‘समान नागरिक संहिता’ के विरोध में नागालैंड के विधायकों का आवास जलाने की धमकी  

नागालैंड में गठित एक नए संगठन ने धमकी दी है कि अगर राज्य विधानसभा केंद्र के दबाव के आगे झुकती है और ‘समान नागरिक संहिता’ (यूसीसी) के समर्थन में विधेयक पारित करती है तो सभी 60 विधायकों के आधिकारिक आवास को जला दिया जाएगा। 

नागालैंड ट्रांसपेरेंसी, पब्लिक राइट्स एडवोकेसी एंड डायरेक्ट-एक्शन ऑर्गनाइजेशन ने कहा कि यूसीसी को लागू किया जाता है, तो राज्य को दिए गए विशेष संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन होगा और नागा लोगों के अद्वितीय रीति-रिवाजों और परंपराओं को गंभीर नुकसान पहुंचेगा।

संगठन ने एक बयान में कहा कि अगर ‘समान नागरिक संहिता’ को मंजूरी मिल गई तो उसके सदस्य नागालैंड के विधायकों के आधिकारिक आवासों में आग लगाने की हद तक जाने से नहीं हिचकिचाएंगे।

इस संदर्भ में इस संगठन ने राष्ट्रीय भाषा के रूप में हिंदी को थोपने की भाजपा नेतृत्व की कोशिशों के खिलाफ 2022 में हुए विरोध की याद दिलाई। आदिवासी बहुल नागालैंड की राइजिंग पीपुल्स पार्टी ने भी ‘समान नागरिक संहिता’ का विरोध किया है। इस पार्टी ने कहा कि ‘समान नागरिक संहिता’ राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के “एक राष्ट्र, एक धर्म, एक भाषा” को पूरे देश में लागू करने की कोशिश की दिशा में उठाया गया कदम है।

मेघालय में, मातृसत्तात्मक खासी समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाली हाइनीवट्रेप यूथ काउंसिल ने कहा कि वह यूसीसी को लागू करने का विरोध करती है और अपने विरोध से भारत के विधि आयोग को अवगत करायेगी।

परिषद के अध्यक्ष रॉबर्टजुन खारजहरीन ने कहा कि यूसीसी (समान नागरिक संहिता) स्थानीय रीति-रिवाजों, कानूनों और यहां तक ​​कि संविधान की छठी अनुसूची के भी खिलाफ है।

पत्रकारों को संबोधित करते हुए सिविल सोसाइटी महिला संगठन की अध्यक्ष एग्नेस खारशिंग ने शिलांग में कहा कि, “संविधान भारत के लोगों के लिए है, न कि कुछ राजनीतिक शक्तियों को खुश करने के लिए। अगर उन्हें यूसीसी लागू करना है तो पहले देश के हर नागरिक को विश्वास में लेना होगा।”

यूसीसी का सबसे अधिक विरोध मेघालय, मिजोरम और नागालैंड में होता रहा है। जहां 2011 की जनगणना के अनुसार ईसाइयों की संख्या क्रमशः 74.59%, 86.97% और 87.93% है। करीब सभी को अनुसूचित जनजाति का दर्जा प्राप्त है।

पूर्वोत्तर के राज्य दुनिया के सबसे अधिक सांस्कृतिक विविधता वाले क्षेत्रों में एक हैं। यह करीब 220 से अधिक तरह के भिन्न-भिन्न जनजातीय समुदाय रहते हैं। इन लोगों को डर सता रहा है कि ‘समान नागरिक संहिता’ संविधान द्वारा संरक्षित उनके पारंपरिक कानूनी अधिकारों को प्रभावित करेगा।

( द हिंदू की रिपोर्ट पर आधारित।)

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments