गुजरात की वो सीटें जहां भाजपाइयों को पसंद नहीं है दूल्हा!

देश के अन्य हिस्सों के साथ-साथ गुजरात में भी लोकसभा चुनाव का माहौल है। गुजरात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का होम पिच है। कहें तो ये बीजेपी और नरेंद्र मोदी की नाक है। यहां हार ठीक, मामूली लीड के साथ मिली जीत भी बीजेपी को अप्रिय है। यहां भाजपा को पांच लाख से ज्यादा बहुमत से सभी सीटें चाहिए। गुजरात प्रदेश अध्यक्ष पहले ही गुजरात लोकसभा की सभी 26 सीटें पांच लाख से ज्यादा की बढ़त के साथ जीतने की घोषणा कर चुके हैं। लेकिन इस बार कहीं न कहीं यह टार्गेट हिलता दिख रहा है। 

भाजपा के शीर्ष नेताओं को चिंता में डालने वाली खबरें आ रही हैं। अनुशासन और डैमेज कंट्रोल में माहिर माने जाने वाले बीजेपी के शीर्ष नेता मुश्किल में हैं। बहरहाल इस बार बीजेपी में चल रही अंतर्कलह सतह पर दिख रही है। राम मंदिर से लेकर हिन्दुत्व की लहर व सीएए वगैरह को लेकर भाजपा ने गुजरात में जो माहौल तैयार किया था वह हिलता नजर आ रहा है। बात करेंगे गुजरात की उन सीटों की जहां खुद भाजपाइयों को ही दुल्हा पसंद नहीं है।

गुजरात बीजेपी का गढ़ है। लेकिन इस बार कई सीटों पर उम्मीदवारों के नाम को लेकर विरोध का बवंडर मचा है। विरोध की शुरुआत वडोदरा से हुई, वडोदरा में भारतीय जनता पार्टी ने रंजन बेन भट्ट को टिकट दिया और बवाल हो गया। नतीजतन बीजेपी ने उन्हें हटाकर युवा नेता डॉ. हेमांग जोशी को टिकट दे दिया। भले ही बीजेपी नेता कहें कि हमने डैमेज कंट्रोल कर लिया है। लेकिन सच कुछ अलग है, विवाद की आग तो शांत हो गई दिख रही है, लेकिन धुआं कहीं न कहीं दिख रहा है। यही कारण है कि बीजेपी प्रभारी गोरधन झड़पिया मंगलवार को भागे-भागे वडोदरा पहुंचे और कार्यकर्ताओं और नेताओं से मुलाकात की।

गौरतलब है कि वडोदरा में, वरिष्ठ उम्मीदवार, रंजन बेन भट्ट की जगह एक बहुत ही जूनियर नेता को टिकट दिया गया। वडोदरा बीजेपी के नेता और कार्यकर्ता अभी तक यह नहीं समझ पा रहे हैं कि डॉ. हेमांग जोशी को चुनने के पीछे पार्टी का गणित क्या है? यह भी आश्चर्य की बात है कि पार्टी ने रातों-रात वडोदरा जैसी सीट पर ऐसे व्यक्ति को उम्मीदवार बना दिया, जिसका योगदान पार्टी में जूनियर कार्यकर्ता जितना है। 

ठीक इसी तरह साबरकांठा में ठाकोर उम्मीदवार के चयन के लिए बीजेपी ने साफ छवि वाले भीखाजी ठाकोर को टिकट दिया, उस वक्त यह अनुमान लगाया जा रहा था कि पार्टी सूपड़ा साफ कर देगी, लेकिन बीजेपी ने माइक्रो होमवर्क नहीं किया और पार्टी ठाकोर और डामोर समाज के विवाद में उलझ गई। 

भाजपा ने आनन-फानन में उम्मीदवार तो बदल दिया लेकिन भीखाजी की जगह 2022 में कांग्रेस से आए पूर्व विधायक की पत्नी को रातों-रात प्रत्याशी बना दिया, और वह भी स्थानीय स्तर पर कार्यकर्ताओं को विश्वास में लिए बिना। साबरकांठा जैसे जिले में बीजेपी के कई नाम हैं, एक शिक्षक जो बीजेपी के प्राथमिक सदस्य भी नहीं थे और उन्हें रातों-रात इस्तीफा दिलाकर टिकट दे दिया गया, यह बात कार्यकर्ताओं को ही गले नहीं उतर रही है। अब सवाल ये है कि हालात पर कैसे काबू पाया जाए?

बीजेपी के दिग्गज नेता रूपाला को अमरेली से राजकोट भेजने के बाद दिलीप संघानी और उनके गुट को दरकिनार किया गया और जिला पंचायत के अध्यक्ष भरत सुतरिया को टिकट मिलना अब विवादास्पद हो गया है। स्थानीय कार्यकर्ताओं और नेताओं में नाराजगी है। दिलीप संघानी गुट परेशान है। अब पार्टी के लिए संकट यह है कि इस गुट को दोबारा कैसे मनाया जाए?

सुरेंद्र नगर लोकसभा सीट की बात करें तो यहां बीजेपी ने चुंवालिया कोली समाज के चंदूभाई शिहोरा को उम्मीदवार बनाया है। हाल यह है कि अब तलपदा कोली समुदाय चंदूभाई शिहोरा का कड़ा विरोध कर रहा है। तलपदा कोली समाज ने बीजेपी पर उपेक्षा का आरोप भी लगाया है। इतना ही नहीं अगर बीजेपी ने अपना फैसला नहीं बदला तो समुदाय के नेताओं ने दूसरे दलों से कोली समाज के उम्मीदवार को जिताने की धमकी भी दी है। बात इतनी बढ़ गई कि, इस विवाद को सुलझाने के लिए खुद प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटिल को सुरेंद्रनगर जाना पड़ा। 

सुरेंद्रनगर की यह आग सौराष्ट्र की एक और अहम सीट भावनगर तक पहुंच गई है। यहां चुंवालिया कोली समुदाय ने न सिर्फ तलपदा समाज के खिलाफ हथियार उठाये हैं बल्कि अपने समुदाय के उम्मीदवार को जिताने की धमकी भी दी है। इस तरह इन दोनों सीटों पर बीजेपी बराबर फंसी है। बीजेपी नेताओं को प्रचार छोड़ कर डैमेज कंट्रोल में लगना पड़ रहा है।

इतना कम था कि राजकोट सीट पर अमरेली के नेता पुरुषोत्तम रुपाला को उम्मीदवार बनाया गया। यहां भाजपा आसानी से जीत सके ऐसी अनुमान था परंतु रुपाला ने खुद क्षत्रिय समुदाय के लिए नुकसानदेह बयान दिया और ऐसा विवाद खड़ा हो गया जो थमने का नाम नहीं ले रहा है। मामले को सुलझाने की कोशिश की जा रही है लेकिन यह अब असंभव स्थिति बन गयी है। 

इस नुकसान का असर सिर्फ राजकोट सीट पर ही नहीं, बल्कि जहां भी क्षत्रिय मतदाता हैं, उन पर भी पड़ेगा। विशेष रूप से क्षत्रिय महिलाएं, जो रुपाला की टिप्पणियों को पूरे क्षत्रिय समुदाय के लिए अस्मिता का प्रश्न मानती हैं, मैदान में उतर आई हैं। शीर्ष नेताओं के डर से बीजेपी के क्षत्रिय नेता चुप हैं लेकिन उनमें से कई का मानना है कि, रुपाला का बयान ग़लत है।

लोकसभा चुनाव में मिशन-26 की हैट्रिक के जुनून के साथ दिसंबर से ही अपना चुनावी अभियान शुरू करने वाली बीजेपी के लिए अब अपना गणित बरकरार रखना मुश्किल हो रहा है। बीजेपी की चुनावी रणनीति का गणित पहले चरण में ही गड़बड़ा गया है। अयोध्या में राम मंदिर से लेकर सीएए पर बीजेपी ने जो माहौल बनाया था, वह भी टूट गया है। 

हिंदुत्व की लहर पर सवार होकर गुजरात समेत देश भर में 400 से ज्यादा सीटें जीतकर क्लीन स्वीप करने के पार्टी के एजेंडे को झटका लगा है। बीजेपी का गढ़ माने जाने वाले और सभी 26 सीटों पर पार्टी को पांच लाख वोटों से जिताने के जुनून वाले गुजरात में अब कार्यकर्ताओं की नाराजगी के कारण पार्टी के लिए आधा दर्जन सीटों पर डैमेज कंट्रोल करना मुश्किल हो गया है।

(हसित अध्वर्यु अहमदाबाद में वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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