झारखंड: नहीं थम रही मानव तस्करी, हर साल करीब 500 नाबालिग हो जाते हैं लापता

रांची। झारखंड में जिस तरह आए दिन मानव तस्करी की खबरें सुर्खियों में रहती हैं, वो राज्य के लिए एक बड़ी समस्या बन गई है। भोले भाले ग्रामीणों को नौकरी दिलाने का लालच देकर मानव तस्कर उन्हें बड़े शहरों में बेच डालते हैं। झारखंड के तस्करी प्रभावित जिलों में गुमला, गढ़वा, साहिबगंज, दुमका, पाकुड़, पश्चिमी सिंहभूम (चाईबासा), रांची, पलामू, हजारीबाग, धनबाद, बोकारो, गिरिडीह, कोडरमा और लोहरदग्गा मुख्य रूप से शामिल हैं।

वहीं तस्करी की शिकार अधिकांश महिलाएं उरांव, मुंडा, संथाल, लुप्तप्राय पहरिया और गोंड जनजातियों की होती हैं। जिनमें अधिकांशतः उरांव और मुंडा समुदाय की होती हैं। पलामू और गढ़वा जिले के अधिकांश नाबालिग बच्चे उत्तर प्रदेश के कालीन उद्योग में बाल श्रम के लिए तस्करी के शिकार होते हैं।

झारखंड के बच्चों की तस्करी ज्यादातर दिल्ली की प्लेसमेंट एजेंसी रैकेट के जरिए होती है। ये प्लेसमेंट एजेंसियां ​​आदिवासी बच्चों को दिल्ली, फरीदाबाद, गुड़गांव और नोएडा क्षेत्र के घरों में सप्लाई करती हैं। ये एजेंसियां ​​ज्यादातर 11-16 आयु वर्ग के बच्चों को निशाना बनाती हैं, जो शोषण के बाद भी मुह बंद रखते हैं।

सूत्रों के अनुसार तस्करी किए गए पीड़ितों को भीड़-भाड़ वाले कमरों में रखा जाता है और जब तक उन्हें कहीं सप्लाई नहीं किया जाता, तब तक उन्हें जीवित रहने के लिए बमुश्किल पर्याप्त भोजन दिया जाता है। कुछ ही लड़कियां भाग्यशाली होती हैं जिन्हें घरेलू हेल्पर के रूप में ‘कोठियों’ में रखा जाता है। जबकि कइयों को शादी के नाम पर वैश्यालयों में बेच दिया जाता है, जहां वे सभी रूपों में कभी न खत्म होने वाले दुर्व्यवहार व कभी न खत्म होने वाले शोषण का शिकार होती हैं।

लगातार सामने आते हैं मानव तस्करी के मामले

झारखंड से मानव तस्करी का नया मामला पिछले मई महीने में सामने आया। बेंगलुरु से 11 नाबालिग लड़कियों को बचाकर 12 मई को फ्लाइट से रांची लाया गया। सभी लड़कियां 14 से 17 साल की थीं। सभी 11 नाबालिग लड़कियां साहिबगंज और पाकुड़ की पहाड़िया जनजाति की थीं। इन नाबालिग में 6 लड़कियों की उम्र 14 साल, 4 की उम्र 15 साल और 1 की उम्र 17 साल थी।

अधिकारियों के अनुसार, बेंगलुरु में लगभग 25 महिलाओं को देखा गया, जिनमें से 11 नाबालिग थीं, इसलिए पहले उन्हें बचा लिया गया। मौके पर मौजूद नाबालिग लड़कियों ने कहा कि उन्हें नौकरी देने का लालच दिया गया था। इसलिए वह बाहर जाने को तैयार हो गई थीं। एक पीड़िता ने बताया कि ‘हम निम्न आय वाले परिवार से हैं और हमें आश्वासन दिया गया था कि नौकरी दी जाएगी। वहां जाकर पता चला कि हम मानव तस्करी के शिकार हो गये हैं।’

जिला श्रम अधिकारी अविनाश कृष्णा ने कहा कि जैसे ही सरकार को सूचना मिली, अधिकारियों द्वारा बेंगलुरु के अधिकारियों के साथ संवाद साझा किया गया और उन्हें छुड़ाने का प्लान तैयार किया गया।

बेटियों की कई राज्यों में तस्करी

झारखंड की बेटियों को कई राज्यों में बेचा जाता है। किसी को घरेलू काम के नाम पर तो किसी को किसी और वजह से। शादी के नाम पर भी बच्चियों का सौदा होता है। शादी के नाम पर बेची गई ल़डकियों को पारो या फिर दासी के नाम से पुकार जाता है। इन लड़कियों से जो व्यक्ति शादी करता है सिर्फ वहीं शारीरिक संबंध नहीं बनाता, बल्कि उस घर के ज्यादातर मर्द संबंध बनाते हैं।

दरअसल, झारखंड की बेटियों को बेचने का मामला कोई नया नहीं है, लेकिन इन मामलों में अब तक अंकुश नहीं लग पाना, केवल हैरत में ही नहीं डालता बल्कि सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक व प्रशासनिक स्तर पर कई सवाल भी खड़े करता है। जाहिर है अलग राज्य गठन के दो दशक बाद भी झारखंड में रोजगार, शिक्षा, सामाजिक जागरूकता का घोर अभाव है।

आर्थिक विपन्नता मुख्य कारण

मानव तस्करी के मूल में जाएं तो राज्य में रोजगार का अभाव और आर्थिक विपन्नता मुख्य कारण है। क्योंकि लोग महिला हो या पुरुष, बच्चें हों या बच्चियां सभी भूख का दंश झेलने को मजबूर हैं। जिसे हम पिछले सालों भूख से हुई मौतों की खबरों से समझ सकते हैं।

2017 में 11 वर्षीय संतोषी की भूख से हुई मौत हो या 2020 में भूखल घासी (42 वर्ष) की भूख से हुई मौत, ये तमाम घटनाएं राज्य के नागरिकों की आर्थिक विपन्नता की कहानी बताने लिए काफी हैं। इन तीन सालों में राज्य के 23 लोगों की मौत भूख से हुई थी।

सितंबर 2017 में झारखंड के सिमडेगा जिले के रहने वाली कोयली देवी की 11 वर्षीय बेटी संतोषी “भात-भात” कहते मर गयी थी। परिवार को पिछले कई महीनों से सरकारी राशन नहीं मिल रहा था, क्योंकि वह राशन कार्ड को आधार से लिंक नहीं करा पायी थी। 7 मार्च 2020 को झारखंड के बोकारो जिले के भूखल घासी (42 वर्ष) की मौत भूख से हो गयी थी। यह खबर भी काफी सुर्खियों में रही थी।

शादी के नाम पर लड़कियों की तस्करी

शादी के नाम पर तस्करी जैसे संवेदनशील मुद्दे पर लंबे समय से कार्य कर रहे एक्टिविस्ट बैद्यनाथ कुमार बताते हैं कि “झारखंड की युवतियों की तस्करी बड़े पैमाने पर सेक्स वर्कर के रूप में होती है। इसके साथ ही शादी के नाम पर भी इनकी तस्करी की जाती है। इनका शारीरिक शोषण किया जाता है। इन्हें पारो या दासी के नाम से पुकारा जाता है।” उन्होंने बताया कि “कोविड के दौरान मानव तस्करों के चंगुल से कई लड़कियों को बचाया गया था, लेकिन उसके बाद हालात फिर से खराब हुए हैं।”

सीआईडी डीजी अनुराग गुप्ता का कहना है कि “मानव तस्करी काफी संवेदनशील विषय है। झारखंड में इसे रोकने के लिए AHTU यूनिट बनाई गई है, साथ ही राज्य भर के 300 थानों में महिला हेल्प डेस्क स्थापित की गईं हैं। महिला थाना भी राज्य भर के सभी जिलों में बनाए गए हैं। लगातार कार्रवाई भी की जाती है। लेकिन इस मामले में और भी ज्यादा कार्य करने की जरूरत है।”

क्या कहते हैं मानव तस्करी के आंकड़े?

पिछले 8 सालों में झारखंड के विभिन्न जिले से 4,765 नाबालिग लापता हुए थे। इनके लापता होने के संबंध में पुलिस के पास शिकायत भी पहुंची थी, लेकिन इनमें से उक्त आठ वर्षों के दौरान मात्र 3,997 लोग बरामद किये गये। जबकि 768 बच्चे लापता ही रह गये। जिनके बारे में कोई सुराग नहीं मिला। मतलब साफ है कि राज्य के विभिन्न जिलों से लापता 18 वर्ष से कम उम्र के 768 नाबालिग लड़के और लड़कियां ट्रेसलेश रह गये। यह आंकड़ा वर्ष 2015 से लेकर 2022 के अंत तक का है।

पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक, राज्य में प्रत्येक साल कभी 500 से अधिक तो कभी 400 से अधिक नाबालिग लापता होते हैं। लेकिन प्रत्येक साल 80 और कभी-कभी 100 से ज्यादा नाबालिग ट्रेसलेश रह जाते हैं। एनसीआरबी के 2021 के आंकड़ों के अनुसार, 123 लोगों को बलपूर्वक काम कराने के लिए अपहरण किया गया था, जबकि चार का शारीरिक शोषण और वेश्यावृत्ति के लिए। वहीं 108 लोगों की मानव तस्करी घरेलू काम के लिए, 9 लोगों की मानव तस्करी बलपूर्वक शादी के लिए की गयी थी। इस तरह आकड़ों से स्पष्ट है कि राज्य में लापता बच्चों का मामला साल दर साल गंभीर बनता जा रहा है।

वर्ष 2022 के आकड़ों के अनुसार, राज्य में सबसे ज्यादा 122 बच्चे जमशेदपुर जिले से लापता हुए थे। जबकि गुमला जिला से 52, लोहरदगा से 36, चाईबासा से 39, रांची से 29 और पलामू से 46 बच्चे लापता हुए थे। इस तरह पूरे राज्य से 694 नाबालिग लापता हुए थे। जिसमें 262 लड़के और 432 लड़कियां थीं। हालांकि बरामद सिर्फ 560 लोगों को किया गया। जबकि 134 लोग ट्रेसलेश ही रह गये।

एक अन्य जानकारी के अनुसार, 2017 से वर्ष 2022 तक 1574 लोग तस्करी का शिकार हुए हैं। 5 वर्षों में मानव तस्करी के 656 मामले दर्ज किए गए हैं, जिसमें 548 पुरुष और बच्चे हैं, जबकि 1,026 महिलाएं शामिल हैं। मामले पर 5 वर्षों में 783 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है।

18 वर्ष से कम उम्र के मानव तस्करी के शिकार बच्चों की संख्या 332 और 18 वर्ष या उससे अधिक उम्र के युवकों की संख्या 216 थी। जबकि 18 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों की संख्या 717 और 18 वर्ष से अधिक उम्र की लड़कियों की संख्या 309 थी।
बता दें कि महिलाओं और बच्चियों को शादी के नाम पर भी बेचा जाता है।

जनवरी 2022 से लेकर अक्टूबर 2022 तक कि बात की जाए तो इस दौरान 93 मामले मानव तस्करी के आए हैं और 74 पीड़ितों की बरामदगी भी हुई है। वहीं 36 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। जागरूकता और मदद के लिए 300 महिला हेल्प डेस्क भी बनाए गए हैं।

पुलिस ने मानव तस्करी के शिकार कुल 1,473 लोगों को बरामद किया। इसमें 472 युवक और 1,001 युवतियां और महिलाएं शामिल थीं। इन मामलों में झारखंड पुलिस ने कुल 783 मानव तस्करों को गिरफ्तार किया। इसमें 197 महिलाएं और 586 पुरुष शामिल हैं। पिछले साल राज्य में सबसे अधिक मानव तस्करी के केस गुमला, सिमडेगा, खूंटी, साहिबगंज और रांची में दर्ज किये गये हैं। इन पांच वर्षों में सबसे अधिक 212 लोग सिमडेगा से मानव तस्करी के शिकार हुए हैं।

सिमडेगा से मानव तस्करी की शिकार 16 वर्षीय किशोरी की मौत दो जून को दिल्ली में हो गयी। वह राजौरी गार्डेन में एक परिवार के यहां घरेलू नौकरानी के रूप में काम करती थी। हालांकि उसकी हत्या हुई या उसने आत्महत्या की है, यह अभी स्पष्ट नहीं हो सका है। इसके लिए दिल्ली पुलिस पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने का इंतजार कर रही है। मृतका कुरडेग प्रखंड की हेठमा पंचायत के भिजरीबारी गांव की रहने वाली थी। उसे सेमरबेड़ा निवासी अजय लकड़ा बहला-फुसला कर दिल्ली ले गया था और बेच दिया था।

(झारखंड से वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट)

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