वाराणसी, उत्तर प्रदेश। बनारस में गंगा नदी, घाट, पहलवानी, खानपान, रेशमी साड़ी, सारनाथ प्राचीन बुद्ध विहार, स्तूप, मूलगंध कुटी विहार, श्री काशी विश्वनाथ मंदिर, जैन मंदिर, लाल गिरजाघर, मस्जिद, अस्सी घाट, मणिकर्णिका घाट, गोदौलिया, मैदागिन, लंका के आदि इलाके बेहद प्रसिद्ध हैं। बनारस की एक खास बात और है कि इसे गलियों के शहर के तौर भी जाना जाता है।
गंगा के पश्चिमी तट पर बसे घाट से लगी हुई गलियां काशी को प्राचीन और ऐतिहासिक स्वरूप प्रदान करने में अहम् भूमिका निभाती हैं। इन गलियों से स्थानीय लाखों नागरिकों के अलावा रोजाना लाखों की तादात में देश के कोने-कोने से आये देसी और विदेशी सैलानी गुजरते हैं। कालांतर में ये सैकड़ों गलियां साल 2014 के बाद ‘क्योटो’ में शामिल हो गईं।
काशी मॉडल में इन्हें भी गाहे-बगाहे सजाया-संवारा गया। ये स्मार्ट वाराणसी का अभिन्न हिस्सा भी हैं। बनारस आने वाला हर देसी-विदेशी सैलानी इन्हें एक नजर निहारने को आतुर रहते हैं, जो शहर में ऑटो, पैडल रिक्शा से इन स्थानों तक पहुंचने के लिए जुस्तजू करते देखे जा सकते हैं। कुछ इतने जुनूनी होते हैं कि पैदल ही निकल पड़ते हैं।
गलियों में मुसीबत के मारे लोग
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में अक्सर वीआईपी और वीवीआईपी के आने-जाने की झड़ी लगी रहती है, बावजूद इसके बनारस शहर के मुख्य मेन सड़कों को छोड़ कर, जैसे ही इन सड़कों से उतरकर गली-मोहल्ले, कॉलोनियों और इनको जोड़ने वाली सड़कों से आपका सामना होगा तो आपके कंठ से बरबस ही निकल पड़ेगा, तो ये है काशी मॉडल के एक पहलू का असली सच। काशी की गलियां बदहाल हैं, बिजली के तार जाल माफिक सिर पर लटक रहा है, कहीं सीवर उफन रहा है, कहीं गलियों में बिछे चौक बेतरतीब उखड़ा व पड़ा हुआ है, सैलानी आवारा कुत्तों व बेसहारा गायों से बचते-बचाते अपने गंतव्य को जाते दिख रहे हैं, क्राउड मैनेजमेंट कायदे से न होने से गली-तिमुहानी पर घड़ी-घड़ी में जाम लगना स्वाभाविक सी बात है, जगह-जगह गड्ढे खोद दिए जाने से रास्ता संकरा हो गया है, कई स्थानों पर साफ-सफाई नहीं होने से बदबू, कूड़े के ढेर और दीवारों पर पान की पीक से आदि दिक्कतों से लोग परेशान हो उठते हैं।
इन समस्याओं का तकरीबन एक दशक से स्थायी निदान नहीं होने से लोगों की इन परेशानियों से दो-चार होना इनकी नियति बन गई है। विगत चार-पांच महीनों से आधा दर्जन गलियों में पेयजल की भी किल्लत है। स्थानीय नागरिकों ने बताया कि “इन समस्याओं से अवगत कराने के बाद भी सुधार नहीं किया जा रहा है, लिहाजा, सरकारी दस्तावेजों में स्मार्ट कही जाने वाली काशी की गलियों में मुसीबतों के बीच जीने व चलने को विवश हैं।
छोटे-मोटे एक्सीडेंट आम बात
बनारस में गंगा नदी और घाट से महज पांच मिनट की दूरी पर बंगाली टोला इंटर कॉलेज में रोड की गली में पांडेय हवेली मोहल्ला स्थित है। शनिवार की दोपहर में आसमान में बादल तो थे, लेकिन कई दिनों से बारिश नहीं होने से उमस का माहौल है। इस मोहल्ले पीढ़ियों से रहते आ रहे पचपन वर्षीय सोनू यादव को अपने दुकान के ठीक बगल में गंगा घाट, तिलभांडेश्वर, हरिश्चंद्र घाट, सौशिवालिक मंदिर और केदारमंदिर आदि जाने वाले बदहाल रास्ते को लेकर चिंतित हैं।
सोनू “जनचौक” से कहते हैं कि ” देखिये गली का हाल ! रोजाना कम से कम तीस से पैंतीस हजार से अधिक सैलानी-श्रद्धालु और हजारों स्थानीय नागरिकों का आना-जाना दिन-रात चौबीसों घंटों लगा रहता है। स्कूल के छोटे-छोटे बच्चे, वृद्ध महिला-पुरुष, रिक्शा वालों, सैलानी और पब्लिक का छोटा-मोटा एक्सीडेंट आम बात हो गया है। इस गली से दक्षिण भारत के सैलानियों का गुजरना अधिक होता है। कमीशनखोरी कर काम किये जाने के चलते शिकायत करने पर कोई सुनवाई भी नहीं होती है।”
मिलती है आश्वासन की हवापट्टी
सोनू आगे कहते हैं कि “गली में बिछाये गए इस चौक से पुराने वाले छोटे-छोटे पत्थर ही अच्छे थे। तब ये ही नहीं आसपास के गली-मुहल्लों की गलियां अच्छी कंडीशन में थी। लेकिन, जाने क्या सनक सूझी, जो अच्छी-खासी गली को उखाड़ कर नए सिरे से बिछाया गया? इसके बाद तो गली का स्वरूप ही बिगड़ गया है। आये दिन कहीं न कहीं के चौक उखड़े ही रहते हैं। इससे हम लोगों को आवागमन में बहुत दिक्क़त होती है। रात के समय में कई बार चुटहिल भी हो जाता हूं। सभासद से शिकायत और बनवाने के लिए कहने पर वह आश्वासन की हवापट्टी देकर चले जाते हैं।”
पेयजल की किल्लत से परेशान
थोड़ी दूरी पर देवनाथपूरा 22\7 मोहल्ले में भी नागरिक समस्यों को लेकर परेशान दिखे। स्थानीय प्रहलाद साहनी ने बताया कि “देवनाथपूरा, गंगा महल, पांडेय हवेली, शिवनाथपुरा आदि मोहल्लों में दस हजार से अधिक परिवार रहते हैं। इन मुहल्लों में पेयजल की किल्लत विगत चार महीनों से बनी हुई है। जल निगम के नल में पानी नहीं आता है। लोग अपने बोर और नल में टुल्लू पंप लगाकर किसी तरह से पानी की व्यवस्था करते हैं। लेकिन इन्हीं मुहल्लों में कई ऐसे हैं जो जल निगम और हैंडपंप के भरोसे हैं। लिहाजा, पेयजल की किल्लत होने से हम लोगों की जिंदगी पहाड़ हो गई है। मेरे और आसपास के मोहल्ले में कुछ साल पहले तक लगभग आठ-दस हैंडपंप थे। जिनकी मरम्मत और देखभाल नहीं होने से सभी अब सिर्फ यादों में ही हैं। एक हैंपपंप बचा है, जिसकी मैं खुद देखभाल करता हूं। निगम वालों से हैंडपंप का पक्का चबूतरा बनाने और जल निकासी के लिए कहा। रोजाना सैकड़ों सैलानी और नागरिक इसी हैंडपंप से पानी पीते और भरते हैं।”
आए दिन होती है सीवर ओवरफ्लो की समस्या
लंका, सिर-गोवर्धन, छित्तूपुर, घाट किनारे के लाखों में आये दिन गलियों और सडकों पर सीवर के उफनने की समस्या से लोग परेशान हैं। स्थानीय लोगों की शिकायत के बाद भी अधिकारी कार्रवाई कराने की बात कहकर मामले को टाल देते हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि उन्हें आए दिन सीवर ओवरफ्लो, चौक के उखड़ने, फुटपाथ के टूटने, जर्जर सड़क और बदहाल गलियों की दशा सुधारने के लिए प्रशासनिक अधिकारी इस दिशा में कोई स्थायी समाधान नहीं कर रहे हैं।
प्रशासनिक उदासीनता के कारण बदतर हैं हालत
शहर के सामनेघाट, मारुती नगर, विनायक गली, अपारनाथ मठ, मीर घाट, अस्सी घाट लाहौरी टोला, मणिकर्णिका घाट गली, और ब्रह्मनाल के इलाकों में सीवर ओवरफ्लो होने की स्थिति में कई बार श्रद्धालुओं को इसके पानी में होकर मंदिर परिसर तक जाना पड़ता है। गोदौलिया चौराहे की एक गली के निवासी मुरारीलाल का यह भी कहना है कि ‘भले ही स्वच्छता और विकास के लाख दावे हों पर असल हालत यह है कि प्रशासन की उदासीनता से यहां कई समस्याएं आज भी वैसे के वैसे ही हैं।’
ढाक के तीन पात
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 09 नवंबर 2022 को एक कार्यक्रम में कहा था कि बनारस शहर के इलाकों को खुले में लटकते बिजली के तारों से मुक्त करने का काम किया जा रहा है। जिसका एक चरण पूरा भी हो गया है। बहरहाल, आज की तारीख यानी दो साल बाद भी काशी दर्जनों मुहल्लों और गलियों में बिजली के तारों का जाल दिखता है। कई जगहों पर तो ये बिजली के तार सिर तक लटक कर आ गए हैं। मसलन, इतने वर्षों के बाद भी उखड़ी और जर्जर गलियां, फुटपाथ, लटकते बिजली के तार, सीवर, रंग-रोगन, साफ-सफाई के अभाव में बनारस के गली-मोहल्ले स्मार्ट नहीं हो पाए हैं। बढ़ती आबादी और सैलानियों के तादात की बोझ से अब ये चरमराने लगी है। कई नागरिकों का यहां तक कहना ही कि ‘क्योटो’ बनाने के चक्कर में काशी का पुराना स्वरूप भी चौपट हो गया, जो इससे बेहतर था।
(वाराणसी से पवन कुमार मौर्य की ग्राउंड रिपोर्ट। )