क्या पत्रकारों को निजता का अधिकार नहीं है, लैपटॉप और मोबाइल फोन की जब्ती से उठे सवाल

नई दिल्ली। निजता के अधिकार के सवाल पर सुप्रीम कोर्ट ने 24 अगस्त 2017 को बड़ा फैसला सुनाया था। नौ जजों वाली सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार बताया था। पीठ में मुख्य न्यायाधीश जे.एस.खेहर, जस्टिस जे.चेलमेश्वर, जस्टिस एस.ए.बोबडे, जस्टिस आर.के. अग्रवाल, जस्टिस आर.एफ़. नरीमन, जस्टिस ए.एम. सप्रे, जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस एस.के कौल और जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर शामिल थे।

पीठ ने कहा था कि निजता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दिए गए जीने के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हिस्सा है। संविधान पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के उन दो पुराने फ़ैसलों को ख़ारिज कर दिया था जिनमें निजता को मौलिक अधिकार नहीं माना गया था। 1954 में एमपी शर्मा मामले में छह जजों की पीठ ने और 1962 में खड़ग सिंह केस में आठ जजों की पीठ ने फ़ैसला सुनाया था।

अभी पेगासस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि भारत के प्रत्येक नागरिक को निजता के उल्लंघन से बचाया जाना चाहिए।

तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, जिन्होंने फैसला लिखा था, जिसमें सरकार पर पत्रकारों और कार्यकर्ताओं के मोबाइल फोन की जासूसी करने के लिए इजरायली निगरानी कार्यक्रम का उपयोग करने के आरोप लगे थे, ने पत्रकारिता स्रोतों को चुभती नजरों से बचाने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला था।

सुप्रीम कोर्ट ने रेखांकित किया था कि पत्रकारिता स्रोतों की सुरक्षा प्रेस की स्वतंत्रता के लिए बुनियादी शर्तों में से एक है। ऐसी सुरक्षा के बिना, स्रोतों को सार्वजनिक हित के मामलों पर जनता को सूचित करने में प्रेस की सहायता करने से रोका जा सकता है।

हाल ही में, जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने छापेमारी के दौरान जांच एजेंसियों द्वारा “इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य” के रूप में शिक्षाविदों के मोबाइल फोन और कंप्यूटर जब्त किए जाने पर चिंता व्यक्त की थी।

सुप्रीम कोर्ट ने इन व्यक्तिगत डिजिटल उपकरणों में सहेजे गए अपने काम और अनुसंधान की सुरक्षा के उनके अधिकार पर प्रकाश डाला था।

उस मामले में याचिकाकर्ताओं, जिनमें प्रोफेसर राम रामास्वामी, सुजाता पटेल, एम. माधव प्रसाद, मुकुल केसवन और दीपक मालघन शामिल थे, ने तर्क दिया था कि जब पुलिस छापेमारी के बाद उनके कंप्यूटर और हार्ड ड्राइव ले जाती है तो शिक्षाविद अपने जीवन का काम खो देते हैं।

हालांकि, गृह मंत्रालय ने प्रतिवाद किया था कि “किसी को भी कानून से ऊपर नहीं माना जा सकता”। मंत्रालय ने कहा था कि कोई आरोपी निजता के अधिकार का दावा नहीं कर सकता जब कंप्यूटर, टैबलेट, लैपटॉप या मोबाइल फोन का इस्तेमाल अपराध करने के लिए किया गया हो या उसके पास जांच के तहत अपराध से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी हो। इसमें कहा गया था कि डिजिटल उपकरणों की फोरेंसिक विशेषज्ञों द्वारा गहन जांच की जानी चाहिए।

अब नया मामला न्यूज़क्लिक के पत्रकारों पर दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल के छापों का है जिसमें पत्रकारों के घरों पर छापे और उनके लैपटॉप और मोबाइल फोन की जब्ती की गयी है। इसके एक दिन पहले भड़ास4 मीडिया डॉट काम के सम्पादक यशवंत सिंह से एक एनी मामले में पूछताछ के दौरान उनका मोबाइल दिल्ली पुलिस ने जब्त कर लिया था।

पत्रकारों के घरों पर छापे और उनके लैपटॉप और मोबाइल फोन की जब्ती ने इस बात पर बहस छेड़ दी है कि क्या गोपनीयता के अधिकार और इन उपकरणों में संग्रहीत काम की सुरक्षा के अधिकार से सुरक्षा के नाम पर राज्य द्वारा समझौता किया जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर 2021 में पेगासस मामले में अपने फैसले में कहा था कि सभ्य लोकतांत्रिक समाज के सदस्यों को गोपनीयता की उचित अपेक्षा होती है। गोपनीयता पत्रकारों या सामाजिक कार्यकर्ताओं की एकमात्र चिंता नहीं है। भारत के प्रत्येक नागरिक को निजता के उल्लंघन से बचाया जाना चाहिए।

बीते मंगलवार न्यूज़ पोर्टल ‘न्यूज़क्लिक’ से जुड़े पत्रकारों के घरों पर दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल की छापेमारी और दो लोगों की गिरफ़्तारी के बाद भारत में ‘प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर चिंता’ फिर से उभर आई हैं।

बुधवार को न्यूज़क्लिक के संस्थापक और प्रधान संपादक प्रबीर पुरकायस्थ और मानव संसाधन विभाग के प्रमुख अमित चक्रवर्ती को सात दिन की पुलिस हिरासत में भेज दिया गया। इन दोनों को ग़ैरक़ानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) की धाराओं के तहत गिरफ़्तार किया गया है। यूएपीए एक आतंकवाद-विरोधी क़ानून है और इसके तहत गिरफ़्तारी होने पर ज़मानत मिलना बेहद मुश्किल है।

प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और दिल्ली पुलिस का इकोनॉमिक ऑफेंसिस विंग पहले से ही न्यूज़क्लिक के ख़िलाफ़ मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों की जांच कर रहे थे। न्यूज़क्लिक के प्रधान संपादक प्रबीर पुरकायस्थ ने इन मामलों में कार्रवाई के ख़िलाफ़ अदालत से अंतरिम रोक प्राप्त कर ली थी।

न्यूज़क्लिक से जुड़े कुल 46 लोगों से दिल्ली-एनसीआर और मुंबई में 50 से अधिक जगहों पर पूछताछ की गई और उनके डिजिटल उपकरणों को ज़ब्त कर लिए गए। न्यूज़क्लिक के दिल्ली स्थित कार्यालय को भी सील कर दिया गया है।

ये कहा जा रहा है कि मंगलवार को की गई पुलिस कार्रवाई 17 अगस्त को ईडी के इनपुट के आधार पर दर्ज की गई एक एफआईआर पर आधारित थी जिसमें न्यूज़क्लिक पर अमेरिका के रास्ते चीन से अवैध धन हासिल करने का आरोप लगाया गया था।

वैश्विक मीडिया निगरानी संस्था रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (आरएसएफ) की मई 2023 में जारी रिपोर्ट के मुताबिक़ विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत की रैंकिंग 180 देशों में से 161वें स्थान पर खिसक गई। साल 2002 में भारत इस लिस्ट में 150वें पायदान पर था।

आरएसएफ ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि भारत में सभी मुख्यधारा मीडिया अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के क़रीबी अमीर व्यापारियों के स्वामित्व में हैं। रिपोर्ट में कहा गया था कि मोदी के पास समर्थकों की एक फौज है जो सरकार की आलोचना करने वाली सभी ऑनलाइन रिपोर्टिंग पर नज़र रखते हैं और स्रोतों के ख़िलाफ़ भयानक उत्पीड़न अभियान चलाते हैं। आरएसएफ रिपोर्ट ने कहा था कि अत्याधिक दबाव के इन दो रूपों के बीच फंसकर कई पत्रकार, व्यवहार में, ख़ुद को सेंसर करने के लिए मजबूर होते हैं।

न्यूज़क्लिक से जुड़े जिन 46 लोगों से पूछताछ की गई है उन सभी के डिजिटल उपकरणों को ज़ब्त कर लिया गया है। फाउंडेशन फॉर मीडिया प्रोफेशनल्स के मुताबिक़ ये बात परेशान करने वाली है कि पत्रकारों के डेटा और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को मनमाने तरीक़े से ज़ब्त किया गया और उन्हें क्लोन प्रतियां, हैश वैल्यू और अन्य महत्वपूर्ण जानकारी नहीं दी गई जो साक्ष्यों की अखंडता सुनिश्चित करने और पत्रकारों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए ज़रूरी हैं।

पिछले साल फाउंडेशन फॉर मीडिया प्रोफेशनल्स ने पत्रकारों के डिजिटल उपकरणों को खंगालने और ज़ब्त करने के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था। उनका कहना था कि इन उपकरणों में निजी डेटा होता है और उन्हें ज़ब्त कर लेना निजता के अधिकार के ख़िलाफ़ है।

शीर्ष अदालत ने मौलिक अधिकारों के अनुरूप तलाशी और ज़ब्ती के लिए क़ानून और दिशानिर्देश की मांग वाली याचिका के बारे में केंद्र से जवाब मांगा है। ये मामला फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।

(वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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