गम्भीर रोजगार संकट के मद्देनजर कांग्रेस की युवा न्याय गारंटी अपर्याप्त

देश में बेरोज़गारी चिंताजनक स्थिति में है। मोदी सरकार की नीतियों से रोज ब रोज बेकारी की भयावहता में इजाफा हो रहा है। युवाओं के अग्निवीर, एनटीपीसी जैसे स्वत: स्फूर्ति आंदोलनों एवं अन्य संगठित प्रयासों से बेरोज़गारी की विकराल हो रही समस्या राष्ट्रीय राजनीतिक विमर्श के केंद्र में आ गई है। इसी संदर्भ में देश के युवाओं के लिए कांग्रेस पार्टी के युवा न्याय गारंटी का स्वागत किया जाना चाहिए। लेकिन युवा न्याय गारंटी कार्यक्रम में जो मुद्दे उठाए गए हैं वह बेरोज़गारी के मौजूदा संकट के हल के लिए नाकाफी है। संकट के लिए जिम्मेदार मौजूदा अर्थव्यवस्था में नीतिगत स्तर पर बदलाव करने का कहीं उल्लेख नहीं है। बेकारी के सवाल के समाधान हेतु युवाओं ने राष्ट्रीय स्तर एजेंडा तैयार किया है, इसका एक हिस्सा ही युवा न्याय गारंटी में प्रतिबिम्बित होता है। 

युवा न्याय गारंटी का पहला बिंदु है भर्ती भरोसा जिसमें केंद्र में 30 लाख सरकारी पदों पर तत्काल स्थायी नियुक्ति की गारंटी की बात है। गौरतलब है कि राज्यों समेत देश भर में सार्वजनिक क्षेत्र में एक करोड़ रिक्त पद हैं। केंद्र सरकार द्वारा 30 लाख पदों पर नियमित भर्ती एवं सामाजिक सुरक्षा व रोजगार के सवाल को हल करने के लिए आवश्यक संसाधन जुटाने हेतु उपलब्ध विकल्प जैसे राजकोषीय घाटे को बढ़ाना, कॉर्पोरेट्स पर संपत्ति व इस्टेट ड्यूटी जैसे टैक्स लगाना अथवा अन्य बजटीय प्रावधान, इतने महत्वपूर्ण सवाल का उल्लेख युवा न्याय गारंटी कार्यक्रम में नहीं है। 

दूसरे बिंदु में पहली नौकरी पक्की का जिक्र है-इसमें हर ग्रेजुएट और डिप्लोमाधारी को एक लाख रुपये प्रतिवर्ष स्टाइपेंड की अप्रेंटिसशिप की गारंटी का प्रावधान किया गया है, लेकिन यह समझ से परे है कि इसे पक्की नौकरी की गारंटी कैसे कहा जा सकता है? इसमें कुछ बिंन्दुओं पर भी गौर करने की जरूरत है। इस वक्त उच्च शैक्षणिक संस्थानों में करीब 5 करोड़ छात्र पंजीकृत हैं, प्रतिवर्ष एक करोड़ से ज्यादा युवा ग्रेजुएट और डिप्लोमा हासिल कर रहे हैं जिसमें 15 लाख इंजीनियरिंग व 3 लाख मैनेजमेंट ग्रेजुएट हैं। 25 वर्ष से कम उम्र के ग्रेजुएट युवाओं में 42 फीसद से ज्यादा बेरोज़गार हैं। सिर्फ केंद्र सरकार की नौकरियों में 8 साल में 22 करोड़ युवाओं ने आवेदन किया जिसमें महज 7.22 लाख युवाओं को नौकरी मिली। यूपी में एक भर्ती में 411 पदों के लिए करीब 11 लाख आवेदन आए।

उक्त तथ्यों के आधार पर मोटे तौर पर आकलन किया जाए तो देश में 5-7 करोड़ युवाओं को प्रथम वर्ष अप्रेंटिसशिप की आवश्यकता होगी। अभी देश की जो अर्थव्यवस्था है उसमें अप्रेंटिसशिप में कैसे इतनी बड़ी संख्या की खपत होगी और अप्रेंटिसशिप के बाद इन युवाओं के रोजगार गारंटी कैसे संभव है, इसे लेकर कोई भी ब्लूप्रिंट पेश नहीं किया गया है और न ही ऐसा कोई कानूनी प्रावधान है जिसके आधार पर अप्रेंटिसशिप पूरी होने पर सरकारी/निजी क्षेत्र में रोजगार सुनिश्चित हो। इस तरह इसे पक्की नौकरी के लिए गारंटी कार्यक्रम तो कतई नहीं माना जा सकता है क्योंकि यह संभव ही नहीं है जब तक कि अर्थव्यवस्था में आमूलचूल बदलाव न हो। उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 21 एवं नीति निदेशक तत्वों की व्याख्या में माना है कि गरिमापूर्ण रोजगार सुनिश्चित करना राज्य व सरकार का संवैधानिक दायित्व है। ऐसे में युवाओं को गरिमापूर्ण रोजगार सुनिश्चित करने के लिए कानूनी गारंटी का प्रावधान किया जाना चाहिए। 

तीसरा बिंदु पेपर लीक से मुक्ति को लेकर कानून बनाने का प्रस्ताव है। आज चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता युवाओं का ज्वलंत मुद्दा है। उत्तराखंड सरकार और हाल में केंद्र सरकार द्वारा नकल रोकने के लिए कठोर कानून बनाए गए हैं, परन्तु जानकर मानते हैं कि कानूनी प्रावधान जरूरी होते हुए भी पर्याप्त नहीं हैं। इसके लिए  चयन प्रक्रिया को पारदर्शी व जवाबदेह बनाने के लिए ऐसा सिस्टम तैयार करने की जरूरत है जिससे पेपर लीक व धांधली की संभावनाएं न्यूनतम की जा सकें। यह भी कि खुद राहुल गांधी ने मुफ्त प्रवेश परीक्षा का वायदा किया था जिसे रोजगार गारंटी में शामिल नहीं किया गया।

चौथा बिंदु GIG इकॉनोमी में सामाजिक सुरक्षा का है। ओला, जोमैटो जैसे उभर रहे अर्थव्यवस्था के नये क्षेत्रों में कामकाजी लोगों के लिए किसी तरह सामाजिक सुरक्षा का प्रावधान नहीं है, इनके लिए सामाजिक सुरक्षा का प्रावधान बेशक किया जाना चाहिए। लेकिन संविधान के चौथे भाग में नागरिकों की सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने का जो प्रावधान है, उसका दायरा व्यापक है। जैसे असंगठित क्षेत्र जिसमें 93 फीसदी कामकाजी लोग हैं, जिनकी आय 10 हजार रुपए मासिक से कम है।

विडंबना है कि इनकी सामाजिक सुरक्षा के राष्ट्रीय स्तर पर 2008 में बने कानून को भी अभी तक लागू नहीं किया गया है। इसके अलावा सार्वजनिक क्षेत्र में कार्यरत करीब 3 करोड़ संविदा/आउटसोर्सिंग/मानदेय श्रमिकों का विनियमितिकरण उनकी सामाजिक सुरक्षा के लिए बेहद महत्वपूर्ण कदम होगा। सभी नागरिकों को मुफ्त शिक्षा व स्वास्थ्य, ओल्ड एज पेंशन की गारंटी जैसे तमाम महत्वपूर्ण मुद्दे हैं जो सामाजिक सुरक्षा के लिए बेहद जरूरी हैं। दरअसल सामाजिक सुरक्षा का विस्तार आबादी के बड़े हिस्से खासकर सभी मेहनतकश तबकों, बेरोजगारों व बुजुर्गों के लिए किया जाना चाहिए। 

पांचवां बिंदु युवा रोशनी है जिसमें ₹5000 करोड़ के राष्ट्रीय कोष से ज़िला स्तर पर युवाओं को स्टार्ट-अप फंड देकर उन्हें उद्यमी बनाने की गारंटी की बात कही गई है। इसमें तो प्रति जनपद 10 करोड़ से भी कम की धनराशि दी जाएगी जोकि बेहद कम है। इस तरह की मोदी सरकार की तमाम योजनाएं फ्लॉप साबित हुई हैं। युवाओं को उद्यमी बनाने के लिए समुचित पूंजी व अनुदान, उपयुक्त तकनीक व तकनीकी ज्ञान और उत्पाद के खरीद की गारंटी और सहकारिता को प्रोत्साहन जैसे उपाय ही कारगर हो सकते हैं। 

हैरानी की बात है कि खुद राहुल गांधी लगातार सेना में अग्निवीर खत्म करने की वकालत करते रहे हैं लेकिन युवा न्याय गारंटी में उसका ज़िक्र नहीं है। 

युवा न्याय गारंटी कार्यक्रम और युवा मंच द्वारा तैयार किए गए एजेंडा को आप खुद पढ़ें और सुझाव भी दें कि  रोजगार संकट के समाधान हेतु बेहतर कार्यक्रम क्या हो सकता है? युवा मंच ने रोजगार एजेंडा को लेकर उत्तर प्रदेश में व्यापक स्तर पर युवाओं समेत अन्य लोगों से संवाद किया गया खासकर प्रयागराज में अनवरत 90 दिनों तक धरना-प्रदर्शन कर युवाओं के ज्वलंत मुद्दों को हल करने की लिए आवाज उठाई। 

युवा मंच के एजेंडा में शामिल प्रमुख बिंदु:-

1. रोजगार को मौलिक अधिकारों में शामिल किया जाए, सभी नागरिकों को गरिमापूर्ण आजीविका और हर परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी की गारंटी हो। रोजगार न दे पाने की स्थिति में बेकारी भत्ता दिया जाए।

2. देश में रिक्त एक करोड़ पदों को तत्काल भरने की गारंटी की जाए।

    3. अग्निवीर समेत संविदा/आउटसोर्सिंग व्यवस्था को खत्म किया जाए।

    4. शिक्षा-स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा मद में पर्याप्त बजट आवंटन किया जाए।

    5. रेलवे, पोर्ट, एअरपोर्ट, शिक्षा-स्वास्थ्य, संचार, बिजली-कोयला जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों के निजीकरण पर रोक लगाई जाए।

    6. सामाजिक सुरक्षा, रोजगार सृजन एवं सरकारी विभागों में संविदा/मानदेय श्रमिकों का विनियमितिकरण व एक करोड़ रिक्त पदों को भरने के लिए वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता हेतु कॉर्पोरेट्स पर संपत्ति व इस्टेट ड्यूटी लगाई जाए।

    कुल मिलाकर रोजगार संकट हल के लिए वैश्विक कॉर्पोरेट पूंजी के नियंत्रण में संचालित आर्थिक नीतियों में आमूलचूल बदलाव करना पड़ेगा। सहकारी क्षेत्र का प्रोत्साहन, श्रम सघन तकनीक का इस्तेमाल और कृषि आधारित एवं लघु-कुटीर व छोटे मझोले उद्योगों को बढ़ावा देने जैसे उपायों से रोजगार का सवाल हल किया जा सकता है और अर्थव्यवस्था भी में टिकाऊपन होगा।

    (राजेश सचान युवा मंच के संयोजक हैं।)

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