नहीं मिली दारापुरी, डॉ. सिद्धार्थ और निराला को जमानत

गोरखपुर। गोरखपुर में गिरफ्तार पूर्व आईजी और दलित चिंतक एसआर दारापुरी, वरिष्ठ पत्रकार और लेखक डॉ. सिद्धार्थ और अंबेडकर जन मोर्चा के संयोजक श्रवण कुमार निराला समेत 10 लोगों की जमानत याचिका को सीजीएम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। इन लोगों को उस समय गिरफ्तार किया गया था जब ये भूमिहीन परिवारों को जमीन देने के मसले पर आयोजित धरने में हिस्सा लेने गए थे। दिलचस्प बात यह है कि इनकी गिरफ्तारी बेहद नाटकीय तरीके से की गयी। पूरा धरना समाप्त हो गया था और डीएम ज्ञापन ले चुके थे उसके बाद इनको अलग-अलग स्थानों से गिरफ्तार किया गया। यहां तक कि पूर्व आईजी दारापुरी की गिरफ्तारी होटल से की गयी जहां वह ठहरे हुए थे।

इन लोगों ने अम्बेडकर जन मोर्चा द्वारा दलित, पिछड़ा, मुस्लिम, गरीब मजदूर भूमिहीन परिवारों को एक-एक एकड़ जमीन देने की मांग करते हुए मंगलवार को कमिश्नर कार्यालय के सामने प्रदर्शन किया था।

दलित, पिछड़ा वर्ग, मुस्लिम भूमिहीन परिवारों को एक-एक एकड़ जमीन देने की मांग की लड़ाई और अम्बेडकर जन मोर्चा का ये संघर्ष तीन साल पहले शुरू हुआ था। इसको लेकर जन मोर्चा ने कई बार और कई जगहों पर आंदोलन भी किया, और इसी को बरकरार रखते हुए उसने 10 अक्टूबर को हजारों की संख्या में आकर कमिश्नर कार्यालय पर घेरा डालो, डेरा डालो का आह्वान किया। प्रदर्शनकारियों में महिलाओं की संख्या अधिक थी, पूरा कमिश्नर कार्यालय परिसर लोगों से भर गया था। आंदोलन के दौरान एक के बाद एक वक्ता आए और सभी ने इसी मुद्दे पर अपनी बात रखी।

जन मोर्चा के मुख्य संयोजक श्रवण कुमार निराला ने कहा कि अनुसूचित आदिवासी और पिछड़ा वर्ग के भूमिहीन परिवारों को एक-एक एकड़ जमीन मुहैया करायी जाए। यह लाभ इन लोगों को कैसे मिलेगा, ये सरकार को सोचना होगा। तेलंगाना राज्य की सरकार ने इस कार्य को पूरा किया है, उन्होंने जमीन खरीदकर गरीबों को दिया है। पिछले साल 17 दिसंबर से लेकर 17 मार्च तक धरना दिया था, लेकिन किसी ने भी हमें और हमारी मांगों को गंभीरता से नहीं लिया।

शाम को ज्ञापन देने के बाद आंदोलन समाप्त होना था लेकिन देर शाम तक कोई अधिकारी ज्ञापन लेने नहीं आया तो सभी लोग कमिश्नर कार्यालय में जमे रहे। रात करीब 10 बजे जिला अधिकारी कृष्णा करुणेश कमिश्नर कार्यालय पहुंचे और ज्ञापन लेकर आश्वासन दिया कि उनकी मांगों को मुख्यमंत्री तक पहुंचाया जाएगा।

इसके बाद आंदोलन में शामिल हुए लोग भी जाने लगे, तभी कमिश्नर कार्यालय से ही लेखक-पत्रकार डॉ सिद्धार्थ को पुलिस ने गिरफ्तार कर थाना कैंट चली आई। कुछ ही देर में बड़ी संख्या में पुलिसकर्मी अम्बेडकर जन मोर्चा के मुख्य संयोजक श्रवण कुमार निराला के घर पहुंच गए और उनके घर में घुसकर तलाशी ली। इधर कमिश्नर कार्यालय से लौट रहे श्रवण कुमार निराला को पैडलेगंज में पुलिस ने घेर लिया। उस वक्त निराला के साथ सैकड़ों लोग थे। आधी रात बाद सभी लोगों को देवरिया बाईपास के पास हिरासत में ले लिया गया और बस से कौड़ीराम ले जाया गया। उसके बाद से पता नहीं चला कि हिरासत में लिए गए लोग कहां हैं।

आंदोलन में वक्ता के बतौर आए पूर्व आईजी एवं दलित चिंतक एसआर दारापुरी तारामंडल स्थित एक होटल में रुके हुए थे। बुधवार सुबह वहां पुलिस पहुंच गयी और उन्हें रामगढ़ ताल थाना ले गई।

मंगलवार शाम को आंदोलनकारियों की गिरफ्तारी बाद पुलिस ये बताने से भी इनकार कर रही थी कि उनको कहां बंद करके रखा गया है।

हालांकि कोर्ट के द्वारा जमानत याचिका खारीज करने के बाद, 12 अक्टूबर यानी आज ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व आईजी एस. आर. दारापुरी की गिरफ्तारी और उनकी रिहाई के संदर्भ में आइपीएफ की राष्ट्रीय कार्यसमिति ने राष्ट्रपति भारत गणराज्य को पत्र भेजा है। पत्र को समर्थन करने के लिए कांग्रेस, सीपीएम, सीपीआई, सपा, बसपा, राजद, जेडीयू, आप, द्रमुक, त्रिमूल कांग्रेस, राष्ट्रीय लोकदल और टीआरएस को भी भेजा गया है।

पत्र में कहा गया कि आइपीएफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष एस. आर. दारापुरी, पत्रकार डॉ सिद्धार्थ रामू, अम्बेडकर जन मोर्चा के श्रवण कुमार निराला और गोरखपुर में अन्य की गिरफ्तारी यह दिखाती है कि उत्तर प्रदेश सरकार को राजनीतिक मान्यता और मर्यादा की कतई परवाह नहीं है। और सीधे-सीधे कानून सम्मत कार्यवाही की जगह अपनी पसंद और नापसंद के आधार पर शासन करती है।

अन्यथा कोई कारण नहीं है कि 10 अक्टूबर 2023 को कमिश्नरी प्रांगण में शांतिपूर्वक सम्पन्न हुई सभा को सम्बोधित करने वाले दारापुरी जी जैसे जिम्मेदार नागरिक को दूसरे दिन गिरफ्तार करके 307 के तहत जेल भेजा जाता। उन्हें विदेशी ताकतों से सांठ-गांठ करने वाले के बतौर भी पेश करने की कोशिश हो रही है जबकि उनकी नागरिकता और देशभक्ति की प्रमाणिकता दशकों तक बतौर आईपीएस प्रशासनिक भूमिका निभाने में दर्ज है। 

ज्ञातव्य है कि 10 अक्टूबर को मजदूर, दलित नागरिकों की भूमि अधिकार के सरोकार को लेकर जो आम सभा बेहद शांतिपूर्ण वातावरण में हुई उसके आयोजन और सम्बोधन करने वालों को 307 जैसे अपराध में गिरफ्तार किया गया और 82 वर्षीय दारापुरी जो पार्किंसन जैसी गम्भीर बीमारी से ग्रस्त हैं, उन्हें जेल भेज दिया गया। लोकमत के लिए चीजें कितनी भयावह होती जा रही हैं वह इसी बात से साफ होता है कि सरकार के उच्च ओहदों पर बैठे हुए लोगों के निर्देशन पर बिना तथ्य और प्रमाणिकता के आधार पर गम्भीर आपराधिक मुकदमें लगाए गए और जेल भेज दिया गया।

अतः राष्ट्रपति महोदया से पत्र में अनुरोध किया गया कि पूरे घटना की न्यायिक जांच कराई जाए और दारापुरी व उनके साथ अन्य गिरफ्तार लोगों को ससम्मान रिहा किया जाए।

इस पूरे मामले में प्रशासन की भूमिका बेहद संदिग्ध नजर आती है। यह एक सामान्य धरना था। और बिल्कुल सामान्य मांगों पर रखा गया था। लेकिन पहले ज्ञापन न लेना और उसके बाद जबरन जगह-जगह से गिरफ्तारी बताती है कि प्रशासन के दिमाग में कुछ और ही बात चल रही थी।

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