ग्राउंड रिपोर्ट: गरीबों पर आफत की बारिश, टपकती छतें और धुलती पक्के घर की उम्मीदें

चंदौली/वाराणसी। देश में मॉनसून के आगमन के साथ ही छप्पर और कच्चे मकानों में पीढ़ी-दर-पीढ़ी रहते आ रहे गरीबों पर शामत आ गई है। देश के ग्रामीण और शहरी हिस्सों में छप्पर और कच्चे मकानों में रहने वाले लाखों लोग अपनी छतें दुरुस्त करने में जुटे हैं, ताकि कम से कम बारिश में रात बैठकर न गुजारनी पड़े। बारिश में टपकते घास-फूस, नारिया-पटरी की छत के नीचे समाई समूची गृहस्थी पानी में भीगकर लथपथ न हो जाए।

इतना ही नहीं चूल्हे-चौके और ईंधन-उपले बेकार न हो जाएं और बच्चों को रात में खाट पर बैठकर सुबह का इंतजार न करना पड़े। पक्के मकान अर्थात आवास योजना के इंतज़ार में गरीबों को तरह-तरह के जतन-तपन करने पड़ रहे हैं। कोई दिहाड़ी मजदूर है, कोई अपने परिवार के गुजर बसर के लिए महानगरों में जोखिम भरा कठोर श्रम कर रहा है।


कच्चे मकान को बारिश से बचाने के लिए प्लास्टिक की तिरपाल लगते ग्रामीण।

बेतहाशा मंहगाई, चढ़ती बेरोजगारी और दिहाड़ी के घटते मौके के बीच पिस रहा यह समाज लाख प्रयास के बाद भी अपने परिवार के लिए पक्की छत की व्यवस्था नहीं कर पा रहा है। सर्दी को बुलंद इरादों से मात देने के बाद गरीब गर्मी के दिन छप्पर, पेड़ों की छांव आदि में काट लेते हैं। मॉनसून में बारिश की टपकती बूंदों के साथ इनकी परेशानियां बढ़ जाती हैं। ऐसे लाखों गरीब घास-फूस, राढ़ी-पतलों, बांस, टीन शेड, प्लास्टिक के बोरे और तिरपाल जुटाने में लग जाते हैं। इसके लिए कोई कर्ज लेता है तो कइयों को लगातार काम करना पड़ता है।

गौरतलब है कि साल 2015 में जब केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री आवास योजना की शुरुआत की थी तो लक्ष्य रखा था कि 2022 तक देश के हर गरीब परिवार के पास एक पक्का घर होगा। इस योजना का मुख्य उद्देश्य था- कच्चे, जर्जर घरों और झुग्गी-झोपड़ी से देश को मुक्त बनाना। योगी सरकार मानती है कि इस योजना को सफलतापूर्वक लागू करने और गरीबों को घर देने में उनका उत्तर प्रदेश सबसे आगे है।

हालांकि प्रदेश सरकार ने अपने पांच साल के कार्यकाल के भीतर प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री आवास योजना के तहत राज्य के सभी शहरी और ग्रामीण गरीबों को पक्का घर देने का वादा किया था। राज्य सरकार दावे कुछ भी करे लेकिन तस्वीर यह है कि अभी भी बहुतेरे गरीब परिवारों को एक पक्की छत का इंतजार है।

तूफान से हुआ हादसा, नहीं बदले हालात

साल 2022 के जून-जुलाई में आए तूफान ने मानिकपुर सानी निवासी 32 वर्षीय अनवर अंसारी की घास-फूस की झोपड़ी को हवा में कई फीट उड़ाकर जमीन पर पटक दिया था। फिर शुरू हुई बारिश ने आधे घंटे तक जमीन पर पड़ी झोपड़ी के ताने-बाने को कीचड़ में सान दिया। पड़ोसियों को भी खबर ही नहीं थी कि धराशाई हुई झोपड़ी में अनवर, उनकी पत्नी जरीना, दो बेटियां और दो छोटे-छोटे बच्चे दबे हुए हैं।

अपनी झोपड़ी व परिवार के साथ अनवर अंसारी।

बारिश के बंद होने के बाद अनवर के कराहने की आवाज सुनकर पास से गुजर रहे एक ग्रामीण ने शोर मचा कर गांव वालों को इकठ्ठा किया। जैसे-तैसे छान, छप्पर, बांस-बल्ली हटाकर अनवर और उनके परिवार को मलबे से सुरक्षित बाहर निकला गया। मलबे से निकाले जाने के बाद सभी सुरक्षित थे, लेकिन अनवर चल नहीं पा रहे थे। वे दर्द के मारे लगातार कराह रहे थे। इस हादसे के बाद ग्राम प्रधान, पत्रकार और विकासखंड से अधिकारी आये, आवास योजना और मुआवजे के लिए लिखा-पढ़ी करके ले गए। इस वाकये के एक वर्ष गुजर गए लेकिन अनवर का हाल जस का तस है।

आंधी में गिरी झोपड़ी, टूट गई पसली की हड्डी

उत्तर प्रदेश के अति पिछड़े जनपद चंदौली के मानिकपुर सानी गांव में स्थित अनवर अंसारी के घर ‘जनचौक’ की टीम रविवार को पहुंची। अनवर पिछले साल के वाकये को यादकर भावुक और दुःखी हो जाते हैं। वह बताते हैं कि “पिछले साल आई आंधी-बारिश में घास-फूस का आशियाना मेरे परिवार के ऊपर ही गिर गया। जिसमें मैं भी दबा था। सभी को हल्की-फुल्की चोंटे आईं लेकिन, लेकिन मेरी पसली की एक हड्डी टूट गई। एक हफ्ते तक जिला अस्पताल में भर्ती था।”

उन्होंने कहा कि “सरकारी कारिंदे आए थे, आवास और मुआवजा देने का आश्वासन देकर चले गए। देखिए, आज भी हम लोग वैसे ही रह रहे हैं, जैसे पहले थे। पसली की हड्डी टूटने के बाद से मजदूरी नहीं कर पाता हूं। मैं आसपास के गांव में ठेले पर गोलगप्पा बेचकर अपने परिवार का गुजारा करता हूं।”

900 रुपये कर्ज लेकर लगाया तिरपाल

अनवर की 28 साल की पत्नी जरीना को सरकार से नाराजगी है। वह कहती हैं कि “गर्मी और जाड़ा में बच्चों को लेकर जैसे-तैसे गुजारा हो जाता है। लेकिन बारिश हम गरीबों के लिए आफत लेकर आती है। पति रोजाना गोलगप्पे बेचकर 150-200 रुपये कमाते हैं, जो परिवार के भरण-पोषण में ही खर्च हो जाता है। छप्पर की छत पर प्लास्टिक की तिरपाल डालने के लिए 900 रुपये पड़ोसी से कर्ज लेना पड़ा। शनिवार को हम लोग प्लास्टिक की तिरपाल लगाए हैं।”

कच्चे मकान में टपकते बारिश के पानी को दिखाती महिला।

जरीना आगे कहती हैं कि “सरकार से मैं कहना चाहूंगी कि आवास योजना किसके लिए बनाया गया है? क्या हमारा परिवार अपने ही घर में दबकर मर जाएगा, तब सरकार गरीबों की सुनेगी? कई साल से आवास योजना के लिए आवेदन किया गया है। चार-पांच महीने पहले गांव के सरकारी स्कूल में लगे जन चौपाल में भी उपजिलाधिकारी के सामने आवेदन दिया था।”

मॉनसून से लगता है डर

बरहनी ब्लॉक के 58 वर्षीय मोतीराम तकरीबन एक दशक से आवास योजना की बाट जोह रहे हैं। हर मॉनसून में उन्हें डर रहता है कि उनका कच्चा मकान जब-तब गिर जाए। ‘जनचौक’ की टीम जब उनके घर पहुंची तो कुछ ही मिनट पहले बारिश बंद हुई थी। उनके मकान की छत कई जगह से टपक रही थी। घर पर पड़ी खाट, बिछवना, उपले-ईंधन, बर्तन, चूल्हे-चौके सभी पानी से भीग गए। मोतीराम घर में अधिक पानी न जमा हो, इसके लिए जहां-तहां बाल्टी और बर्तन लगाए हुए हैं कि छत से टपकता हुआ पानी इकठ्ठा कर सकें। बाल्टी भर जाने के बाद वे पानी को बाहर निकलने में जुट जाते हैं।”

गिरते-ढहते मकान के पास महिला।

किसी रोज ये घर भी गिर जाएगा?

मोतीराम अपनी पीड़ा बताते हुए कहते हैं कि “मेरे कच्चे घर का कुछ हिस्सा पिछले साल बारिश में अचानक भरभरा कर ढह गया। गनीमत रही कि उस वक्त घर में कोई नहीं था, अन्यथा किसी बड़े हादसे से इनकार नहीं किया जा सकता था। इस साल भी बारिश के आने से पहले अपने शेष बचे घर को लीप-पोतकर दुरुस्त किया, लेकिन कोई विशेष फायदा नहीं हुआ। अभी मॉनसून की शुरुआत है। इतनी सी बारिश ने ही मिट्टी की दीवार को धो दिया है। जगह-जगह दरार उभर गए हैं। घर में जगह कम होने से बच्चे पड़ोस के लोगों के घर-दुआर पर सोने के लिए जाते हैं। बड़ी ही परेशानी में जीवन कट रहा है।

वो कहते हैं कि “आवास योजना के लिए आवेदन किया है। एक बार आवास योजना की सूची में नाम आने के बाद भी हमारा नाम काट दिया गया। मेरी सरकार से मांग है कि जब देश में सभी का विकास हो रहा है, हम लोगों को क्यों बिलगा दिया गया है? क्या हमारा जीवन मिट्टी के कच्चे मकान में ही बीत जाएगा? या किसी रोज मूसलाधार बारिश में, जो घर बचा है, वह भी गिर जाएगा?”

बारिश में भीग जाता है चूल्हा-चौका

मानिकपुर निवासी सुनील राम की पत्नी रीमा देवी शाम चार बजे ही अपने घर में रखे चूल्हे-चौके पर खाना बनाने में जुटी हुई हैं। वह ‘जनचौक’ से बात कर रही थीं कि बारिश आ गई। वह अपने चूल्हे को बचाने में जुट गईं। बारिश में उनकी टीन की छत टपकने लगी, जिससे चूल्हा-चौका, ओखली-मुसल और अन्य सामान बारिश में भीगने लगे। उनके बच्चे अगल-बगल के मकानों में बारिश से बचने के लिए शरण लिए हुए हैं। रीमा ही नहीं आसपास के दलितों के कच्चे मकानों के छत भी टपक रहे हैं। लोग अपनी गृहस्थी के सामान और परिवार को बचाने में जुटे हैं।”

अपने कच्चे मकान को देखतीं रीमा देवी।

कब होगा ख़त्म इंतजार

रीमा बताती हैं कि “देखिये आसमान में काले बादल छाये हुए हैं। जब-तब बारिश हो रही है। मैं जल्दी-जल्दी खाना बना रही हूं क्योंकि मूसलाधार बारिश में छत टपकने लग जाएगी तो चूल्हा भीग जाएगा। इस वजह बच्चों को भूखा ही रहना पड़ जाएगा। रात में बारिश होने पर बैठकर गुजारा करना पड़ता है। बच्चे रोते-बिलखते हैं। कई बार आवास के लिए आवेदन दिया गया है, जो अभी तक नहीं मिल सका है। जाने कब हम लोगों के पक्के छत का इंतजार ख़त्म होगा?

आवास योजना की बाट जोह रहे जरूरतमंद

ठेले पर सब्जी बेचने वाले वाराणसी के सुजाबाद के झगड़ू सोनकर व सोनी को आवास योजना का इंतजार है। बारिश आने से पहले 62 वर्षीय असगर अपने कच्चे मकान की प्लास्टिक और बांस की छत को दुरुस्त करने में जुटे हुए हैं। वे कई बार आवेदन कर चुके हैं, लेकिन, इनका भी नाम आवास योजना के लिए शॉर्ट लिस्ट नहीं हो सका है। अब तो दीवार और छत में दरार आ गई है। उनका आठ सदस्यीय परिवार टूटे मड़हे में गुजारा करने को विवश है।

गरीब लाभार्थियों तक आवास योजना की पहुंच की रफ़्तार बहुत धीमी है। खरा देवी, गुलाब राम, कमलेश कुमार, राजेश कुमार, बहादुर, दरोगा राम, मुरली साहनी, सीताराम और रामकेसी समेत कई लोग आवास योजना की बाट जोह रहे हैं।

कच्चे घर में झगड़ू सोनकर व उनकी पत्नी सोनी।

आवास योजना के लाभार्थी

जनपद में अब तक कुल 31,078 लाभार्थियों को आवास योजना से लाभांवित किया जा चुका है। इसमें 95 फीसदी आवास की छत पड़ गई है। हालांकि आवास के साथ शौचालय की स्थिति संतोषजनक नहीं है। चालू वित्तीय वर्ष में अभी आवास का लक्ष्य निर्धारित नहीं हो पाया है। ऐसे में शासन ने प्रशासन को ग्राम पंचायत स्तर पर पात्र लाभार्थियों की सूची तैयार करने को कहा है। मसलन, जिनके पास कच्चा मकान हो और झोपड़ी में रहते हों। वहीं वस्तु स्थिति की जानकारी के लिए जियो टैगिंग कराने का निर्देश जारी किया गया है, ताकि जियो टैगिंग के आधार पर लाभार्थियों को आवास का आवंटन किया जा सके।

ऊंट के मुंह में जीरा

2011 की जनगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले की कुल जनसंख्या 1,952,756 है। जिसमें से 1,017,905 पुरुष हैं, जबकि 934,851 महिलाएं हैं। 2011 में चंदौली जिले में कुल 296,804 परिवार रहते थे। जनगणना 2011 के अनुसार कुल जनसंख्या में से 12.4% लोग शहरी क्षेत्रों में रहते हैं जबकि 87.6% लोग ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं। लगभग 12 सालों बाद जनपद की जनसंख्या काफी बढ़ गई होगी, लेकिन इतनी बड़ी आबादी पर चंदौली जनपद में वित्तीय वर्ष 2022-23 में महज 6,078 लाभार्थियों को आवास योजना का लाभ मिला, जो ऊंट के मुंह में जीरे के सामान है।

क्या कहते हैं अधिकारी?

परियोजना निदेशक सुशील कुमार ने बताया कि “चालू वित्तीय वर्ष में पीएम आवास का आवंटन करने के लिए सूची तैयार कर जियो टैगिंग कराने का निर्देश सभी खंड विकास अधिकारियों को दिया गया है, ताकि आवास के आवंटन के लिए धनराशि पात्र लाभार्थी के खाते में भेजी जा सके।”

अपने मिट्टी के घर के पास खरा देवी।

बनारस में मकान का छज्जा गिरने से चार घायल

सिगरा थाना क्षेत्र के इंग्लिशिया लाइन के पास गुरुवार को उस समय अफरा-तफरी का माहौल हो गया जब एक जर्जर मकान का छज्जा भरभरा कर गिर पड़ा। मॉनसून की पहली बारिश में ही हुए हादसे से पूरे क्षेत्र में हड़कंप मच गया। जर्जर मकान के नीचे बाइक की सर्विस करवा रहे 4 लोग घायल हो गए। घायलों को स्थानीय लोगों ने आनन-फानन में कबीरचौरा स्थित मंडलीय चिकित्सालय में भर्ती कराया।

घटना को लेकर स्थानीय लोगों ने बताया कि जर्जर मकान सैकड़ों वर्ष पुराना है और बारिश की वजह से इसका छज्जा गिर गया। छज्जा गिरने पर तेज आवाज हुई तो लोग मौके पर पहुंचे तो देखा कि मकान के नीचे बाइक सर्विस करवा रहे चार लोग इसकी चपेट में आ गए हैं और बुरी तरह घायल हो गए हैं।

मुजफ्फरनगर में कच्चे मकान की छत गिरी, दो बच्चों की मौत

उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में गत रविवार को भारी बारिश के कारण एक कच्चा मकान ढह गया, जिससे दो बच्चों की मौत हो गई और तीन अन्य घायल हो गए। नसीरपुर गांव में हुई यह घटना शनिवार रात से हो रही लगातार बारिश का नतीजा है। जानकारी के मुताबिक घटना के वक्त परिवार के लोग सोये हुए थे। सूचना मिलने पर जिला प्रशासन के लोग मौके पर पहुंच कर घटना का जायजा लिया। घायलों को इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया है।

(उत्तर प्रदेश से पवन कुमार मौर्य की ग्राउंड रिपोर्ट।)

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