मरते हाथी और मरते इन्सान: कौन है इसका जिम्मेदार?

रांची। हाथी झारखंड का राजकीय पशु है। पिछले कई वर्षों से इस राजकीय पशु और राज्य के ग्रामीण क्षेत्र के लोगों के बीच टकराव की कई घटनाएं खबरों की सुर्खियां बनती रही हैं। इन हाथियों द्वारा किसानों की फसलों को बर्बाद करना, गांव में घुसकर गांव वालों के घरों को तोड़ना, घर के सामान को तहस नहस कर देना, इतना ही नहीं विरोध करने या हाथियों के सामने पड़ जाने पर इन हाथियों द्वारा लोगों को कुचलकर मार देना, आम घटनाएं होती जा रही हैं। वहीं जंगल से निकलने के बाद बिजली का करंट लग कर हाथियों की मौतों की भी खबरें भी सुर्खियां बनती जा रही हैं।

कहना ना होगा इन घटनाओं की सुर्खियां तो बनती हैं मगर इन घटनाओं पर नियंत्रण कैसे हो? इस पर बातें नहीं के बराबर होती हैं। इसके कारणों पर भी चर्चा होती है, लेकिन उसका निवारण कैसे हो? इसपर चर्चा नहीं होती है।

हाथियों का जंगल से बाहर निकलने और गांव व शहरों की ओर बढ़ने के कारणों पर पड़ताल हो तो यह साफ हो जाएगा कि जंगल में हाथियों का भोजन खत्म होने लगा है। दूसरी तरफ नक्सल उन्मूलन के नाम पर पुलिस बल का जंगल मार्च और गाहे-बगाहे फायरिंग वगैरह से भी हाथी सहमे हैं और जंगल को अपने लिए सुरक्षित नहीं समझ रहे हैं।

वहीं विभागीय मिलीभगत या चोरी-छिपे लकड़ी तस्करों द्वारा जंगल की कटाई और पहाड़ों की खुदाई निरंतर चालू है। दूसरी तरफ हाथी दांत के तस्करों द्वारा हाथियों की हत्याएं भी जारी है। बात तो यह भी है कि इसकी जानकारी बाहर तभी आती है जब ग्रामीण जलावन की लकड़ी और कंद-मूल लाने जंगल जाते हैं। नहीं तो ये मामले जंगल में ही दफन हो जाते हैं।

मतलब जंगल खत्म हो रहा है, पहाड़ गायब हो रहे हैं। यानी साफ है कि हाथी जाएं, तो जाएं कहां?

यह केवल वन विभाग के लिए ही नहीं सरकार के लिए भी आत्ममंथन करने की जरूरत है। आकड़ों पर भरोसा करें तो राज्य में पिछले पांच वर्षों में में 60 से अधिक जंगली हाथियों की मौत हुई है। हालिया रिपोर्ट के अनुसार एक महीने के अंदर करंट लगने से झारखंड में आठ हाथियों की जान चली गई है। हाल ही में गिरिडीह जिले के गांडेय थाना क्षेत्र में करंट लगने से एक हाथी की मौत हो गई।

खबर के अनुसार 22 नवंबर 2023 की देर रात गांडेय प्रखंड के नीमा टांड गांव के पास गुजर रहे हाथियों के एक झुंड में से एक हाथी की मौत 11 हजार वोल्ट के बिजली तार की चपेट में आ जाने से हो गई। वहीं इसी प्रखंड के अहिल्यापुर थाना क्षेत्र में हाथियों के इसी झुंड ने 17 नवंबर को एक 55 वर्षीय व्यक्ति और उसकी पोती को कुचलकर मार डाला था।

‘वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया’ की माने तो झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और दक्षिण पश्चिम बंगाल के 21 हजार वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में जंगली हाथियों का विचरण होता है और अधिकांश जंगली हाथियों की मौत इन इलाकों में करंट लगने से होती है।

20 नवंबर को राज्य के पूर्वी सिंहभूम जिले के मुसाबनी वन क्षेत्र के ऊपरबांधा जंगल के पास करंट लगने से पांच हाथियों की जान चली गई थी, जिसकी जानकारी वन विभाग को दूसरे दिन ग्रामीणों द्वारा तब मिली जब वे जंगल से सूखी लकड़ियां और पत्ते लाने गये थे।

वहीं नवंबर के पहले हफ्ते में पूर्वी सिंहभूम के घाटशिला अनुमंडल के मचाड़ी गांव और चाकुलिया वन क्षेत्र के ज्वालभांगा में दो अलग-अलग घटनाओं में करंट से दो हाथियों की मौत हुई थी। ऐसी घटनाओं पर वन विभाग और बिजली विभाग एक-दूसरे की लापरवाही का दोषारोपण करते हैं।

वन विभाग का कहना है कि हाथियों के कॉरिडोर वाले इलाके में बिजली के तार बेहद कम ऊंचाई से गुजरे हैं और इस वजह से अक्सर हादसे हो रहे हैं। इस संबंध में बिजली विभाग को कई बार पत्र लिखे गए हैं, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की जाती।

दूसरी तरफ बिजली विभाग का कहना है कि वन विभाग ने हाथियों के कॉरिडोर वाले इलाके में ट्रेंच की खुदाई कर मिट्टी के ऊंचे टीले बना दिए हैं। इन टीलों से होकर गुजरने के दौरान हाथी बिजली तार के संपर्क में आ जाते हैं।

जुलाई 2023 की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में पिछले तीन वर्षों में हाथियों के हमले में 1,578 लोगों की मौत हुई हैं, जिनमें से सबसे अधिक 322 लोगों की जान ओडिशा में गई। केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्री भूपेंद्र यादव ने लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में यह जानकारी दी थी।

मंत्री ने बताया था कि हाथियों के हमले की घटनाओं में 2019-20 में 585 लोगों की मौत हुई तो 2020-21 में 461 और 2021-22 में 532 लोगों की जान गई।

वहीं केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय से उपलब्ध जानकारी के अनुसार 2019-20 और 2021-22 के बीच बिजली के करंट, जहर एवं अन्य दुर्घटनाओं में बड़ी संख्या में हाथियों की जान चली गई है। मंत्रालय के आंकड़ों में कहा गया है कि इसी अवधि के दौरान पूरे भारत में एक तरफ जहां कुल 198 हाथियों को बिजली के झटके से, 41 के ट्रेनों की चपेट में आने से, 27 को शिकारियों द्वारा तथा 8 को जहर देकर मार दिया गया।

वहीं दूसरी ओर इसी अवधि में हाथियों के हमले से बड़ी संख्या में लोगों की जान भी गई है। इसके बाद झारखंड में 291, पश्चिम बंगाल में 240, असम में 229, छत्तीसगढ़ में 183 और तमिलनाडु में 152 मौतें हाथियों के हमलों से हुई हैं।

वहीं बिजली के करंट लगने से हाथियों की हुई 198 मौतों में से असम में 36, ओडिशा में 30 और तमिलनाडु में 29 मामले सामने आए। जबकि हाथियों की अवैध शिकार में हुई सबसे ज्यादा मौतों में से ओडिशा में 8, पश्चिम बंगाल में 8 और मेघालय में 11 दर्ज की गई, जबकि जहर से सबसे ज्यादा 7 मौतें असम में दर्ज की गई।

मंत्रालय ने संसद में एक प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि मानव-वन्यजीव संघर्षों के आकलन से संकेत मिलता है, कि मुख्य कारणों में से वन्य जीवों के निवास स्थान जंगल का नुकसान, जंगली जानवरों की आबादी में वृद्धि, फसल पैटर्न में बदलाव जो जंगली जानवरों को खेत की ओर आकर्षित करते हैं। वहीं भोजन और चारे के लिए वनों से मानव-बहुल परिदृश्यों की ओर जंगली जानवरों की आवाजाही व वनोपज के अवैध संग्रहण के लिए मनुष्यों का वनों में आना-जाना इत्यादि शामिल है।

झारखंड का पूर्वी सिंहभूम अंतर्गत घाटशिला अनुमंडल का अधिकतर इलाका वन क्षेत्र में है, जहां जंगली हाथियों व ग्रामीणों में टकराव की स्थिति बनी रहती है। यहां के सैकड़ों गांव हाथी प्रभावित हैं। घाटशिला अनुमंडल क्षेत्र की सीमा उत्तर में पश्चिम बंगाल और दक्षिण में ओडिशा की सीमा से लगी हुई है।

हाल के दिनों में घाटशिला अनुमंडल के चाकुलिया में हाथियों के हमले में लगभग एक दर्जन लोगों की मौत हुई है। वहीं हाथियों के हमले से क्षेत्र के सैकड़ों घर क्षतिग्रस्त हुए हैं और सैकड़ों एकड़ में लगी फसलें नष्ट हुई हैं। देखा जाए तो हाथियों ने सबसे अधिक किसानों को प्रभावित किया है। वहीं हाथी चाकुलिया के शहरी क्षेत्र में भी घुस जा रहे हैं। हाथी एफसीआई गोदाम को तोड़कर अनाज खा जा रहे हैं।

दूसरी तरफ चाकुलिया में करंट से दो हाथियों की मौत भी हो चुकी है। वहीं अनुमंडल के मुसाबनी के ऊपरबांधा में करंट से पांच हाथियों की मौत हो चुकी है।

ग्रामीणों कहना है कि जंगल में हाथियों का भोजन खत्म हो रहा है। स्थिति यह है कि अब तो जंगल ही खत्म हो रहा है। पहाड़ गायब हो रहे हैं। हाथी जाएं, तो जाएं कहां? वन विभाग के लिए यह आत्ममंथन करने का समय है।

पहले घने जंगल थे, तो गांव में हाथी नहीं आते थे। जंगल में हाथी को भोजन-पानी मिल जाता था। जंगल उजड़ने से हाथी गांव का रुख कर रहे हैं। हम लोग हाथियों के घर में घुसेंगे, तो वह भी हमारे घर में आयेंगे। विगत दो-तीन वर्षों से चाकुलिया में हाथियों की संख्या में इजाफा हुआ है।

पश्चिम बंगाल और ओडिशा की सीमा पर स्थित होने के कारण चाकुलिया वन क्षेत्र हाथियों का आगमन और प्रस्थान स्थल भी है। रोज 50 से 100 हाथी चाकुलिया में जमे रहते हैं। हाथी जमकर उत्पात मचा रहे हैं, घर तोड़ रहे हैं, फसल को नुकसान पहुंचा रहे हैं। घर व स्कूलों के दरवाजे तोड़कर अनाज खा जा रहे हैं। हाथी के हमले में दर्जनों लोगों की जान जा चुकी है।

चाकुलिया में कुल 19 पंचायत हैं। एक दो को छोड़ दें, तो शेष सभी पंचायतों में हाथियों का उत्पात जारी है। लोगों का घरों से निकलना मुश्किल हो गया है। शाम होते ही लोग अपने घरों में कैद होने को विवश रहते हैं। कई बच्चे हाथियों के भय से स्कूल नहीं जा रहे हैं। ग्रामीणों ने बताया कि हमें हाथियों से दिक्कत नहीं है। उनके द्वारा किये जा रहे नुकसान से परेशानी है।

हाथियों के उत्पात से मुक्ति के लिए वन विभाग को ठोस कदम उठाना होगा। जंगल क्षेत्र में बड़े-बड़े तालाब व हाथियों के पसंदीदा पौधे लगाये जायें, जिनका वे भोजन के रूप में इस्तेमाल करते हैं। ऐसे में हाथियों का उत्पात बहुत कम होगा।

वहीं वन विभाग सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम करे और पर्याप्त मुआवजा दे, जिससे नुकसान की भरपाई हो सके। फसल के नुकसान पर वर्तमान में जो मुआवजा दिया जा रहा है, वह काफी कम है। नुकसान 100 रुपये का होता है तो मुआवजा 10 पैसा मिलता है।

ग्रामीण बताते हैं कि हाथियों के भय से घर के बाहर काम पर जाना भी मुश्किल हो गया है। बच्चों का घर से निकलना खतरे से खाली नहीं है। दूसरी तरफ खेतों में फसल भी सुरक्षित नहीं है।

ओडिशा की बात करें तो साल 2012 से 2022 के बीच हाथियों के हमले में 925 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। वहीं राज्य में इन वर्षों में 784 हाथियों की भी मौत हुई है।

हाथी के हमलों में साल 2020-21 में सबसे ज्यादा 139 लोगों की मौत हुई, जबकि 2019-20 में ऐसी घटनाओं में 117 और 2021-22 में 112 लोगों की मौत हुई। इसी तरह राज्य में हाथियों के हमले में स्थायी रूप से दिव्यांग होने वालों की संख्या भी 2012-13 में पांच से बढ़कर 2021-22 में 51 हो गई।

हाथियों की मौतों की चर्चा करें तो जहां 2012-13 में 82 हाथियों की मौत हुई। वहीं 2015-16 में यह आंकड़ा 86, 2018-19 में 93 और 2021-22 में 86 था।

इस अवधि के दौरान ओडिशा सरकार ने 39 हाथियों की मौत की घटनाओं की जांच की। जिसमें कि 50 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दायर की गई। हालांकि, इन मामलों में अब तक एक भी आरोपी को दोषी नहीं ठहराया गया है।

बता दें कि 2022-23 के दौरान शिकारियों ने 11 जंगली हाथियों को मार डाला। 2017 में की गई अंतिम जनगणना के अनुसार ओडिशा में हाथियों की जनसंख्या 1,976 हाथी है।

(विशद कुमार की रिपोर्ट।)

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