ग्राउंड रिपोर्ट: पीएम मोदी की काशी में गंगा घाट पर हर साल सैकड़ों मौतें, अप्रैल से अब तक 25 की मौत, जिम्मेदार कौन?

उत्तर प्रदेश: वाराणसी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट श्री विश्वनाथ कॉरिडोर बनने के बाद से काशी में सैलानियों-श्रद्धालुओं की तादात में जबरदस्त इजाफा हुआ है। कॉरिडोर प्रशासन का दावा है कि आमतौर पर एक लाख से अधिक सैलानी-श्रद्धालु रोजाना काशी विश्वनाथ मंदिर में पहुंच रहे हैं। इसके बाद बड़ी तादात में पर्यटक गंगा स्नान, नाव से गंगा व घाटों की सैर, मनौती और पिकनिक आदि के लिए गंगा घाट का रुख करते हैं।

इनकी भीड़ खासकर अस्सी घाट से लेकर ललिता घाट तक अधिक रहती हैं। कॉरिडोर से एक के बाद एक लगे इन्हीं घाटों का वैज्ञानिक तरीके से मरम्मत और श्रद्धालुओं के सुरक्षा की दृष्टि से अपडेट नहीं किये जाने से गंगा में आए दिन लोगों के डूबकर मरने की घटनाएं होती रहती हैं।

टूटती सीढ़ियां और गहराई से बेखबर स्नान करते पर्यटक

हाल के महीनों में गंगा में डूबकर होने वाली मौतों के बढ़े आंकड़ों से प्रत्येक बनारसी मर्माहत है। वहीं, स्मार्ट शहर वाराणसी में जिम्मेदार महकमों द्वारा नागरिकों की जान बचाने के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं किये जाने से कई सवाल खड़े हो रहे हैं? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी शहर के गंगा घाट पर सिर्फ अप्रैल व मई के आंकड़ों पर नजर डालें तो स्नान करते समय पानी में डूबकर तकरीबन 25 लोगों की मौत चुकी है। जबकि बीते साल 2021 में 110 और 2022 में 130 से अधिक लोगों की जिंदगी गंगा की जलधारा में समा गई थी।

काशी कॉरीडोर का एक दृश्य

मांगी सलामती की दुआ, मिली लाश

06 जून 2023 को परिवार के साथ काशी घूमने आए कर्नाटक के एक पर्यटक की गंगा में डूबने के दौरान मौत हो गई। वहां गंगा स्नान कर रहे लोगों के अलावा दूसरे पर्यटक कुछ कर पाते वह गहरे पाने में जा समाए। मल्लाहों ने जरूर गोता लगाया और उन्हें ढूंढ़ निकालने में सफल भी हुए लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। पर्यटक खूब पानी पी चुका था, जिससे उसकी सांस की डोर टूट गई थी।

टूटती सीढ़ियों पर लगी काई बनती हैं हादसों की वजह

शहर के भेलूपुर थाना क्षेत्र के शिवाला घाट पर मंगलवार की सुबह श्रद्धालु गंगा में आस्था की डुबकी लगा रहे थे। उसी दौरान कर्नाटक के बंगलुरु अंतर्गत वाइल्ड फील्ड निवासी 35 वर्षीय श्रीनिवासन भी स्नान के लिए उतरे थे। स्नान करने के दौरान गहरे पानी में जा समाए। उन्हें डूबता देख लोगों ने शोर मचाया तो मल्लाहों को भनक लगी। फिर क्या था गोताखोर सनी साहनी, राकेश साहनी और अजय साहनी पर्यटक को बचाने के लिए गंगा में छलांग लगा दी।

एक बार डुबकी लगाई तो बहुत देर पानी में रहने के बाद खाली हाथ बाहर आए। दूसरी डुबकी लगाई तो श्रीनिवास को अचेत स्थिति में लेकर बाहर खींच लाए, उन्हें चेतना में लाने का खूब प्रयास हुआ, लेकिन वह उठ नहीं पाए। दरअसल, उनकी मृत्यु हो चुकी थी। इस दौरान अटकी सांसों से पति के सलामती की मां गंगा से दुवाएं मांग रही पत्नी सच्चाई जानते ही चीख पड़ीं। बहरहाल, जल पुलिस, नगर निगम और एमडीआरएफ का दावा है कि गंगा घाट, स्नान और पूजा-पाठ के लिहाज से सेफ है। जबकि, गंगा में डूबकर मरे हुए व्यक्तियों के आंकड़ें प्रशासनिक विफलता की कहानी कह रहे हैं।

अप्रैल से अब तक के मौत के आंकड़ें (2023 )- तुलसी घाट- 05, दरभंगा घाट- 03, दशाश्वमेध घाट- 02, अस्सी घाट- 03, ललिता घाट- 06, शिवाला घाट- 02, चेतसिंह घाट- 02, मार्कंडेय घाट- 01,मीरघाट-01

काशी विश्वनाध कॉरीडोर का गंगा द्वार गेट

कब-कब गई श्रद्धालुओं की जान (2023)

10 जून को मीरघाट और मार्कंडेय महादेव घाट में दो श्रद्धालुओं की मौत।

06 जून को शिवाला घाट पर गंगा स्नान के दौरान बंगलुरु के वाले पुरुष श्रद्धालु की मौत।

04 जून को रैपुरिया घाट पर स्नान के दौरान दो युवकों की डूबकर मौत हो गई, जबकि तीन अन्य को बचा लिया गया।

02 जून को कैथी घाट पर स्नान के दौरान एक युवक की डूबकर मौत हो गई।

28 मई दरभंगा घाट पर स्नान के दौरान एक युवक की डूबकर मौत हो गई। एनडीआरएफ के जवानों ने शव को बाहर निकाला।

27 मई चौबेपुर बर्थारा घाट पर नहाने गए चार दोस्त गंगा की तेज धारा में बह गए। इनमें से तीन की डूबकर मौत हो गई।

26 मई तुलसी घाट पर मोबाइल से रील बनाने के चक्कर में आजमगढ़ के दो युवकों की गंगा में डूबकर मौत हो गई।

08 अप्रैल शिवाला घाट पर गंगा स्नान करने आए बिहार के युवकों की डूबकर मौत हो गई।

साबून प्रतिबंधित होने पर भी खुलेआम स्नान करता युवक

राजघाट पर श्रद्धालु और सैलानियों को नौकायन कराने वाले “राजू साहनी इस बात से नाराज हैं कि गंगा स्नान करने वाले श्रद्धालुओं को लेकर सरकार और प्रशासन कतई गंभीर नहीं हैं। साहनी कहते हैं, “बनारस में गंगा घाट पर स्नान, दाह-संस्कार, बोटिंग के लिए आने वाले यात्री सुरक्षित नहीं हैं। लोगों को डूबने से बचाने की जिम्मेदारी जल पुलिस की है, लेकिन वो कहीं भी पेट्रोलिंग करती नजर नहीं आती। बल्कि वे जहां-तहां समय काटते हैं। यही वजह है कि गंगा में डूबकर होने वाली मौतों के आंकड़े लगातार बढ़ते जा रहे हैं। यह स्थिति काफी गंभीर और चिंताजनक है। मोदी-योगी की सरकार को चाहिए कि वो गंगा के किनारों पर सुरक्षा जंजीर लगाए ताकि लोग उसके सहारे स्नान-ध्यान कर सकें।”

ना कहीं चेतावनी बोर्ड और ना ही जंजीर की व्यवस्था

स्मार्ट शहर के बदहाल घाट

राजघाट पर गोताखोरी करने वाले दुर्गा माझी कहते हैं, “बनारस के सारे के सारे घाट पोपले हो गए हैं। बनारस भले ही स्मार्ट हो रहा है लेकिन घाटों की अंदरूनी हालत बेहद जर्जर हो चुकी है। जिस तरह से गंगा में अवैध खनन हो रहा है, उसका असर घाटों पर पड़ रहा है। पिछले साल बालू-रेत के लिए नहर खोदी गई थी, जिसका असर यह हुआ कि गंगा ने घाटों को अंदर तक पोपला बना दिया। यही वजह है कि आए दिन नहाने वालों की मौतें हो रही हैं और इसकी चिंता सरकारी नुमाइंदों को कतई नहीं है। हम दशकों से गोताखोरी करते आ रहे हैं। इस तरह के दृश्य पहले नहीं दिखते थे। रामनगर से राजघाट के बीच अब आए दिन लोगों के डूबने और मरने की खबरें आ रही हैं।”

मानवता को बचाने के लिए उतरते हैं

दुर्गा आगे कहते हैं “हाल के दिनों में जो मौतें हो रही हैं वो डूबने से नहीं बल्कि नहाते समय पोपले घाटों के अंदर घुस जाने की वजह से हो रही हैं। ऐसी लाशें न पुलिस निकाल पाती है और न ही एनडीआरएफ के जवान उन्हें बचा पाते हैं। जब ये मृतकों को गंगा से नहीं निकाल पाते हैं तब पुलिस हमारे दरवाजों पर दस्तक देती है। मानवता के चलते हमें गंगा की भंवर में उतरना पड़ता है।

हमारी मुश्किल यह है कि किसी भी सरकार ने गोताखोरों को आज तक न तो लाइसेंस दिया और न ही कभी सम्मानित करके हमारा हौसला बढ़ाया। हम राजघाट पर गोताखोरी करते हैं। यह बनारस का ऐसा घाट है जहां प्रायः लोग सुसाइड करने के लिए पुल से कूद जाते हैं। ऐसे लोगों को हमीं लोग बचा पाते हैं। पुलिस के पास ऐसी कोई एक भी कहानी नहीं है जो इस बात को तस्दीक करे कि जवानों ने किसी डूबते इंसान को बचाया हो।”

घाट किनारे गंगा में बन रहे भंवर चैंबर्स 

बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में महामना मालवीय गंगा शोध केंद्र के चेयरमैन और प्रख्यात गंगा विशेषज्ञ प्रो.बीडी त्रिपाठी “जनचौक” से कहते हैं कि “बनारस की गंगा की फिजियोग्राफी और बहाव में काफी बदलाव आ गया है। गंगा के इकोसिस्टम और बहाव में कुछ फर्क महसूस किया जा रहा है। घाट किनारे गंगा में भंवर चैम्बर्स बन गए हैं, जो सैलानियों की जान और मल्लाहों की पतवार के लिए खतरनाक है। घाट किनारे गंगा में कहीं सिल्ट है तो कहीं 15 फीट से अधिक गहरा पानी। जो लोग तैरना नहीं जानते वो तो सतर्क रहते हैं, लेकिन जिन्हें तैरना आता है वो गफलत में डूब जाते हैं। तैराकों की भी पता नहीं होता कि घाट किनारे गंगा में रेत के गड्ढे और पानी के भंवर धोखे से जान लेते हैं।”

वाराणसी में ‘गंगा बचाओ अभियान’ से जुड़े और आरटीआई एक्टिविस्ट डॉ. अवधेश दीक्षित बताते हैं, “बनारस में गंगा दक्षिण से उत्तर दिशा में बहती है। शहर किनारे पक्के घाट होने की वजह से पानी काफी देर तक घाटों से टकराकर दोबारा धारा में जा मिलता है। इसमें से भी कुछ पानी जल तरंग की वजह से गंगा में खतरनाक भंवरों को जन्म देता है। इन भंवरों का दायरा करीब 22 फीट में होता है। कम पानी के धोखे में यदि कोई भंवर में फंस गया तो बच पाना मुश्किल होता है। सरकार का हाल यह है कि वो गंगा में डूबने वाले लोगों के परिजनों को न कोई राहत देती है और न ही सुरक्षा का कोई पुख्ता बंदोबस्त कर रही है।”

सावधानी के लगाएं गंगा में डुबकी

बनारस आया कोई भी सैलानी जिसे अच्छे से तैरना नहीं आता हो, वह गंगा में स्नान करने से बचें। रेत टीले के भ्रम में खुली गंगा में छलांग मारने से बचें। स्नान और पूजा-पाठ के लिए लोग घाट पर स्नान करें। घाट छोड़ पानी में नहीं उतरें। अपने साथियों और दोस्तों की निगरानी में स्नान करें। गंगा नदी में फ्रेंड्स से शर्त लगाकर एडवेंचर, मोबाइल रील्स, स्नान और सर्फिंग से बचें। नहाने के दौरान धक्का-मुक्की नहीं करें। किसी भी अप्रिय हालात में घाट किनारे लोगों और मल्लाहों को तुरंत सूचना दें। इसमें पुलिस की भी मदद ले सकते हैं।

गंगा के जलस्तर पर एक नजर

10 जून 2023 को गंगा का जलस्तर- 58.53 मीटर।

वार्निंग लेवल जलस्तर- 70.26 मी।

डेंजर लेवल जलस्तर- 71.26 मी।

बाढ़ लेवल जलस्तर- 73.90 मी।

गंगा नदी में नाले का मिलता गंदा सीवर

आखिर कब थमेगा मौतों का सिलसिला?

गंगा में श्रद्धालु-सैलानियों के डूबने का क्रम बदस्तूर जारी है। एक हाल के आंकड़े पर गौर फरमाएं तो युवाओं, श्रद्धालुओं, यात्रियों समेत करीब करीब 23 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। स्थानीय लोग भी इस हादसे से मर्माहत हैं। उनकी जुबां से एक ही बोल फूट रहे थे कि आखिर अस्थायी बैरिकेडिंग या बचाव की कुछ अन्य व्यवस्थाएं कब की जाएगी। कितने और जान चली जाने के बाद के बाद जिम्मेदारों की तंद्रा टूटेगी?

क्या कहते हैं जिम्मेदार

काशी जोन के डीसीपी आरएस गौतम कहते हैं कि “जिस घाट पर सीढ़ियां नहीं हैं या डूबने की घटनाएं होती है। यहां बोर्ड लगाकर लोगों को अलर्ट किया गया है। जल पुलिस लगातार गंगा में गश्त करती है। समय-समय पर पुलिस भी पेट्रोलिंग कर सुरक्षा व्यवस्था का जायजा लेती है।

(वाराणसी से पवन कुमार मौर्य की रिपोर्ट। )

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