Raseshwari Panigrahi

बीजद को लगा झटका, टिकट न मिलने से नाराज पाणिग्रही का इस्तीफा

एक तरफ जहां भाजपा ने लोकसभा चुनाव 2024 में अपने कई नामचीन नेताओं, पूर्व सांसदों को टिकट नहीं दिया है, बावजूद एकाध को छोड़कर लगभग लोग चुप्पी साधे हुए हैं उसका कारण जो भी हो। वहीं विपक्ष के लगभग नेताओं के, टिकट नहीं मिलने या टिकट काट दिए जाने से बागी तेवर साफ दिख रहें हैं, जिसका लाभ लेने में भाजपा आगे दिख रही है। इस तरह के घटनाक्रम देश के लगभग सभी राज्यों में दिख रहे हैं।

ओडिशा के संबलपुर में लोकसभा चुनाव में टिकट न मिलने से नाराज बीजू जनता दल की कद्दावर नेता और संबलपुर की पूर्व विधायक डॉ. रासेश्वरी पाणिग्रही ने गत 24 अप्रैल को पार्टी से इस्तीफा दे दिया। इससे यहां बीजद को तगड़ा झटका लगा है। जिससे पाणिग्रही के समर्थकों में नाराजगी साफ देखी जा रही है। पार्टी में हो रहे बिखराव का सबसे अधिक नुकसान बीजद के महासचिव और संबलपुर से लोक सभा उम्मीदवार प्रणब प्रकाश दास उर्फ बॉबी दास को होने की संभावना दिख रही है। वहीं केंद्रीय मंत्री और संबलपुर से भाजपा के लोकसभा उम्मीदवार धर्मेन्द्र प्रधान को इसका फायदा मिलता नजर आ रहा है। 

उल्लेखनीय है कि डॉ रासेश्वरी पाणिग्रही द्वारा बीजद छोड़ने का उनका फैसला ऐसे समय में आया है जब केन्द्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के नेतृत्व में भाजपा अपनी पकड़ मजबूत करने में लगी है, वहीं बीजद संबलपुर क्षेत्र में अपना आधार बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रही है।

2014 में विधानसभा चुनाव में लगभग 10,000 वोट से जीत दर्ज करने वाली डॉ. पाणिग्रही पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा से 4,380 वोटों के कम अंतर से हार गई थीं, लेकिन उन्हें जिले में बीजद का सबसे मजबूत चेहरा माना जाता है। उनके मजबूत संगठनात्मक कौशल और बीजद के जमीनी कार्यकर्ताओं के साथ गहरे संबंध के कारण उनके पार्टी छोड़ने से बीजद की न केवल संबलपुर विधानसभा में, बल्कि आसपास की अन्य सीटों पर भी असर पड़ेगा।

मुख्यमंत्री और बीजद सुप्रीमो नवीन पटनायक को अपना इस्तीफा सौंपने के बाद मीडियाकर्मियों को संबोधित करते हुए रासेश्वरी ने कहा कि “मैंने संबलपुर की गरिमा और पहचान के लिए पार्टी छोड़ दी है। मैंने यह निर्णय इसलिए नहीं लिया कि मैं बीजद के किसी नेता से नाराज हूं, बल्कि संबलपुर के प्रति पार्टी की उदासीनता के कारण लिया।”

उन्होंने बिना नाम लिए कहा कि “एक ऐसे नेता को यहां से मैदान में उतारा गया है, जिसे पार्टी ने अयोग्य करार दिया था। क्या पश्चिमी ओडिशा में राजनीति का केंद्र माने जाने वाले संबलपुर जैसे संवेदनशील क्षेत्र से ऐसे उम्मीदवार को मैदान में उतारना उचित है? दूसरे क्षेत्रों से भी नेताओं को यहां लाकर मैदान में उतारा गया है। क्या हमारे यहां विश्वसनीय नेता नहीं हैं?”

उन्होंने आगे कहा कि विधायक के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान संबलपुर में प्रत्यक्ष विकास हुआ है। पिछले पांच वर्षों में, वह कई गतिविधियों में भी शामिल रहीं और हमेशा बीजद के लिए एक समर्पित रहीं। लेकिन आज पार्टी ने उनके समर्पण को स्वीकार नहीं किया।”

रासेश्वरी के निर्णय पर बीजद की जिला इकाई के अध्यक्ष और संबलपुर विधानसभा सीट से पार्टी के उम्मीदवार रोहित पुजारी ने कहा, “यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि रासेश्वरी मैडम ने ऐसा निर्णय लिया है। वह वास्तव में एक महत्वपूर्ण नेता थीं और मैं चाहता हूं कि वह अपने फैसले पर पुनर्विचार करें। भले ही उन्होंने उम्मीदवारों को अक्षम कहा हो, मुझे इस पर कोई आपत्ति नहीं है। वह मेरे लिए मां की तरह हैं।’ मैं उन्हें गलत साबित करने की कोशिश करूंगा और उनके साथ मिलकर संबलपुर की बेहतरी के लिए काम करूंगा।”

पाणिग्रही का असर आस-पास के जिलों में भी पड़ने की आशंका है जिसका नुकसान बीजद को उठाना पड़ सकता है। भाजपा के नेता इस संन्यास को बीजद के ‘मां कू सम्मान’ के नारे पर सवाल उठाने के लिए करने लगे हैं।

वहीं आठमालिक के मौजूदा विधायक और गोंड समुदाय के प्रमुख नेता रमेश साई ने भी पार्टी में कथित अनुचित व्यवहार के कारण इस्तीफा दे दिया और भाजपा में शामिल हो गए हैं।

इसी तरह बीजद ने कुचिंडा में आदिवासी नेता किशोर चंद्र नाईक का टिकट काटकर कांग्रेस से आए राजेंद्र छत्रिया को कैंडिडेट बनाया है, जिससे किशोर नाराज हैं। दो आदिवासी विधायकों को साइडलाइन करने से पार्टी को आदिवासी वोटरों के बीच काफी मुश्किल हो रही है।

एक साथ दो मजबूत आदिवासी विधायकों को हाशिए पर धकेलने से पार्टी की आदिवासी रणनीति पर भी सवाल उठने लगे हैं। आदिवासी मतदाताओं के बीच बीजद की पकड़ न केवल कमजोर हुई है, पश्चिमी उड़ीशा में उसकी रणनीति और राजनीतिक भविष्य पर भी सवाल उठने शुरु हो गए हैं।

वहीं अपने मजबूत जमीनी पकड़ और राजनीतिक कौशल के लिए जाने वाले केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के प्रवेश ने राजनीतिक परिदृश्य को पूरी तरह बदल दिया है। प्रधान ने “मोदी गारंटी” और “मिट्टी के बेटे” का कथित असर व कथित अपने प्रभावी व्यक्तित्व से संबलपुर लोकसभा क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत कर ली है। पार्टी में हो रहे बिखराव का सबसे अधिक नुकसान बीजद के महासचिव और संबलपुर से लोक सभा उम्मीदवार प्रणब प्रकाश दास उर्फ बॉबी दास को होगा। पार्टी में मची खलबली से उनकी चुनावी नैया, पानी में उतरते ही भंवर में फंस गई है। प्रधान की रणनीति और बढ़ते जनसमर्थन के आगे बीजद ताश के पत्तों की तरह ढहती दिख रही है।

बीजेपी नेता धर्मेंद्र प्रधान

बीजू जनता दल ने लगभग दो सप्ताह पहले दास की उम्मीदवारी की घोषणा की थी, लेकिन पार्टी के कई राजनीतिक दाव उलटे पड़े है, साथ ही धर्मेंद्र प्रधान के मजबूत राजनीतिक प्रबंधन के कारण बीजद का लोकसभा सीट के लिए चुनाव अभियान अधर में लटक गया है। जहां लोक सभा चुनाव में प्रधान की बड़ी जीत लगभग तय दिख रही है, वहीं बीजद के लिए बड़ी चुनौती उन विधान सभा सीटों को बचाकर रखना होगा, जो उसने 2019 विधानसभा चुनाव में जीती थीं।

बताते हैं कि 2009 के लोकसभा चुनाव से ही यह सीट नए नेता को जिता रही है। 2009 में कांग्रेस, 2014 में बीजद और 2019 में बीजेपी इस सीट से जीती है। बीजेपी ने शायद इसलिए यहां से धर्मेंद्र प्रधान को उतारा है। बीजद ने भी प्रणब प्रकाश दास को टिकट दिया है। इस सीट के लिए दोनों नए कैंडेडिट हैं।
जिले में बीजद की सबसे मजबूत चेहरा पाणिग्रही के इस्तीफे से पार्टी को संबलपुर में गहरा झटका लगा है।

(विशद कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं और झारखंड में रहते हैं।)

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments