रांची। झारखंड में मानसून की बेरुखी का आलम यह है कि खरीफ फसल की वर्तमान स्थिति राज्य के किसानों के लिए काफी चिंताजनक है। अभी तक बारिश की जो स्थिति है उससे यह साफ हो गया है कि इस साल भी राज्य सूखे की चपेट में आने वाला है। राज्य के 13 जिलों में अभी तक रोपाई शुरू नहीं हुई है। यानी राज्य में 55 फीसदी रोपनी नहीं हुई है। जिन 11 जिलों में रोपनी हुई है, वहां रोपाई की फसल बारिश के अभाव में सूखने के कगार पर है। क्योंकि राज्य में सिंचाई की सुविधा नहीं के बराबर है। ऐसे में राज्य को इस वर्ष भी सूखे की चपेट में आने से इंकार नहीं किया जा सकता है।
इसका आभास झारखंड की हेमंत सरकार को भी हो गया है, शायद यही वजह है कि 24 जुलाई को कृषि, पशुपालन एवं सहकारिता विभाग द्वारा संचालित योजनाओं की समीक्षा बैठक के बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि “राज्य के लगभग 70 फीसदी से अधिक लोग खेती पर निर्भर हैं। पिछली बार की तरह इस बार भी सुखाड़ जैसी स्थिति है। इसको लेकर सरकार गंभीर है। इस मुद्दे पर गंभीरता से बात हुई है। किसानों के लिए हम क्या बेहतर कर सकते हैं इस पर हमने चर्चा की है। कई निर्णय भी लिए हैं। हम मौसम पर नजर बनाए हुए हैं। विभागों को हर परिस्थिति से निपटने के लिए निर्देश भी दिये गये हैं।”
मुख्यमंत्री ने विभाग के अधिकारियों से कहा कि ‘ज्यादा से ज्यादा किसानों को केसीसी से आच्छादित करने के साथ केसीसी लोन उपलब्ध कराने की पहल करें। ऐसा देखा जा रहा है कि केसीसी लोन स्वीकृत करने में बैंक दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं। ऐसे में सहकारी बैंकों और ग्रामीण बैंकों से लांच कराने की दिशा में कार्य करें’।
बता दें कि भारत के अधिकांश भूभाग में किसानों को अच्छी फसल के लिए मानसून पर निर्भर रहना पड़ता है। मानसून में देरी से किसानों को फिर से फसल की बुआई करनी पड़ती है। भारत में अधिकांश किसानों को अपने अस्तित्व के लिए पर्याप्त कमाई के साथ ही यह एक बड़ा वित्तीय बोझ होता है। ऐसी परिस्थितियों में इन किसानों की सहायता के लिए, भारत सरकार ने किसान क्रेडिट कार्ड योजना शुरू की। यह योजना सरकार द्वारा 1998 में शुरू की गई थी। इस योजना का मुख्य उद्देश्य किसानों को लचीली और सरल प्रक्रियाओं के साथ एकल खिड़की के तहत पर्याप्त और समय पर ऋण सहायता प्रदान करना है।
मुख्यमंत्री ने विभाग के अधिकारियों से कहा कि ‘झारखंड जैसे राज्य में कई ऐसे कृषि और वन उपज हैं, जिसकी अच्छी पैदावार होती है। लेकिन, किसानों को उसका उचित लाभ नहीं मिल पाता है। ऐसे में इन कृषि उत्पादों को बाजार उपलब्ध कराने के साथ उसके निर्यात की संभावनाओं को तलाशें। इसके साथ एग्रो इंडस्ट्रीज को भी बढ़ावा देने की दिशा में कार्य योजना बनाएं।’
हेमंत सोरेन ने कहा कि ‘फिलहाल मौसम का जिस तरह का रुख देखने को मिल रहा है, उससे किसानों के सामने कई बड़ी चुनौतियां खड़ी हो रही हैं। ऐसे हालात में नई फसलों या फसल प्रणालियों से कृषि उत्पादन को जोड़ने का एक्शन प्लान तैयार करें। किसानों को वैकल्पिक खेती करने के लिए प्रेरित करें।’ उन्होंने यह भी कहा कि ‘किसानों को मिलेट्स, दाल और आयल सीड की खेती के लिए प्रेरित करें।’
मुख्यमंत्री ने कहा कि ‘आज कृषि योग्य भूमि कम हो रही है और किसान भी खेतिहर मजदूर के रूप में तब्दील होते जा रहे हैं। यह कृषि के लिए किसी भी रूप में अच्छा संकेत नहीं है। ऐसे में जो किसान खेतिहर मजदूर बनने को मजबूर हैं, उन्हें बिरसा हरित ग्राम योजना और नीलाम्बर-पीताम्बर जल समृद्धि जैसी योजनाओं से जोड़ें। इससे वे कृषि और उससे संबंधित कार्यों से जुड़े भी रहेंगे और उनकी आय में भी इजाफा होगा।’
बता दें कि राज्य में 18 करोड़ लाख हेक्टेयर भूमि पर धान की खेती का लक्ष्य निर्धारित है जबकि अब तक मात्र दो लाख हेक्टेयर भूमि में ही लग पाया है। वहीं बारिश की बात करें, तो राज्य में अब तक 403 मिमी बारिश होनी चाहिए थी, लेकिन अब तक 201 मिमी ही बारिश हुई।
कहना ना होगा कि मुख्यमंत्री की चिन्ता राज्य के किसानों के लिए जितनी शकूनदायक है, उतनी ही राज्य की अफसरशाही और उनके मातहतों में व्याप्त भ्रष्टाचार के बीच इन तमाम घोषित योजनाओं के लाभों को पाना किसानों के लिए एक बड़ी चुनौती है। आए दिन राज्य में इसके कई उदाहरण देखने सुनने को मिलते रहते हैं। हाल ही में फसल बीमा का एक मामला जामताड़ा जिले के नारायणपुर प्रखंड में देखने को मिला।
बीमा कंपनियों से परेशान किसान
वित्तीय वर्ष 2017-18 और 2018-19 में प्रखंड के लगभग सभी गांवों के किसानों ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत इस उम्मीद से बीमा करवाया था कि उनकी फसलों की हुई क्षति की भरपाई बीमा से हो जाएगा। लेकिन उनकी उम्मीदों पर लगातार कई वर्षों से पानी फिरता जा रहा है। किसानों ने प्रति एकड़ भूमि के लिए 440 रुपये की राशि अपनी फसलों के बीमा में खर्च किये, लेकिन अभी तक बीमा की राशि नहीं मिलने से किसान ठगा सा महसूस कर रहे हैं।
क्षेत्र के किसानों ने बताया कि हमने वित्तीय वर्ष 2017-18 और 2018-19 में पीएम फ़सल बीमा योजना के तहत ख़रीफ़ फ़सल के लिए बीमा कराया था। लगातार कई वर्षों से अच्छी वर्षा नहीं होने के कारण धान की फ़सल नहीं हो सकी है। बीमा की राशि मिलनी चाहिए थी, लेकिन अभी तक नहीं मिलने से हम ख़ुद को ठगा महसूस कर रहे हैं।
एक तरफ मौसम की मार और दूसरी तरफ बीमा कंपनियों की दगाबाजी, सैकड़ों किसानों को हिलाकर रख दिया है। लेकिन विभाग से संबंधित किसी अधिकारी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। राज्य में मनरेगा योजना में भी भ्रष्टाचार के अनगिनत मामले लगातार आ रहे हैं। लेकिन उस पर नियंत्रण नहीं हो पा रहा है।
अब मानसून की नाराज़गी से उत्पन्न परिस्थितियों पर मुख्यमंत्री की चिन्ता राज्य के किसानों को कितनी राहत पहुंचाएगी, यह भविष्य के गर्भ में है। लेकिन पिछले रिकॉर्ड को देखते हुए किसान भविष्य को लेकर अभी से ही भीतर से घबराए हुए हैं। यही वजह है कि कई क्षेत्र के खेतिहर मजदूरों के साथ साथ कई छोटे किसान भी रोजगार के लिए दूसरे राज्यों में पलायन कर रहे हैं।
मानसून की बेरुखी का असर
माॅनसून के प्रवेश करते ही कोडरमा जिले के चंदवारा प्रखंड में आंशिक रूप से हुई बारिश के बाद भी किसानों ने इस आशा से कि आगे बारिश ठीक होगी, धान के बिचड़े बोये, मकई के बीज लगाये, मडुआ के बीज भी छींटे, लेकिन बारिश गायब रही और आज सभी फसल के बिचड़े कहीं पीले तो कहीं काले हो गये है़ं।
कई जगहों पर बिचड़े झुलसने लगे हैं। मकई की स्थिति यह है कि पौधे पनपने के बजाय सिकुड़ने लगे हैं। यहां तक कि किसानों ने चुआं खोद कर धान के बिचड़ों को बचाने का प्रयास किया लेकिन प्रयास विफल साबित हो रहे हैं। ताल तलैया तो पहले से ही सूखे पड़े हैं। अब चुआं भी काम नहीं आ पा रहा है।
क्या कहते हैं क्षेत्र के किसान?
चरकी पहरी गांव के किसान बाबूलाल यादव कहते हैं कि “हम लोगों ने अथक प्रयास कर धान का बिचड़ा लगाया़ था। लेकिन जब बिचड़ा तैयार होने और धान रोपने का समय आया, तो बारिश के गायब हो जाने से हम लोगों की उम्मीदों पर पानी फिर गया है। हालात यही रहे तो सुखाड़ की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है। जिला प्रशासन व राज्य सरकार भी चंदवारा प्रखंड की उपेक्षा करती रही है। पिछले वर्ष चंदवारा प्रखंड को सुखाग्रस्त घोषित नहीं किया गया था, मगर इस वर्ष सरकार को इस प्रखंड को सूखे की सूची में शामिल करना होगा।”
पिपचो गांव के नेरश राम कहते हैं कि “बारिश नहीं होने से पूरे इलाके में सुखाड़ की स्थिति उत्पन्न हो गयी है। बिचड़े सूखने लगे हैं, खेतों से नमी गायब है, लगता है इस वर्ष भी हम किसानों को सुखाड़ की त्रासदी झेलनी पड़ेगी। जिला प्रशासन व राज्य सरकार को तत्काल इस दिशा में पहल शुरू करना चाहिए, ताकि हम किसानों को राहत मिल सके। एक बार की धान की उपज से साल भर का चावल और पशुओं का चारा उपलब्ध होता था, मगर लगता है कि इस वर्ष इंसानों को चावल और पशुओं के चारे के लिए संकट झेलना पड़ेगा”।
चुटियारो गांव के देवनारायण साव का कहना है कि “हमारा गांव खेती के क्षेत्र में हमेशा अग्रणी माना जाता है, सब्जियों की खेती में यह गांव सर्वोपरि रहा है, मगर इस वर्ष भीषण गर्मी के कारण सब्जी की खेती सही ढंग से नहीं हो पायी। अब धान, मकई, मडुआ की खेती का समय आया, तो मानसून दगा दे गया। लगता है इस वर्ष धान, मकई की खेती नहीं हो पायेगी। बारिश का हाल यही रहा तो हम किसानों के हाथ कुछ भी नहीं लगेगा। सरकार व जिला प्रशासन को हालात का आकलन करके हमें राहत देना चाहिए”।
हजारीबाग जिले के बड़कागांव प्रखंड में बारिश नहीं होने के कारण धान के बिचड़े के खेतों में दरार पड़ने लगी हैं। किसानों ने कम हुई बारिश के बाद भी खेतों में धान के बीज इस आशा में डाल दिए थे कि आगे चलकर बारिश तो होगी ही। लेकिन इसके बाद लगातार मौसम की बेरूखी से खेतों में दरारें पड़ गई हैं जिन्हें देख किसानों की परेशानी बढ़ती ही जा रही है।
किसान कालेश्वर राम, द्वारिका साह, दशरथ महतो और अशोक महतो कहते हैं कि ‘हफ्तेभर के भीतर अगर धान की फसलों को पानी नहीं मिला, तो फसलें सूखनी शुरू हो जायेंगी, वहीं अकाल जैसी स्थिति से हम किसानों को इस बार फिर से जूझना पड़ेगा’।
पूर्व मुखिया अनीता देवी, किसान जोगेश्वर महतो और बद्रीनाथ महतो बताते हैं कि ‘बारिश नहीं होने के कारण खेत में लगाये गये बिचड़े सूख रहे हैं। मौसम में अचानक आये बदलाव के चलते दोपहर में पड़ रही तेज धूप भी फसल के लिए बहुत ज्यादा परेशानी खड़ी कर रही है’।
किसान बताते हैं कि प्रखंड का बड़कागांव, बादम हरली, विश्रामपुर, नापो खुर्द, पोककला, तलसवार, सिकरी, सांढ़ आदि क्षेत्रों में फसलें ऐसी स्थिति में आ गई हैं कि यदि तीन से चार दिनों में बारिश नहीं हुई तो फसलें पूरी तरह से सूखकर खत्म हो जाएंगी।
गुमला जिला के सिसई प्रखंड में भी माॅनसून की कमी से किसान चिंतित हैं। पर्याप्त पानी नहीं मिलने से खेत के बिचड़े सूख रहे हैं। रोज काली घटाएं घिरती है, हल्की बारिश के बाद कड़कड़ाती धूप निकल आती है, जिससे धान की बुआई तो दूर बिचड़ा को जिंदा रखने के लिए किसानों को जद्दोजहद करनी पड़ रही है। कुछ किसान बूढ़े हो रहे बिचड़ों को पटवन कर रोपाई करने की जुगत भिड़ा रहे हैं, किंतु बारिश नहीं होने से कुआं, आहर, तालाब समेत बरसाती नालों में भी पानी नहीं है। मानसून की इस बेरुखी से पिछले साल जैसे सूखे की स्थिति बन रही है।
मानसून की बेरुखी के कारण गिरिडीह जिला के देवरी प्रखंड में भी एक प्रतिशत धान की रोपनी नहीं हुई। वहीं गावां प्रखंड में बारिश नहीं होने से धान के बिचड़े सूखने लगे हैं। जिससे किसानों की चिंता बढ़ गयी है। धान की फसल की रोपाई के दृष्टिकोण से पुष्य नक्षत्र को अहम माना जाता है जो शुरू हो गया है बावजूद इसके प्रखंड में अभी तक पर्याप्त बारिश नहीं हुई है। बारिश की बेवफ़ाई के बाद भी कुछ किसान डीजल मशीन से पटवन कर धान की रोपाई कर रहे हैं। लेकिन अभी तक एक फीसदी भी धान की रोपाई नहीं हो पायी है।
किसान कामदेव राय, अनिल सिंह, सदानंद दास, कपिलदेव राय, अशोक राय, सुरेश यादव आदि ने बताया कि धान रोपनी का समय बीत रहा है, हम किसानों की मुश्किलें बढ़ती जा रही है।
देखना होगा कि ऐसी स्थिति में राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की चिन्ता राज्य के परेशान किसानों के लिए कितनी सार्थक होती है।
(झारखंड से विशद कुमार की रिपोर्ट।)
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