हेमंत सोरेन ने राष्ट्रपति को लिखा पत्र, कहा- मणिपुर में शांति और सद्भाव के लिए हस्तक्षेप कीजिए!

Estimated read time 1 min read

मणिपुर में जारी हिंसा को लेकर झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर हस्तक्षेप करने का आग्रह किया है। पत्र में मुख्यमंत्री ने लिखा है कि आप ही अंतिम उम्मीद हैं। मणिपुर और देश के सामने संकट की इस घड़ी में हम आपको आशा और प्रेरणा के अंतिम स्रोत के रूप में देखते हैं। आप ही इस कठिन समय में लोगों को रोशनी दिखा सकती हैं। अतः इस विकट परिस्थिति में आगे का रास्ता दिखाने, न्याय सुनिश्चित करने और मणिपुर में शांति और सद्भाव सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने की अपील करता हूं।”

मुख्यमंत्री ने लिखा कि हमें अपने साथी आदिवासी भाइयों और बहनों पर हो रहे बर्बर व्यवहार को रोकना होगा। मणिपुर को मरहम की जरूरत है। एक देश के रूप में हमें आगे आकर मदद करनी होगी। पत्र में हेमंत सोरेन ने लिखा है कि दो माह से मणिपुर जल रहा है। बच्चों सहित 40 हजार से अधिक लोग विस्थापित हो गये हैं। कुछ निहित स्वार्थों के मौन समर्थन के साथ यह जातीय हिंसा बेरोकटोक जारी है, जो दुःखद है।

सीएम ने लिखा है कि आदिवासी महिलाओं के साथ जिस तरह से बर्बरतापूर्ण व्यवहार हुआ, वह अत्यंत चिंतनीय और निंदनीय है। इस घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है और भारत के संविधान में देशवासियों को प्राप्त सम्मान के अधिकार को ध्वस्त कर दिया है। ऐसा प्रतीत होता है कि मणिपुर में शांति, एकता और न्याय समाप्त होने के कगार पर है।

सीएम के पत्र पर बीजेपी का पलटवार

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन द्वारा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को लिखे पत्र पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए प्रदेश भाजपा अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने एक अलग राग अलापते हुए कहा कि मुख्यमंत्री थोड़ी और हिम्मत दिखायें और अपने पापों की पोटली भी खोलें। मरांडी ने पूछा कि झारखंड में जो महालूट हुई है, क्या उसकी जांच सीबीआई से कराने के लिए सीएम केंद्र सरकार को पत्र लिखेंगे? संताल परगना में घुसपैठियों ने कब्जा कर लिया है, क्या इस संबंध में जांच के लिए सीएम केंद्र सरकार को कहेंगे? आदिवासी समाज के अस्तित्व को बचाने के लिए क्या एनआरसी का समर्थन करेंगे हेमंत सोरेन? बंगाल में भी एक महिला के साथ दरिंदगी हुई है उस पर कंठ खोलेंगे?

राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने भी अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि मणिपुर की घटना पर हेमंत सोरेन ने राष्ट्रपति को पत्र लिखा है, लेकिन उन्होंने झारखंड की घटनाओं का कोई जिक्र नहीं किया। झारखंड में रुबिका पहाड़िन के दिलदार ने टुकड़े-टुकड़े कर दिये। अंकिता को शाहरुख ने जिंदा जला दिया। दुमका में आदिवासी बच्ची की रेप के बाद हत्या कर पेड़ से लटका दिया गया। साहिबगंज में घर से उठा कर आदिवासी बच्ची से रेप किया गया। क्या झारखंड की बेटियों की चीत्कार हेमंत सोरेन को सुनाई नहीं देती है?

विधानसभा में निंदा प्रस्ताव लाएं मुख्यमंत्री: माले

भाकपा माले के राज्य सचिव मनोज भक्त कहते हैं कि “झारखंड की जनता हेमंत सोरेन से उम्मीद करती है। हेमंत सोरेन को बेझिझक सच बोलना चाहिए। राष्ट्रपति से हस्तक्षेप की मांग का हम समर्थन करते हैं। लेकिन उन्हें वहां की डबल इंजन सरकार की भूमिका पर भी सवाल करना चाहिए। भाकपा माले मांग करती है कि वे विधानसभा के मानसून सत्र में मणिपुर हिंसा के खिलाफ निंदा प्रस्ताव लाएं और साथ ही विधायकों की एक टीम शांति की अपील के लिए मणिपुर भेजें”।

माले राज्य सचिव ने कहा कि “बाबूलाल मरांडी झारखंडी जनता और आदिवासियों के मान-सम्मान के लिए बोलेंगे या उनके हितों के लिए आगे आएंगे, इसकी कोई उम्मीद नहीं है। दूसरी तरफ प्रधानमंत्री मोदी का 79 दिनों तक चुप्पी कोई रहस्य नहीं है। यह भाजपा की संलिप्तता की वजह से है। हिंसक पुरूषों की भीड़ द्वारा निर्वस्त्र महिलाओं के साथ वीभत्स खिलवाड़ के वीडियो से देश में हुए आक्रोश ने प्रधानमंत्री मोदी को चुप्पी तोड़ने पर बाध्य किया है। लेकिन उन्होंने मणिपुर की तुलना बंगाल या राजस्थान के साथ कर मणिपुर हिंसा में राज्य-तंत्र की संलिप्तता पर लीपापोती करने की कोशिश की है। भाजपा के तमाम नेता चाहे बाबूलाल हों या रघुवर दास यही करने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन डबल इंजन की सरकार और खासकर मोदी का खेल मणिपुर में बेनकाब है। वे रंगे हाथों पकड़े जा चुके हैं।”

मरांडी-रघुवर आदिवासी हितैषी नहीं: पीटर बागे

झारखण्ड राज्य मनरेगा कर्मचारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष जॉन पीटर बागे कहते हैं कि मणिपुर की घटना ने पूरे देश को शर्मसार किया है। इससे पूर्व आदिवासी युवक के ऊपर पेशाब करने का मामला सामने आया था। ये कोई नई बात नहीं हैं कि आदिवासी समुदाय को हमेशा से प्रताड़ित किया जाता है। कुछ घटनाएं उजागर हो जाती हैं। पर बहुत सी घटनाएं जो प्रतिदिन की घटना होती हैं लाज शर्म के कारण दब जाती हैं। आज भी सरकारी कार्यालयों में आदिवासी कर्मचारियों को गैर-आदिवासी अधिकारियों द्वारा प्रताड़ित किया जाता है, दुर्व्यवहार किया जाता है, अश्लील हरकतें की जाती हैं।

जॉन पीटर बागे कहते हैं कि मुख्यमंत्री द्वारा राष्ट्रपति से निवेदन करना स्वागत योग्य है। बाबूलाल मरांडी तो आदिवासी समुदाय से आते हैं, उन्हें तो समझ आना चाहिए। रघुवर दास तो गैर-आदिवासी हैं, ये क्या जाने आदिवासियों का दर्द। जब ये मुख्यमंत्री थे तो अपनी मांगों को लेकर आंदोलनरत आदिवासी आंगनबाड़ी सेविकाओं के ऊपर रात में पानी का छिड़काव करवाए थे। जिस आदिवासी ने अपने हक के लिए आवाज उठाने का प्रयास किया, उसके ऊपर केस दर्ज कर हवालात में डालने का काम किया गया। जनता जान गई है ये दोनों आदिवासियों के हितैषी नहीं हैं।

आदिवासी समाज ने मुख्यमंत्री का समर्थन किया

मणिपुर में हिंसा, आगजनी, हत्या, बलात्कार को लेकर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन द्वारा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को लिखे पत्र और भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्रियों के बयान पर राज्य के आदिवासी समाज के लोगों ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने जहां हेमंत सोरेन द्वारा राष्ट्रपति को लिखे पत्र को सराहनीय कदम बताया है वहीं बाबूलाल मरांडी और रघुवर दास पर कई सवाल खड़े किए हैं।

आदिवासी समन्वय समिति, झारखंड के लक्ष्मी नारायण मुंडा ने जहां मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के कदम की सराहना की वहीं बाबूलाल मरांडी के बयान को ओछी राजनीति और बचकानी हरकत क़रार दिया। मुंडा ने कहा कि वैसे भी बाबूलाल मरांडी कुतुबमीनार से कूद चुके हैं और हरिद्वार भी जा चुके हैं। (सनद रहे बाबूलाल मरांडी ने कुछ साल पहले भाजपा में शामिल होने के सवाल पर कहा था कि वे कुतुबमीनार से कूद जाएंगे, हरिद्वार चले जाएंगे लेकिन भाजपा में वापस नहीं जाएंगे) इसलिए वे अपना मानसिक संतुलन खो चुके हैं।

बीएसके कॉलेज मैथन धनबाद की हिंदी विभागाध्यक्ष नीतीशा खलखो हेमंत सोरेन को धन्यवाद देते हुए कहती हैं कि “मणिपुर की घटना पर उन्होंने चिंता व्यक्त करते हुए राष्ट्रपति को पत्र भेजा यह सराहनीय कदम है। वहीं बाबूलाल मरांडी आदिवासी होते हुए भी उनकी आदिवासी के प्रति कोई संवेदना नहीं होना शर्मनाक है। वे दो महीने से लगातार मणिपुर में महिलाओं के साथ हुई हैवानियत पर न बोल कर राजनीति की भाषा बोल रहे हैं। वे अपने भाजपा के मुख्यमंत्री को बचाने और प्रधानमंत्री की चुप्पी पर पर्दा डालने की कोशिश में लगे हैं। यह कितनी शर्मनाक बात है। रघुवर दास तो गैर-आदिवासी हैं उनसे आदिवासियों के प्रति संवेदना की उम्मीद नहीं की जा सकती है, लेकिन बाबूलाल मरांडी तो आदिवासी हैं उन्हें तो अपने को आदिवासी का एहसास होना चाहिये।”

नीतीशा खलखो ने कहा कि “हम झारखंड या बंगाल में हुई घटनाओं की उतनी ही निन्दा करते हैं जितनी कि मणिपुर में हुई शर्मनाक घटना की। लेकिन जब राज्य के मुखिया हेमंत सोरेन मणिपुर की घटना पर राष्ट्रपति को पत्र लिखकर कार्रवाई की मांग करते हैं तो इसकी आलोचना ठीक नहीं है। मैं बाबूलाल मरांडी और रघुवर दास को सामाजिक रूप से बहिष्कृत करने अपील करती हूं। मणिपुर की घटना के बाद से ही मेरे दिमाग में यह बात आ रही थी कि अगर हमारे आदिवासी नेताओं में थोड़ी भी आदिवासियत बची है तो वे अपने पदों से इस्तीफा दें, चाहे राष्ट्रपति हों, राज्यपाल हों या किसी भी सरकार के मंत्री हों।”

केन्द्रीय जनसंघर्ष समिति के सचिव जेरोम जेराल्ड कुजूर ने कहा है कि “झारखंड के मुख्यमंत्री ने मणिपुर की घटना को लेकर जो पत्र लिखा है, वह झारखंड के आदिवासी समुदाय एवं झारखंडी अमन पसंद लोगों की भावनाओं के लिए उठाये गए कदम हैं। क्योंकि झारखंड की जनता मणिपुर के सवाल पर सड़कों पर उतरकर शांति बहाल करने की अपील कर रही है।”

जेरोम जेराल्ड कुजूर ने कहा कि “जहां तक दोनों पूर्व मुख्यमंत्रियों बाबूलाल और रघुवर दास के बयान पर सवाल है वह पूरी तरह से सिर्फ राजनीतिक बयान है इसके सिवा कुछ नहीं है। पिछले 70 दिनों तक मणिपुर में हो रही हिंसक घटनाओं पर उन्होंने अपनी जुबान क्यों नहीं खोली? खुद मणिपुर के सवाल पर पहले क्यों नहीं कुछ कहा? सर्वोच्च न्यायलय के मुख्य न्यायधीश की टिप्पणी के बाद इनके आका प्रधानमंत्री के घड़ियाली आंसू बाहर आए। अब उनके पीछे से इनका आंसू बहना राजनीतिक आंसू ही कहा जायेगा।”

आदिवासी विमेंस नेटवर्क की कन्वेनर एलिना हाेरो कहती हैं कि “मणिपुर में जो हो रहा है वो जातीय हिंसा है और बहुसंख्यवादी सरकार का राजनीतिक खेल है। जो सत्ता की भूख, संसाधनों की भूख और वर्चस्व की लड़ाई है। जहां एक समुदाय को बहुसंख्यवादी सरकार का पूर्ण समर्थन मिला है जो दूसरे के ऊपर हावी हो, उनके 6th scheduled tribals होने के अधिकार का हनन करे। साथ ही इस गृहयुद्ध की शिकार अंततः महिलाएं हो रही हैं। चूंकि पितृसत्तात्मक समाज चाहे जो भी हो पुरषों का, महिलाओं को अपने संसाधन/संपत्ति के रूप में देखने का नजरिया ऐसी जातीय संघर्ष में यौन हिंसा को अस्त्र शस्त्र के रूप में इस्तेमाल करती है और मानवीय मूल्यों हों या संवैधानिक मूल्य उनकी धज्जियां उड़ाते हैं।”

सिमडेगा जिला अंतर्गत बनसोर प्रखंड की रहने वाली शिक्षिका पुनम उरांव कहती हैं कि “मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने महामहिम राष्ट्रपति को पत्र लिखकर सही किया। बाबूलाल और रघुवर दास भी अगर ऐसे ही राष्ट्रपति को पत्र लिखते उसके बाद सोरेन की टांग खींचते तो कुछ जायज भी होता। किन्तु ये दोनों सिर्फ राजनीतिक भाषा बोल रहे है। इंसानियत या नारी के सम्मान से इन्हें कोई मतलब नहीं है। अगर इनके अपने सगे के साथ ऐसा होता तब भी क्या ऐसा ही बयान देते? वे कहती हैं कि “मैं खुद अपने पड़हा संगठन की ओर से महामहिम राष्ट्रपति को लिखूंगी।”

(विशद कुमार पत्रकार हैं और झारखंड में रहते हैं।)

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
1 Comment
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
Neetisha Khalkho
Neetisha Khalkho
Guest
1 year ago

अदिवासियतकी लड़ाई चुनिंदा लोगों द्वारा लड़ी जा रही। यह आदमियत के लिए खतरनाक है

You May Also Like

More From Author