।”

उन्होंने कहा कि “बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, इलाहाबाद विश्वविद्यालय और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय परिसरों से छात्रों के राजनीतिक अधिकारों पर दमन और छात्राओं पर यौन हमले की खबरें लगातार आ रही हैं, जो बहुत ही चिंताजनक हैं। अगर हम छात्र-छात्राओं को उनके अधिकारों और कर्तव्यों का एहसास कराने वाला एक सुरक्षित परिसर नहीं दे सकेंगे, तो हम पूरे देश में भी शांत, समृद्ध, लोकतांत्रिक माहौल की उम्मीद नहीं कर सकेंगे।”

सीमा आजाद कहती हैं कि “2017 से ही बीएचयू परिसर लड़कियों की सुरक्षा को लेकर सवालों के घेरे में है। यही कारण है कि यहां लड़कियों के कई बड़े प्रदर्शन हो चुके हैं, लेकिन बीएचयू प्रशासन लड़कियों की मांगों को लगातार नजर अंदाज करते आया है। यहां तक कि महिला सुरक्षा कानून के आदेशानुसार जीएसकैश तक की स्थापना वह नहीं कर सका है।”

प्रशासन की हठधर्मिता

बीएचयू के आईआईटी कैंपस में 1 नवंबर 2023 घटी यौन उत्पीड़न की घटना के बाद पीड़िता ने बहादुरी दिखाते हुए एफआईआर दर्ज कराई। आईआईटी बीएचयू के हज़ारों छात्र-छात्राएं सड़क पर उतर आए। प्रशासन सुरक्षा से जुड़े सभी तकनीकी मांगों को आनन-फानन में मानकर इस आंदोलन को खत्म कराने में भी सफल रहा है, लेकिन इसमें दोषियों की पहचान कर उन्हें दंडित किए जाने का कोई आश्वासन न होने के कारण अगले ही दिन से बीएचयू के मुख्य द्वार पर छात्र-छात्राओं और संगठनों ने धरना देना शुरू कर दिया।

विश्वविद्यालय प्रशासन आंदोलनरत छात्रों से बात कर उनकी मांगों को मानने की बजाय इसे लंबा खिंचने दिया। आंदोलन में शामिल छात्राओं पर वॉर्डन और प्रशासन द्वारा दबाव बनाया गया। सरकार से जुड़े छात्र संगठन एबीवीपी से उनकी झड़प को आमंत्रित किया गया। 5 नवंबर को एबीवीपी के साथ छात्र-छात्राओं की झड़प के बाद यह आंदोलन भले ही समाप्त हुआ है, लेकिन अभी भी पीड़िता को न्याय नहीं मिला है। ना ही आरोपियों की गिरफ्तारी हो पाई है।

आंदोलनकारी छात्रों ने दी थी हमले की योजना की जानकारी

आंदोलनकारी छात्रों ने पुलिस आयुक्त को 6 नवंबर 2023 को जो पत्र दिया था उसमें कहा गया था कि उन्होंने (छात्रों) प्रॉक्टोरियल बोर्ड को इसकी सूचना दी थी कि ‘कुछ अराजक तत्व उनपर हमले की योजना बना रहे हैं।’ लेकिन इसके बाद भी प्रशासन ने मांगे न मानते हुए आंदोलन जारी रहने दिया और हमला होने दिया।

प्रॉक्टोरियल बोर्ड इस पूरे मामले में इसलिए भी संदेह के घेरे में आ गया है कि घटना के बाद चीफ प्रॉक्टर का यह बयान अखबारों में प्रकाशित हुआ है कि उन्होंने एबीवीपी से जुड़ी दो छात्राओं जिनके हाथ और पैर टूट गए थे, का ट्रामा सेन्टर में इलाज कराया। अगले ही दिन इनमें से एक का घटना के तुरंत बाद एक न्यूज चैनल को दिया जा रहा इंटरव्यू सामने आया, जिसमें उसके दोनों हाथ सही सलामत दिख रहे हैं और वह इसे साधारण मार-पीट का मामला बता रही है।

लेकिन इसी लड़की की ओर से अगले दिन भोर में आंदोलनकारी 15 नामजद और कई अज्ञात छात्र-छात्राओं पर लिखाई गई एफआईआर में उनपर एससी, एसटी एक्ट सहित गंभीर धाराएं लगाई गई हैं। जिसमें उनकी तुरंत गिरफ्तारी हो सकती है। यह अपनी जायज़ मांगों को लेकर किए जाने वाले शांतिपूर्ण आंदोलनों का अपराधीकरण करने की साजिश हैं, ताकि जायज़ मांगों को लेकर चल रहे आंदोलन को बदनाम किया जा सके।

पीड़ित छात्रों का आरोप है कि “अब तक कई वीडियो और बयानों से यह बात सामने आ रही है कि विश्वविद्यालय के चीफ प्रॉक्टर एबीवीपी के साथ मिलकर इस मुकदमें को झूठ की बुनियाद पर तैयार कर रहे हैं। यह गंभीर जांच का विषय बन गया है। बिना उच्च स्तरीय कमेटी (जिसमें नागरिक समाज के लोग भी शामिल हों) की जांच के इस मुकदमे में कोई गिरफ्तारी नहीं होनी चाहिए। जांच में यदि झूठा मुकदमा दर्ज कराने की बात सामने आती है तो मुकदमा निरस्त करने के साथ चीफ प्रॉक्टर सहित सभी शामिल लोगों पर मुकदमा दर्ज होना चाहिए।

बीएचयू में नहीं थम रहा है छात्राओं के साथ अपराध

आईआईटी छात्रा से छेड़खानी के बाद बीएचयू कैंपस में सीसीटीवी कैमरे भले दी बढ़ा दिए गए हैं, लेकिन बीएचयू कैंपस में छात्राओं संग अपराध और छेड़खानी की घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही है। आईआईटी बीएचयू कैंपस में छात्रा से सामूहिक दुष्कर्म की घटना का खुलासा अभी तक नहीं हो सका था कि इसी बीच मंगलवार, 21 नवंबर 2023 को बीएचयू कैंपस में चलने वाली बस में बीकॉम की छात्रा से छेड़खानी हो गई। इस बार छेड़खानी का आरोप चीफ प्रॉक्टर कार्यालय के बस चालक पर लगा है।

घटना से नाराज छात्रा और कुछ अन्य छात्रों का दल चीफ प्रॉक्टर कार्यालय पहुंच कर नाराजगी जताई तो आनन-फानन में चीफ प्रॉक्टर प्रो. शिवप्रकाश सिंह ने मामले की जांच होने तक आरोपी सुरक्षाकर्मी को नौकरी से हटा दिया है। साथ ही जांच के लिए दो सदस्यीय कमेटी गठित कर दी है। कहा गया है कि कमेटी जल्द ही रिपोर्ट देगी।

बताते चलें कि बीएचयू परिसर में छात्र-छात्राओं की सुविधा के लिए चीफ प्राॅक्टर कार्यालय से बस चलवाई जाती है। संकाय के छात्र-छात्राएं बस से परिसर स्थित विश्वनाथ मंदिर और मुख्य द्वार तक जाते हैं। सभी बसों के चालक बीएचयू के सुरक्षाकर्मी ही हैं।

बताया जा रहा है कि मंगलवार को दोपहर बाद बीकॉम की छात्रा वाणिज्य संकाय से निकली और बस में सवार होकर मुख्य द्वार जा रही थी कि इसी बीच बस चालक (सुरक्षाकर्मी) ने छात्रा से छेड़खानी कर दी। इससे छात्रा परेशान हो गई और बस से उतरकर तेजी से भागी। छात्रा ने घटना की जानकारी कुछ सहपाठियों को दी, फिर देर शाम करीब साढ़े पांच बजे चीफ प्रॉक्टर आफिस पहुंच शिकायत दर्ज करवाई।

महिला प्रॉक्टर के समक्ष फफक पड़ी छात्रा

बीएचयू के वाणिज्य संकाय की जिस छात्रा के साथ छेड़खानी हुई है, वह अभी भी डरी हुई है। मामले की जानकारी मिलते ही प्रॉक्टोरियल बोर्ड में शामिल दो महिला प्रॉक्टर को भी बुलाया गया। दोनों महिला प्रॉक्टर ने चीफ प्रॉक्टर कार्यालय के एक कमरे में छात्रा से बात की और घटना की जानकारी ली तो आपबीती बताते हुए छात्रा फफक पड़ी।

छात्रा ने बताया कि वह परिसर में पहले भी बस से आती-जाती रही है, लेकिन कभी इस तरह की घटना नहीं हुई। बस से उतरते समय चालक (सुरक्षाकर्मी) ने छेड़खानी की तो वह डर गई। उस समय बस में बैठे सभी छात्र-छात्रा उतरकर चले गए थे। हालांकि महिला प्रॉक्टर ने छात्रा को इस मामले में ठोस कार्रवाई का भरोसा दिलाया है।

चीफ प्रॉक्टर प्रो. शिवप्रकाश सिंह ने बताया कि प्रो. ललिता वत्ता और प्रो. गायत्री राय मामले की जांच करेंगी। दोनों सदस्य मामले की शिकायत करने वाली छात्रा और आरोपी सुरक्षा कर्मी से पूछताछ कर अपनी रिपोर्ट देंगी। इसके आधार पर आगे की कार्रवाई की जाएगी।

भगत सिंह छात्र मोर्चा की सचिव इप्शिता का कहना है कि “21 नवंबर 2023 को दोबारा आया मामला भी यौन हिंसा से जुड़ा हुआ है। जो दर्शाता है कि बीएचयू कैंपस दहशतगर्दो की जद में आ गया है।” वह बताती हैं कि “इस मामले में बीएचयू प्रशासन ने कहा है कि एक कमेटी गठित करेंगे। लेकिन जब भी यौन हिंसा के मामले में GSCASH की मांग करो तब प्रशासन बोलता है कि वूमेन सेल है।”

इप्शिता ने कहा कि “अगर बीएचयू में विमेन सेल है, तो जब भी इस तरह के मामले आते हैं तो हर बार जांच के लिए कोई नई कमेटी क्यों गठित की जाती है? विमेन सेल क्यों नहीं काम करता है? सीधा मतलब है कि कोई भी ऐसी कमेटी नहीं है, लेकिन जब इस सवाल को उठाया जाता है तो कमेटी अचानक से अस्तित्व में आ जाती है।”

घाट पर संगठनों ने दिया धरना, इंस्पेक्टर को सौंपा ज्ञापन

आईआईटी बीएचयू में 1 नवंबर की रात टहल रही छात्रा के साथ तीन युवकों द्वारा सामुहिक दुष्कर्म और घटना का वीडियो बनाए जाने के मामले में अब तक आरोपियों की गिरफ्तारी न होने को लेकर आइसा, ऐपवा और आरवाईए ने 16 नवंबर को शास्त्री घाट कचहरी पर धरना-प्रदर्शन किया।

इन संगठनों ने अपना चार सूत्रीय ज्ञापन इंस्पेक्टर कैंट को सौंपा। धरनास्थल पर सभा का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता किसान नेता और ऐपवा की पूर्व राज्य अध्यक्ष कृपा वर्मा ने किया।

इस दौरान अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन की प्रदेश सचिव कुसुम वर्मा ने कहा कि “आईआईटी (बीएचयू) की छात्रा के साथ हुए गैंग रेप की घटना के दो सप्ताह बीत जाने के बाद भी अपराधियों को यूपी पुलिस पकड़ नहीं सकी है। उल्टे एकतरफा सक्रियता दिखाते हुए पीड़िता के लिए न्याय की मांग कर रहे छात्र-छात्राओं पर ही एफआईआर दर्ज कर दी है, जो घृणित है। इस मसले पर चुप न बैठने का ऐलान करते हुए उन्होंने कहा कि वाराणसी पुलिस और बीएचयू प्रशासन एक तरफा कार्रवाई कर रहा है।”

विरोध बढ़ा तो बढ़ाई गई धारा

बीएचयू आईआईटी की छात्रा के साथ 1 नवंबर की रात हुए गैंगरेप मामले में पुलिस ने लंका थाने में दर्ज मुकदमे में सामूहिक दुष्कर्म और इलेक्ट्रॉनिक साधनों के जरिये यौन उत्पीड़न करने से संबंधित धारा बढ़ाई है। पुलिस के मुताबिक यह दोनों धाराएं पीड़िता के बयान के आधार पर बढ़ाई गई हैं।

छात्रा के बयान के आधार पर लंका थाने की पुलिस ने दर्ज मुकदमें में आईपीसी की धारा 376D (सामूहिक दुष्कर्म) और महिला के मर्यादा का अपमान (509) को भी शामिल किया है। इसी के साथ ही अब तक इस मामले में दर्ज मुकदमे की विवेचना लंका थाना प्रभारी इंस्पेक्टर (अपराध) सहजानंद श्रीवास्तव कर रहे थे। दर्ज मुकदमे में आईपीसी की धारा 376 (D) और 509 को बढ़ोतरी होने के बाद अब इस मुक़दमें की विवेचना लंका थानाध्यक्ष शिवाकांत मित्र को सौंप दी गई है।

वहीं वाराणसी के पुलिस आयुक्त मुथा अशोक जैन का कहना है कि “आरोपी बचने वाले नहीं हैं। वह किसी भी कीमत पर सलाखों के पीछे होंगे। पीड़िता का बयान पुलिस के साथ ही साथ मजिस्ट्रेट के समक्ष भी दर्ज हो चुका है। जिसके आधार पर मुकदमे में और भी धाराएं बढ़ाई गई हैं।”

गिरफ्तारी तो दूर, आरोपियों की पहचान तक नहीं हो पाई

छात्रा से गैंगरेप मामले में 23 दिन बाद भी पुलिस लकीर ही पीटती नजर आ रही है। आरोपियों की गिरफ्तारी तो दूर उनकी अभी तक पहचान भी नहीं हो पाई है। दूसरी ओर विभिन्न संगठनों समेत समाजवादी पार्टी, कांग्रेस के लोगों ने भी इसका विरोध करते हुए बीएचयू के लिए इसे शर्मनाक बताया है।

बीएचयू कैंपस में छात्रा के साथ गैंगरेप के बाद एक और छात्रा संग हुई छेड़खानी की घटना को लेकर छात्रों में नाराज़गी बरकरार है। सवाल उठ रहे हैं कि पीड़िता के साथ न्याय कब होगा? महामना की बगिया में नारी चीत्कार आखिरकार कब तक?

(वाराणसी से संतोष देव गिरी की ग्राउंड रिपोर्ट)

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