ग्राउंड रिपोर्ट: किसानों को पहले नहरों ने रुलाया, अब प्रकृति ने डुबोया

वाराणसी/मिर्जापुर। उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल के खेतों में लगे बरसात के पानी और कट कर खेत में पड़ी धान की पकी फसल पूरी तरह से भीग कर तबाह हो गई है। ऊपर से धान के बीज अंकुरित होने लगे हैं जिसे देख किसानों के माथे पर परेशानी के भाव साफ झलक पड़ते हैं। 25 बीघे में की गई धान की खेती में से 12 बीघे धान की फसल पूरी तरह से बरसात के पानी में भीग कर अंकुरित हो गई है।

किसान महेश सिंह पिछले कई दिनों से बाहर से मजदूर बुलाकर खेत में भीगी पड़ी धान की फसल को खेतों से निकलवा कर उसे सुखाने और खलिहान में ले जाने की कवायद में जुटे हैं। जितनी लागत उन्होंने धान की खेती करने में लगाई थी उससे कहीं ज्यादा लागत अब उन्हें धान की फसल को बचाने में लगानी पड़ जा रही है। ऊपर से मानसिक तनाव और भाग दौड़ अलग से सहनी पड़ रही है।

दरअसल, यह समस्या किसी एक किसान की नहीं है, बल्कि उन सैकड़ों किसानों की है जिन्होंने बड़े पैमाने पर धान की खेती की थी और पिछले दिनों हुई बरसात के चलते खेतों में कट कर सूखने के लिए पड़ी धान की फसल पूरी तरह से पानी में भीग कर अंकुरित हो गई है। इससे किसानों को भारी नुकसान हो रहा है।

मिर्जापुर के हलिया क्षेत्र के स्थानीय पत्रकार राघवेंद्र कुमार सिंह ‘जनचौक’ को बताते हैं कि “इस वर्ष किसानों को कड़ी मशक्कत कर धान की खेती करनी पड़ी थी। पर्याप्त मात्रा में बरसात न होने और ऊपर से नहरों में पानी के अभाव ने किसानों को रुलाने का काम किया है। किसी तरह जैसे-तैसे धान की खेती ठीक-ठाक हो भी गई तो अब अंतिम दौर में हुई बरसात ने किसानों के अरमानों पर पानी फेर दिया है।”

उन्होंने कहा कि “किसानों ने धान की फसल को काटकर खेतों में सूखने के लिए रखा था। इस उम्मीद के साथ की फसल सूखने के बाद उसकी पिटाई, सटकाई शुरू की जाएगी, लेकिन पिछले दिनों जमकर हुई बरसात और तेज हवाओं ने किसानों के सारे अरमानों पर बुरी तरह से पानी फेर दिया है।”

वाराणसी के मंगारी गांव निवासी नवीन कुमार का भी कुछ ऐसा ही कथन है। वह बड़े ही बेरुखी भाव से कहते हैं कि “किसानों की समस्याएं कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। किसान तो व्यवस्था और प्रकृति दोनों से जूझ रहा है। कभी सिंचाई के संसाधन तो कभी बरसात न होने से जूझते आ रहे किसानों को प्रकृति भी रुलाए जा रही है।”

लेकिन जैसे ही फसल पक कर कटनी शुरू हुई है वैसे ही दिसंबर के प्रथम सप्ताह में उत्तर प्रदेश के कई इलाकों में जमकर हुई बरसात एवं तेज हवाओं ने किसानों के अरमानों पर मानो पानी फेर दिया। हालांकि कुछ किसानों ने राहत की सांस ली है, जिन्होंने समय से पहले धान की फसल को पककर तैयार हो जाने के बाद काट कर उसकी सटकाई पिटाई कर ली थी।

उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में किसानों ने कड़ी मेहनत के बाद धान की अच्छी खेती की थी। खेतों में अपनी अच्छी फसल को देखकर किसानों के चेहरे पर मुस्कान दिखाई दे रही थी। विभिन्न जिलों में प्रशासन और कृषि विभाग ने धान की फसल की बेहतरी का आंकलन करने के लिए क्राप कटिंग भी करवाया था।

मिर्जापुर के हलिया विकासखंड क्षेत्र के नौगवां निवासी महेश सिंह पेशे से अधिवक्ता और किसान हैं। उन्होंने पूरे परिवार के साथ तकरीबन 25 बीघा धान की खेती बड़े अरमानों के साथ की थी। उन्होंने पहले मध्य प्रदेश से मजदूरों को बुलाकर धान की रोपाई करवाई थी, अब खेत में धान की भीगी हुई फसल को बचाने के लिए फिर मध्य प्रदेश से मजदूरों को बुलाया है।

महेश सिंह बताते हैं कि “पानी में भीग जाने के से धान की फसल अंकुरित हो गई है। पुआल भी पूरी तरह से नष्ट हो गया है। इससे पशुओं के समक्ष भूसे की समस्या उत्पन्न हो गई है।”

महेश सिंह के कहना है कि “6, 7 और 8 दिसंबर को हुई बरसात की वजह से खेतों में कट कर पड़ी धान की फसल बर्बाद हो गई है। धान की भीगी फसल को देखकर आंखों से पानी नहीं खून के आंसू निकलते हैं।” धान के बेहन डालने से लेकर रोपाई के दौरान हुई तकलीफों का जिक्र करते हुए वह उदास हो जाते हैं। उनके चेहरे पर धान की नष्ट हुई फसल की पीड़ा साफ झलकती है।

कुछ ऐसी ही पीड़ा बयां करते हुए जीत नारायण कहते हैं कि “का किया जाए, पहले नहर में पानी नहीं होने को लेकर रो रहे थे, अब भगवान भी रुला रहे हैं।” वह खेतों में भीगी धान की फसल को उठाकर सूखे स्थान पर रखते हुए ‘जनचौक’ को धान की फसल दिखाते हुए कहते हैं “देखिए यही स्थिति हुई है धान की फसल की, अब इसमें से क्या पीटा जाए और क्या बटोर कर घर ले जाया जाए?”

हलिया विकास खंड क्षेत्र के नैनी कोठारी, अदवआं नहर के किनारे तथा सुकड़ा, छतरियां, बंजारी, पंवारी इत्यादि गांवों के किसानों का भी कुछ ऐसा ही हाल है। जो धान की भीगी हुई फसल को दिखाते हुए बिलखते हैं।

जौनपुर के सेनापुर गांव निवासी जयप्रकाश सिंह तथा केराकत के पत्रकार दीपनारायण सिंह किसानों की बदहाली की चर्चा करते हुए कहते हैं, “पिछले दिनों हुई बरसात से रबी की खेती की तैयारी में जुटे किसानों को तो राहत मिली है, लेकिन कट कर सूखने के लिए खेतों में पड़ी धान की फसल को भारी नुकसान हुआ है।”

सोशल वर्कर प्रज्ञा सिंह का कहना है, कि “धान का कटोरा कहे जाने वाले वाराणसी और चंदौली जनपदों से लगे मिर्जापुर के अदलहाट और जमालपुर के किसान इस बरसात के पानी से बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं। किसानों को कुछ सूझ नहीं रहा है कि वह इस आपदा से कैसे उबर पाएंगे।”

वह कहती है कि “किसानों की बेहतर फसल की “क्राप कटिंग” कराने वाला प्रशासन और कृषि विभाग किसानों की नष्ट हुई धान की फसल का भी मूल्यांकन करते हुए उन्हें क्षतिपूर्ति दिलाने की दिशा में तेजी से कदम उठावे, ताकि वह इस नुकसान से ऊबर सकें।”

पुआल के अभाव में चारे की बढ़ी चिंता

धान की फसल तो नष्ट हुई ही, किसानों के समक्ष पशुओं के चारे की भी समस्या खड़ी हो गई है। पूर्वांचल का किसान पिछले कुछ वर्षों से भूसे की गंभीर समस्या से जद्दोजहद करता आया है। जब से आधुनिक यंत्रों के जरिए धान और गेहूं की फसलों की कटाई प्रारंभ हुई है तब से पशुओं के भूसे की गंभीर समस्या उत्पन्न हुई है।

तबाह हुई धान की फसल के साथ पुआल के भी नष्ट हो जाने से अनुमान लगाया जा रहा है कि इस बार पूर्वांचल में भूसे का रेट भी आसमान को छूने लगेगा। बताते चलें कि गौशालाओं से लेकर तमाम पशुपालक भी अपने गौशाला में गेहूं के भूसे के बजाय धान के पुआल से तैयार भूसे को ही पशुओं को चारे के रूप में खिलाते हैं जो इस बार बरसात होने की वजह से प्रभावित हुआ है।

(संतोष देव गिरी की ग्राउंड रिपोर्ट।)

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