ग्राउंड रिपोर्ट: मूलभूत सुविधाओं से वंचित झारखंड की दामोदर नदी का उद्गम गांव चुल्हापानी

रांची। झारखंड के लोहरदगा जिला मुख्यालय से लगभग 20 किमी दूर कुड़ू प्रखंड के सलगी पंचायत का अति पिछड़ा गांव है चुल्हापानी। झारखंड की गंगा कहलाने वाली नदी दामोदर का उद्गम स्थल है चुल्हापानी गांव। दामोदर की कुल लंबाई 592 कि.मी. है, जो पश्चिम बंगाल की हुगली नदी में जाकर मिलती है। दामोदर को देवनद के नाम से भी जाना जाता है।

इसके बावजूद चुल्हापानी गांव का सबसे दुखद पहलू यह है कि ऐतिहासिक स्थल होते हुए भी आजतक यह गांव जन सुविधाओं से पूरी तरह महरूम है। शायद इसकी वजह यह है कि यह गांव लोहरदगा और लातेहार की सीमा पर स्थित पहाड़ की तलहटी में बसा है, जबकि दूसरी ओर यह राजस्व गांव की सूची में दर्ज है। यहां अनुसूचित जाति गंझू के 11 परिवार बसते हैं।

झारखंड की अनुसूचित जाति गंझू समेत 10 अनुसूचित जातियों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के लिए फरवरी 2022 में लोकसभा में जनजातीय मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा के प्रस्ताव पर एक विधेयक पेश किया गया। जिसमें भोगता, तमरिया/तमड़िया, पुरान, देशवारी, दौलतबन्दी (द्वालबंदी), पटबंदी, राउत, मझिया, खैरी (खेरी) को शामिल किया गया है। लेकिन अभी तक ये अनुसूचित जाति के अंतर्गत ही हैं।

चुल्हापानी गांव में 11 गंझू परिवार के बच्चे और बुजुर्ग मिलाकर कुल 56 लोग रहते हैं। दुहराना ना होगा कि आजादी के 76 साल बाद और झारखंड अलग राज्य गठन के 23 साल बाद भी गांव के इन लोगों को पंचायत तथा प्रखंड मुख्यालय आने-जाने के लिए जंगल से निकलती पगडंडी ही एकमात्र सहारा है।

शिक्षा के नाम पर एक प्राथमिक विद्यालय है, जो एक शिक्षक के भरोसे है, जिसमें मात्र 11 बच्चे नामांकित हैं। शिक्षक भी नियमित तौर पर नहीं आते। लेकिन नियमित तौर पर मध्याह्न भोजन की व्यवस्था है। मध्याह्न भोजन की रसोइया गांव की ही गीता देवी हैं जो नियमित भोजन बनाती हैं।

वहीं आगे की पढ़ाई के लिए बच्चों को सलगी जाना पड़ता है जहां मध्य विद्यालय और हाईस्कूल है। चुल्हापानी से सलगी लगभग 13 किलोमीटर दूर है। वहीं वहां तक जाने के लिए वाहन की कोई सुविधा भी नहीं है, क्योंकि वाहनों के आने-जाने के लिए सड़क की सुविधा नहीं है। निजी गाड़ियां इन्हीं पगडंडियों के सहारे आती जाती हैं, वह भी तब, जब कोई विशेष प्रयोजन होता है।

आगे की उच्च शिक्षा यानी कॉलेज की पढ़ाई के लिए लोहरदगा जाना पड़ता है, जो चुल्हापानी गांव से लगभग 33 किलोमीटर दूर है। एक तो करेला, ऊपर से नीम चढ़ा, मतलब एक तो सड़क नहीं होने के कारण वाहन का अभाव, दूसरा दूरी भी लंबी। यही वजह है कि इस इक्कीसवीं सदी में भी गांव का एक भी युवा कॉलेज की पढ़ाई नहीं कर पाया है। वैसे गांव के तीन चार लड़कों ने मैट्रिक तक की पढ़ाई की है।

सलगी ग्राम पंचायत सहायता केंद्र की कार्यकर्त्ता आशा देवी बताती हैं कि गांव के दो लड़कों की झारखंड पुलिस में भर्ती हो गई थी लेकिन पता नहीं क्यों उन्होंने नौकरी नहीं की और रोजगार के लिए बाहर पलायन कर गए।

गांव में कोई आंगनबाड़ी केंद्र भी नहीं है। गांव से लगभग 8 किलोमीटर दूर खंभार में आंगनबाड़ी केंद्र है, जहां केवल टीकाकरण के लिए ही बच्चे जाते हैं। जबकि आंगनबाड़ी एक सरकारी प्रोग्राम है जो 6 साल तक के छोटे बच्चों की देखभाल करने के लिए बनाया गया है।

इसका मुख्य उद्देश्य बच्चों के शारीरिक, मानसिक और सामाजिक विकास की देखभाल करना है। आंगनबाड़ी केंद्र शिशुओं को पोषण सहित उचित आहार, बुनकरी कार्यक्रम, खेल-कूद, अधिकृत शिक्षा, और स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करता है। यानी यहां के बच्चे इन तमाम सुविधाओं से वंचित रहने को मजबूर हैं।

स्वास्थ्य केंद्र की बात करें तो गांव में स्वास्थ्य केंद्र नहीं है। स्वास्थ्य सुविधा के लिए ग्रामीण लगभग 13 किलोमीटर दूर सलगी के उप-स्वास्थ्य केंद्र पर आश्रित हैं। अगर कोई बीमार पड़ जाये, तो ग्रामीण उसका इलाज जड़ी-बूटी से करते हैं। स्थिति खराब होने पर बीमार को खाट पर लादकर सलगी या फिर लोहरदगा ले जाते हैं।

वैसे हर बरसात में जो पगडंडी है वह भी बह जाती है, जिसे गांव के लोग बरसात खत्म होने के बाद खुद से बनाते हैं। वहीं बरसात में यह गांव एक तरह से टापू में तब्दील हो जाता है।

रोजगार की बात करें तो सभी परिवार का मनरेगा जाॅब कार्ड तो है लेकिन मनरेगा योजना का काम बिरले ही होता है। वैसे कहने को मनरेगा के तहत एक तालाब, ट्रेन्च और दीदी बाड़ी का काम हुआ है। लेकिन वह भी शीत से प्यास बुझाने जैसा है।

मतलब रोजगार का यहां अभाव है। ऐसे में प्रायः परिवार जंगल से जलावन की सूखी लकड़ी, महुआ व आम, जंगल के अन्य कंद-मूल और कुछ जड़ी-बूटी तोड़कर बाजार में बेचते हैं।

यह पूछे जाने पर कि इन सामग्रियों को बेचने के लिए बाजार कितनी दूर जाना पड़ता है? ग्रामीण बताते हैं कि सलगी में सप्ताह में दो दिन बाजार लगता है। वहीं सलगी से थोड़ी दूर रोचों और चांपी में सप्ताह में एक दिन हाट लगता है। यानी लगभग 13-15 किमी दूर जाना पड़ता है इन्हें बेचने के लिए।

आशा देवी बताती हैं कि “गांव के सभी परिवार का राशनकार्ड है। लेकिन गांव में डीलर नहीं है, अतः राशन लेने के लिए सलगी जाना पड़ता है। इनका डीलर सलगी आता है और किसी से गांव वालों को खबर भिजवाकर कार्डधारियों को बुलवाकर राशन देता है। राशन तो मिलता है लेकिन कार्डधारी को काफी परेशानी होती है।

ग्रामीण बताते हैं कि अगर कोई बीमार है तो ऐसे हालात में उसका राशन नहीं मिल पाता है, जो बाद में मिलता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि कार्डधारी को ई पॉश मशीन में अंगूठे का निशान लगाना पड़ता है। कभी कभी जब ई पॉश मशीन काम नहीं करती है तब भी राशन नहीं मिल पाता है।

पेयजल की स्थिति यह है कि चुल्हापानी गांव के लोग आज भी दामोदर नदी के उद्गम स्थल का ही पानी पीते हैं। वैसे गांव से उद्गम स्थल की दूरी लगभग 300 मीटर है लेकिन इसके लिए उन्हें पहाड़ी से उतर-चढ़ कर आना-जाना पड़ता है।

एक तरफ पूरा देश आजादी का अमृत महोत्सव मनाया, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 12 मार्च 2021 को साबरमती आश्रम अहमदाबाद में ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ का उद्घाटन किया। जो स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर 15 अगस्त 2023 को समाप्त हुआ। वहीं दूसरी तरफ झारखंड का यह चुल्हापानी गांव की तरह पता नहीं कितने गांव हैं जहां लोग आज भी मूलभूत सुविधा के लिए तरस रहे हैं।

वैसे तो चुल्हापानी गांव तमाम जन सुविधाओं से महरूम है, लेकिन यहां सबसे बड़ी असुविधा आवागमन की है। सलगी पंचायत से कटात तक पीसीसी सड़क तो है, लेकिन कटात से लगभग चार किलोमीटर जंगली पगडंडी है।

तीन पहाड़ों तथा चार बरसाती नदियों के पार स्थित चुल्हापानी गांव तक जाने के लिए साइकिल तथा मोटरसाइकिल ही एकमात्र सहारा है। जबकि बरसात के चार महीने टापू बन जाने वाले इस गांव में यह सहारा भी काम नहीं कर पाता है। पहाड़ी नदियां उफान पर रहती हैं। कई बार हादसा होते-होते बचा है। लिहाजा ग्रामीण बरसात में घरों में रहना ही मुनासिब समझते हैं।

पेयजल के लिए गांव में पीएचईडी द्वारा पहले से मनरेगा योजना से बने एक कुंआ में हैंडपंप लगाया गया था। जो कई साल से खराब है। अब वह हैंडपंप बच्चों के खेलने का साधन बन गया है। वैसे भी गांव के लोग उस कुंआ का पानी पीना नहीं चाहते।

गांव वाले बताते हैं कि “इस कुंए का पानी पीने लायक नहीं है। अलबत्ता हमलोग नहाने और कपड़ा वगैरह साफ करने में उसका उपयोग करते थे, लेकिन अब वह भी संभव इसलिए नहीं है कि एक तो उस कुंआ का पानी सूख जाता है, दूसरा उससे पानी निकालने को समुचित साधन नहीं है।”

बता दें कि नल-जल योजना के तहत पीएचईडी विभाग द्वारा इसी कुंआ का पानी आपूर्ति करने की योजना बनाई जा रही है। जिसके तहत पाइपलाइन बिछा दी गयी है, लेकिन पानी सप्लाई कैसे होगी, इसके लिए जलमीनार वगैरह की कोई व्यवस्था नहीं की गई है। मतलब साफ है कि योजना के नाम पर फंड का बंदरबांट होगा।

ग्रामीण बताते हैं कि दामोदर नदी का यहां उद्गम स्थल नहीं होता, तो हमें पीने के पानी के लिए 4-5 किमी दूर कटात से पानी ढोना पड़ता।

गांव में चार साल पहले बिजली पहुंचाई गई है, पोल, तार और ट्रांसफार्मर भी लगा है। लेकिन कुछ दिनों के बाद से ही बिजली की सप्लाई बंद है तो आज तक बंद है। लोग डिबरी युग में रहने को मजबूर हैं।

गंगा दशहरा यानी मई का आखिरी और जून महीने का पहला सप्ताह में दामोदर के उद्गम स्थल पर हर साल मेला लगता है। 2018 में इसी मौके पर राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास सलगी पहुंचे थे। उन्होंने सलगी पंचायत को पूरे झारखंड में मॉडल पंचायत तथा चुल्हापानी गांव को मॉडल गांव बनाने की घोषणा की थी।

इस अवसर पर वन विभाग द्वारा चुल्हापानी गांव तक जाने के लिए सड़क बनाने की बात कही थी। इसके अलावा सभी तरह की मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराने की भी घोषणा हुई थी।

2019 में तत्कालीन राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू गंगा दशहरा के मौके पर सलगी पहुंचीं थीं। उन्होंने चुल्हापानी को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करते हुए ग्रामीणों को रोजगार से जोड़ने की बात कही थी और मूलभूत सुविधा बहाल करने की भी घोषणा की थी।

अब इस घोषणा के पांच साल हो गये। लेकिन ना तो चुल्हापानी गांव पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हुआ ना ही मॉडल गांव बन पाया। उल्टे यह गांव कई जन समस्याओं से घिर गया है और ग्रामीण खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं।

चुल्हापानी गांव के बिनोद गंझू, सुरजा गंझू, जगलाल गंझू, जेठू गंझू, सामलाल गंझू, मनोज गंझू, रधु गंझू, बसंत गंझू, एतवरिया गंझू सहित कई लोगों ने बताया कि 2004 से सरयू राय, जून के पहले सप्ताह गंगा दशहरा के अवसर पर हर साल चुल्हापानी गांव आ रहे हैं।

जब हमने दामोदर बचाओ आंदोलन के केंद्रीय अध्यक्ष व पूर्व मंत्री तथा जमशेदपुर पूर्वी के विधायक सरयू राय से फोन पर बात कर यह जानने का प्रयास किया कि दामोदर का उद्गम स्थल चुल्हापानी को पर्यटन स्थल बनाने को उनका क्या कहना है?

तो उन्होंने कहा कि “इस क्षेत्र को पर्यटन स्थल तो पांच साल पहले ही घोषित कर दिया गया है।” जब मैंने कहा कि वहां तक जाने का कोई सड़क नहीं है तो यह पर्यटन स्थल कैसे बनेगा? तो राय ने कहा कि “वैसे सड़क के बजट का आवंटन हो चुका है। अब तक सड़क नहीं बनी है, इसका कारण क्या है मालूम नहीं। यह काम क्षेत्र के विधायक व सांसद का है कि अपने क्षेत्र के विकास के बारे सोचें।”

ग्रामीणों ने बताया कि बहेरा मांडर से कटात तक 2018 में पीसीसी सड़क बनी है। मुख्यमंत्री से लेकर राज्यपाल तक पहुंचे, लेकिन गांव का विकास नहीं हो पाया। सभी ने केवल आश्वासन का झुनझुना थमाया।

ग्रामीणों का कहना है कि अगर सरकार और प्रशासन पहल कर इस स्थल तक जाने के लिए अच्छी सड़क का निर्माण कर दे, तो यह स्थल पर्यटन स्थल के साथ-साथ धार्मिक स्थल के रूप में विकसित हो जाएगा। इससे ग्रामीणों को रोजगार भी मिलेगा।

क्योंकि चूल्हापानी चारों तरफ पहाड़ों से घिरा हुआ है, जिसके कारण यहां कुदरत के मनोरम दृश्य देखने को मिलते हैं। यहां एक पेड़ की जड़ों से निरंतर जलधारा निकलती है, जो बाद में विशाल दामोदर नदी का रूप लेती है।

आश्चर्यजनक बात यह है कि जिस पेड़ की जड़ों से जलधारा निकलती है उस पेड़ के पीछे कोई जल का स्रोत नहीं है। लोग बताते हैं कि यहां का जल औषधि के रूप में काम आता है। यहां निरंतर नहाने और इस जल को पीने से चर्म रोग दूर होता है। चूल्हापानी से निकलने वाली जलधारा का तापमान मौसम के विपरीत होता है, जो गर्मियों में ठंडा और सर्दियों में गर्म होता है।

ग्रामीणों की बात पर सलगी पंचायत की मुखिया सुमित्रा देवी कहती हैं कि चुल्हापानी गांव का विकास होगा। गांव के विकास को लेकर प्रखंड व जिला प्रशासन को अवगत कराया गया है।

(झारखंड से विशद कुमार की रिपोर्ट।)

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments