झारखंड: साहिबगंज की पहाड़िया बस्ती में डायरिया का कहर; 3 लोगों की मौत, दर्जनों बीमार

साहिबगंज, झारखंड। सोशल मीडिया पर एक तस्वीर वायरल हुई, जिसे देखकर कई सवालों के साथ एक काफी गंभीर सवाल दिमाग में कौंधा कि आज के डिजिटल युग में भी लोग कबिलाई युग में जीने को क्यों मजबूर हैं? सवाल अनुत्तरित नहीं है, लेकिन उत्तर खतरनाक है आज के दौर में। क्यों? बताना जरूरी नहीं, सभी जानते हैं।

कहना ना होगा कि इस तस्वीर ने सरकार की उन तमाम डपोरशंखी योजनाओं की हवा निकाल दी है जिसमें यह दावा किया जाता रहा है कि समाज का हर अंतिम आदमी सरकार की जनाकांक्षी योजनाओं का लाभ ले रहा है और खुशहाल है। जिस विकास की तस्वीर का रोज व रोज ढिंढोरा पिटा जा रहा वह तस्वीर कितनी कुरूप है, जिसे देखकर पाषाण हृदय भी संवेदना से भर जाए।

अंदर तक झकझोर देने वाली यह तस्वीर है झारखंड के साहिबगंज जिले के बरहेट प्रखंड क्षेत्र अंतर्गत कुसमा संथाली पंचायत के केटका टोला पहाड़िया बस्ती की, जहां पिछले कई दिनों से 3 लोगों की मौत हो चुकी है और दर्जनों लोग डायरिया से पीड़ित हैं। डायरिया का कहर ऐसा कि इस बस्ती के आदिम जनजाति पहाड़िया के एक ही परिवार के दो लोगों ने एक ही दिन में दम तोड़ दिया। एक दिन पहले इसी गांव की 20 वर्षीया सूरजी पहाड़िन की मौत हुई थी, उसे भी डायरिया था।

इस घटना की भयावहता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 60 वर्षीया सोमी पहाड़िन का शव घर के बाहर चौखट के पास कीचड़ में करीब चार घंटे तक पड़ा रहा। जबकि उसके 50 वर्षीय भाई बेबो मैसा पहाड़िया की मौत घर के भीतर ही लगभग 5 घंटे पहले हो चुकी थी और उसकी भी लाश घर में पड़ी थी।

दोनों की मौत के बाद उनका अंतिम संस्कार करने की बात तो दूर, उन्हें देखने वाला कोई नहीं था। दोनों के शव घंटों पड़े रहे। बेबो की पत्नी दोगी पहाड़िन और उसके तीन बच्चे मंगल पहाड़िया (8 वर्ष), सुरेश पहाड़िया (6 वर्ष) एवं चंदा पहाड़िया (10 वर्ष) भी बीमार थे, दोनों की मौत के बाद वो भी बेसुध पड़े रहे।

स्थिति ऐसी थी कि दोगी पहाड़िन का दिमाग काम करना बंद कर दिया था। लगभग पांच घंटे के बाद दोगी पहाड़िन किसी तरह बाहर आकर रोने चिल्लाने लगी तब जाकर आसपास के लोगों ने दोनों को दफन कर उनका अंतिम संस्कार किया। जानकारी के मुताबिक दोनों को डायरिया था।

इस घटना के बाद गांव के लोग जहां डरे हुए हैं वहीं मौत की इस खबर व तस्वीर वायरल होने के बाद प्रशासनिक अमला व स्वास्थ्य विभाग नींद से जागा और जिले के डीसी रामनिवास यादव के निर्देश पर स्वास्थ्य विभाग ने डॉक्टर व नर्स की टीम गांव में भेजा। टीम कैंप लगाकर बीमार लोगों का इलाज कर रही है।

यहां बताना जरूरी हो जाता है कि आदिम जनजाति के विकास व उनके उत्थान के लिए सरकार की कई जनाकांक्षी योजनाएं हैं जिनमें- बिरसा आवास योजना (Birsa Awas Yojna), मुख्यमंत्री विशेष खाद्य सुरक्षा योजना; डाकिया योजना, पहाड़िया स्वास्थ्य केंद्र; मध्याह्न भोजन योजना; दिवाकालीन विद्यालय योजना; योग्य आदिम जनजाति के व्यक्ति का सरकारी सेवा में सीधी भर्ती योजना; व्यवसायिक प्रशिक्षण योजना शामिल हैं। लेकिन ये योजनाएं कागजों तक ही सिमट रह गई हैं। सोमी पहाड़िन व बेबो मैसा पहाड़िया की मौत ने इस बात को साबित कर दिया है।

पहाड़िया जनजातियों को स्वास्थ्य सुविधा देने के लिए पहाड़िया स्वास्थ्य केंद्र योजना का आरंभ झारखंड सरकार ने 1 अप्रैल 2002 में किया। लेकिन इस केंद्र का लाभ इन्हें कितना मिला या मिल रहा है और सरकारी अमला इन योजनाओं के प्रति कितना ईमानदार और क्रियाशील है? यह योजना के 21 साल बाद बरहेट की इस भयावह घटना ने साबित कर दिया है।

राज्य में पहाड़िया जनजाति तीन प्रकार के हैं- माल पहाड़िया, कुमार भाग पहाड़िया और संवरिया पहाड़िया। इनमें कुमार भाग पहाड़िया का अस्तित्व मिटने के कगार पर है। 1971 की जनगणना में इनकी जनसंख्या 7568 थी। वर्तमान समय में इनकी कितनी आबादी बची है यह कर्मचारियों को भी नहीं पता है। 1981 की जनगणना में कुमार भाग पहाड़िया का कोई जिक्र नहीं है।

कुमार भाग पहाड़िया संताल परगना के दुमका, जामताड़ा, पाकुड़, साहिबगंज, गोड्डा एवं देवघर जिले के विभिन्न भागों में रहते हैं। 1950 में एकीकृत बिहार के समय में पहाड़िया कल्याण के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं शुरू की गईं। कुमार भाग पहाड़िया को पुनर्वासित करने के लिए पाकुड़ के डूमचाचर एवं पदारकोला में आवासीय विद्यालय खोले गए थे। उस समय 88 छात्र विद्यालय में पढ़ रहे थे।

इसी तरह डंगरापाड़ा व गोड्डा के सुंदर पहाड़ी प्रखंड में कुमार भाग पहाड़िया की संख्या अच्छी थी। 1953 में बिहार सरकार द्वारा पहाड़िया कल्याण द्वारा अलग से पहाड़िया कल्याण विभाग गठित किया गया था। इसकी 30 इकाइयां संताल परगना में थीं। संताल पहाड़िया सेवा मंडल के तहत इकाइयां पहाड़िया पुनर्वास के कार्यो में जुटी है।

1958-59 में बिहार सरकार द्वारा पहाड़िया कल्याण विभाग के तहत कुमार भाग पहाड़िया को पुनर्वासित करने के लिए कार्यक्रम चलाया गया। इसमें गोपीकांदर 40, काठीकुंड 20, अमरापाड़ा 20, लिट्टीपाड़ा 40, बोरिया एवं ग्वारीजोर में 40 परिवार को पुनर्वासित किया गया।

संताल परगना गजेटियर के अनुसार पहाड़िया का इतिहास बुलंद रहा है। दुमका का शंकरा एवं गांडो स्टेट पहाड़िया राज्य था। आज उनके वंशज खोजने से नहीं मिलते हैं।

झारखंड राज्य गठन के 23 साल में 8 मुख्यमंत्री हुए हैं, जिसमें एक रघुवर दास को छोड़कर बाकी 7 मुख्यमंत्री आदिवासी समुदाय के हुए हैं, लेकिन किसी ने इस आदिम जनजाति को बचाने का कोई भी सार्थक प्रयास नहीं किया। सभी ने इनके नाम पर कई योजनाओं की घोषणाएं तो की, लेकिन उसे जमीन पर उतारने की कोई गंभीरता नहीं दिखाई।

कहना ना होगा कि सोमी पहाड़िन व बेबो मैसा पहाड़िया की मौत ने जहां सरकारी आंकड़ों और जमीनी हकीकत की पोल खोलकर रख दी है, वहीं यह सवाल भी खड़े कर दिए हैं कि इन समुदायों के लिए तैयार की गई योजनाओं के लाभ इतने लंबे अंतराल के बाद भी इन्हें क्यों नहीं मिल सका?

(विशद कुमार की रिपोर्ट।)

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