वाराणसी: विकास के बुल्डोजर ने ढहा दिया गांधी चौरा

वाराणसी। शहर में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की स्मृतियों को समेटे बेनियाबाग स्थित गांधी चौरा को विकास के बुल्डोजर ने ढहा दिया है आने वाले समय में शहर के मध्य स्थित इस विशाल मैदान में लोगों को चमकता हुआ मल्टीप्लेक्स दिखेगा लेकिन गुलामी की टीस से लोगों को निजात दिलाने वाले इस जननायक की स्मृति को संजोए रखने वाला स्मृति स्थल नहीं दिखेगा अगर कभी बात चली तो लोग हैरत से कहेंगे क्या महात्मा से जुड़ी कोई निशानी यहां थी कभी?
उन्हें कोई नहीं बतायेगा कि एक सिरफिरे अतिवादी गोडसे द्वारा महात्मा की हत्या के बाद उनके अस्थियों को जनता दर्शन के लिए इसी बेनियाबाग में रखा गया था जहां से लोगों के दर्शन के बाद अस्थियों को गंगा में ले जाकर प्रवाहित किया गया था। बाद में यहां गांधी चौरा का निर्माण किया गया। स्वतंत्र भारत के पहले गवर्नर जनरल राजगोपालाचारी के हाथों इस चौरे की नींव रखी गई थी। शहर के जाने-माने गांधीवादी प्रोफेसर स्वर्गीय गौरीशंकर दुबे ने बताया था कि कभी यहां 2अक्टूबर पर स्वदेशी मेला का आयोजन किया जाता था। दिन भर रामधुन गाया जाता था। गांधी के राम जन में थे जन की पीड़ा को समझते थे इसलिए सत्ता पाने के लिए राम रथ पर चढ़ने वाले राम का इस्तेमाल करने वालों को कभी गांधी रास नहीं आए।
पिछले तीन दशक से मैंने इस चौरे की बदहाली और वीरानी देखी और फिर विकास के बुल्डोजर से जमींदोज होते देखा। जिनके लिए गांधी कोई मायने नहीं रखते उनकी तो मन की मुराद पूरी हो गई लेकिन जो गांधी के नाम पर कस्में खाकर उनके बताए रास्तों पर चलने का दम भरते थे वो गांधी चौरा की बदहाली पर भी खामोश बने रहे और गांधी चौरा के जमींदोज होने पर भी गूंगे बने हैं। विद्या और बुद्धिजीवियों के इस शहर में किसी एक ने भी इस पर सवाल नहीं उठाया और न ही विरोध के रास्ते को पकड़ा।
महात्मा अपने जीवित काल में शायद दो बार बनारस आए थे। विद्यापीठ में आज भी उनकी स्मृतियां मौजूद हैं लेकिन मृत्यु के बाद उनकी अस्थियों को रखने की जगह बना गांधी चौरा आज बनारस के नक्शे से गायब है।
गांधी जी के नाम पर देश भर में चलाए जा रहे स्वच्छ भारत मिशन के तहत बनारस में गांधी स्मृति स्थल को ही साफ कर दिया है। हैरत की बात तो यह है कि स्थानीय प्रशासन भी इस बारे में मौन है। समय और समाज का ये अनोखा स्वरुप है जहां हत्यारे को महिमा मंडित करने की रवायत बनाने की कोशिशें जारी हैं। मौजूदा हालात पर गांधी जी के अंतिम शब्द ही कहा जा सकता है और वो है….हे राम!

(भास्कर गुहा नियोगी स्वतंत्र पत्रकार हैं और आजकल बनारस में रहते हैं।)

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments