योगी राज में क्या ‘जय श्री राम’ का नारा लगाने से गुंडों को मिल जाता है अपराध करने का लाइसेंस?

वाराणसी। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अक्सर कहा करते हैं कि “जब से राज्य में भाजपा की सरकार बनी है तब से सूबे में एक भी सांप्रदायिक दंगे और हिंसा की घटनाएं नहीं घटित हुई हैं।” उनके इस कथन में कुछ दम हो सकता है, लेकिन जो भगवाधारी लोग अक्सर कहीं ना कहीं ‘जय श्री राम’ का नारा लगाते, सांप्रदायिक माहौल बढ़ाते, एक वर्ग विशेष के खिलाफ तलवारें तानते नजर आते हैं उनको क्या कहा जाएगा?

श्री राम का जयकारा लगाते हुए सिर पर केसरिया साफा, तन पर केसरिया कुर्ता धारण कर सार्वजनिक रूप से किसी को मारना पीटना, मां-बहन की गालियां देना क्या यह सब सांप्रदायिकता से परे हटकर है। या ऐसे लोगों को जय श्री राम का नारा लगाते हुए कुछ भी करने की खुली छूट दे दी गई है? सवाल कचोटने वाले हैं। 

दूसरा अहम सवाल उस पुलिस विभाग से है, जो सड़क पर उतर कर अपनी समस्याओं को लेकर धरना प्रदर्शन करने वालों पर फौरन कार्रवाई शुरू कर देते है, और ज्ञात-अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर गिरफ्तारी शुरू कर देता है। वहीं पुलिस वाराणसी के सांप्रदायिक गुंड़ों पर कोई कार्रवाई नहीं करती जो एक संपादक पर ‘जय श्री राम’ का नारा लगाते हुए हमला करते हैं और मां-बहन की गालियां देते हुए बुरी तरह से मारते पीटते हुए पुलिस चौकी पर ले जाते हैं।

जबकि संपादक पर हमले का वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है। इस घटना से साफ जाहिर होता है कि संपादक के साथ घटित वारदात में इन सांप्रदायिक गुंड़ों को पुलिसिया संरक्षण से लेकर सफेद पोस सत्ता समर्थित लोगों का भी समर्थन प्राप्त है। वरना पुलिस इस प्रकार हाथ पर हाथ धरे बैठे ना रहती।

यूपी में पत्रकारों और उनकी लेखनी पर मंडराता खतरा

उत्तर प्रदेश में पत्रकारों और उनकी लेखनी पर तेजी से खतरा मंडराने लगा है। प्रदेश भर में पत्रकारों के ऊपर निजी हमले और उन्हें शारीरिक क्षति पहुंचाने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि सत्ता के रसूख के सहारे भ्रष्टाचार में संलिप्त जाति विशेष के लोग गिरोह बनाकर दलित-पिछड़े पत्रकारों के ऊपर हमले कर रहें हैं और उनके ऊपर झूठे मामले बनाते हुए पुलिस को दबाव में लेते हुए मुकदमा दर्ज करवा रहे हैं।

देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में सितंबर में पत्रकार ओमकार के साथ बीएचयू के बाउंसरों ने मारपीट किया था। इस मामले में पत्रकार द्वारा दी गई तहरीर पर लंका पुलिस शिथिल बनी रही है। हालांकि पूर्व आईपीएस अमिताभ ठाकुर ने इस मामले में बीएचयू अस्पताल का दौरा किया तो एकबार फिर यह मुद्दा गरमा गया, इसके बावजूद हमलावरों की अभी तक गिरफ्तारी नहीं की गई।

इसी कड़ी में वाराणसी के बेबाक हिंदी साप्ताहिक समाचार पत्र ‘अचूक संघर्ष’ के पत्रकार एवं संपादक अमित मौर्य को भी हाल ही में वाराणसी के गिलट बाजार स्थित राज राजेश्वरी नगर कालोनी में धार्मिक विद्वेष फैलाने के आरोप में स्थानीय लोगों ने उनके कार्यालय से घसीटते, बुरी तरह से मारते-पीटते, मां-बहन की गालियां देते पुलिस चौकी गिलट बाजार ले गए, जहां पुलिस ने धारा 153 ए, 295 ए एवं 67 आईटी एक्ट की धाराओं में मुकदमा पंजीकृत कर अमित मौर्य को जेल भेज दिया।

मीडिया सूत्रों का मानना है कि ऐसे मामले में अन्य लोगों को कानून अपने हाथ में नहीं लेना चाहिए था, किसी भी पत्रकार को घसीटते हुए मारना-पीटना, गाली देना कानूनन अपराध है। पुलिस को सोशल मीडिया पर जारी इस तरह के कई वीडियो का भी संज्ञान लेना चाहिए और लोगों को चिन्हित करके कार्रवाई करनी चाहिए थी, लेकिन पुलिस ने ऐसा कुछ भी नहीं किया, बल्कि पुलिस चौकी तक पत्रकार को मारा पीटा जाता रहा है और पुलिस तमाशाबीन बनी रही, मानों उसकी भी इसमें मौन संलिप्तता हो।

मज़े कि बात है कि इस घटना के चार दिन बाद भी पुलिस ने अमित मौर्य के हमलावरों के खिलाफ अभी तक कोई कार्रवाई सुनिश्चित नहीं की है। जबकि सोशल मीडिया पर इस कृत्य का वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है, जिसमें भगवा धारी नग्न तांडव करते देखे जा रहे हैं। शाय़द पुलिस को भी कानून नहीं शासन सत्ता खासकर भगवा ब्रिगेड का डर है, जिसे मानों “जय श्री राम” का नारा लगाकर अपराध करने का ‘लाइसेंस’ मिला हुआ है।

जब सरकार नहीं दे रही सुरक्षा तो पत्रकार कैसे करें काम?

पत्रकारिता का धर्म समाज में फैली गंदगी को पटल पर लाना है और सरकार का इस पर ध्यान आकृष्ट कराना है। देश और प्रदेश में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कई अखबार निष्पक्षता से काम कर रहें है, लेकिन पत्रकारों के लिए कोई कानूनी संरक्षण ना होने के कारण भ्रष्टाचार एवं सत्ता से जुड़े अपराधियों की शिकायत पर शासन और प्रशासन बिना जांच के ही मुकदमा पंजीकृत कर रहा है। जबकि जिस विभाग के भ्रष्टाचार उजागर हुए हैं, उनकी जांच होना जरूरी होता है। उसके बाद ही शासन को किसी निर्णय पर पहुंचना चाहिए कि क्या सही है और क्या गलत है?

उत्तर प्रदेश सरकार के प्रथम कार्यकाल में मिर्जापुर जनपद के जमालपुर विकासखंड स्थित एक प्राथमिक विद्यालय में दोपहर के भोजन (मिड डे मिल) में नमक-रोटी परोसे जाने की ख़बर चली थी। इस मामले में आनन-फानन में स्थानीय प्रशासन ने मामले पर पर्दा डालने के लिए दिवंगत पत्रकार पवन जायसवाल पर ही मुकदमा लाद दिया था, जबकि इस मामले की भी नियमानुसार जांच कराई जानी चाहिए थी।

इस ख़बर ने पूरे देश को सकते में ला दिया था। खबर चलाने वाले पत्रकार का परिवार आज भी गुरबत में जी रहा है उसकी कोई सुध लेने वाला नहीं है। ऐसे में अब सवाल यह उठता है कि यूपी में अब पत्रकार नौकरशाहों एवं उनके बीच में पैठ बनाये दलालों की खबर को कैसे सार्वजनिक करेंगे और सरकार इस पर कैसे अंकुश लगाएगी? जब इसका खमियाजा उन्हें मुकदमा और जेल जाने तक भुगतना पड़ रहा है।

कुछ महीने पूर्व मिर्ज़ापुर के ड्रमंडगंज इलाके के युवा पत्रकार अभिनेष प्रताप सिंह को दुर्घटना की कवरेज करने के दौरान पुलिसिया प्रताड़ना का शिकार होना पड़ा था। जिसे देख कर रूह कांप उठती है। ड्रमंडगंज थाने के जालिम दरोगा द्वारा पत्रकार की थाने के लॉकअप में बंद कर बुरी तरह से लाठियों से पीटाई की गई थी जिससे उनके शरीर पर गहरे जख्म के निशान पड़ गये थे। उल्टे पुलिस ने उनका चालान भी कर दिया था। जिसकी पीड़ा और कसक आज भी उनके चेहरे पर देखी जा सकती है।

जौनपुर के केराकत कोतवाली अंतर्गत पेसारा में अस्थाई गौ आश्रय स्थल पर मरणासन्न अवस्था में पड़े गौवंशों की हकीकत दिखाना और स्थानीय प्रशासन को इसकी सूचना देना चार मीडिया कर्मियों को भारी पड़ गया था, जिनके खिलाफ ग्राम प्रधान को ढाल बनाकर एससी-एसटी एक्ट का मुकदमा दर्ज कराया गया। 

पत्रकार उत्पीड़न के यह आंकड़े यहीं समाप्त नहीं होते हैं। चंदौली, गाजीपुर, सोनभद्र, बलिया, आजमगढ़ से लगाकर पूरे यूपी में पत्रकारों पर हमले से लेकर उनके उत्पीड़न और उन पर फर्जी मुकदमें दर्ज किए जाने की मानों बाढ़ सी आ गई है। हद की बात तो यह है कि ऐसे मामलों में शासन-प्रशासन से लेकर जनप्रतिनिधियों तक ने पूरी तरह से चुप्पी साध ली है। वहीं समाज हितैषी होने का दंभ भरने वाले संगठनों ने भी खामोशी तान ली है।

कहीं अमित को दबाव में लेने की साजिश तो नहीं

‘अचूक संघर्ष’ के संपादक अमित मौर्य अपने अखबार को लेकर प्रारंभ से ही सुर्खियों में रहें हैं। उसकी वजह रही है उनका अखबार और उनकी बेबाक लेखनी। मसला चाहे शिक्षा और चिकित्सा का रहा हो या किसी भी प्रकार के भ्रष्टाचार या सरकारी योजनाओं में धांधली का रहा हो, ‘अचूक संघर्ष’ ने इन मामलों को प्रमुखता से प्रकाशित किया है। इनमें परिवहन विभाग से जुड़े हुए भ्रष्टाचार के मामले प्रमुख रहे हैं। जिससे इसमें संलिप्त लोगों की चूलें हिलने लगी थी।

अब यह अलग बात है कि सत्ता के साथ रहकर, सरकार द्वारा संचालित योजनाओं को पलीता लगाते आए कुछ लोगों को यह रास ना आया हो। जाहिर सी बात है उनके लिए यह अखबार और संपादक जरूर आंखों की किरकिरी लगने लगे थे। पिछले दिनों पूर्वांचल ट्रक ओनर एसोसिएशन के उपाध्यक्ष प्रमोद सिंह द्वारा दर्ज कराया गया मुकदमा, फिर मां दुर्गा पर टिप्पणी करने का बहाने लेते हुए संपादक अमित मौर्य पर कराए गए हमले से लेकर उनके खिलाफ दर्ज कराया गया मुकदमा गहरी साजिश का हिस्सा प्रतीत होता है।

जौनपुर के पत्रकार विनोद कुमार कहते हैं कि ‘अचूक संघर्ष’ के संपादक अमित मौर्य के खिलाफ जो घृणित कार्रवाई की गई है वह अशोभनीय व निंदनीय है। वह कहते हैं “माना कि उन्होंने मां दुर्गा के प्रति कुछ अशोभनीय टिप्पणी की थी जो उनके निजी विचार हो सकते हैं, लेकिन क्या जो लोग अमित मौर्य के विरोध में नारे लगाते हुए मां बहन की गाली देते हुए “जय श्री राम” का नारे लगा रहे हैं, वो अमृत की बौछार कर रहे हैं?

सवाल दागते हुए उन्होंने कहा कि “वाराणसी पुलिस ने उनके खिलाफ क्या कार्रवाई तय की है, जो अमित की मां बहन को गालियां देते जा रहे थे? जिस प्रकार से अमित मौर्य को किसी बड़े अपराधी की तरह गालियां देते हुए थाने ले जाया जा रहा था, क्या वह अपराध नहीं है, क्या इसे उचित कहा जाएगा?”

पत्रकार अजीज कुमार सिंह आशंका जताते हुए कहते हैं कि “वैसे देखा जाए तो यह पूरा मामला बौखलाहट और साजिश का एक हिस्सा है जिसके केंद्र बिंदु में पूरी तरह से अमित मौर्य को फंसाया जाना ही रहा है। इसमें वह लोग शामिल हैं जिनके खिलाफ पिछ्ले अंकों में अमित मौर्य ने अभियान चलाते हुए उनके काले कारनामों को अपने अखबार में उजागर किया था। इसमें कुछ तथा-कथित पत्रकार और संगठन भी शामिल हैं जो पत्रकारिता के नाम पर सिर्फ धन उगाही करने में जुटे हुए हैं।”

दूध के धुले नहीं हैं पूर्वांचल ट्रक ओनर एसोसिएशन के उपाध्यक्ष

पूर्व में संपादक अमित मौर्य के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने वाले पूर्वांचल ट्रक ओनर एसोसिएशन के उपाध्यक्ष प्रमोद सिंह भी कोई दूध के धुले व्यक्ति नहीं हैं। इनके द्वारा परिवहन विभाग के अधिकारियों को दबाव में लेकर ओवरलोड ट्रकों के संचालक की बात कही जा रही है।

चंदौली के चर्चित एआरटीओ आरएस यादव की गिरफ्तारी में सूत्रधार बने प्रमोद सिंह के बारे में कहा जाता है कि वह पूर्वांचल ट्रक ओनर एसोसिएशन के स्वयंभू उपाध्यक्ष हैं जिसके अध्यक्ष से लेकर महामंत्री और अन्य पदाधिकारियों का कोई अता-पता नहीं है।

गौर किया जाए तो पूर्वांचल ट्रक ओनर एसोसिएशन की आड़ में ओवरलोड ट्रकों का धड़ल्ले से इनके द्वारा संचालन किया जा रहा है। परिवहन विभाग के जानकार सूत्रों की मानें तो दबाव बनाकर ब्लैकमेल करना प्रमोद सिंह की फितरत है। खैर इनकी भी गहनता से जांच कराई जाए तो खुद ही पता चलेगा कि यह कितने दूध के धुले हुए हैं।

पूर्व सांसद रमाकांत यादव के पीए पर भी लगा चुके हैं आरोप

एआरटीओ आरएस यादव को पकड़वाने में सूत्रधार रहे पूर्वांचल ट्रक ओनर एसोसिएशन के उपाध्यक्ष प्रमोद सिंह जुलाई 2017 में बलिया के एआरटीओ राम सिंह यादव के खिलाफ भी शिकायत दर्ज करा चुके हैं। यही नहीं उन्होंने तत्कालीन बलिया एआरटीओ और पूर्व सांसद आजमगढ़ रमाकांत यादव के पीए हरिश्चंद्र पर भी आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज कराया था। तब इस मामले में बलिया एआरटीओ ने पूर्वांचल ट्रक ओनर एसोसिएशन के उपाध्यक्ष प्रमोद सिंह पर दबाव बनाकर ब्लैकमेल करने का खुला आरोप लगाते हुए सनसनीखेज खुलासे भी किए थे।

दरअसल, पूर्वांचल ट्रक ओनर एसोसिएशन के उपाध्यक्ष प्रमोद सिंह ने तत्कालीन बलिया एआरटीओ राम सिंह यादव व आजमगढ़ के पूर्व सांसद रमाकांत यादव के पीए हरिश्चंद्र यादव के खिलाफ वाराणसी के कैंट थाने में धमकी देने का आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज कराया था। दावा किया था कि बलिया में ओवरलोडिंग ट्रकों को पास करने का खेल चल रहा है, जिसका उनके पास सबूत है।

तब इस मामले में एआरटीओ राम सिंह यादव ने सामने आकर पलटवार करते हुए दावा किया था कि उन पर गलत आरोप लगाकर एफआईआर कराया गया है। उनका आरोप रहा कि गाड़ी चेकिंग के दौरान रुतबे की धौंस देने वाले ट्रक ड्राइवर ने ट्रक ओनर एसोसिएशन के उपाध्यक्ष प्रमोद सिंह का नाम लेकर ब्लैकमेल करने और डराने की कोशिश की थी। कार्रवाई से खार खाकर ट्रक ओनर एसोसिएशन के उपाध्यक्ष प्रमोद सिंह ब्लैकमेल करने में लगे हुए हैं।”

पूर्व मंत्री अंबिका प्रसाद चौधरी के भतीजे से भी प्रमोद की रही है रार

पूर्वांचल ट्रक ओनर्स एसोसिएशन के स्वयंभू उपाध्यक्ष प्रमोद कुमार सिंह कि हर किसी से रार रही है। बात जून 2018 की है। प्रमोद सिंह की तहरीर पर बलिया जिले के फेफना थाना क्षेत्र अंतर्गत कपूरी नरायनपुर गांव निवासी सतीश कुमार चौधरी उर्फ नागा के खिलाफ कैंट थाने में धमकाने सहित अन्य आरोपों और आईटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था।

प्रमोद कुमार सिंह ने आरोप लगाया था कि सतीश पूर्व मंत्री अंबिका चौधरी का भतीजा है। कैंट थाना अंतर्गत हासिमपुर निवासी प्रमोद कुमार सिंह ने पुलिस को बताया था कि बलिया जिले के चितबड़ागांव स्थित उत्तर प्रदेश राज्य भंडारण निगम के गोदाम से ट्रकों की ओवरलोडिंग की जा रही थी। इसे रोकने के लिए उन्होंने निगम के प्रबंध निदेशक को पत्र भेजकर शिकायत की थी।

इससे नाराज होकर गोदाम के ठेकेदार सतीश कुमार चौधरी उर्फ नागा ने अपने व्हाट्स एप नंबर से उनके व्हाट्स एप नंबर पर 23 जून 2018 को कई बार कॉल कर जान से मारने की धमकी दी। उस वक्त जहां यह मामला सुर्खियों में रहा वहीं प्रमोद सिंह की गतिविधियों को लेकर भी उगंलिया उठाई जा रही थीं।

 ‘अचूक संघर्ष’ से घबरायें हुए लोग रच रहे साजिश

वाराणसी से प्रकाशित निष्पक्ष बेबाक हिंदी साप्ताहिक समाचार पत्र अचूक संघर्ष से कईयों की नींद उड़ी हुई है। पूर्व में वाराणसी में तैनात रहे एक पुलिस अधिकारी ‘जनचौक’ को बताते हैं कि “वास्तव में “अचूक संघर्ष” सत्ता समर्थित अखबार होता तो ऊंचाइओं को छूता, लेकिन इस अखबार ने न तो झुकना सीखा है और ना ही झूठी वाहवाही करना सीखा। जिसका नतीजा है कि इस अखबार के संपादक को प्रताड़ित किया जा रहा है।”

वह कहते हैं कि ‘न पक्ष की, न विपक्ष की, सिर्फ़ जनपक्ष की बात करना इसे भारी पड़ रहा है’। वह यहां तक कहते हैं कि “देखिए जहां तक मुझे लगता है कि इस मामले में पुलिस का कोई रोल नहीं है, यह सब सीधे तौर पर ऊपर से और कुछ लोगों के पद प्रभाव और इशारों पर किया धरा गया है।” वरना कार्रवाई तो उनके खिलाफ भी होनी चाहिए थी जिन्होंने अमित मौर्य को मारने पीटने और सरेआम मां बहन की गालियां देते हुए पुलिस चौकी तक जाने का दुस्साहस किया है।”

वाराणसी के ही अजय कुमार पूर्वांचल ट्रक ओनर्स एसोसिएशन के उपाध्यक्ष प्रमोद कुमार सिंह तथा राज राजेश्वरी नगर विकास समिति की जांच कराए जाने की बात करते हैं। वह कहते हैं जिन तेरह लोगों ने मिलकर अमित मौर्य के खिलाफ तहरीर दी है, और उनके साथ जो लोग आए थे, उन पर कार्रवाई होनी चाहिए थी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। आखिर पुलिस की एकतरफा कार्रवाई क्यों?

डरा सहमा है जेल में बंद संपादक का परिवार

साम्प्रदायिक गुंडों के भय से संपादक अमित मौर्य का परिवार खौफ में जी रहा है। उनकी 80 वर्षीया मां चिंतामणि देवी जो चारपाई पर पड़ी हुई रो पड़ती हैं। वह कहती हैं, “मेरे बेटे ने गलती की है तो कानून सजा देता। वह लोग कौन होते हैं? वह कहती हैं कि जिस मिट्टी की मूरत को मां के रूप में पूजते हैं, मानते हैं उनका मान है, लेकिन जो जीवन देने वाली जीवित मां सबके सामने है उसका कोई मोल नहीं है?

जीवित मां को गालियां देने वाले लोगों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई, य़दि नहीं तो आखिरकार क्यों?

अमित मौर्य की बेटी रोते हुए हुए कहती है, “अंकल पुलिस न होती तो यह लोग पापा की जान लेने पर अमादा थे। वह सम्पूर्ण घटनाक्रम को बताते हुए रो पड़ती है। वह आशंका जताते हुए कहती है कि “पापा के साथ कुछ भी हो सकता है उनकी जान के साथ ही साथ हम लोगों को भी खतरा महसूस हो रहा है।”

 महज संयोग नहीं पूरी साजिश है हमला

वाराणसी से प्रकाशित हिंदी साप्ताहिक समाचार पत्र “अचूक संघर्ष” के संपादक अमित मौर्य के साथ जो कुछ हुआ है वह एक संयोग नहीं बल्कि एक सोची समझी साजिश है। क्या पिछड़े समाज के लोगों का कोई वजूद नहीं है इस सरकार में, सिर्फ एक ऊंची जाति के लोगों को ही तांडव मचाने की खुली छूट दे दी गई है? ऐसे सवाल उन अनगिनत लोगों के हैं जो विभिन्न सोशल मीडिया माध्यमों से अमित के समर्थन में न केवल उठ खड़े हुए हैं, बल्कि आवाज भी बुलंद कर रहे हैं।

लोगों का कहना है कि “घोर आश्चर्य कि बात तो यह है कि कुछ तथाकथित मीडिया के लोग जिनका दामन खुद ही गंदा रहा है, उन पर अनगिनत मुकदमे रहे हैं और तथाकथित पत्रकारों के हितैषी होने का दंभ भरने वाले वह संगठन जो सिर्फ अपनी ही जाति के पत्रकारों के हित की बात करते हैं। दबे कुचले दलित, पिछड़े जाति के पत्रकारों के मामले में उन्हें सांप सूंघ जाता है, वह भी सिर्फ एक पक्षीय खबर छाप कर अपनी चाटुकारिता को दर्शाने में जुटे हुए हैं।

खैर, न्यायालय और कानून पर भरोसा है अमित को न्याय मिलेगा। वहीं कुछ लोग जब तक उनके (अमित) साथ किए गए दुर्व्यवहार, उन पर हुए हमले और इसमें शामिल लोगों के खिलाफ कारवाई नहीं होती है तब तक विरोध का अभियान जारी रखने की बात करते हैं।

कुछ लोगों का कहना है कि यदि अमित के साथ या उनके परिवार के साथ किसी भी प्रकार कीघटना-दुर्घटना होती है तो यही लोग जिम्मेदार होंगे। वहीं कुछ लोग लखनऊ पहुंच मुख्यमंत्री के दरबार में सम्पूर्ण मामले को लेकर चलने की आवाज बुलंद कर रहे हैं।

(संतोष देव गिरी की रिपोर्ट।)

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