बस्तर। देश के अलग-अलग हिस्सों में किसान तरह-तरह के संकटों का सामना कर रहे हैं। हाल ही में हरियाणा के किसानों ने सूरजमुखी पर एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) की मांग को लेकर दिल्ली-चंडीगढ़ हाईवे जाम किया था। किसान हर स्तर पर अपनी मांगों को लेकर संघर्ष कर रहे हैं। लेकिन छत्तीसगढ़ के किसान अपनी मांगों को लेकर नहीं बल्कि सहकारी समिति के कर्मचारियों की हड़ताल के कारण परेशान हैं।
मध्य से लेकर अंतिम जून तक देश में मानसून शुरू हो जाता है। इसके साथ ही खरीफ की फसलों की बुआई भी शुरू हो जाती है। इसमें सबसे प्रमुख फसल धान है। लेकिन इस बार किसान सहकारी समिति के कर्मचारियों की हड़ताल खत्म होने का इंतजार कर रहे हैं। ताकि बीज मिल सके और वो खेती बाड़ी का काम शुरू कर सकें।
खेत की जुताई कर ली, लेकिन बीज नहीं हैं
छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में मानसून के इंतजार में किसानों ने खेत की जुताई भी कर ली है। लेकिन समिति के कर्मचारियों की हड़ताल से उनके लिए नई परेशानी पैदा हो गई है। पूरे प्रदेश में एक जून से सहकारी समिति के अधिकारी और कर्मचारी हड़ताल पर गए हैं। जबकि इसी महीने किसानों को केसीसी (किसान क्रेडिट कार्ड) कार्ड मिलता है। जिसके जरिए किसानों को बीज और खाद मिलती है। लेकिन इस हड़ताल के कारण छोटे और मध्यम किसानों को सबसे ज्यादा दिक्कत हो रही है।
हरेराम पाणिग्रही जगदलपुर के पास के आसना गांव के एक छोटे किसान हैं। इनके दो बच्चे हैं जो पढ़ाई करते हैं। इनके पास ढाई एकड़ जमीन है। इसके अलावा वह कुछ जमीन पट्टे पर भी लेकर खेती करते हैं। हरेराम ने मानसून शुरू होने से पहले अपने खेत की जुताई कर ली है। अब वो बुआई का इंतजार कर रहे हैं। एक जून से सहकारी समिति के कर्मचारियों की चल रही हड़ताल के कारण वो परेशान हैं।
सूद में पैसे लेकर करनी होगी खेती
हरेराम का कहना है कि “सहकारी समिति के कारण ही हमारा कुछ फायदा हो पाता है। पिछले साल अच्छी फसल हुई थी, 160 क्विंटल धान बेचा था। लेकिन इस साल का तो कुछ पता नहीं चल रहा है। समय से अगर बीज और खाद नहीं मिलेगी तो हमारे लिए मुश्किल हो जाएगा। केसीसी कार्ड होने से हमें खेती करने के लिए लोन भी आसानी से मिल जाता है। जिससे हम सूद से बच जाते हैं। डीएपी भी कम दाम पर मिलती है। प्राइवेट दुकानों से लेने पर एक बोरी के पीछे 300 से 400 का अंतर आ जाता है।”
पिछले साल के दामों का जिक्र करते हुए वह कहते हैं कि “डीएपी का दाम 1700 प्रति बोरी था। फिलहाल हम बारिश शुरू होने से पहले हड़ताल खत्म होने का इंतजार कर रहे हैं। अगर हड़ताल खत्म नहीं होती है तो हमें सूदखोरों से पैसे लेकर खेती करनी होगी, क्योंकि हमारे कागजात लेम्स (Large area multipurpose socity) में पड़े हैं। जिसके कारण हमें दूसरे बैंक से भी लोन नहीं मिल पाएगा, इसलिए हमारे पास सिर्फ दूसरा विकल्प ही बचता है कि हम बाहर से सूद में पैसे लेकर खेती करें।”
पट्टे की जमीन पर नहीं मिलता केसीसी कार्ड
इसी गांव के हरिराम बघेल के पास आधा एकड़ जमीन है। बाकी लोगों से पट्टे पर जमीन लेकर भी खेती करते हैं। इनके तीन बच्चे हैं, जो मजदूरी करते हैं। इनके पट्टे की जमीन पर केसीसी कार्ड नहीं मिला है। वह कहते हैं कि “मैंने पट्टे की जमीन पर केसीसी कार्ड बनाने की कोशिश की, कई बार अधिकारियों को कहा लेकिन वह नहीं बनी।”
हरिराम को उनकी आधा एकड़ की जमीन के हिसाब से ही खाद और बीज मिलता है। उनकी खेती के लिए वह भी बहुत है। वह बताते हैं, “मैं छोटा किसान हूं जितनी भी खाद मिलती है, उससे ही पूरे खेत में एडजस्ट करने की कोशिश करता हूं, क्योंकि बाहर जो खाद मिलती है वह महंगी है। लेकिन इस बार तो लगता है सबकुछ बाहर से ही लेना पड़ेगा। धान हमारे लिए तो सौदे की खेती है। क्योंकि इसमें एमएसपी भी मिलती है। इससे ही हमारा खर्च चलता है”।
हड़ताल के बारे में जिक्र करते हुए वह कहते हैं कि “केसीसी कार्ड से मेरे जैसे गरीब किसानों को कुछ तो राहत मिलती है। हर बार की बुआई पर आसानी से लोन मिल जाता है। बीज और खाद भी मिल जाते हैं। इस तरह खेती की शुरूआत से लेकर धान पकने और मंडी में बेचने तक हम लोग सूद से बच जाते हैं। लेकिन अगर इस साल ऐसे ही हड़ताल चलती रहती तो लोगों से पैसे लेकर काम करना पड़ेगा, जिसका हमें सूद भी भरना पड़ेगा। जिससे हमें फसल पर कोई फायदा नहीं होने वाला है।”
हर बार पैसे लेते हैं फिर बुआई करते हैं
सामूराज पुजारी के पास लगभग साढ़े तीन एकड़ जमीन है। जिसमें से 2.5 एकड़ वनाधिकार की जमीन है। जिसका केसीसी नहीं बना है। सामूराज के घर में कुल 8 लोग हैं। बेटा मजूदरी करता है और बेटी एमए करके प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रही है। अन्य लोगों की तरह सामूराम भी खेत की जोताई करते मानसून और हड़ताल खुलने का इंतजार कर रहे हैं।
हमने उनसे पूछा कि पिछली खेती का पैसा बचा है कि नहीं? वह हंसते हुए कहते हैं कि “हम लोग छोटे किसान हैं, उतना ही कमाते हैं और उतना ही खा लेते हैं। कुछ बचता नहीं है। हर साल सहकारी बैंक से लोन मिलता और फिर काम शुरू होता है। फिलहाल बस हड़ताल खत्म होने का इंतजार कर रहे हैं। इसका खत्म होना बहुत जरूरी है। अगर यह खत्म नहीं होगी तो सिर्फ बीज और खाद की ही मामला नहीं है। इसके आगे भी धान को बेचने के समय भी हमें बहुत नुकसान होगा।”
वह कहते हैं कि “जो धान हम 2040 रुपये में एमएसपी पर बेचते हैं। वह हमें आढ़तियों को 1300 रुपये तक में बेचना पड़ता है। वर्तमान की बात करते हुए वह कहते हैं कि फिलहाल बीज और खाद की सबसे ज्यादा जरूरत है। अगर वह समय पर नहीं मिल पाई तो हमारी कमाई का रास्ता बंद हो जाएगा। हम लोग वैसे भी मानसून के भरोसे खेती करते हैं। हमारे यहां पानी की दूसरी कोई सुविधा नहीं है। अगर वह भी हमारे हाथ से निकल गया तो दिक्कत हो जाएगी।
बस्तर संभाग में करीब 9 लाख किसान
छत्तीसगढ़ को ‘धान का कटोरा’ कहा जाता है। यहां कुल कृषि रकबे के 88 फीसदी से अधिक भाग में 20 हजार से अधिक उपज की किस्मों की खेती की जाती है। पूरे प्रदेश में लगभग 37.46 लाख कृषक परिवार हैं। जिसमें बस्तर संभाग में लगभग नौ लाख कृषक परिवार हैं। इनमें छोटे और मध्यम किसानों की संख्या ज्यादा है। जिनकी जीविका का मुख्य स्रोत कृषि है।
सरकार किसानों को त्योहारी सीजन में एमएसपी पर धान को बेचने पर बोनस देती है। लेकिन अब बोनस सही समय पर नहीं मिलने की खबरें आ रही हैं। सहकारी बैंकों की लापरवाही के कारण किसानों के खाते में 23 मई को आने वाले बोनस की राशि नहीं आ पाई। जिसमें दंतेवाड़ा जिले के 20 गांव के किसान शामिल हैं। बोनस की यह राशि चार किस्तों में मई, अगस्त, नवंबर और मार्च में मिलती है। यह प्रति हेक्टेयर 15 क्विंटल के हिसाब से मिलता है। लेकिन अब इसमें भी गड़बड़ी की बात सामने आ रही है।
बोनस का आधा पैसा मिला
नवीन उनमें से एक हैं जो एक तो हड़ताल से परेशान हैं, दूसरा बोनस कम आने के कारण चिंता में हैं। नवीन की एक दुकान है जिसमें गिना चुना ही कोई सामान है। पिता की 15 एकड़ जमीन है। जिसमें छह भाइयों का हिस्सा है। नवीन ने अभी हाल के सालों में खेती करनी शुरू की थी। इससे पहले वह मजदूरी करते थे।
नवीन बताते हैं कि उन्होंने पिछली खरीफ की फसल में जितना धान दिया था, उसके हिसाब से उन्हें आधा पैसा ही बोनस के रूप में मिल पाया है। वह फोन पर अपने कागजात को दिखाते हुए कहते हैं कि “मैंने पिछली खरीफ की फसल में 196 क्विंटल धान दिया था। जिसके हिसाब से मेरी पहली किस्त में 29 हजार रुपये बोनस आना चाहिए था, लेकिन आया सिर्फ 14 हजार रुपये।
वह चितिंत हैं कि इससे टैक्टर की किस्त कैसे उतारी जाएगी। उन्होंने अच्छी खेती और सरकार की योजना को देखते हुए बोनस के सहारे ट्रैक्टर लिया था। जिसकी किस्त हर छह महीने में देनी पड़ती है। वह कहते हैं “मैंने खेती इसलिए शुरू की थी क्योंकि मुझे लगा था कि अब इतनी सारी स्कीम हैं तो इससे जीवन में कुछ तो बदलाव आएगा, लेकिन पहली किस्त में ही मुझे कम पैसे मिले। मैंने इसके लिए अधिकारियों तक को संपर्क किया, लेकिन कोई निवारण नहीं निकला है।”
उन्होंने कहा कि “हमारे जैसे छोटे किसानों के पास पैसे भी नहीं होते हैं, ऊपर से जो हड़ताल चल रही है उसने हम लोगों की चिंता को और बढ़ा दिया है। मानसून शुरू होने वाला है, हमारी खेती भी बारिश के पानी पर ही निर्भर है, ऐसे में अगर बीज और खाद नहीं मिलेगी तो कैसे खेती करेंगे। हमारे पास रखा हुआ पैसा तो होता नहीं है, अब दूसरा विकल्प बस किसी महाजन से पैसे लेने का ही है”।
कर्मचारियों को स्थायी करने की मांग को लेकर हड़ताल
एक जून से सहकारी समिति के कर्मचारी और अधिकारी अपनी तीन सूत्रीय मांगों को लेकर धरने पर बैठे हैं। जिसमें सबसे मुख्य मांग कर्मचारियों को स्थाई करने की है। छत्तीसगढ़ प्रदेश सहकारी समिति कर्मचारी संघ के प्रांतीय संयोजक भोला राम यादव से हमने बात की। अपनी मांगों और किसानों को होती परेशानी को लेकर वह कहते हैं कि “हड़ताल के कारण पूरे राज्य में लगभग 28 लाख किसान प्रभावित होंगे। फिलहाल हमारी हड़ताल को 14 दिन हो गए हैं। लेकिन शासन-प्रशासन की तरफ से किसी भी तरह की कोई सुनवाई नहीं की गई है।”
वह कहते हैं कि “समिति की स्थापना 1919 में हुई थी। 100 साल पूरे हो जाने के बाद भी आज तक एक भी कर्मचारी को नियमित नहीं किया गया है। जबकि सरकार की कल्याणकारी योजना किसानों तक पहुंचाने का काम समिति के कर्मचारी ही करते हैं। हम लंबे समय से अपनी मांगों को लेकर शासन से आवेदन कर रहे थे लेकिन हमारी सुनी नहीं गई। अंत में हमने हड़ताल का सहारा लिया है। फिलहाल इस पर कोई चर्चा नहीं रही है, ऐसे में हड़ताल आगे भी चलती रहेगी।”
(बस्तर से पूनम मसीह की ग्राउंड रिपोर्ट)