ग्राउंड रिपोर्ट: काशी द्वार योजना, जमीन अधिग्रहण और जमानत पर छूटे गिरफ्तार किसान क्यों हैं गुस्से में

बनारस। उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के पिंडरा इलाके में प्रदेश सरकार की काशी द्वार योजना को लेकर किसानों की सरकार से ठन गई है। किसानों की शिकायत है कि सरकार ज़बरदस्ती उनकी ज़मीनों का अधिग्रहण कर रही है। इस मुद्दे को लेकर पिंडरा इलाके के कई गांवों के किसान पिछले दो महीने से धरने पर बैठे थे। उनका हौसला तोड़ने के लिए बनारस की फूलपुर थाना पुलिस ने अन्नदाता पर लाठियां तोड़ी और बाद में दो लोगों को जेल भेज दिया। आरोप यह मढ़ा गया कि लोकसभा चुनाव के दौरान प्रशासन की अनुमति के बगैर आंदोलन-प्रदर्शन किया जा रहा था। किसानों का धरना आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन है।

काशी द्वार योजना के लिए योगी सरकार ने बसनी, बेलवा, बहुतरा, पिंडरा, पिंडराई, समोगरा, कैथौली, जद्दूपुर, चकइन्दर और रघुनाथपुर के करीब 5600 किसानों की  करीब 957 एकड़ जमीन का अधिग्रहण करने का निर्णय लिया है। इस परिजोजना से प्रभावित 90 फीसदी किसान छोटी जोत वाले हैं। बाकी मझोले किसान हैं। इस जमीन पर धान-गेहूं के अलावा बहुफसली खेती होती है। हाईकेट काशी द्वार योजना से प्रभावित होने वाले लोगों में अधिसंख्य दलित और पिछड़ी जाति के हैं। काशी द्वार योजना में 96 फीसदी जमीनें कमेरा समाज की है जिन्हें बीजेपी का वोटबैंक माना जाता है।

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने पिंडरा इलाके में काशी द्वार योजना के तरह हाईटेक सिटी बसाने की कार्य योजना बनाई है। माना जा रहा है कि इस योजना से सिर्फ बनारस ही नहीं, जौनपुर के लोग लाभान्वित होंगे। इस आवासीय योजना को काशीद्वार भूमि विकास गृहस्थान योजना के नाम से जाना जाएगा। आवास विकास की जीटी रोड योजना के लिए नए मार्ग के निर्माण को भी शासन ने मंजूरी दी है।

इस योजना पर करीब 6964.18 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। इनमें से 4961.17 करोड़ रुपये किसानों को जमीन के मुआवजे के रूप में दिए जाएंगे। इसके अलावा 2003.01 करोड़ रुपये विकास कार्यों पर खर्च होंगे। किसानों को वर्तमान सर्किल रेट का चार गुना मुआवजा दिया जाएगा। आवासीय योजना के प्लाट के शुरुआती रेट तय कर दिए गए हैं। इस योजना में 40215 रुपये प्रति वर्गमीटर की दर से प्लॉट बेचने के प्रस्ताव स्वीकृत हुए। हालांकि भविष्य में लागत घटने या बढ़ने पर दरें संशोधित की जा सकती हैं।

वाराणसी में हाईटेक आवासीय योजना के लिए समोगरा के 71, कैथौली के 123, चकइन्दर के 112, पिंडरा के 417, बेलवां के 249, पिंराराई के छह, पुरा रघुनाथपुर के 115 बसौली के 152, बहुतरा के 203, जद्दूपुर के 124 सहित कुल 1572 खसरों की जमीन योजना के लिए ली जाएगी। इसमें से 45.419 हेक्टेयर भूमि ग्राम समाज की भी है। वहीं आवास विकास जीटी रोड बाईपास योजना को एक नए मार्ग से जोड़ेगा। जिसमें निबिया गांव से 26 भूखंड की 4.8410 हेक्टेयर भूमि अधिग्रहित की जाएगी। इस योजना को लालबहादुर शास्त्री इंटरनेशनल एयरपोर्ट से बिल्कुल करीब बनाया गया है। यहां बनारस के श्री काशी विश्वनाथ मंदिर और काल भैरव मंदिर की दूरी तीस किमी और कैंट रेलवे स्टेशन की दूरी 25 किमी है।”

फूलपुर थानाध्यक्ष को किसानों की ओर से अर्जी देती इंडिया गठबंधन की प्रत्याशी प्रिया सरोज

काशी द्वार योजना के मामले ने तूल तब पकड़ा जब जौनपुर की मछलीशहर लोकसभा सीट से इंडिया गठबंधन की प्रत्याशी प्रिया सरोज किसानों से मिलने धरना स्थल पर पहुंच गईं। पुलिस ने प्रिया के खिलाफ पहले मुकदमा दर्ज किया और बाद में पुलिस किसानों पर टूट पड़ी। रात में पुलिस पिंडरा तहसील पर पहुंची और आंदोलन को जबरिया खत्म करा दिया। गिरफ्तारी के बाद दोनों किसान जेल से छूटकर घर लौट आए हैं। आंदोलनकारी किसानों की टोलियां अब किसानों के बीच पहुंचकर मोदी सरकार के खिलाफ मुहिम चला रही हैं और लोगों को यह भी बता रही हैं कि मोदी के अच्छे दिन व उनकी गारंटी झूठी है।

दो महीने से चल रहा था धरना

बनारस के पिंडरा तहसील परिसर में प्रस्तावित काशी द्वार योजना को रद्द करने की मांग को लेकर इलाके के किसान पिछले दो महीने से धरने पर बैठे थे। फूलपुर थाना पुलिस 21 अप्रैल 2024 की रात में धरना स्थल पर पहुंची और बगैर परमिशन के धरना देने के जुर्म में संतोष पटेल और और गिरधारी पटेल को गिरफ्तार कर लिया था। दोनों किसान जेल से छूटकर अब घर लौट आए हैं। संतोष पटेल की छह बीघा और गिरधारी की चार बीघा जमीन का अधिग्रहण किया जा रहा है। फिलहाल तमाम किसान मुश्किल में हैं। अपनी जमीन छिन जाने की आशंका में वो खौफजदा हैं और उनकी रातों की नींद गायब है। जमीन को बचाने के लिए वो अपनी जान देने तक के लिए तैयार हैं। किसानों का कहना है कि सरकार जमीन ले रही है तो पहले वो हमारे पुनर्वास का इंतजाम करे। हम अपने बच्चों पढ़ाएंगे या दूसरी जगह जमीन की तलाश करेंगे?

परिजनों के साथ जमानत पर छूटे किसान संतोष पटेल

पुलिसिया जुल्म-ज्यादती को बयां करते हुए संतोष पटेल के आंसू छलकने लगते हैं। वह कहते हैं, “फूलपुर थाना पुलिस ने हमारे ऊपर बहुत अत्याचार किया। खाकी वर्दी वाले अपने मुंह पर गमछा बांधकर धरना स्थल पर पहुंचे थे। पहले हमें उठा और काफी दूर ले गए। थाने में हमारे साथ मारपीट और दुर्व्यवहार किया गया। काफी मुश्किलों के बाद हम जेल से छूट पाए। सरकार अगर हमारी जमीनों पर अमीरों के लिए आवास बनाएगी तो हमारे जैसे सैकड़ों किसान बेघर हो जाएंगे। हमारी ज़मीनें चली जाएंगी तो हम क्या करेंगे? कहां रहेंगे? सरकार से न तो हम मुक़दमा लड़ पाएंगे, न तो सीनाज़ोरी कर पाएंगे। सरकार से यही हमारा कहना है कि खेतों में कब्रिस्तान बनाकर हम सभी को गाड़ दो और हमारी ज़मीन ले जाओ…!”

किसान संतोष पटेल ने नंगे पैर ही खेत में चलते हुए कहा, “देखिए खेती के लिए कितनी बढ़िया ज़मीन है ये, हमारे बाप दादा पुरखे यहां रहते और खेती करते आए, लेकिन अब सरकार हमें उजाड़ना चाहती है। सरकार जिन किसानों की जमीनें ले रही है वहां चारों तरफ़ गेहूं की फ़सल लहलहा रही है। इस इलाके की मिट्टी उपजाऊ है। पानी की कोई कमी नहीं है। यहां के किसान एक ही सीज़न में कई चीज़ों की खेती करते हैं। हमारे जिन खेतों पर सरकार काशी द्वार आवासीय योजना खड़ी करना चाहती है, उस पर हजारों किसान आबाद हैं। सभी किसानों की जमीनें छिन गई तो करीब सवा लाख लोग बेघर हो जाएंगे। हैरानी की बात यह है कि हमारी मुश्किलों की दास्तां, हमारी आहें, हमारी कराहें न मोदी के पास पहुंच रही हैं और न योगी के पास।”

“काशी द्वार योजना से प्रभावित किसान लोकसभा चुनाव में बीजेपी सरकार के खिलाफ प्रचार करेंगे। हम गांव-गांव जाकर किसानों को बताएंगे कि यह बीजेपी सरकार किसानों की दुश्मन है। पीएम नरेंद्र मोदी जहां भी जाते हैं, वहां किसानों की जमीनें छीन लेते हैं। बनारस के डोमरी गांव को उन्होंने गोद लिया तो वहां जमीन की खरीद-बिक्री ही रोकवा दी। अमूल डेयरी के कार्यक्रम में मोदी दो बार करखियांव आए। सरकार की नजर हमारी जमीनों पर पड़ गई और अमूल फैक्ट्री के बगल में काशी द्वार योजना का खाका खींच दिया गया। निछद्दम में आखिर यहां कौन रहने आएगा। हमें लगता है कि वो हमारी जमीने छीन लेंगे और उसे बाद में पूंजीपतियों के हवाले कर देंगे। मुआवजे के रूप में सरकार जो भी रकम दे रही है वह ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। उस पैसे से तो दूसरी जगह कहीं जमीन भी खरीदी नहीं जा सकती है। हमारी जमीनें काशी द्वार योजना में चली गईं तो हम भूमिहीन हो जाएंगे और सड़क पर आ जाएंगे। अपनी जमीन बचाने के लिए हम आखिरी दम तक लड़ते रहेंगे।”

किसानों की नींद गायब

बनारस के जिला कारागार से छूटने के बाद से बुजुर्ग किसान गिरधारी पटेल की रातों की नींद गायब है। वो कहते हैं, “हम सालों से सुनते आ रहे हैं कि अच्छे दिन आएंगे। समझ में नहीं आ रहा है कि किसके अच्छे दिन आएंगे? हम तो अच्छे दिन के लिए खेतों में मेहनत कर रहे थे, लेकिन आ गए बुरे दिन। घर-जमीन सब कुछ जब सरकार ले लेगी तब हम कहां जाएंगे? हमें मुआवजे की जरूरत नहीं है। डबल इंजन की सरकार बस इतना रहम कर दे कि वो हमारे जैसे किसानों को हमारे हाल पर छोड़ दे। सरकार का जोर शिक्षा पर नहीं, दौलतमंदों के लिए सुविधाएं जुटाने पर है। हम अन्न नहीं उपजाएंगे तो वो खाएंगे क्या?”  

“किसी भी राज्य की प्रजा तभी सुकून से रहती है, जब राजा अच्छा होता है। हमारी वेदना सुनने वाला कोई नहीं है। फूलपुर थाना पुलिस ने किसानों के साथ साथ जिस तरह का सुलूक किया उस मंजर को देखने के बाद कोई भी कांप जाएगा। हमारे पास तो कहने के लिए शब्द ही नहीं हैं। मोदी-योगी हमें नहीं सुहा रहे हैं। बेहतर होगा कि दोनों नेता राक्षसों वाला काम न करें। किसानों की बद्दुआएं निकलेंगी तो असर जरूर होगा। जुल्म-ज्यादती करने वालों के भी दुर्दिन आएंगे।”

गिरधारी कहते हैं, “अधिग्रहण के नोटिफ़िकेशन से किसान परेशान हैं। हम खेती और पशुपालन कर जीवनयापन करते हैं। अगर सरकार हमारी ज़मीन ले लेगी तो हम कहां जाएंगे? हमने हर अफसर से बात करने की कोशिश की, लेकिन हमें कहीं से संतोषजनक जवाब नहीं मिला। उल्टे सरकार और प्रशासन ने ज़मीन अधिग्रहण की सहमति देने के लिए हम लोगों पर दबाव डालना शुरू कर दिया। हमने कई बार प्रशासन के सामने अपनी बात रखी है। अफसरों को यह भी बताया है कि आज़ादी के पहले से ही हम ज़मींदारों की ज़मीनों पर रिआये (प्रजा) की तरह बसे हुए हैं। फिर भी प्रशासन मनमानी कर रहा है। यह स्थित तब है जब कई साल बीत जाने के बाद भी प्रशासन ने न तो किसानों की सहमति ली और न ही मुआवज़े पर बात हुई। अलबत्ता प्रभावित गांवों के किसानों को तरह-तरह से टॉर्चर कर रहा है। फर्जी मुकदमें लादे जा रहे हैं।”

“अब तो न्याय मांगना और अपने हक लिए आंदोलन करना आसान नहीं रह गया है। आपातकाल से बदतर स्थिति है। पहले हमें गिरफ्तार किया गया और बाद में कुछ आंदोलनकारी महिलाएं पहुंचीं तो उन्हें भी हिरासत में ले लिया गया। हालांकि बाद में उन्हें छोड़ दिया गया। जब चोर और गुंडे हमारे घरों में घुसते हैं तो हम पुलिस से शिकायत करते हैं। जब वही पीटने और घसीटने पर उतारू हो जाएं तो किसान किसके आगे गुहार लगाएंगे? जमीनों का अधिग्रहण करने वाले अफसर कह रहे हैं कि किसान सहमति से अपनी ज़मीनें दे रहे हैं, लेकिन सचाई यह है कि प्रशासन अन्नदाता को तरह-तरह से टॉर्चर कर रहा है। अकारण लोगों को सताया जा रहा है।”

दूसरी ओर, फूलपुर पुलिस का कहना है कि किसान जबरिया आंदोलन कर रहे थे। उनके पास धरना देने का परमीशन नहीं था। पुलिस ने जब किसानों की गिरफ्तारी की तो केराकत के विधायक तूफानी सरोज, मछलीशहर से इंडिया गठबंधन की प्रत्याशी प्रिया सरोज, कांग्रेस जिलाध्यक्ष राजेश्वर पटेल, उपाध्यक्ष राजीव राम समेत कई नेता फूलपुर थाने पर पहुंचे और किसानों को रिहा करने की मांग उठाई। प्रिया सरोज ने फूलपुर पुलिस इंसपेक्टर को अर्जी दी, लेकिन दो किसानों को धारा 151 में चालान कर जेल भेज दिया गया।

किसानों की गिरफ्तारी की सूचना ग्रामीणों को मिली तो तमाम महिलाएं और पुरुष पिंडरा तहसील पर पहुंच गए और उनकी रिहाई की मांग करने लगे। पुलिस के कड़े रुख के चलते कुछ किसान लौट गए, लेकिन तीन महिलाएं-निर्मला देवी (पुरा रघुनाथपुर),  प्रभावती देवी व मुन्नी देवी (चनौली बसनी) मौके पर डटी रहीं। पुलिसकर्मी तीनों महिलाओं को थाने पर ले गए और बाद मे उन्हें परिजनों के हवाले कर दिया। बाद में पुलिस ने जबरिया धरना भी समाप्त कर दिया। तंबू-कनात, चौकी, दरी, किसानों की बाइक आदि जब्त कर लिया।

किसानों की गिरफ्तारी के बाद महिलाओं ने थाने को घेरा

काशी द्वारा योजना के विरोध में पिंडरा के आसपास क्षेत्र के दस गांवों के किसान काशी द्वार योजना के लिए अपनी जमीन देने के लिए तैयार नहीं हैं। किसानों का आरोप है कि सरकार कौड़ियों के दाम पर उनकी जमीनें हथिया लेना चाहती है। जब तक यह आवासीय योजना रद्द नहीं होगी, हम आखिरी सांस तक लड़ेंगे। किसानों के सामने अब जमीन बचाने की मजबूरी है।

काशी द्वार भूमि विकास गृह स्थान एवं बाजार योजना के तहत डेढ़ हजार बीघा जमीन का अधिग्रहण किया जाना है। जब किसानों के पास खेत ही नहीं होगा तो खाएंगे क्या?  किसान जन्म से मृत्यु तक, पढ़ाई से शादी तक, दुःख से सुख तक खेती के भरोसे रहते हैं।किसानों ने इसी साल 18 जनवरी 2024 को विशाल पदयात्रा निकालकर बनारस के कलेक्टर दफ्तर पर प्रदर्शन किया था और उन्हें मांग-पत्र भी सौपा था।

बनारस की पिंडरा विधानसभा सीट जौनपुर के मछलीशहर लोकसभा सीट का हिस्सा है। यहां से इंडिया गठबंधन की प्रत्याशी प्रिया सरोज ने किसानों से मुलाकात कर उन्हें न्याय का भरोसा दिलाया है। वह कहती हैं, “मैं किसानों के लिए सड़क से लेकर सदन तक लड़ाई लड़ूंगी और जरूरत पड़ी तो सुप्रीम कोर्ट तक जाकर काशी द्वार योजना को रद्द कराऊंगी। दिल्ली में महिला पहलवानों के उत्पीड़न का प्रधानमंत्री के मुंह से एक भी शब्द नहीं निकला। वहीं दिल्ली में किसानों की राह में कांटे बिछाए गए और उन्हें आतंकवादी कहकर संबोधित किया गया। चुनाव बाद इसी तरह का इल्जाम यहां के किसानों के ऊपर भी लगाया जाएगा। मेरे पिता तूफानी सरोज ने विधानसभा में किसानों की आवाज उठाई थी। अगर मौका मिला तो हम किसानों के साथ सड़क से लेकर संसद तक लड़ेंगे।”

किसानों से वार्ता करते मछली शहर के विधायक तूफानी सरोज साथ में इंडिया की लोकसभा उम्मीदवार प्रिया सरोज

योजना का विरोध क्यों?

संयुक्त किसान मोर्चा से जुड़े किसान नेता रामजी सिंह कहते हैं, “उत्तर प्रदेश आवास एवं विकास परिषद ने काशी द्वार योजना के लिए उस इलाके के किसानों की जमीनों के अधिग्रहण की योजना बनाई है जिनकी जोत बहुत छोटी हैं। इस योजना का खाका इस तरह से खींचा गया है ताकि सिर्फ दलित और पिछड़ी जाति के लोग इसके जद में आएं। काशी द्वार योजना के लिए आखिर बड़े किसानों की जमीनों का अधिग्रहण क्यों नहीं किया जा रहा है। जमीनों के छोटे टुकड़े से ही किसानों की आजीविका चलती है। बेलवां गांव में मुसहर और नट समुदाय की जमीनों के अधिग्रहण की योजना क्यों बनाई गई है? “

“प्रशासन ने जिन गांवों में जमीनों के अधिग्रहण की योजना बनाई गई है वहां कई उच्च जातियों के बड़े किसान भी हैं लेकिन उनकी जमीनें जानबूझकर छोड़ दी गई हैं। इससे सरकारी नुमाइंदों की बदनीयती की पता चलता है। बनारस के कलेक्टर इस बात का जवाब दें कि सामंती किसानों की जमीनों को इस योजना में क्यों शामिल नहीं किया गया है? हाईवे के किनारे बड़े किसानों की जमीनें आखिर क्यों अधिग्रहित नहीं की जा रही हैं? पहले से गरीबी झेल रहे लोगों को और गरीब बनाने की यह योजना किसी के गले से नीचे नहीं उतर रही है।”

आंदोलनकारी किसानों प्रेम कुमार नट, अजित कुमार और नंदाराम शास्त्री कहते हैं, “किसान अपनी जमीन कतई नहीं देंगे क्योंकि अधिग्रहण होने के बाद उनके पास एक इंच जमीन नहीं बचेगी। इस योजना से पहले इलाके के तमाम किसानों की जमीनें बाबतपुर एयरपोर्ट के विस्तारीकरण और सांस्कृतिक संकुल लिए अधिग्रहित की जा चुकी हैं। ऐसे में एक ही इलाके में जमीनों का अधिग्रहण न्यायोचित नहीं है। काशी द्वार योजना से प्रभावित किसान अपनी जान दे देंगे, लेकिन जमीन हरगिज नहीं देंगे।”

हजारों किसान प्रभावित होंगे

बनारस में सिर्फ काशी द्वार योजना ही नहीं, आधा दर्जन आवासीय योजनाओं के लिए हजारों एकड़ ज़मीन अधिग्रहित करने के लिए हजारों किसानों को नोटिसें भेजी गई हैं। इसके चलते किसान गुस्से में हैं। काशी द्वार योजना के लिए पिंडरा तिराहे के पास चकइंदर, जद्दूपुर, पिंडरा, पिंडराई, बहुतरा, बसनी, बेलवां, पुरारघुनाथपुर, कैथौली, समोगरा आदि गांवों में ज़मीनों का अधिग्रहण किया जाना है। दूसरी ओर, वैदिक सिटी के लिए सारनाथ के हसनपुर, पतेरवा, सिंहपुर, सथवां और हृदयपुर के किसानों को ज़मीन अधिग्रहित करने के लिए नोटिस जारी किए गए हैं।

आवास एवं विकास परिषद ने वर्ल्ड सिटी के लिए मिर्जापुर, प्रतापपट्टी, रामसिंहपुर, सिंहपुर, बझियां, विशुनपुर, देवनाथपुर, हरहुआ, इदिलपुर,वाजिदपुर में आवासीय योजना का खाका खींचा है। वरुणा विहार एक और दो के लिए रिंग रोड फेज-दो के दोनों तरफ कैलहट, भगतपुर, कोईराजपुर, गोसाईपुर, अठगांवा, लोहरापुर,  गोसाईपुर,  वीरसिंहपुर,  सरवनपुर,  वाजिदपुर,  सहाबुद्दीनपुर, रामसिंहपुर, सिंगापुर, देवनाथपुर, प्रतापपट्टी में ज़मीनों का अधिग्रहण किया जाना है। काशी द्वार हाईटेक आवासीय योजना के लिए दस गांवों की करीब 957 एकड़ ज़मीन, वैदिक सिटी के लिए सारनाथ के आसपास के पांच गांवों की 109 हेक्टेयर (269 एकड़) ज़मीन का अधिग्रहण किया जाना है। दोनों टाउनशिप परियोजना में होटल, रिजॉर्ट, आवासीय भवन, कमर्शियल भवन, शॉपिंग मॉल, कन्वेंशन सेंटर, योग केंद्र के अलावा विभिन्न देशों के धार्मिक स्थल बनाए जाएंगे।

सीपीएम के प्रदेश सचिव डॉ. हीरालाल कहते हैं, “काशी द्वारा योजना, वैदिक सिटी, वर्ल्ड सिटी आदि योजनाओं के जरिये सरकार किसानों को बर्बाद करने पर उतारू है। कई पीढ़ियों से खेती-किसानी कर रहे अन्नदाताओं को बेदखल करना अन्यायपूर्ण और विनाशकारी है। ज़मीन ही किसानों की जीविका और जीवन का मुख्य आधार है। नए भूमि अधिग्रहण कानून के तहत किसानों की ज़मीनों के लिए उचित मुआवज़े की व्यवस्था की गई है, लेकिन सरकारें क़ानून का सही तरीक़े से पालन नहीं कर रही हैं। 35 फीसदी से ज़्यादा भूमि अधिग्रहण के मामले विवादित हैं। उचित मुआवज़ा न देना, जबरन घर ख़ाली कराना, पुनर्वास की व्यवस्था न करना सामान्य बात हो गई है। गांव के लोग जीवकोपार्जन के लिए खेती और पशुपालन पर निर्भर हैं। ऐसे में उनकी चिंता है कि अगर वे अपनी ज़मीनें दे देते हैं तो बदले में सरकार उनका भविष्य कैसे सुरक्षित करेगी? किसानों की सिर्फ जमीनें ही नहीं, उनके आवास भी छीने जा रहे हैं।”

“उत्पादकता में तेजी लाने के दो बुनायादी तरीके हैं। पहला, कृषि को अधिक उत्पादक बनाया जाए और दूसरा, ज़मीन को खेती के अलावा किसी अन्य काम के लिए इस्तेमाल किया जाए। आज़ादी के बाद हमारे देश में विकास की प्रक्रिया इसी नुस्ख़े पर चली। बड़े पैमाने पर सिंचाई और कृषि को आधुनिक बनाने का सरकारी प्रयास किया गया। साथ ही सरकार के नेतृत्व में औद्योगिकीकरण और शहरीकरण का अभियान भी चलाया गया। कृषि को बड़े पैमाने पर आधुनिक बनाने के लिए प्रयास किए गए, जिसमें राज्य की अगुआई में औद्योगिकीकरण और शहरीकरण अभियान भी शामिल है। देश के जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में कृषि क्षेत्र का योगदान 15 फीसदी है, जबकि खेतों में काम करने वालों की संख्या देश के कुल कार्यबल के आधे से अधिक है। बीजेपी सरकार सिर्फ छोटे और सीमांत किसान को उजाड़ रही है, जिससे उन्हें अपने भविष्य की चिंता सता रही है।”

जनता का भरोसा तोड़ रही सरकार

आजमगढ़ में मुंदरी हवाई अड्ड़े लिए भूमि अधिग्रहण के खिलाफ लंबे समय से आंदोलन कर रहे किसान नेता राजीव यादव कहते हैं, “इंडियन एयरलाइंस, कोयला, खनन, रेलवे, बीमा समेत अन्य सार्वजनिक संस्थानों को बेचने पर तुली सरकार जनता का विश्वास खो चुकी है। इसके जमीन छिनने के हर कदम में पूंजीपतियों की दलाली छिपी लगती है। जमीन अधिग्रहण का मामल केवल बनारस और आजमगढ़ में ही नहीं है, बल्कि छत्तीसगढ़, झारखंड, सिलगेर व हसदेव अभ्यारण्य से लेकर पूर्वी उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार के कैमूर में भी चल रहा है। भूमि अधिग्रहण से सबसे अधिक प्रभावित होने वाले भू-मालिकों को ज़मीन की काफी कम क़ीमत मिली। कइयों को तो अब तक कुछ नहीं मिला। ज़मीन के सहारे रोज़ी-रोटी कमाने वाले भूमिहीन लोगों को तो कोई भुगतान भी नहीं किया गया। ज़मीन अधिग्रहण के बदले किया गया पुनर्वास बहुत कम हुआ या जो हुआ वो बहुत निम्न स्तर का था। इस मामले में सबसे ज़्यादा नुकसान दलितों और आदिवासियों को हुआ। ज़मीन हासिल करने की ये व्यवस्था पूरी तरह अन्यायपूर्ण थी, जिसके कारण लाखों परिवार बर्बाद हुए। इस प्रक्रिया ने बुनियादी संरचनाएं, सिंचाई और ऊर्जा व्यवस्था, औद्योगिकीकरण और शहरीकरण से लैस आधुनिक भारत को जन्म दिया।”

राजीव यह भी कहते हैं, “सत्ता में आते ही मोदी सरकार ने एक अध्यादेश जारी कर 2013 में यूपीए सरकार द्वारा लाए गए भूमि अधिग्रहण बिल से ‘किसानों की सहमति’ और ‘सामाजिक प्रभाव के आंकलन’ की अनिवार्यता को हटा दिया। यह रक्षा, राष्ट्रीय सुरक्षा, ग्रामीण बुनियादी संरचनाएं, सस्ते घर, औद्योगिक कॉरिडोर और अन्य आधारभूत संरचनाओं के लिए अधिग्रहण पर लागू कर दिया गया। नए विधेयक में अधिग्रहण के लिए लगने वाले समय में कई साल की कमी कर दी जिससे प्रॉपर्टी बाज़ार में दाम गिर गए। शहरी क्षेत्र के नज़दीक जो ज़मीनें हैं, वहां क़ीमतें आसमान छू रही हैं। बीजेपी सरकार अमीरों के  लिए किसानों की जमीनों का अधिग्रहण कौड़ियों के दाम पर करना चाहती है। डबल इंजन सरकार का यह खेल कोई नया नहीं, सालों से चल रहा है।”

(विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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