माओवादी लिंक मामले में जीएन साईबाबा और 5 अन्य को बॉम्बे हाईकोर्ट ने बरी किया

नई दिल्ली। बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ ने मंगलवार को कथित माओवादी लिंक मामले में दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जी एन साईबाबा को बरी कर दिया, यह देखते हुए कि अभियोजन पक्ष उनके खिलाफ मामला साबित करने में विफल रहा।

अदालत ने 54 वर्षीय साईबाबा को दी गई आजीवन कारावास की सजा को भी रद्द कर दिया। न्यायमूर्ति विनय जोशी और न्यायमूर्ति एसए मेनेजेस की खंडपीठ ने मामले में पांच अन्य आरोपियों को भी बरी कर दिया।

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जीएन साईबाबा को 2024 में गिरफ्तार किया गया था। तब से वह जेल में है। 10 सालों में अभियोजन पक्ष उनके खिलाफ मामले को साबित नहीं कर सका। गौरतलब है कि साईबाबा  अस्सी प्रतिशत से अधिक विकलांग हैं। शारीरिक विकलांगता के कारण वह हमेशा व्हीलचेयर पर रहते हैं। लेकिन उनको  कथित तौर पर माओवादियों से संबंध रखने के आरोप में गरिफ्तार किया गया था।  

हाई कोर्ट ने कहा,  “अभियोजन पक्ष आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ मामले को उचित संदेह से परे साबित करने में विफल रहा है।”

इसने कठोर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के प्रावधानों के तहत आरोपियों पर आरोप लगाने के लिए अभियोजन पक्ष द्वारा प्राप्त मंजूरी को भी “अमान्य और शून्य” माना।

हाई कोर्ट  ने कहा, “अभियोजन पक्ष आरोपी के खिलाफ कोई कानूनी जब्ती या कोई आपत्तिजनक सामग्री स्थापित करने में विफल रहा है।”

पीठ ने कहा, “ट्रायल कोर्ट का फैसला कानून के तहत टिकाऊ नहीं है। इसलिए हम अपील की अनुमति देते हैं और दिए गए फैसले को रद्द करते हैं। सभी आरोपियों को बरी किया जाता है।”

अदालत ने कहा कि यूएपीए के तहत आरोपियों पर मुकदमा चलाने के लिए ली गई मंजूरी कानूनी और उचित नहीं थी और इसलिए, मंजूरी “अमान्य और शून्य” थी।

हाई कोर्ट  ने कहा, “सभी आरोपियों पर मुकदमा चलाने की अवैध मंजूरी के कारण पूरा अभियोजन पक्ष खराब हो गया है। कानून के अनिवार्य प्रावधानों के उल्लंघन के बावजूद मुकदमा चलाना न्याय की विफलता के समान है।”

बाद में अभियोजन पक्ष ने मौखिक रूप से अदालत से अपने आदेश पर छह सप्ताह के लिए रोक लगाने का अनुरोध किया ताकि वह उच्चतम न्यायालय में अपील दायर कर सके। हालांकि, पीठ ने उसे रोक लगाने के लिए एक आवेदन दायर करने का निर्देश दिया।

शारीरिक विकलांगता के कारण व्हीलचेयर पर रहने वाले साईबाबा 2014 में मामले में गिरफ्तारी के बाद से नागपुर सेंट्रल जेल में बंद हैं। मार्च 2017 में, महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले की एक सत्र अदालत ने कथित माओवादी संबंधों और देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने जैसी गतिविधियों में शामिल होने के लिए साईबाबा और एक पत्रकार और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के छात्र सहित पांच अन्य को दोषी ठहराया था।

ट्रायल कोर्ट ने साईबाबा और अन्य को यूएपीए और भारतीय दंड संहिता के विभिन्न प्रावधानों के तहत दोषी ठहराया था।

14 अक्टूबर, 2022 को, हाई कोर्ट की एक अन्य पीठ ने साईबाबा को यह कहते हुए बरी कर दिया कि यूएपीए के तहत वैध मंजूरी के अभाव में मुकदमे की कार्यवाही “ अमान्य और शून्य” थी।

महाराष्ट्र सरकार ने उसी दिन फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। शीर्ष अदालत ने शुरू में आदेश पर रोक लगा दी और बाद में अप्रैल 2023 में, एचसी के आदेश को रद्द कर दिया और साईबाबा द्वारा दायर अपील पर नए सिरे से सुनवाई करने का निर्देश दिया।

न्यायमूर्ति रोहित देव और न्यायमूर्ति अनिल पानसरे की पिछली एचसी पीठ ने अक्टूबर 2022 के अपने फैसले में कहा था कि यूएपीए के तहत मुकदमा चलाने की मंजूरी 2014 में पांच आरोपियों के खिलाफ दी गई थी, जिन्हें पहले गिरफ्तार किया गया था, और फिर 2015 में साईबाबा के खिलाफ।

पीठ ने कहा था कि 2014 में, जब निचली अदालत ने अभियोजन पक्ष द्वारा दायर आरोपपत्र पर संज्ञान लिया था, तब साईबाबा पर यूएपीए के तहत मुकदमा चलाने की कोई मंजूरी नहीं थी। न्यायमूर्ति देव, जो दिसंबर 2025 में सेवानिवृत्त होने वाले थे, ने व्यक्तिगत कारणों का हवाला देते हुए 4 अगस्त, 2023 को अपना इस्तीफा दे दिया।

(जनचौक की रिपोर्ट)

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