उत्तर भारत भले पानी में डूबा हो लेकिन बूंद-बूंद के लिए तरस रहा है झारखंड

धनबाद। हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब और दिल्ली भले ही पानी में डूबे हुए हैं लेकिन देश का एक राज्य झारखंड बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहा है। जुलाई का दूसरा सप्ताह गुजरने वाला है, हिन्दी तारीख से यह सावन का दूसरा सप्ताह है। लेकिन झारखंड में मॉनसून के आगमन के बावजूद बारिश नहीं हो रही है। जिसके कारण जहां एक तरफ खरीफ फसल की खेती के लिए किसान परेशान हैं, वहीं पेयजल का संकट भी मुंह फाड़े खड़ा है।

वैसे तो राज्य में गर्मी की धमक के साथ ही पेयजल संकट विकराल रूप धारण कर चुका था। लेकिन लोगों को मॉनसून के आगमन का इंतजार था कि बारिश से पेयजल के संकट से कुछ तो मुक्ति मिलेगी। लेकिन माॅनसून की नाराज़गी ने गर्मी के मौसम से भी अधिक विकराल स्थिति पैदा कर दी है। जहां एक तरफ लोग गर्मी से परेशान हैं, वहीं खेत के साथ-साथ जलस्रोत भी सूखे पड़े हैं।

जुलाई का आधा महीना बीतने के कगार पर है। राज्य के धनबाद जिला अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में गर्मी की शुरुआत में हुए आदेश के बाद भी 15वें वित्त आयोग की राशि से चापाकलों की मरम्मत नहीं हो पायी है। लिहाजा जिला पंचायत क्षेत्रों में जलसंकट गहरा गया है। गांवों में टैंकर से पानी देने की कोई व्यवस्था नहीं है।

जोरिया-पोखर का सहारा

इससे उन गरीबों की हालत और बिगड़ती जा रही है, जिन्हें पानी का जार खरीद कर पीना पड़ रहा है। नहाने-धोने व पशुओं को पानी पिलाने में परेशानी खड़ी हो रही है। लिहाजा लोग जोरिया-पोखर या नदी किनारे चुंआ व दांड़ी खोद कर अपनी प्यास बुझा रहे हैं। पानी देने में सरकारी व्यवस्था पूरी तरह फेल है।

नहीं हो पा रही धान की रोपनी

बारिश नहीं होने की वजह से खरीफ फसल की खेती करने वाले किसान परेशान हैं। अब तक धान की रोपनी शुरू हो जाती थी लेकिन अभी धान के बीज की बोवाई भी शुरू नहीं हो पायी है। धान तो धान, सूखे का प्रभाव यह है कि कम पानी में पैदा होने वाले अनाज मड़ुआ, गुंदली, कुरथी, मूंगफली, मकई आदि की बुवाई भी नहीं हो सकी है।

तालाब-नदी, जोड़िया-पोखर सभी कब का सूख गये हैं। पेयजल व स्वच्छता विभाग की सूची के अनुसार धनबाद जिले के बाघमारा प्रखंड की सभी 61 पंचायतों में 945 चापाकल खराब पड़े हैं। मामले में बीडीओ ने स्थिति को देखते हुए 15वें वित्त आयोग से चापाकलों की मरम्मत का निर्देश जरूर दे दिया है, लेकिन इसे भी गर्मी में आई-वॉश ही कहा जा रहा है।

कुओं में भी पानी बहुत कम है।

मेगा जलापूर्ति योजना का हाल

धनबाद के बाघमारा प्रखंड में मेगा जलापूर्ति योजना फेज-1 एवं फेज-2 में काम चल रहा है। फेज-1 तो पिछले साल ही पूर्ण होना था, लेकिन योजना में विलंब पर विलंब होता जा रहा है। तीन माह पहले बाघमारा की तारगा पंचायत से मेगा जलापूर्ति योजना फेज-2 शुरू की गयी है। जबकि फेज-1 की 92 करोड़ रुपये की योजना तीन साल में पूर्ण नहीं हो पायी है तो स्वतः अंदाजा लगाया जा सकता है कि फेज-2 की योजना कितने दिनों में पूर्ण होगी। जबकि उसकी लागत 177 करोड़ रुपये की है।

तीन पंचायतों- तेलमच्चो, लोहपट्टी एवं कांड्रा को तेलमच्चो की दामोदर नदी से की जाने वाली जलापूर्ति की योजना भी फेल हो गयी है। इंटेकवेल से दामोदर का पानी काफी दूर हो गया है। नतीजा यह है कि तीनों पंचायतों की बड़ी आबादी पेयजल से वंचित हो गयी है। वहीं विभाग को जनसरोकार से कोई मतलब नहीं रह गया है।

इस पर तुर्रा यह कि पेयजल स्वच्छता विभाग, धनबाद के सहायक अभियंता सोमर मांझी कहते हैं- “हर घर-नल जल योजना के तहत बाघमारा प्रखंड में दो मेगा जलापूर्ति योजनाओं का काम चल रहा है। इसके पूरा होते ही जल्द घरों में पानी मिलने लगेगा।”

पानी लेने जातीं ग्रामीण महिलाएं।

7 साल बाद भी जलमीनार से जलापूर्ति नहीं

पेयजल व स्वच्छता विभाग की ओर से करीब 60 लाख की लागत से वर्ष 2015-16 में बाघमारा प्रखंड की नगरीकला उत्तर पंचायत के भुईयां पहाड़पुर में निर्मित 10 हजार गैलन क्षमता के जलमीनार से सात साल बाद भी जलापूर्ति चालू नहीं हो पायी है। एजेंसी द्वारा पाइप लाइन बिछाने का काम भी आधा-अधूरा छोड़ दिया गया है। वर्षों से बेकार पड़ी इस योजना के चालू नहीं होने के कारण जलमीनार दरकने लगा है। सीढ़ी टूट रही है। जगह-जगह प्लास्टर झड़ने से रॉड दिख रहे हैं।

इस जलमीनार से पहाड़पुर, सोनदाहा, दलदली, बांसमुड़ी, धारजोरी, पातामहुल, गोविंदाडीह, नायकडीह, बौआ, सोरीटांड़ व नगरीकला उत्तर सहित 10-12 गांवों में पाइप बिछा कर घर-घर जलापूर्ति करने की योजना थी, लेकिन अब तक गांवों में पानी नहीं पहुंचा।

‘हर घर, नल जल’ योजना फेल

केलियासोल प्रखंड के अंतर्गत बड़ा आंबोना पंचायत के आदिवासी टोला एवं पिंड्राहाट पंचायत के आदिवासी टोला में ‘हर घर, नल जल’ योजना पूर्ण रूप से फेल हो गयी है। इस भीषण गर्मी में लोग दांड़ी-चुआं पर निर्भर हैं। बड़ा अंबोना पंचायत की आबादी करीब 15 हजार है। पेयजल एवं स्वच्छता विभाग द्वारा पांच सोलर जल मीनार यहां लगाये गये हैं। उसमें तीन बंद पड़े हैं। मोधारडीह आदिवासी टोला के लोग आज भी गांव से बाहर खेत व नदी में बनाये गये दांड़ी व चुआ का पानी पीते हैं।

चुंआ व दांड़ी खोद कर अपनी प्यास बुझा रहे हैं लोग।

पिंड्राहाट पंचायत के पिराडीह आदिवासी टोला में भ्रष्टाचार का आलम यह है कि ‘हर घर-नल जल’ योजना के तहत विभाग की ओर से बिना मोटर लगाए ही टंकी लगा दी गई है और टोले के 25 घरों में पाइप लाइन भी जोड़ दी गयी है।

सबमर्सिबल पंप जलने से संकट

वहीं दूसरी तरफ गोविंदपुर क्षेत्र के धर्माबांध बस्ती, बाडुघुटु, तेतुलिया, आम बागान, बीसीसीएल ऑफिसर कॉलोनी, काली नगर, हनुमान नगर, बिलबेरा, सोनारडीह, प्रेम नगर आदि जगहों के करीब 20 हज़ार की आबादी पेयजल के संकट से बुरी तरह परेशान है। क्योंकि जलापूर्ति के लिए लगा एक नंबर चानक का सबमर्सिबल पंप मई महीने जल गया था जिसकी 16 जून को मरम्मत कराई गई थी। लेकिन वह दो-चार दिन का ही मेहमान रह पाया। पुनः मरम्मत करवाई गई लेकिन वह भी दूसरे-तीसरे दिन जल गया।

इस तरह यह सबमर्सिबल पंप पांच बार जला और मरम्मत हुई। इसकी मरम्मत में करीब 6 लाख से अधिक की राशि खर्च की गयी है। इस संबंध में कोल माइंस ऑफिसर्स एसोसिएशन के गोविंदपुर क्षेत्र के सचिव केएस द्विवेदी कहते हैं कि भ्रष्टाचार इतना हावी है कि संबंधित विभाग व संवेदक की कार्यशैली के कारण आज पूरा जनमानस पानी के लिए त्राहिमाम कर रहा है। पांच बार पंप जल गया। बिल कैसे उठा लिया गया? यह जांच का विषय है।

(झारखंड से विशद कुमार की रिपोर्ट।)

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