पुरोला, उत्तराखंड। करीब 22 दिनों के अवरोध के बाद पुरोला से अच्छी खबर है। तथाकथित लव जिहाद की घटना के बाद बंद कर दी गई अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों की दुकाने 17 जून को पुलिस की कड़ी निगरानी के बीच खोल दी गई हैं। 5 जून को पुरोला के एसडीएम इस समुदाय के लोगों की शिकायत तक गंभीरता से सुनने को तैयार नहीं थे। लेकिन 16 जून को उन्होंने न सिर्फ इस मामले पर गंभीरता दिखाई, बल्कि लोगों को यह भी आश्वासन दिया कि उनकी सुरक्षा के लिए सभी बंदोबस्त किये जाएंगे। हालांकि 17 जून को अल्पसंख्यक समुदाय की लोगों की सिर्फ 6 दुकान ही खुल पाई हैं। बाकी दुकानदार या तो दुकानों पर ताला लगाकर या फिर सामान समेटकर पुरोला छोड़कर चले गये हैं। आने वाले दिनों में कुछ और लोगों के वापस आकर दुकानें खोलने की उम्मीद जताई गई है। लेकिन, जिन लोगों से मकान मालिकों ने दुकानें खाली करवा दी हैं, उनका वापस लौटना अब मुश्किल लग रहा है।
अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों की दुकानें खुल जाने की सूचना के बाद जनचौक एक बार फिर पुरोला पहुंचा। पुरोला बाजार में हमेशा की तरह चहल-पहल है, लेकिन पहले जहां दूर-दूर तक पुलिस नहीं दिखती थी, वहां अब थोड़ी-थोड़ी दूरी पर पुलिस तैनात है। पुलिस लगातार बाजार में हो रही गतिविधियों के वीडियो बना रही है। देहरादून और ऊधमसिंह से भारी संख्या में यहां पीएसी के जवान बुलाये गये हैं। बाजार में किसी तरह को कोई तनाव कहीं भी नजर नहीं आया। पता चला कि फिलहाल अल्पसंख्यक समुदाय के सिर्फ उन्हीं लोगों ने अपनी दुकाने खोली हैं, जो 26 मई की घटना और 28 मई को किये गये प्रदर्शन और दुकान पर पोस्टर चस्पा किये जाने के बावजूद पुरोला छोड़कर नहीं गये थे। जो 43 दुकानदार पुरोला छोड़कर चले गये हैं, वे वापस लौटेंगे या नहीं, इस पर असमंजस बना हुआ है। इन 43 दुकानदारों में 7 ऐसे भी हैं, जिन्हें मकान मालिकों ने मकान खाली करने के लिए कहा था और वे अपना सामान समेटकर चले गये हैं।
पुरोला के कुमौला रोड पर बाले खां क्लाथ हाउस है। यह पुरोला की सबसे पुरानी कपड़े ही दुकान बताई जाती है। बाले खां ने करीब 50 वर्ष पहले बिजनौर से पुरोला आकर यह दुकान खोली थी। वे अब भी दुकान पर बैठते हैं, लेकिन दुकान मुख्य तौर पर उनके बेटे मोहम्म्द अशरफ चलाते हैं। दुकान खुली हुई मिली। कुछ दूरी पर करीब आधा दर्जन पुलिसकर्मी ड्यूटी दे रहे हैं। दुकान पर कुछ स्थानीय लोग मौजूद हैं। जो इसी घटना के बारे में अशरफ से बातचीत कर रहे हैं। बातचीत का माहौल सौहार्द्रपूर्ण है और आश्वस्त करने वाला भी। हमारे दुकान भी घुसते ही दो पुलिसकर्मी अंदर आ जाते हैं और सामान्य बातचीत होती देख वापस चले जाते हैं।
लोग लगातार अशरफ की दुकान पर आ रहे हैं और उनसे हालचाल पूछ रहे हैं। पास के गांव के रहने वाले नारायण सिंह (असली नाम नहीं बताया) दुकान में घुसते हैं और सामने के काउंटर पर बैठे अशरफ के पिताजी बाले खां से ठिठौली करने लगते हैं। उसके बाद अशरफ के काउंटर पर आकर मिलते हैं। अशरफ शिकायत करते हैं कि इतने दिन में एक बार खबर तक नहीं ली। क्या हमारे मरने का इंतजार कर रहे थे? नारायण सिंह शिकायत दूर करने का प्रयास करते हैं। समय न होने की बात कहते हैं। यह भी कहते हैं कि आज भी बाजार आने का टाइम नहीं था। किसी के अंतिम संस्कार में आया था तो मिलने चला आया।
जनचौक के साथ बातचीत में अशरफ ने बताया कि उन्होंने सुबह दुकान खोली थी। लोग लगातार आ रहे हैं। खरीदारी करने भी और मिलने भी। उनके प्रति किसी के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया है। हालांकि उन्होंने इस बात अफसोस जताया कि कुछ ऐसे लोग हैं, जिन्हें वे अपना नजदीकी समझते थे, 28 मई के प्रदर्शन में वे नारे लगाते वीडियो में नजर आ रहे हैं। अशरफ के अनुसार व्यापार मंडल और अन्य लोग लगातार यह बात कह रहे थे कि मुस्लिम दुकानदारों को किसी ने जाने के लिए नहीं कहा है। अशरफ के अनुसार वास्तव में ऐसा किसी ने कहा भी नहीं था। दुकानों पर पोस्टर जरूर लगाये गये थे। उन्होंने खुद ही डर के मारे दुकानें बंद कर दी थी।
अशरफ के अनुसार 16 जून को वे लोग फिर एसडीएम से मिले और उन्हें सुरक्षा संबंधी पत्र दिया। व्यापार मंडल से भी उन्होंने अपील की कि वह उन्हें पहले की तरह अपने परिवार का सदस्य मानें। प्रशासन और व्यापार मंडल से आश्वासन मिलने के बाद, 5-6 लोग यहां थे, उन्होंने अपनी दुकानें खोल दी हैं। किसी तरह की कोई परेशानी नहीं हो रही है। अशरफ से पूछा गया कि कई लोगों को शिकायत है कि जब लव जिहाद के आरोपी युवक के खिलाफ प्रदर्शन किया जा रहा था तो मुस्लिम समुदाय के दुकानदारों ने साथ नहीं दिया।
इस पर अशरफ का कहना था कि यदि प्रदर्शन में नारे आरोपी के खिलाफ लगाये जा रहे होते तो वे जरूर शामिल होते, लेकिन नारे तो पूरे मुस्लिम समुदाय के खिलाफ लगाये जा रहे थे। मुसलमानों को पुरोला से भगाने के नारे लग रहे थे। ऐसे में यदि मुस्लिम समुदाय के दुकानदार इस प्रदर्शन में शामिल होते तो उनके साथ मारपीट हो सकती थी, इस डर से वे प्रदर्शन में नहीं गये। अशरफ कहते हैं कि गलत काम करने वालों को कड़ी से कड़ी सजा देने के मांग वे लगातार कर रहे हैं।
मोरी रोड पर मोहम्मद सलीम उर्फ बबलू ने भी अपना हेयर कटिंग सैलून खोल दिया है। सलीम ने बताया कि देहरादून में पढ़ाई कर रही बेटी की तबीयत खराब होने के कारण वे देहरादून गये थे। अभी लौटकर दुकान खोली है। दुकान खोलते ही दर्जनों लोग यहां पहुच गये हैं। मिलने-जुलने के दौर के बीच सलीम कस्टमर को निपटाने में भी जुटे हुए हैं।
हिन्दू समुदाय के कुछ लोगों ने हमसे शिकायत की थी कि मुस्लिम समुदाय के लोग गुड्डू, बबलू और इसी तरह के अन्य नाम रखकर हिन्दू बनकर यहां रह रहे हैं। हमने यह सवाल बबलू नाम से पुकारे जाने वाले मोहम्मद सलीम से पूछा। सलीम का कहना था कि उनका जन्म पुरोला में ही हुआ है। मां-बाप ने उनका नाम सलीम रखा था। बबलू नाम तो यहां के हिन्दू दोस्तों ने दिया। सभी दोस्त उन्हें बबलू के नाम से ही जानते और पुकारते हैं। बचपन से आज तक किसी ने बबलू नाम पर आपत्ति नहीं की, अब लोग इस पर सवाल उठा रहे हैं।
ब्यूटी पार्लर चलाने वाली तसनीम ने भी 17 जून की सुबह अपना पार्लर खोल दिया। जब हम वहां पहुंचे उनके पास चार महिला कस्टमर मौजूद थी। हमने तसनीम से बात करने का अनुरोध किया तो उन्होंने कहा कि इन लोगों को देर हो जाएगी। हमने काम करते-करते बात करने का अनुरोध किया तो तसनीम तैयार हो गई। उन्होंने कहा कि पुरोला के लोगों साथ उनके संबंध पहले भी अच्छे थे, आज भी अच्छे हैं। हाल की घटनाओं से यदि लोग नाराज होते तो दुकान खुलने की सूचना मिलते ही ये सब महिलाएं यहां नहीं आती। तसनीम का मानना है कि बाहर से आकर कुछ लोगों ने ये सब किया है। हालांकि वे यह भी कहती हैं कि हो सकता है कुछ स्थानीय लोग उनके बहकावे में आ गये हों।
मोरी रोड पर हमें व्यवसायी चन्द्र भूषण बिजल्वाण मिले। उनसे हमने क्षेत्र में विभिन्न जन समस्याओं को लेकर बातचीत की। उनका कहना था कि सरकार लगातार प्रयास कर रही है। उन्होंने अस्पताल में सुविधाओं की कमी की बात मानी। यह भी कहा कि एंबुलेंस एक ही है लेकिन काम चल जाता है। बिजल्वाण के अनुसार सरकार एक साथ सब कुछ नहीं कर सकती, लेकिन लगातार प्रयास कर रही है। पुरोला में हुई घटना के बारे में उनका कहना था कि यहां हर समुदाय के लोग रहते हैं। साथ ही सवाल किया कि इस तरह की बातें सिर्फ एक समुदाय को लेकर ही क्यों हो रही हैं।
एक अन्य दुकानदार ने अपना नाम उजागर न करने की शर्त पर बताया कि कुछ समय पहले पुरोला में एक भागवत कथा हुई थी। इनमें हिस्सा लेने देहरादून से एक स्वामी जी आये थे और उन्होंने कथा के बीच ‘जहरीला’ भाषण दिया था। दुकानदार की मानें तो उसी दिन से पुरोला में हिन्दू-मुस्लिम के बीज पड़ गये थे, जो आखिरकार इस घटना के रूप में सामने आये हैं। उनका कहना था कि जिन लोगों ने अपराध किया है, उनके खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए। लेकिन इसके लिए पूरे समुदाय के खिलाफ मुहिम चलाना गलत है।
बर्तन की दुकान वाले व्यवसायी दीपक कुमार जैन का कहना था कि सभी लोगों को मिलजुल कर रहना होगा। इस तरह की प्रदर्शन और किसी समुदाय विशेष के लोगों को चले जाने की बात कहना कोई अच्छी बात नहीं है। ऐसा कहने का किसी को अधिकार भी नहीं है। दीपक कुमार जैन के अनुसार यह खुशी की बात है कि मुस्लिम समुदाय के कुछ लोगों ने अपनी दुकानें खोल दी हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि बाकी लोग भी जल्दी अपनी दुकानें खोल देंगे और पुरोला में फिर पहले जैसा आपसी भाईचारे का माहौल बनेगा।
पुरोला बाजार में भारत ज्ञान-विज्ञान समिति के विजय भट्ट, इद्रेश नौटियाल और हिमांशु चौहान मिले। वे अपनी समिति की ओर से स्थिति का जायजा लेने के लिए पुरोला आये थे। पूछने पर विजय भट्ट ने बताया कि पुरोला में स्थिति अब सामान्य हो रही है। हालांकि उनका कहना है ऐसे कुछ स्थानीय लोग हैं, जो नफरत परोस रहे हैं, वे किसी खास संगठन या उसने नेताओं से जुड़े हुए और पार्टी विशेष के लोग हैं। उनका मानना है कि ज्यादातर स्थानीय लोग सौहार्द्र और भाईचारा चाहते हैं।
(पुरोला से लौटकर वरिष्ठ पत्रकार त्रिलोचन भट्ट की रिपोर्ट।)