दिल्ली-चंडीगढ़ राष्ट्रीय राजमार्ग-44 पर 33 घंटे का जाम लगाकर किसानों ने आखिरकार हरियाणा सरकार को सूरजमुखी की फसल खरीदने पर मजबूर कर दिया है। इसके साथ ही 6 जून से गिरफ्तार किसान नेता गुरुनाम सिंह सहित अन्य किसान नेताओं को भी रिहा करने की बात कुरुक्षेत्र जिला प्रशासन ने मान ली है। इस सिलसिले में किसानों की बैठक कुरुक्षेत्र उपायुक्त शांतनु शर्मा से हुई, जिन्होंने किसानों की मांगों पर अंततः सरकारी मंजूरी दे दी।
गुरुनाम सिंह चढूनी की गिरफ्तारी के बाद आंदोलन की बागडोर पश्चिमी यूपी के किसान नेता राकेश टिकैत ने अपने हाथों में ले ली थी। टिकैत ने पत्रकारों से अपनी बातचीत में कहा है कि प्रशासन से बातचीत में सहमति के बाद हम चक्काजाम वापिस ले रहे हैं, और रात में ही हाईवे पर लगा जाम हटा लिया जायेगा। हमारा आंदोलन एमएसपी पर खरीद के लिए था। एमएसपी पर खरीद के लिए हम ऐसे आंदोलन देशभर में करेंगे। जल्द ही हमारे गिरफ्तार किसान नेताओं को रिहा कर दिया जायेगा और उनके खिलाफ लगाये गये मुकदमों को प्रशासन वापिस ले लेगा।
इससे पहले दिन में जब प्रशासन के साथ किसानों की बातचीत का दौर बेनतीजा निकली, तब राकेश टिकैत का कहना था कि ऐसा लगता है कि हमें अपने आंदोलन को और तेज करना होगा और इसे विस्तारित करना होगा। किसानों की मांग तो सिर्फ यही है कि प्रधानमत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों के लिए फसल की जो एमएसपी घोषित की है, उसे उस दाम पर उपज का दाम मिले। लेकिन हरियाणा में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर हैं, जो इसे लागू नहीं कर रहे हैं। किसानों को बदनाम किया जा रहा है कि वे राजमार्ग का चक्काजाम किये हुए हैं, लेकिन न्यूनतम समर्थन मूल्य के बारे में चुप्पी साध लेते हैं।
एमएसपी पर सरकारी खरीद एक सप्ताह तक हरियाणा की खट्टर सरकार ने किसानों की मांग पर कड़ा रुख दिखाते हुए लाठीचार्ज और बड़ी संख्या में किसान नेताओं को हिरासत में लेकर उनके खिलाफ मामला दर्ज किया। लेकिन आखिरकार कल जब किसानों का आंदोलन थमता नहीं दिखा तो केंद्र सरकार द्वारा जारी न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर सूरजमुखी की फसल खरीद को मंजूरी देकर आंदोलनकारी किसानों की मांग को स्वीकार कर लिया है।
किसानों की यह छोटी लेकिन महत्वपूर्ण जीत है। केंद्र सरकार ने इस वर्ष के लिए सूरजमुखी की खरीद पर 6,400 रूपये प्रति क्विंटल भाव तय किया था। लेकिन बाजार में व्यापारी इसके लिए 4,800 रूपये प्रति क्विंटल से अधिक नहीं दे रहे थे। जबकि पिछले वर्ष सूरजमुखी की फसल 6,500 रूपये प्रति क्विंटल पर बिकी थी। इसमें 5-10% वृद्धि की गुंजाइश को देखते हुए किसानों ने फसल बोई थी, लेकिन फायदे के स्थान पर नुकसान पर माल बेचने की स्थिति में उन्हें सड़क की राह चुनने के लिए मजबूर होना पड़ा।
केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित 6,400 रूपये के स्थान पर 4,800 रूपये का भाव भला किसान क्यों मंजूर करे? खट्टर सरकार ने आगामी लोकसभा चुनावों के मद्देनजर राजनीतिक नुकसान को भांपते हुए अंतरिम राहत के तौर पर किसानों को भावान्तर योजना के तहत 1,000 रूपये प्रति क्विंटल देने की हामी भरी। लेकिन इसके बावजूद किसानों को 5,800 रूपये का भाव ही मिल रहा था। भारतीय किसान यूनियन के नेता चढूनी के नेतृत्व में किसानों ने धरना-प्रदर्शन जारी रखा। खट्टर सरकार ने किसानों के आंदोलन को राजनीति से प्रेरित बताकर इसके दमन का फैसला लिया, और चढूनी सहित 30 नेताओं को हिरासत में ले लिया था। उनके खिलाफ दंगा सहित गैरकानूनी गतिविधि में संलिप्त होने का चार्ज लगाया गया है।
इस संबंध में हरियाणा भाजपा के प्रवक्ता प्रवीन अत्री का कहना था, “जहां तक किसानों के मुआवजे का प्रश्न है, हरियाणा में हम सबसे अधिक दे रहे हैं। किसानों के हितों को देखते हुए हमने भावान्तर भरपाई योजना को भी लागू किया हुआ है। लेकिन यह बेहद अफ़सोस की बात है कि किसानों के नाम पर हरियाणा जैसे राज्य में राजनीतिक रोटियां सेंकी जा रही हैं।”
बहरहाल हरियाणा सरकार ने किसानों की मागों पर अड़ियल रुख त्यागकर एमएसपी पर सूरजमुखी की फसल खरीद की मांग को स्वीकार कर लिया है। लेकिन भाजपा-संघ समर्थक इस खबर से बुरी तरह बैचेन हो रहे हैं। उनके मुताबिक सरकार की यह एक बड़ी भूल है, क्योंकि इससे किसानों की वकालत करने वाले इन तथाकथित नेताओं के हौसले और बुलंद हो जायेंगे। अभी 2024 चुनाव से पहले दो फसली सीजन बाकी है, सरकार को और न जाने ये किसान नेता कितनी बार नीचा दिखायेंगे।
उनके तर्कों पर गौर करें तो उनका साफ़ कहना है कि सूरजमुखी का उत्पादन भारत में घाटे का सौदा है, क्योंकि भारत में इसकी पैदावार विदेशों की तुलना में काफी कम निकलती है। आयातित सूरजमुखी तेल भारत की तुलना में बेहद सस्ता है। यदि इसी प्रकार भारत सरकार एमएसपी पर खरीद करती रही तो यह गैर-लाभकारी फसलों के उत्पादन को बढ़ावा देना होगा, और किसान उन उत्पादों का उत्पादन करना जारी रखेंगे। इस प्रकार टैक्स पेयर्स के पैसे की लूट से अलाभकारी खेती को प्रोत्साहन देश की आर्थिक प्रगति में बाधक बना रहेगा।
जबकि असल मामला यह है कि सरकार ने मई माह में सूरजमुखी सहित अन्य तेल के आयात पर लगने वाले सीमा शुल्क एवं कृषि आधारभूत सेस पर 30 जून तक छूट दी हुई है। मिंट अखबार की 11 मई की रिपोर्ट इसका खुलासा करती है। इसके साथ ही फरवरी एवं मार्च माह में भारत ने यूक्रेन से रिकॉर्ड सूरजमुखी तेल का आयात किया है, जो क्रमशः 1.52 लाख टन एवं 2.1 लाख टन है। भारत यूक्रेन से अपनी जरूरत का 80% सूरजमुखी तेल में आयात करता है। रूस से भी भारत का 45,000 टन का करार है। आयातित तेल की कीमत भारत में एमएसपी की तुलना में आधी है। वैसे भी हम इंडोनेशिया और मलेशिया से अपनी तेल की जरूरतों को पूरा करने के लिए पाम आयल का आयात करते हैं।
लेकिन बड़ा सवाल है कि क्या वास्तव में भारत खुद को खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर बनाना चाहता है या उसकी अर्थव्यस्था पश्चिमी एवं अमेरिका की तरह विकसित हो चुकी है, जिसे अब कृषि पर निर्भरता की जरूरत ही नहीं है? या भारत कहीं कुछ घरेलू आयातकों के मुनाफे के लिए देश के भीतर तिलहन एवं दलहन पर अपनी आत्मनिर्भरता को तिलांजलि दे सकता है? भाजपा-आरएसएस समर्थक लॉबी तो फिलहाल इसी दिशा में सोच रही लगती है।
यह तो साफ़ दिखता है कि यदि आयातकों को अबाध आयात की छूट दी जाए तो वे तेल ही क्यों सस्ता डेरी उत्पाद भी लाकर भारत में लाद सकते हैं। सेव की फसल बर्बाद करती हो तो ईरान एवं अन्य देशों से आयात कर 3-4 वर्षों में ही कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के किसानों को घुटनों पर ला सकते हैं। दलहन के मामले में भी यही बात लागू होती है। फिर बड़ा सवाल यह है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) जो आज भी स्वामीनाथन आयोग की सी2+50% सिफारिश पर अक्षरशः नहीं दी जा रही है, उसे भी क्या देश में ईमानदारी से लागू किया जा रहा है?
हरियाणा और पंजाब के किसान इतने जागरूक तो हैं कि वे गेंहू, धान सहित अब सूरजमुखी की फसल के लिए एमएसपी हासिल करने के लिए सरकार को घेर रहे हैं, लेकिन यूपी, बिहार, बंगाल सहित अधिसंख्य राज्यों के किसानों को यदि सरकार मदद न करे या कर्जमाफी न करे तो उनके लिए भारी कर्ज के तले आत्महत्या ही आखिरी उपाय बचता है।
( रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)