ठाकरे गुट की याचिका पर SC में 22 जनवरी को सुनवाई, उद्धव खेमे के 14 MLA को HC का नोटिस

सुप्रीम कोर्ट बुधवार को महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर के उस फैसले के खिलाफ शिवसेना-यूबीटी नेता सुनील प्रभु की याचिका पर 22 जनवरी को सुनवाई करने के लिए सहमत हो गया है, जिसमें कहा गया था कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाला गुट ही “असली” शिवसेना है।

उद्धव गुट की तरफ से सोमवार को दायर याचिका पर पहले 19 जनवरी को सुनवाई तय की गई थी,  हालांकि अब इस पर 22 जनवरी को सुनवाई होगी। उधर बॉम्बे हाईकोर्ट ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे खेमे की अयोग्यता वाली याचिका पर उद्धव ठाकरे खेमे के 14 विधायकों को नोटिस दिया है।

बताया गया है कि उद्धव गुट की तरफ से पेश हुए वकील कपिल सिब्बल ने चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ से मांग की थी कि इस याचिका पर शुक्रवार (19 जनवरी) की जगह सोमवार (22 जनवरी) को सुनवाई हो। इस पर सीजेआई ने हामी भर दी।

चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस मामले को इस शुक्रवार के बजाय अगले सप्ताह सोमवार को सूचीबद्ध करने के लिए उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले गुट की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल के अनुरोध को मान लिया।

उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले शिवसेना गुट ने 15 जनवरी को शीर्ष अदालत में याचिका दायर कर नार्वेकर के फैसले पर सवाल उठाया था, जिसमें कहा गया था कि सीएम शिंदे के नेतृत्व वाला समूह ही असली “शिवसेना” है। इसके पास विधायिका में बहुमत है।

उधर बॉम्बे हाईकोर्ट ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे खेमे की अयोग्यता वाली याचिका पर उद्धव ठाकरे खेमे के 14 विधायकों को नोटिस दिया है। इनके साथ ही महाराष्ट्र विधानसभा के स्पीकर राहुल नार्वेकर को भी नोटिस दिया गया है।

स्पीकर ने उद्धव खेमे के विधायकों की अयोग्यता की अपील को खारिज कर दिया था। शिवसेना के मुख्य सचेतक भरतशेत गोगावले द्वारा दायर एक याचिका पर यह नोटिस जारी किया गया है।

शिंदे खेमे ने बॉम्बे हाईकोर्ट में यह याचिका तब दायर की जब हफ्ते भर पहले विधानसभा स्पीकर राहुल नार्वेकर ने उद्धव ठाकरे खेमे को बड़ा झटका दिया। उन्होंने शिंदे खेमे के साथ ही उद्धव खेमे के विधायकों की अयोग्यता की याचिका को खारिज कर दिया।

अध्यक्ष ने कहा था,  ‘मेरा मानना है कि 21 जून, 2022 को जब प्रतिद्वंद्वी गुट उभरा तो शिंदे गुट ही असली राजनीतिक पार्टी थी। प्रतिद्वंद्वी गुट के उभरने के बाद से सुनील प्रभु पार्टी के सचेतक नहीं रहे। भरत गोगावले को वैध रूप से सचेतक नियुक्त किया गया। एकनाथ शिंदे को वैध रूप से शिवसेना राजनीतिक दल का नेता नियुक्त किया गया।’

इसके साथ ही नार्वेकर ने उद्धव ठाकरे द्वारा वर्तमान सीएम एकनाथ शिंदे को शिवसेना के समूह नेता के पद से हटाने के फैसले को भी पलट दिया। स्पीकर ने यह फ़ैसला शिवसेना के संविधान को आधार बनाकर दिया।

नार्वेकर ने फ़ैसला देने से पहले शिवसेना के संविधान की व्याख्या भी की। उन्होंने 2018 में शिवसेना के संविधान में किए गए संशोधन को मानने से इनकार कर दिया। स्पीकर ने कहा कि शिवसेना का 2018 का संविधान स्वीकार्य नहीं है और चुनाव आयोग में 1999 में जमा किया गया संविधान ही मान्य होगा।

उन्होंने कहा,’प्रतिद्वंद्वी समूहों के उभरने से पहले ईसीआई को आखिरी बार प्रासंगिक संविधान 1999 में सौंपा गया था। मेरा मानना है कि ईसीआई द्वारा विधानसभा अध्यक्ष को दिया गया शिवसेना का संविधान यह तय करने के लिए शिवसेना का प्रासंगिक संविधान है कि कौन सी राजनीतिक पार्टी असली है।’ इसी आधार पर उन्होंने शिंदे खेमे वाली शिवसेना को असली शिवसेना कहा।

इसी को आधार बनाकर शिंदे खेमे ने उद्धव खेमे के विधायकों की अयोग्यता के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका लगाई है। इस पर न्यायमूर्ति गिरीश कुलकर्णी और न्यायमूर्ति फिरदोश पूनीवाला की पीठ ने सभी पक्षों को अपने हलफनामे दाखिल करने का निर्देश दिया और 8 फरवरी के लिए आगे की सुनवाई तय की।

12 जनवरी को दायर गोगावले की याचिकाओं में स्पीकर के आदेश को कानूनी रूप से त्रुटिपूर्ण घोषित करने, इसे रद्द करने और सभी 14 यूबीटी विधायकों को अयोग्य घोषित करने की मांग की गई है।गोगावले का तर्क है कि ठाकरे गुट के सदस्यों ने व्हिप का उल्लंघन किया और स्वेच्छा से शिवसेना की सदस्यता छोड़ दी।

उन्होंने दावा किया है कि उन्होंने सत्तारूढ़ सरकार को गिराने का प्रयास करते हुए कांग्रेस और राकांपा के सहयोग से शिवसेना सरकार के खिलाफ मतदान किया। गोगावले के अनुसार, स्पीकर के आदेश ने गलती से इन दावों को महज आरोप कहकर खारिज कर दिया।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

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