झारखंड में डेंगू की दस्तक, अब तक पांच लोगों की मौत

रांची। झारखंड में डेंगू और चिकनगुनिया की दस्तक के बाद डेंगू से अबतक पांच लोगों की मौत हुई है और सभी जमशेदपुर के रहने वाले हैं। पूरे राज्य की बात करें तो अबतक डेंगू से पीड़ित 1,111 लोग चिन्हित हुए हैं। वहीं राज्य में चिकनगुनिया से पीड़ित मरीजों की संख्या 271 पहुंच गयी है।

डेंगू से पीड़ित मरीज पूर्वी सिंहभूम में सबसे ज्यादा 663 हैं। जबकि साहिबगंज में 144, रांची में 82, धनबाद में 55, सरायकेला में 40, देवघर में 18, हजारीबाग में 14, पश्चिमी सिंहभूम में 11 और कोडरमा में 10 मरीज मिले हैं। इसके अलावा अन्य जिलों में पीड़ितों की संख्या 10 से कम है। गोड्डा में डेंगू का एक भी मरीज नहीं पाया गया है।

20 सितंबर को डेंगू के 43 नये मरीज मिले हैं, इसमें रामगढ़ में 18, पूर्वी सिंहभूम में 8, हजारीबाग में 6, रांची में 5, खूंटी में 3, बोकारो में 2 और चतरा में एक मरीज की पुष्टि हुई है। जबकि चिकनगुनिया के चार नये मरीज मिले हैं।

आंकड़ों की बात करें तो डेंगू की चपेट में आने वाले मरीजों की संख्या राज्य के पूर्वी सिंहभूम जिले में सबसे अधिक है और जमशेदपुर इसी जिला के अंतर्गत आता है। वहीं राज्य में चिकनगुनिया के मरीजों की संख्या भी बढ़ी है।

स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक डेंगू और चिकनगुनिया के संदिग्धों की जांच के लिए हर जिले में व्यवस्था की गई है। जबकि चिकित्सकीय सूत्रों पर भरोसा करें तो डेंगू की विश्वसनीय पहचान एलाइजा रीडर मशीन से होती है। जिसका अभाव राज्य के लगभग सभी जिलों के सरकारी अस्पतालों में देखा जा रहा है। जहां एलाइजा रीडर मशीन नहीं है वहां डेंगू के किट का उपयोग किया जा रहा है, जो पूर्णतः विश्वसनीय नहीं है।

वहीं निजी नर्सिंग होम और निजी क्लिनिक वाले डॉक्टर डेंगू के बढ़ते भय का लाभ उठाने में पीछे नहीं हैं। निजी क्लिनिक वाले डॉक्टर मौसमी बुखार में भी डेंगू का टेस्ट लिख रहे हैं और निजी पैथोलॉजी लैब वाले प्रभावित लोगों से मनमाने रुपये वसूल रहे हैं। वहीं निजी नर्सिंग होम वालों का भी खेल जारी है।

जानकारी के मुताबिक जहां डेंगू जांच किट की कीमत 300 रुपये के लगभग है वहीं निजी पैथोलॉजी लैब वाले लोगों से हजार-हजार रुपये से अधिक वसूल रहे हैं। यह खेल निजी क्लिनिक वाले डॉक्टर और निजी पैथोलॉजीक लैब वालों की मिलीभगत से हो रहा है।

निजी अस्पताल व क्लिनिक में रोजाना सैकड़ों मरीज बुखार, शरीर दर्द आदि की शिकायत लेकर पहुंचते हैं। ऐसे मरीजों को डॉक्टर डेंगू जांच करने की सलाह देते हैं और वहीं से निजी पैथोलॉजी की कमाई का खेल शुरू हो जाता है। डेंगू जांच के नाम पर निजी लैब वाले लोगों से मनमाने रुपये वसूल रहे हैं।

आगे बढ़ने के पहले यह जान लें कि चिकनगुनिया का कारण वायरल इन्फैक्शन है जो मानसून के मौसम के दौरान आम तौर पर होने वाली कुछ बीमारियों में से एक है। एडीस इजिप्ती और एडीस एल्बोपिक्टस मादा मच्छरों के काटने से इन्सानों में चिकनगुनिया वायरस का प्रवेश होता है।

मच्छर से उत्पन्न बीमारी चिकनगुनिया, मुख्यत: एशिया, अफ्रीका, यूरोप और अमेरिका में होने वाली बीमारी है, जो आज तेजी से खतरनाक होती जा रही है। चिकनगुनिया वायरस व्यक्ति से व्यक्ति में संचारित होता है, अगर उपर्युक्त मादा मच्छर उन्हें काटती है। आमतौर पर मच्छर के काटने के 4 से 6 दिनों तक उसके लक्षण नहीं दिखते हैं। आमतौर पर ये मच्छर दिन के दोपहर के समय में काटते हैं और घर की अपेक्षा ज्यादा बाहर काटते हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार इस बीमारी के प्रमुख लक्षणों में अचानक बुखार, हड्डियों में दर्द, मांसपेशियों में दर्द, सरदर्द, थकान और रैशेस (त्वचा पर लाल चकत्ते) होने लग जाते हैं। अगर चिकनगुनिया का इलाज नहीं किया जाता है, तो यह आंखों के नुकसान के साथ-साथ न्यूरोलॉजिकल और हृदय संबंधी जटिलताओं सहित बड़े नुकसान का कारण बन सकता है। पुराने मरीजों में, यदि इसका इलाज नहीं किया जाए तो इससे मृत्यु भी हो सकती है।

वहीं डेंगू बुख़ार को “हड्डीतोड़ बुख़ार” के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इससे पीड़ित लोगों को इतना अधिक दर्द हो सकता है कि जैसे उनकी हड्डियां टूट गयी हों। डेंगू बुख़ार के कुछ लक्षणों में बुखार, सिरदर्द, त्वचा पर चेचक जैसे लाल चकत्ते तथा मांसपेशियों और जोड़ों के दर्द शामिल हैं।

कुछ लोगों में, डेंगू बुख़ार एक या दो ऐसे रूपों में हो सकता है जो जीवन के लिये खतरा हो सकते हैं। पहला- डेंगू रक्तस्रावी बुख़ार है, जिसके कारण रक्त वाहिकाओं (रक्त ले जाने वाली नलिकाएं) में रक्तस्राव या रिसाव होता है तथा रक्त प्लेटलेट्स (जिनके कारण रक्त जमता है) का स्तर कम होने लग जाता है। दूसरा- डेंगू शॉक सिंड्रोम है, जिससे खतरनाक रूप से रक्तचाप प्रभावित होता है।

बताते चलें कि ‘एलाइजा जांच’ के बिना डेंगू और चिकनगुनिया की पुष्ट जानकारी नहीं हो सकती, यह जांच एलाइजा रीडर मशीन से होती है। राज्य के सभी जिलों में इसकी सुविधा नहीं है। अतः स्वास्थ्य विभाग द्वारा संदिग्ध मरीजों का सैंपल लेकर जांच के लिए रांची भेजा जाता है।

वहीं यह देखा जा रहा है कि मौसमी बुखार में भी निजी क्लिनिक के डाक्टर डेंगू का टेस्ट लिख रहे हैं। जिसे निजी पैथोलॉजी लैब वाले डेंगू टेस्ट किट पर टेस्ट करके रिपोर्ट दे रहे हैं और बीमार लोगों से मनमाने पैसे वसूल रहे हैं। जबकि इसके लिए एलाइजा जांच की सुविधा जरूरी है लेकिन यह सभी जिलों में नहीं है।

औसतन रोजाना 600 लोगों की डेंगू जांच निजी पैथोलॉजी लैब में हो रही है। इनमें से पिछले तीन माह में अबतक 187 मरीजों की ही जांच रिपोर्ट पॉजिटिव पायी गयी है। जबकि स्वास्थ्य विभाग इन्हें संदिग्ध मानते हुए सैंपल लेकर जांच के लिए रांची भेजा तो वहां से मात्र 3 लोगों की ही जांच रिपोर्ट डेंगू पॉजिटिव मिली।

देवघर जिले में करीब 100 निजी पैथोलाॅजी जांच केंद्र है, जहां प्रतिदिन करीब छह से सात लोगाें की डेंगू की जांच किट से की जाती है। ऐसे में औसतन 600 लोगों की जांच रोजाना होती है और हर मरीज से डेंगू जांच के लिए लैब वाले 800 रुपये से 1000 रुपये वसूलते हैं। औसतन 900 रुपये के हिसाब से जोड़ा जाये, तो रोजाना 600 लोगों की जांच में मरीजों से औसतन 5,40,000 रुपये निजी लैब वसूल रहे हैं। वहीं एक माह में यह आंकड़ा 1,62,00,000 रुपये पहुंच जा रहा है। ऐसे में कहा जा सकता है कि निजी लैब डेंगू जांच के नाम पर एक माह में औसतन डेढ़ करोड़ रुपये लोगों से वसूल रहे हैं। जिसपर स्वास्थ्य विभाग की भी नजर नहीं है।

कहना ना होगा कि निजी क्लीनिक व पैथोलाॅजी लैब वालों के लिए करीब तीन माह से डेंगू जांच अतिरिक्त कमाई का बड़ा जरिया बन चुका है। इस खेल में सरकारी चिकित्सकों की भागीदारी से भी इंकार नहीं किया जा सकता है।

इतना ही नहीं बुखार के मरीजों को निजी क्लिनिक के चिकित्सकों द्वारा डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया, सीबीसी, एमपी, विडाल के साथ सीपीआर और सीआरपी जांच कराने की सलाह दी जाती है। इन सभी जांच में मरीजों को करीब 3,500 से 4,000 रुपये खर्च हो जाते हैं। जबकि स्वास्थ्य विभाग पैथोलाजी सेंटरों में किट के माध्यम से की जा रही जांच को डेंगू मरीज नहीं मानता है।

ऐसा नहीं है कि यह केवल देवघर जिले में ही हो रहा है। यह काम राज्य के उन तमाम जिलों में हो रहा है जहां डेंगू और चिकनगुनिया की संभावना देखी जा रही है।

(झारखंड से विशद कुमार की रिपोर्ट।)

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