ग्राउंड रिपोर्ट: चंदौली के नरवन इलाके के ओयरचक गांव में किसानों के सामने ही ख़ाक हो गई उनकी सारी मेहनत 

चंदौली। चंदौली जिले के ओयरचक गांव के 65 वर्षीय सत्यप्रकाश सिंह की आंखों के आंसू सूख गए हैं। बची है तो सिर्फ आंसुओं की धुंध। वह धुंध जो किसानों की गेहूं की फसल में आग लगने से निकली थी। सत्य प्रकाश उन किसानों में शामिल हैं जिनकी सारी फसल आग से खाक हो गई है। करीब 17 एकड़ जमीन में खड़ी इनकी गेहूं की फसल खाक हो गई है। ओयरचक ऐसा बदनसीब गांव है जहां 74 फीसदी किसानों के घरों में गेहूं का एक दाना भी नहीं पहुंच पाया है। इस गांव के ज्यादातर किसानों की समूची फसल आग निगल गई।

अगलगी की घटना से बेहाल किसान सत्यप्रकाश सिंह कहते हैं, “हमारी ज़िंदगी ही खेती है। हम गेहूं की फसल काटने की तैयारी कर रहे थे। हमारे दो बेटे विनोद और राकेश खेती में हमारा हाथ बंटाते हैं। हमारी ज्यादातर फसल जल गई। हमें एहसास है कि जब खेती बर्बाद होती है तो समूची ज़िंदगी तबाह हो जाती है। सिर्फ एक जिंदगी नहीं, समूचा परिवार तबाह हो जाता है। हम अपनी पक चुकी गेहूं की फसल की मड़ाई की तैयारी कर रहे थे”। 

आग लगी तो हमारी समूची फसल जलकर खाक हो गई।” इतना कहते ही सत्यप्रकाश सिंह का गला भारी हो जाता है और वो शांत हो जाते हैं। किसान सत्यप्रकाश सिंह के छोटे भाई की इसी साल शादी होने वाली थी। फसल बेचकर सत्यप्रकाश अपने भाई की शादी करना चाहते थे, लेकिन अगलगी की घटना से शादी की तैयारियां धरी की धरी रह गईं।

70 वर्षीय संकठा उपाध्याय ने यूपी बड़ौदा बैंक की कम्हरिया शाखा से किसान क्रेडिट कार्ड पर लिया था। इनकी आठ एकड़ फसल खाक हो गई, जो जिसे जल्द ही काटने की तैयारी चल रही थी। बैंक का कर्ज जमाकर शेष पैसे से वह अपनी गृहस्थी का बाकी काम करना चाहते थे। देखते ही देखते सब कुछ राख में बदल गया। वह कहते हैं, “गेहूं की फसल पककर तैयार थी। प्रभात के बाद हमारी फसल काटी जानी थी, लेकिन वो जल गई। जिस फसल से हम गेहूं की उम्मीद कर रहे थे आज वो जलकर राख हो चुकी है। हम कैसे सब्र कर रहे हैं, हमीं जानते हैं।”

घर तक पहुंच गयी आग।

ओयरचक समीपवर्ती गांव के लक्की सिंह ने यूबीआई की जमानिया शाखा से केसीसी बनवा कर तीन लाख रुपये लोन लिया था। उन्होंने नौ एकड़ में गेहूं की खेती की थी। लोन चुकता करने के अलावा पूरी घर गृहस्थी उसी पर आधारित है, लेकिन आग ने फसल के साथ उनके परिवार के अरमानों को भी जलाकर राख कर दिया। यह दर्दनाक कहानी लक्की सिंह और सत्यप्रकाश की नहीं है, बल्कि चंदौली के उन सैकड़ों किसानों की है जो अगलगी की घटनाओं के चलते तबाह हुए हैं और प्रशासन मुआवजा बांटने में तनिक भी फुर्ती नहीं दिखा रहा है।

लक्की सिंह कहते हैं, “हमारे यहां एक बीघे में करीब 12 कुंतल गेहूं पैदा होता है। मड़ाई के बाद हम अनाज बेच देते हैं। उसी पैसे से गृहस्थी का सामान खरीदते हैं। खेती से हम केवल पेट पालते हैं। कोई नफ़ा (फायदा) तो होता नहीं है। सिर्फ एक बार की खेती में आधे से ज्यादा पूंजी लगी होती है। जो घर में था वो भी चला गया। इस बार गेहूं का रेट अच्छा है। उम्मीद बंधी कि खत्म हो जाएगा, लेकिन वो आस भी मिट गई।”

“जिस समय खेतों में आग पहुंची, उस समय हम घर पर थे। खेत पर पहुंचते-पहुंचते हमारे गेहूं की समूची फसल जल गई। अच्छी किस्मत वाले थे कि हमारा गांव बच गया। अब खेतों में सिर्फ राख बची है और जले हुए गेहूं की राख हो चुकी बालियां, जिसे आवारा पशु अपना निवाला बना रहे हैं। फिलहाल जो हो गया सो हो गया।” चंदौली में तमाम गांव ऐसे हैं जहां के किसान मुआवजे के लिए सरकारी फरमान के इंतजार में बैठे हैं। ओयरचक में अगलगी की घटना को लेकर सियासत भी गरमाने लगी है। इस गांव में अब नेताओं का जमघट लगना शुरू हो गया है।

पानी न मिलने पर झाड़ से आग बुझाते लोग।

तबाह हो गया ओयरचक गांव

उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले के सदर तहसील का गांव हैं ओयरचक। राजपूत बहुल इस गांव में ब्राह्मण, दलित, मौर्य-कुशवाहा, खरवार, तेली, यादव, हलवाई आदि जातियों के लोग रहते हैं। ओयरचक को पहले वीरचक्र के नाम से जाना जाता था। किंवदंतियों के मुताबिक नरवन इलाका पहले काफी समृद्ध हुआ करता था। तमाम ऐतिहासिक और बहुमूल्य साक्ष्य यहां मौजूद हैं और कई जगहों पर ईंटों के बिखरे टीले के अवशेष फैले हुए हैं। यहां मुख्य रूप से धान, गेहूं और चने की खेती होती है।

पुराने इतिहास को समेटे नरवन इलाके के ओयरचक गांव में दोपहरिया में आग बरस रही है। जिन किसानों ने पहले ही अपनी फसलें काट ली थीं, वही बच पाई हैं। लगातार दो दिनों तक इस गांव में हुई अगलगी की घटना ने किसानों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। ओयरचक गांव में 17 अप्रैल, 2024 को रिपर मशीन (भूसा बनाने वाली) से निकली चिनगारी से खेत में आग लगी और फैलती चली गई। जो फसल बची थी उसमें 18 अप्रैल को आग लग गई, जिससे समूचा गांव तबाह हो गया। ओयरचक गांव में संकठा उपाध्याय बड़े किसान हैं। इनकी करीब 15 बीघे जमीन फसल जल गई। इसी तरह रविंद्र उपाध्याय, जगमोहन उपाध्याय, श्रीमोहन उपाध्याय, संतोष उपाध्याय, शिवजी सिंह, प्रदीप सिंह, रामचंद्र सिंह, नंदा कुशवाहा, छोटेलाल खरवार, भानु खरवार, सुरेंद्र सिंह, महेंद्र सिंह, श्रवण वर्मा, बंधू सिंह, गोपाल प्रजापति, भानु खरवार समेत तमाम किसानों की समूची फसल खाक हो चुकी है।

दहकती गर्मी और हरहराती लू के बीच ओयरचक गांव में एक किसान के खेत में रिपर मशीन से गेहूं का भूसा निकाला जा रहा था। इस मशीन से निकली चिनगारी पलक झपकते ही दावानल की तरह फैलती चली गई। कुछ ही देर में खेतों में खड़ी गेहूं की फसल धू-धूकर जलने लगी। आग की लपटें और धुंआ देखकर पहुंचे ग्रामीण आग बुझाने में जुट गए, लेकिन पंछुआ हवा के चलने के कारण आग ने विकराल रूप धारण कर लिया। तेज हवा के चलते आग पर काबू पाना कठिन हो गया। किसानों के साथ फायर ब्रिगेड की गाड़ियों ने मशक्कत के बाद आग पर काबू पाया। तब तक ओयरचक के साथ ही आस-पास के गांवों की 212 एकड़ से ज्यादा फसल जल गई है।

ओयरचक गांव के प्रधान जयशंकर सिंह कहते हैं, “हमारे गांव में गोंड और खरवार जाति के लोग भी रहते हैं। इस जाति के लोग छोटी जोत के मालिक हैं। इनके घरों में गेहूं का एक दाना भी नहीं पहुंच पाया है। पशुओं के लिए भी भूसे का संकट खड़ा हो गया है। अगलगी की घटनाओं ने हमें कई साल पीछे कर दिया है। मैंने खुद भी बैंक से कर्ज लेकर खेती की थी, लेकिन वो जल गई। हम चाहते हैं सरकार हमारे घाटे की भरपाई करे। किसानों को क्षतिग्रस्त फसल का पूरा मुआवजा मिलना चाहिए। 

अगर ऐसा नहीं  हुआ तो किसान कहां से नुकसान की भरपाई करेंगे। पछुआ हवा बहुत तेज थी, जिसके चलते आग तेजी से फैली। दमकल की गाड़ियों की क्षमता बहुत कम थी। आसपास के कुएं और पोखरे सूख गए हैं, जिसके चलते आग बुझाने में दिक्कतें आईं। आग लोगों के घरों तक तक पहुंची होती तो शायद ओयरचक गांव का नामो-निशान मिट गया होता।”

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, ओयरचक गांव को तबाह करते हुए आग पड़ोस के गांव ककरैत में पहुंच गई। दमकल की गाड़ियां आग पर काबू पातीं इससे पहले ही गुड्डू राय, दुलदुल राय, भीम पाल, नंदकुमार राय, भोला राय, मुनेंद्र राय, भरत बिंद, मिथिलेश बिंद, नथुनी समेत तमाम किसानों की करीब 50 एकड़ फसल राख हो गई। फायर ब्रिगेड़ की गाड़ियां आग पर काबू पाने में असफल रहीं।

बरहनी प्रखंड के जमुड़ा गांव में भी रिपर मशीन से निकली चिनगारी ने खूब तबाही मचाई। आग पर काबू नहीं पाया जा सका तो इसकी लपटें भरहुलिया गांव में पहुंच गईं। यहां पारस उपाध्याय, हरिशंकर उपाध्याय, गोपाल उपाध्याय, विमलेश राम, शकुंतला और दासी समेत कई किसानों की 50 एकड़ फसल जलकर राख हो गई। 

बाद में यही आग घोसवा होते हुए औरइया तक पहुंची। बरहनी गांव में बबलू शुक्ला की करीब 12 एकड़ फसल और जयगोविंद सिंह का मुर्गी फार्म राख हो गया। इसके बाद पछुआ हवाओं ने आग को भदखरी, मथुरापुर और परशुरामपुर तक पहुंचा दिया। आग फैलने से पहले इन गांवों के कुछ किसान अपनी फसल काट चुके थे।

चंदौली के कंदवा क्षेत्र के असना और बकौड़ी गांव के सिवान में गेहूं कटाई के दौरान रिपर से निकली चिनगारी ने कई किसानों को तबाह कर दिया। बकौड़ी के उपाध्याय के खेत में गांव के ही मृत्युंजय उपाध्याय के रिपर से गेहूं की कटाई हो रही थी। उनकी फसल लगभग कट चुकी थी। उसी दौरान रिपर से निकली चिनगारी से खेतों में आग लग गई। तेज हवा के चलते आग ने विकराल रूप धारण कर लिया और फसल के साथ रिपर को को भी अपनी चपेट में ले लिया।

लाचार नजरों से आग की लपटों की तरफ देखता किसान

असना गांव के नरेंद्र सिंह और उनके चाचा झारखंडे सिंह समेत असना गांव के एक दर्जन किसानों की 25 एकड़ फसल के साथ उनके सपनों को राख कर दिया। यहां वीरेंद्र सिंह, विजय शंकर सिंह, दीपक सिंह, इकबाल सिंह, राजेंद्र सिंह, बचाऊ सिंह, मनीष सिंह, विश्वनाथ बिंद, पप्पू व अंगद बिंद आदि की 25 एकड़ फसल राख हो गई। 

बरहनी विकास खंड के पिपरी गांव में अगलगी से जयप्रकाश उर्फ कल्लू राय के गेहूं के खेतों में आग लग गई, जिससे करीब साढ़े तीन एकड़ गेहूं की खड़ी फसल जल कर राख हो गई। मौके पर जुटे ग्रामीणों ने काफी मशक्कत के बाद किसी तरह आग पर काबू पाया।

आग बरसा रही गर्मी

पूर्वांचल में पहले मई महीने में अगलगी की घटनाएं होती थीं और इस बार अप्रैल महीना शुरू होते ही फसलें खाक होने लगी हैं। नंगी झुलसी चमड़ी पर सूरज का तापमान माप रहे किसानों के सपने टूट रहे हैं। चंदौली जिले के जसौली गांव में 18 अप्रैल 2024 को आग लगने से पांच बीघा गेहूं की फसल राख हो गई। दमकल गाड़ियां आग बुझातीं इससे पहले तरुण श्रीवास्तव, आशु श्रीवास्तव, उमेश श्रीवास्तव, महेश श्रीवास्तव, सुजीत श्रीवास्तव, मनोज श्रीवास्तव, अन्नपूर्णा सिंह की गेहूं की फसल जलकर राख हो गई।

चकिया क्षेत्र के सिकंदरपुर गांव में जमील अंसारी, अशरफ अंसारी और संजय पाठक के खेत में आग लगने से 23 बिस्वा गेहूं की फसल राख हो गई। खखड़ा गांव में 19 अप्रैल, 2024 को आग लगने से लहरी तिवारी, भुल्लन सिंह, नंदू तिवारी, महेंद्र तिवारी, गुलाब तिवारी, जुल्मी तिवारी, जोगिंदर सिंह, प्रमोद सिंह, बनारसी यादव, आकाश यादव, चम्मन बाबा, पंकज पांडेय की समूची फसल आग से खाक हो गई। यहां बिजली के खंभों से निकली चिंगारी से आग लगी। खखड़ा गांव में 80 बीघा फसल जल गई, जबकि शहाबगंज इलाके के अमाव गांव में पांच बीघा गेहूं की फसल जल गई।

कुछ रोज पहले ही चंदौली के चकिया प्रखंड के बसनिया गांव में आग से तमाम किसान तबाह हो गए। दमकल गाड़ी दो घंटे बाद मौके पर पहुंची तब तक शिवाजी यादव, सियाराम यादव,रामजी यादव, लक्ष्मण यादव, कन्हैया पाठक, बैकुंठ पाठक, राममूरत मौर्य, रामआसरे मौर्य, रामसूरत मौर्य, निर्मला देवी, रमाशंकर मौर्य, श्रीकांत पाठक, उमाकांत पाठक की गेहूं की खड़ी फसल खाक हो गई। भटरौल, बसनिया और पम्हटी के ग्रामीणों की सजगता के चलते आग पर काबू पाया जा सका। दमकल गाड़ियों के पहुंचने से पहले ही आग बुझा दी गई थी।

18 अप्रैल 2024 को चकिया तहसील के बनरसिया गांव की दलित बस्ती में आग लगने से तीन परिवारों के कच्चे मकान जल गए। इस हादसे में चार बकरियां जिंदा जल गईं और एक गाय और भैंस झुलस गई। बनरसिया गांव में रामदुलारे राम, हेमराज और राधेराम के घरों को आग ने अपनी चपेट में ले लिया। आग तेजी से फैली तो चीख-पुकार मच गई। आग बुझाने के दौरान रामदुलारे की पत्नी जियाछी देवी (60) गंभीर रूप से झुलस गईं, जिन्हें चकिया स्थित जिला संयुक्त चिकित्सालय में भर्ती कराया गया है। इस अग्निकांड में रामदुलारे की दो मोटरसाइकिलें, दो साइकिलों के अलावा तीनों परिवार की पूरी गृहस्थी राख हो गई। तीनों परिवार खुले आसमान के नीचे आ गए हैं।

चंदौली के जसौली गांव में 18 अप्रैल 2024 को आग लगी और दमकल गाड़ियों के पहुंचने से पहले तरुण श्रीवास्तव, आशु श्रीवास्तव,  उमेश श्रीवास्तव, महेश श्रीवास्तव, सुजीत श्रीवास्तव, मनोज श्रीवास्तव, अन्नपूर्णा सिंह की गेहूं की फसल जल गई। चंदौली के अलीनगर थाना क्षेत्र के बसनी गांव में भी 15 बीघा गेहूं की खड़ी फसल जलकर राख हो गई। ग्रामीणों के अथक प्रयास से आग पर काबू पाया जा सका। इससे पहले किसान अरुण मिश्रा, रामजी मिश्रा, संतोष मिश्रा, प्रियानंद मिश्रा, मुन्ना मिश्रा, जयकरन मिश्रा की लगभग 15 बीघे गेहूं की फसल जलकर राख हो गई। जसुरी गांव में भी तीस बीघे गेहूं की फसल जल गई।

 जारी है आग का तांडव

चंदौली में करीब 20 लाख की आबादी में 16 लाख से ज्यादा लोग सीधे तौर पर खेती से जुड़े हैं। हर बार गर्मी में सैकड़ों एकड़ गेहूं की फसल आग से जलकर राख हो जाती है, लेकिन अबकी आग ने बड़ी तादाद में किसानों को नुकसान पहुंचाया। भयावता का आलम यह रहा कि सिर्फ 11 दिनों में ही 1976 बीघा फसल जल गई। चंदौली जिले में आग का तांडव जारी है। एक बीघा में 8-10 क्विंटल गेहूं की उपज होती है। गेहूं की सरकारी बिक्री दर 2275 रुपये प्रति कुंतल है। इस तरह 500 से ज्यादा किसानों का कम से कम तीन करोड़ 59 लाख 63 हजार 200 रुपये का नुकसान हुआ है।

पिछले साल चंदौली में में आग से सैकड़ों बीघे गेहूं को नुकसान पहुंचा था। 18 अप्रैल 2023 तक 400 बीघे गेहूं की फसल जली थी, लेकिन इस साल 18 अप्रैल तक 1976 बीघे गेहूं की फसल जल गई है। पिछले साल के मुकाबले अबकी 1500 बीघे से भी ज्यादा फसल क्षतिग्रस्त हुई है। अगलगी  से प्रभावित करीब 500 में से 200 से ज्यादा किसान ऐसे हैं जिन्होंने बैंक अथवा किसान क्रेडिट कार्ड से कर्ज लेकर खेती की थी। चंदौली में यह पहला मौका है जब दो हफ्ते के अंदर अगलगी की घटनाओं ने किसानों को तबाही की कगार पर पहुंचा दिया है।

अगलगी का प्रकोप मार्च से लेकर जून तक कुछ अधिक ही होता है और सबसे ज्यादा प्रभावित होती है गेहूं की फसल। हर साल हजारों एकड़ गेहूं की फसल खेत में ही आग में ख़ाक हो जाती है। संसाधनों की बुरी हालत का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि यूपी के कई जिलों में सिर्फ मुख्यालयों पर ही अग्निशमन केंद्र हैं। 

जहां हैं भी वहां भी सिर्फ एक या दो अग्निशमन दल और दमकल की गाड़ियां हैं। चंदौली के चकिया इलाके का हाल अजीब है। जंगली इलाका होने के बावजूद यहां दमकल महकमे के पास खटारा गाड़ियां हैं।

यह स्थिति तब है जब समीपवर्ती चकिया और नौगढ़ के जंगलों में हर साल आग लगती है और करोड़ों के कीमती पेड़ राख में तब्दील हो जाते हैं। दमकल गाड़ियों के हालात का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि लपटों के लड़ाकों को मौके पर पहुंचने में घंटों लग जाते हैं। इतनी देर में आग अपना काम कर चुकी होती है। तमाम गांवों में सड़कों की स्थिति भी अच्छी नहीं है, जिससे मदद जल्दी पहुंचाई जा सके।

जला हुआ अनाज।

चंदौली के जिलाधिकारी टीकाराम फुंडे कहते हैं, “अगलगी की घटनाओं पर काबू पाने के लिए दमकल विभाग, राजस्व विभाग और पुलिस को राउंड-द-क्लॉक अलर्ट पर रहने के निर्देश दिए गए हैं। किसानों से अनुरोध किया गया है कि वो थ्रेसर का इस्तेमाल करते समय सावधानी रखें। जिन किसानों को आग से नुकसान हुआ है वहां तत्काल सर्वे कर मुआवजा बांटने के निर्देश दिए गए हैं।”

 टूट रहे किसानों के सपने

उत्तर प्रदेश में गर्मी की तपिश बढ़ने के साथ ही आग किसानों पर कहर बनकर टूटने लगी है। कहीं बिजली के तारों, ट्रांसफॉर्मर से निकली चिंगारी तो कहीं अज्ञात कारणों से गेहूं की फसल जलकर खाक होती जा रही है। एक हफ्ते के अंदर पूर्वांचल में अगलगी की कई और बड़ी वारदातें हुई हैं। चंदौली के वरिष्ठ पत्रकार राजीव मौर्य कहते हैं, “यूपी में अग्नि एक्ट पूरी तरह अधिनियमित नहीं है। इस राज्य में प्रशिक्षित अग्नि-शमन कर्मचारी 46 फीसदी से भी कम है। समस्या की जड़ें गांवों के विकास से जुड़े बेतरतीब ढांचे में निहित हैं। पहला तो यह कि जितनी भी सरकारी योजनाएं हैं वो गांव का विकास शहरों की तर्ज़ पर किए जाने की वकालत करती हैं।”

“हमारा दमकल महकमा अगलगी होने पर घटनास्थल तक तभी पहुंचता है जब सब कुछ ख़ाक हो चुका होता है। आग के नाम पर बुझाने को बचती है तो सिर्फ गर्म राख। पानी और आग हमारे देश के ग्रामीण इलाकों में हमेशा परेशानी का सबब रहे हैं। राज्य सरकार बाढ़ और सूखे पर ज्यादा ध्यान देती है, लेकिन आग से होने वाले नुकसान पर उतना ध्यान नहीं देती। हर साल हजारों किसान आगजनी की चपेट में अपना सब कुछ खो देते हैं।”

चंदौली के जनवादी नेता अजय राय कहते हैं, “आग से निपटने के लिए विभागों के पास जो उपकरण हैं वो खासे पुराने हैं। गाड़ियां तो ऐसी हैं कि अब उन्हें विंटेज रैलियों में शामिल किया जाने लगा है। कर्मचारियों में आपदा प्रबंधन की दक्षता का अभाव साफ़-साफ झलकता है। ऐसे तमाम कारण हैं जो आग से होने वाले नुकसान को कई गुना तक बढ़ा देते हैं। अगलगी की मार खासतौर उन गरीब किसानों को ज्यादा झेलनी पड़ती है जिनके पास कुछ भी नहीं बचता। उसकी जमा पूंजी और निवेश सब स्वाहा हो जाता है।”

“किसी तरह से कोई जनहानि न भी हुई तो भी किसान की कमर टूट जाती है। ऐसा देखने में आया है अगलगी का घटनाओं में सबसे अधिक शिकार मवेशी होते हैं। ये मवेशी किसानों के लिए एक निवेश की तरह होते हैं। जो उन्हें कुछ आय भी देते हैं और बेचने पर जमा पूंजी भी निकलती हैं। फसल और मवेशियों का बीमा कराने की जागरूकता पूर्वांचल के किसानों में अभी तक नहीं आई है। इसलिए आग लगने पर इसकी भरपाई नहीं हो पाती है। सरकार भी तभी चिंतित होती है जब आग लगने की घटनाएं अखबारों की सुर्खियां बनती हैं।”

 शहर बने ‘हीट आइलैंड’

गर्मी के साथ अगलगी की बढ़ती घटनाओं से चिंतित चंदौली के जाने-माने किसान नेता चौधरी राजेंद्र सिंह कहते हैं, “गांव के ज्यादातर युवा काम की तलाश में बड़े शहरों अथवा दूसरे राज्यों में चले गए हैं। अब मैंने अपने भाई, प्यार दोस्तों और भरोसेमंद पड़ोसियों को गंवा दिया। खासतौर पर वो दोस्त जो मेरे साथ सब कुछ साझा करते थे। मेरी हंसी भी और ठिठोली भी। दुख भी और सुख भी। मगर अब मेरे साथ कोई कुछ नहीं बांटता। अब मैं हूं, मेरा मोबाइल फोन और कुछ खाली ज़मीन है।”

“बनारस शहर में भी लोग यह कहते हुए मिल जाते हैं कि पहले ऐसी गर्मी नहीं होती थी। अप्रैल के पहले पखवारे में तापमान 42 डिग्री के करीब पहुंच गया है। साल 1901 के बाद 2018 में सबसे ज़्यादा गर्मी पड़ी थी, लेकिन पारा मई-जून में बढ़ा था। इस बार मार्च के दूसरे पखवारे में ही तपन की तल्खी अपना तेवर दिखा रही है। लगता है कि ग्लोबल वार्मिंग के चलते गरमी की भयावहता बढ़ती जा रही है। सिमटती हरियाली, जंगलों के चीरहरण के साथ बढ़ती इमारतों की तादाद और पक्की सड़कों के विस्तार ने बढ़ते तापमान को रफ्तार दिया है। बनारस की जो गलियां गर्मी के दिनों में शिमले का मजा देती थीं, वहां भी हरहराती लू के थपेड़े चलने लगे हैं। पूर्वांचल के शहरों को अब ‘हीट आइलैंड’ कहा जाने लगा है।”

गेहूं की बालियां काट ली गयीं

वाराणसी के प्रगतिशील किसान शैलेंद्र सिंह कहते हैं, “ग्रामीण क्षेत्रों में छोटी–छोटी लापरवाही जान-माल पर भारी पड़ जाती है। लोग हुक्का, चिलम या बीड़ी पीकर बिना बुझे ही छोड़ देते हैं। फिर वही चिंगारी भयंकर आग का रूप धारण कर लेती है। ध्यान देने की बात यह है कि आग लगने पर आपातकाल स्थिति में पैनिक होने की कतई जरूरत नहीं है। 

खेत अथवा मकान में आग लगने पर तुरंत फायर ब्रिगेड की सेवा के लिए 101 नंबर पर संपर्क करें। साथ ही खुद भी आग पर काबू पाने का प्रयास करें। रेत, मिट्टी या बाल्टी से पानी ऊपर डालकर आग को फैलने से रोका जा सकता है। ख्याल रखें कि शरीर के जले हिस्से पर चिपकी हुई किसी चीज को हाथ से न हटाएं। रोगी को कंबल में लपेट कर एंबुलेंस की मदद से अस्पताल पहुंचाने की कोशिश करें।”

कम आ रहे पश्चिमी विच्छोभ

बनारस काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में भू-भौतिकी विभाग के पूर्व प्रोफेसर सुरेंद्र नाथ पांडेय कहते हैं, “गरमी अचानक नहीं, धीरे-धीरे बढ़ रही है। इस बार गरमी का बढ़ना कोई अस्वाभाविक बात नहीं है। ऐसी गरमी हमेशा से रही है। किसानों को इस बात की चिंता ज्यादा है कि ऐसा ही टेंपरेचर बरकरार रह गया तब क्या होगा? गरमी बढ़ने का बड़ा कारण है कि पश्चिमी विच्छोभ की संख्या कम होना। हाल के सालों में आसपास के जंगलों का दायरा सिकुड़ा है। पेड़ों का अवैध पातन बढ़ गया है। शहरों में बढ़ते निर्माण कार्यों और उसके बदलते स्वरूप के चलते हवा की गति में कमी आई है। हरियाली वाले क्षेत्र कम हो रहे हैं। टार की सड़कों का विस्तार हो रहा है। यही वजह है कि तापमान तेज़ी से बढ़ रहा है।”

सब कुछ जलकर खाक हो गया

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, “हाल के कुछ सालों में शहरों के अधिकतम तापमान में वृद्धि हुई है। तारकोल की सड़कें और कंक्रीट की इमारतें ऊष्मा को अपने अंदर सोखती हैं और उसे दोपहर व रात में छोड़ती हैं। नए शहरों के तापमान तेजी से बढ़ रहे हैं। पहले से बसे महानगरों की तुलना में ये ज़्यादा तेज़ी से गरम हो रहे हैं। अस्सी के दशक के बाद से हर एक साल के उन बेहद गर्म दिनों की संख्या, जब तापमान 50 सेंटीग्रेड तक पहुंच जाता है, दोगुनी हो चुकी है।

पहले के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा बड़े इलाके में तापमान इस स्तर तक पहुंचने लगा है। यह स्थिति इंसानों की सेहत और जीने के तरीके को लेकर अभूतपूर्व चुनौती पेश कर रही है। साल 1980 के बाद से हर दशक में 50 सेंटीग्रेड से ज़्यादा तापमान वाले दिनों की संख्या बढ़ी है। साल 1980 से 2009 के बीच औसतन हर साल ऐसे करीब 14 दिन रहे हैं, जब तापमान 50 के पार गया हो। साल 2010 से 2019 के बीच ऐसे दिनों की संख्या बढ़कर 26 हो गई। इसी दौरान 45 सेंटीग्रेड या उससे ज़्यादा तापमान वाले दिनों की संख्या सालाना दो हफ़्ते ज़्यादा रही।

तौर-तरीका बदले की जरूरत

बीएचयू के जियोफिजिक्स विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डा.सत्य प्रकाश मौर्य कहते हैं, “शहरों में बढ़ते तापमान को लोग ग्लोबल वार्मिंग से जोड़ कर देखते हैं। लेकिन इसके लिए सिर्फ़ वह ही ज़िम्मेदार नहीं है। तापमान को देखने से पहले हमें हवा के रुख को भी देखना चाहिए। अगर हवा राजस्थान की तरफ से आ रही है तो ज़ाहिर सी बात है ये ज़्यादा गर्म होगी। अगर तूफान की दिशा बदल जाती है तो शहरों का तापमान भी बदल जाता है। जैसे कि इन दिनों फणी चक्रवात की वजह से उत्तर और मध्य भारत के शहरों का तापमान बदला है। कुछ जगहों पर इसके चलते बारिश भी हुई है।”

डॉ. सत्यप्रकाश कहतें हैं कि बनारस में तमाम बहुमंजिली इमारतें खड़ी कर दी गई हैं। पहले समुद्री हवाएं बिना रोक-टोक पूर्वांचल में पहुंच जाती थीं, लेकिन अब उनकी दिशा बदल गई है। गर्मी के मौसम में मध्य भारत में बसे शहरों का तापमान बढ़ना आम है। गरमी आते ही लू लगने से मौत की ख़बरें आनी शुरू हो जाती हैं। इसके दोषी हम सब हैं।”

दमकल से आग बुझाते कर्मी।

“हमें बदलते मौसम के अनुसार अपना खाना-पीना और कपड़े पहनने का तरीका बदलने की ज़रूरत है। आग लगने के हादसे इसलिए भी होते हैं, क्योंकि हम अपनी ज़िंदगी में ज़रूरी बदलाव नहीं करते। पूर्वांचल के लोगों को राजस्थान के लोगों से सीखना चाहिए जो 45 डिग्री टेंपरेचर में भी अपने खेतों देखरेख व्यवस्थित तरीके से करते हैं। आने वाले दिनों में अधिक तापमान वाले दिन आम हो सकते हैं। ज़्यादा गर्मी प्रकृति ही नहीं, इंसानों के लिए जानलेवा साबित हो सकती है। “

 (लेखक बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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