समान नागरिक संहिता: हिंदू अविभाजित परिवारों को लग सकता है बड़ा धक्का

भारत के विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता (यूसीसी) पर नए सिरे से विचार-विमर्श शुरू कर दिया है, जिससे अविभाजित हिंदू परिवार और उसके बारे में टैक्स कानूनों पर भी बहस शुरू हो गई है।

हिंदू अविभाजित परिवार क्या है?

एक कानूनी इकाई के रूप में हिंदू अविभाजित परिवार(एचयूएफ) का अस्तित्व भारत में ब्रिटिश सत्ता द्वारा रीति-रिवाजों की स्वीकृति पर आधारित है। इसे एक ऐसी संस्था के रूप में देखा गया जो हिंदू परिवारों में संपत्ति पर संयुक्त रूप से नियंत्रण करने के लिए वंश और रिश्तेदारी की मजबूत भावना पर काम करती है। इसके अलावा संविदात्मक व्यवस्था के बजाय हिंदू व्यक्तिगत कानूनों के आधार पर व्यावसायिक क्रिया-कलापो का संचालन होता है।

एक कानूनी ईकाई के तौर पर एचयूएफ हमेशा एक परिवार आधारित संस्था और एक परिवार के भरण-पोषण के लिए अकेली आय पैदा करने वाली इकाई की दोहरी पहचान के रूप में देखी जाती है। इस तरह की व्यवस्था ने संभवतः कर प्रणाली में एक अहम भूमिका निभाई जिसे भारतीय कानून में शामिल किया गया है।

आयकर उद्देश्यों के लिए, एचयूएफ में एक ही पूर्वज के सभी वंशजों की गिनती होती है, और इसमें पत्नियां और अविवाहित बेटियां भी शामिल होती हैं। एचयूएफ के पास अपना स्वयं का स्थायी पैन नंबर होता है और वह अपने सदस्यों से स्वतंत्र होकर कर रिटर्न दाखिल कर सकता है। एचयूएफ में एक कर्ता होता है जो आम तौर पर परिवार का सबसे बड़ा पुरुष सदस्य होता है, और इन मामलों का दिन-प्रतिदिन प्रबंधन करता है। अन्य सदस्य सहभागी होते हैं, जैसे बच्चे अपने पिता के एचयूएफ में सहभागी हैं।

एचयूएफ का धारणा का जन्म कब हुआ

1886 के भारतीय आयकर अधिनियम ने एचयूएफ को “व्यक्ति” शब्द के तहत मान्यता दी। प्रथम विश्व युद्ध के लिए पैसे जुटाने के प्रयास में, अंग्रेजों ने सुपर टैक्स अधिनियम, 1917 पेश किया, जिसने पहली बार टैक्स उद्देश्यों के लिए एचयूएफ को एक अलग इकाई के रूप में मान्यता दी। आयकर के अतिरिक्त सुपर टैक्स भी लगाया गया।

करदाता की एक विशिष्ट श्रेणी के रूप में एचयूएफ के विचार को आयकर अधिनियम 1922 में शामिल किया गया था, जो स्वतंत्रता के बाद आयकर अधिनियम, 1961 का आधार बना। वर्तमान में लागू कानून धारा 2(31) के तहत एचयूएफ को एक व्यक्ति के रूप में मान्यता देता है।

आजादी से पहले और बाद के बने कानूनों के दौरान सरकार द्वारा स्थापित समितियों ने एचयूएफ के लिए प्राथमिक तौर पर हासिल टैक्स छूट के मामले की गंभीरता से जांच की। 1936 की आयकर जांच रिपोर्ट में एचयूएफ को मिले विशेष छूट के कारण राजस्व को होने वाले हानि को चिह्नित किया गया। 1953-54 के कराधान जांच आयोग ने एचयूएफ के लिए प्राथमिकता के तौर पर मिलने वाली विशेष कर छूट से पैदा होने वाली विसंगतियों को स्वीकार किया। लेकिन चूंकि कर कानून के तहत एचयूएफ का मामला हिंदू पर्सनल लॉ के तहत आता है और उसकी कानूनी स्थिति से बंधा हुआ है, और इसके साथ ही उस दौरान हिंदू कोड बिल भी लंबित था लिहाजा आयोग ने एचयूएफ की टैक्स स्थिति में बदलाव नहीं करने का फैसला किया।

1971 की जस्टिस वांचू समिति की रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा गया था कि एचयूएफ संस्था का इस्तेमाल टैक्स से बचने के लिए किया जा रहा है। 2018 में, विधि आयोग के एक परामर्श पत्र में घोषणा की गई कि “अब समय आ गया है कि यह समझा जाए कि देश के राजस्व की कीमत पर गहरी जड़ों वाली भावनाओं के आधार पर इस संस्था को उचित ठहराना समझदारी नहीं होगा”।

एचयूएफ को टैक्स छूट

1922 के बाद से, व्यक्तियों सहित अन्य करदाताओं की तुलना में एचयूएफ को अतिरिक्त छूट सीमा की अनुमति दी गई, जिससे समान तरीके से आय अर्जित करने के बावजूद, एचयूएफ को अन्य समान करदाताओं की तुलना में कम कर का भुगतान करने की अनुमति मिली। आयकर अधिनियम, 1961 के तहत इस एकतरफा छूट व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया था।

हालांकि, एक अलग कर इकाई के रूप में एचयूएफ हिंदू परिवारों को अपने टैक्स का बोझ कम करने का एक और अवसर प्रदान करता है। मानकर चलिए कि, राम कुमार प्रति वर्ष 5,00,000 रुपये की वेतन के तौर पर आय अर्जित करता है और अपनी पैतृक संपत्ति से प्रति वर्ष 2,50,000 रुपये की किराये के तौर पर आय अर्जित करता है। व्यक्तिगत करदाता को मिलने वाली 2,50,000 रुपये की मूल छूट एचयूएफ के लिए भी उपलब्ध है। राम कुमार अपनी कुल आय पर टैक्स के लिए 7,50,000 रुपये की पेशकश कर सकते हैं, जो मूल छूट के बाद 5,00,000 रुपये की शुद्ध रुप से टैक्स के योग्य आय बनती है।

हालांकि, राम कुमार के पास अपने बेटे और पत्नी के साथ एक एचयूएफ परिवार बनाने का विकल्प है। पैतृक संपत्ति को एचयूएफ संपत्ति के रूप में माना जाएगा, और इससे प्राप्त किसी भी आय पर एचयूएफ के लिए अलग से कर लगाया जाएगा, न कि राम कुमार के लिए। इसका मतलब यह है कि राम कुमार अब केवल 5,00,000 रुपये की अपनी वेतन आय को टैक्स के दायरे में दिखाएंगे, और अपनी शुद्ध टैक्स के योग्य आय को घटाकर (2,50,000 रुपये की मूल छूट के बाद) 2,50,000 रुपये कर का भुगतान करेंगे। इसके अलावा, एचयूएफ अपनी समान राशि की किराये की आय पर 2,50,000 रुपये की मूल छूट का दावा करेगा, जिससे वास्तविक तौर पर टैक्स देय शून्य हो जाएगी।

इस प्रकार एचयूएफ के निर्माण से वैध रूप से 2,50,000 रुपये की टैक्स-मुक्त आय हो जाती है, और राम कुमार के लिए कम प्रभावी टैक्स दर हो जाती है क्योंकि उनकी वास्विक टैक्स के योग्य आय अब न्युनतम टैक्स के दायरे में आयेगी।

अंत में, आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 10(2) में प्रावधान है कि एचयूएफ की आय में से एचयूएफ के सदस्य के रूप में किसी व्यक्ति द्वारा प्राप्त कोई भी राशि उसकी कुल आय में शामिल नहीं की जाएगी। इसका प्रभावी रूप से मतलब यह है कि राम कुमार अपने एचयूएफ द्वारा अर्जित किराये की आय का एक हिस्सा प्राप्त कर सकते हैं लेकिन उस पर कर का भुगतान नहीं कर सकते हैं। यह पहले विकल्प के विपरीत है जिसमें राम कुमार को अपने नाम पर किराये लेने पर की गई आय प्राप्त के कारण टैक्स का बोझ उठाना पड़ा था। इसलिए, लाभ न केवल एचयूएफ स्तर पर बल्कि व्यक्तिगत सदस्य स्तर पर भी है।

इसके अतिरिक्त, एचयूएफ अपने टैक्स के योग्य आय से खर्चों, छूट और कई कटौतियों का दावा करने का हकदार है, जो हिंदू परिवार के टैक्स के बोझ को और कम करता है।

सभी के लिए नहीं है उपलब्ध

एचयूएफ की अवधारणा संयुक्त परिवार और समान पैत्रिक रिश्तों की अवधारणाओं से गहरी रूप से जुड़ी हुई है। यह हिंदू पर्सनल लॉ के लिए बिल्कुल अलहदा है। (इसमें जैन, बौद्ध और सिखों को भी शामिल माना जाता है)।

दिलचस्प बात यह है कि केरल ने 1975 में केरल हिंदू संयुक्त परिवार (उन्मूलन) अधिनियम को लागू करके संयुक्त परिवार प्रणाली को समाप्त कर दिया। उच्चतम न्यायालय ने सीआईटी बनाम एन. रामनाथ रेडियार (एचयूएफ, 1996) मामले में, आयकर अधिनियम 1961 के साथ इस उन्मूलन की परस्पर क्रिया पर निर्णय देते हुए कहा कि एक बार संयुक्त परिवार और एचयूएफ की इकाई को एक सक्षम विधायिका द्वारा समाप्त कर दिया गया है, तो टैक्स विभाग अब एचयूएफ धारक पर मूल्यांकन नहीं कर सकता है। परिणामस्वरूप, व्यक्तिगत करदाता भी एचयूएफ बनाकर टैक्स में मिलने वाले लाभ का फायदा नहीं उठा सकता है।

हालांकि, वैधानिक कर नियोजन का यह लाभ अन्य धर्मों जैसे कि मुस्लिम, ईसाई, पारसी आदि के करदाताओं के लिए उपलब्ध नहीं है, जो कर कानूनों को समान रूप से लागू न कर पाने की कमी पर चिंता पैदा करता है। यूसीसी के मुद्दे के अलावा, यह तर्क दिया जा सकता है कि एक अतिरिक्त फायदा देना जो केवल धर्म के आधार पर कर के बोझ को कम करता है वो एक तरह की मनमानी है, और इससे संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होता है।

उपरोक्त चर्चा को देखते हुए, अगर यूसीसी का मुद्दा विचार-विमर्श के लिए उठाया जाता है, तो एचयूएफ का टैक्स लाभकारी विकल्प, कानून के समक्ष समानता के लेंस और टैक्स कानून के तहत विचार के लिहाज से महत्वपूर्ण स्थान ग्रहण करेगा इसके साथ ही दूसरे धर्मों के मामले में एकरूपता के पैमाने पर भी इसकी जांच परख होगी।

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