खालिस्तानियों ने कनाडा स्थित भारतीय राजनयिक संजय वर्मा और अपूर्व श्रीवास्तव को जान से मारने की धमकी दी

अमेरिका में भारतीय वाणिज्य दूतावास में खालिस्तानी समर्थकों की लगाई आग की लपटें सुदूर भारत तक पहुंच गयी हैं। खालिस्तानी और अलगाववादी तत्व लगातार भारतीय गणतंत्र को विदेशों में चुनौती दे रहे हैं और अब पानी सिर से गुजर रहा है। खालिस्तानी आतंकवादियों और अलगाववादी समूहों ने घोषणा की है कि वे आठ जुलाई को कनाडा में भारतीय हाई कमीशन के बाहर विरोध- प्रदर्शन करेंगे।

इस बाबत भारत सरकार ने कनाडा के उच्चायुक्त को खालिस्तान के समर्थन में बढ़ती गतिविधियों के मद्देनजर एक डिमार्शै (आपत्ति जताने वाला पत्र) जारी किया है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने कनाडा राजदूत को भी तलब किया। खालिस्तानी समर्थकों ने कनाडा में बाकायदा पोस्टर जारी करके कनाडा स्थित भारत के उच्चायुक्त संजय कुमार वर्मा और टोरंटो स्थित भारत के महावाणिज्य दूत अपूर्व श्रीवास्तव को जानलेवा धमकी दी है। इन दोनों अधिकारियों को खालिस्तानी अलगाववादी गरमपंथी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या का जिम्मेदार बता रहे हैं।

पिछले दिनों खालिस्तान के लिए फंडिंग करने वाले हरदीप सिंह निज्जर की रहस्यमय परिस्थितियों में हत्या हो गई थी और विभिन्न अलगाववादी समूहों ने आरोप लगाए थे कि उसकी हत्या के पीछे भारतीय अधिकारियों का हाथ है। खासतौर से संजय कुमार वर्मा और अपूर्व श्रीवास्तव का।

कनाडा से हासिल जानकारी के मुताबिक दोनों अधिकारियों की सुरक्षा और ज्यादा कड़ी कर दी गई है। इसलिए भी कि हरदीप सिंह निज्जर अलगाववाद फैलाने के लिए बड़े पैमाने पर फंड जुटाने का काम करता था। उसका जनसंपर्क तंत्र काफी बड़ा था। कनाडा, अमेरिका, जर्मन और ऑस्ट्रेलिया तक फैला हुआ था। उसका भेजा पैसा भारत में भी खूब आता था। भारतीय खुफिया एजेंसियों को इसकी जानकारी थी। वे लोग रडार पर हैं जिन्हें निज्जर की ओर से बड़ी रकम अलग-अलग वक्त में हासिल हुई।

फिलहाल तो सबकी निगाहें आठ जुलाई को होने वाले धरना-प्रदर्शन पर लगी हुई हैं। अलगाववादी खालिस्तानी समर्थकों की तरफ से भारतीय हाईकमान पर हमले और राजनयिकों को जानलेवा धमकियों के बाद कनाडा ने भारत को अधिकारियों की सुरक्षा का भरोसा दिया है। कनाडा ने यह भी कहा है कि खालिस्तान समर्थकों की तरफ से विरोधी रैली के लिए किए जा रहे प्रचार में भारतीय राजनयिकों के नाम शामिल करना अस्वीकार्य है। कनाडा की विदेश मंत्री मेलानी जोली ने ट्विटर पर दिए अपने बयान में कहा, कनाडा राजनयिकों की सुरक्षा के संबंध में वियना कन्वेंशन के तहत अपने दायित्वों को गंभीरता से लेता है।

8 जुलाई के विरोध प्रदर्शन के संबंध में ऑनलाइन प्रसारित प्रचार सामग्रियां पूरी तरह से अस्वीकार्य हैं, जिसमें भारतीय अधिकारियों के नाम का प्रमुखता के साथ उल्लेख है। कनाडा भारतीय अधिकारियों के संपर्क में है। मेलनी जोली ने कहा कि हम जानते हैं कि कुछ लोगों की हरकतें पूरे समुदाय या कनाडा को बदनाम कर रही हैं। यक्ष प्रश्न है कि विदेश मंत्री के ट्वीट से क्या होगा? क्या ऐसे सख्त कदम आपातकाल के तहत नहीं उठाए जा सकते कि आठ जुलाई को प्रदर्शन हो ही नहीं।

कनाडा से जुड़े कुछ भरोसेमंद सूत्रों का कहना है कि माहौल को उस दिन तनावपूर्ण बनाने की पूरी कवायद की जा रही है। कनाडा की घटनाओं का सबसे ज्यादा नागवार असर भारतीय पंजाब पर पड़ता है। सूबे का हर चौथा व्यक्ति यह कहता मिल जाएगा कि आखिरकार आठ जुलाई को क्या होगा? इसके मायने बखूबी समझे जा सकते हैं। बेशक उसे यह न पता हो कि स्थानीय विधायक उसी दिन उसके गांव में विकास कार्य का नींव पत्थर रखने के बाद एक रैली को संबोधित करेंगे।

दरअसल, खालिस्तानी संगठन कनाडा को अपनी अति सुरक्षित पनाहगाह बना चुके हैं और वहीं से पंजाब के माहौल को बिगाड़ने की साजिश रच रहे हैं। यही वजह है कि कनाडा और पंजाब में लगातार ऐसी घटनाएं हो रही हैं, जिसमें खालिस्तान के लिए रेफरेंडम जैसे मुद्दों को हवा दी जा रही है।

कनाडा में सितंबर 2023 में फिर से रेफरेंडम-2020 होने जा रहा है। इसके लिए पंजाब में भी गुपचुप तौर पर माहौल बनाया जा रहा है। सूत्रों के अनुसार सिख्स फॉर जस्टिस जैसे कई अलगाववादी संगठन इसके लिए राज्य में फंडिंग अभियान चलाए हुए हैं। कनाडा में भारतीय तिरंगे के अपमान जैसी घटनाओं के बाद भी कहा जा रहा है कि कनाडा में खालिस्तान समर्थकों का तेजी से पनपना और फलना-फूलना वहां के वोट बैंक की बदौलत है और सरकार इसीलिए सिख अलगाववादियों के प्रति कमोबेश सकारात्मक है। भारतीय विदेश मंत्री ने भी इस ओर खुला इशारा किया है।

2022 में कनाडा में खालिस्तान को लेकर सिख्स फॉर जस्टिस की ओर से जनमत संग्रह करवाया गया था। उस वक्त दोनों देशों के बीच काफी तल्खी हुई थी। यह तल्खी उस मुकाम तक पहुंची कि भारतीय दूतावास को कनाडा में ठहरे विद्यार्थियों के लिए एडवाइजरी जारी करनी पड़ी, जिससे चौतरफा हंगामा मच गया था।

हरदीप सिंह निज्जर के कत्ल के बाद कनाडा में फिर से खालिस्तानी कट्टरपंथियों ने भारत के प्रति उग्र व आपत्तिजनक भाषणबाजी की। निज्जर की हत्या के बाद कनाडा में माहौल खासा गरमाने लगा है। वहां कार्यरत वरिष्ठ पत्रकार गुरप्रीत सिंह सहगल ने बताया कि कनाडा की ज्यादातर सिख आबादी मानती है कि निज्जर की हत्या के पीछे भारतीय एजेंसियां हैं। वह कहते हैं कि मैं खुद ऐसा मानता हूं। इस हत्याकांड की पूरी पड़ताल मैंने की है।

जबकि खालिस्तान के विषय पर कनाडा का रुख पुराना ही है कि यह मांग किसी तरह का कोई अपराध नहीं है, जिसके लिए सजा हो। कंजरवेटिव और लिबरल दोनों ही पार्टियां इस बात को लेकर सचेत हैं कि कहीं यह सब अभिव्यक्ति की आजादी का मुद्दा न बन जाए। जिस मानिंद भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का अपमान हुआ है उससे तल्खी में इजाफा हुआ है। इससे कनाडा में पढ़ाई के लिए गए बच्चों के अभिभावक गहरी चिंता में हैं। भारत से जो लोग एजेंटों के जरिए अथवा कबूतरबाजी के जरिए दूसरे देशों में जाते हैं, कनाडा उनमें अव्वल है। कभी ब्रिटेन को दूसरा पंजाब कहा जाता था लेकिन अब यह मुकाम कनाडा को हासिल है।

कनाडा में ऐसा कुछ न कुछ होता ही रहता है जो भारत को विचलित करता है। खालिस्तान समर्थकों ने कनाडा में महात्मा गांधी की एक प्रतिमा को खंडित किया। यह घटना ओंटारियो प्रांत में स्थित हैमिल्टन के सिटी हॉल के पास हुई। महात्मा गांधी की प्रतिभा 2012 में स्थापित की गई थी। खालिस्तान समर्थकों ने भारत विरोधी नारे लगाते हुए वाणिज्य दूतावास को भी नुकसान पहुंचाने की गंभीर कोशिश की थी। कनाडा में चार महीने में दो हिंदू मंदिरों को निशाना बनाया गया। मंदिरों की दीवारों पर भारत विरोधी नारे लिखे गए। इसी साल के सितंबर में कनाडा में फिर से सिख फॉर जस्टिस ने रेफरेंडम करवाने की घोषणा की है; जिससे तनाव बढ़ने लगा है।

गौरतलब है कि कनाडा खालिस्तानी आतंकवादियों के लिए विश्व की सबसे सुरक्षित पनाहगाह है। पाकिस्तान से भी ज्यादा। एनआईए ने बब्बर खालसा इंटरनेशनल (बीकेआई) के सदस्य लखबीर सिंह संधू उर्फ लांडा पर 15 लाख रुपए का नाम घोषित किया है। मूल रूप से वह पंजाब के तरनतारन का रहने वाला है। अब कनाडा में बैठकर भारत विरोधी गतिविधियों को अंजाम दे रहा है। पिछले साल मई में मोहाली में पंजाब पुलिस के खुफिया मुख्यालय पर रॉकेट-प्रोपेल्ड ग्रेनाइट हमले को अंजाम देने आरोप में उसके गुर्गों को गिरफ्तार किया गया था।

लखबीर सिंह संधू का सहयोगी अर्शदीप सिंह गिल उर्फ अर्श डल्ला भी कनाडा में है और खालिस्तान टाइगर फोर्स (केटीएफ) से वाबस्ता है। हरदीप सिंह निज्जर, जिसकी हाल ही में हत्या कर दी गई, इस संगठन का मुखिया था। एनआईए को वांछित इंद्रजीत सिंह उर्फ गोल्डी बराड़ भी कनाडा में किसी महफूज जगह पर पनाह लिए हुए हैं। वह पंजाब में हुई कई हत्याओं और हिंसक वारदातों के लिए गुनाहगार है। गुरजीत सिंह चीमा भी कनाडा में रह रहा है। वह भी आतंकी गतिविधियों के लिए 2017 के अप्रैल में भारत से कनाडा आ गया था। उसका एक निकटवर्ती साथी भी इंटेलिजेंस विभाग की सूची में है, जिसका पाकिस्तान में रह रहे बब्बर खालसा इंटरनेशनल के वधावा सिंह बब्बर से नियमित संपर्क है।

इस वक्त कनाडा में चल रहे पूरे वृतांत को सूक्ष्मता से देखें तो मालूम होगा कि अगर कनाडा सरकार और वहां का विपक्ष अलगाववादी भारत-विरोधी खालिस्तानी समर्थकों पर नया कानून बनाकर सख्ती बरते तो पंजाब क्या पूरे विश्व में खालिस्तानी तत्वों की बुनियाद हिल जाएगी। लेकिन यह सब होगा कैसे?

(अमरीक वरिष्ठ पत्रकार हैं और पंजाब में रहते हैं।)

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