अमेरिका के अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (USCIRF) के आयुक्तों ने भारत पर एक सुनवाई के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार द्वारा धार्मिक अल्पसंख्यकों के ‘परिष्कृत और व्यवस्थित उत्पीड़न’ को लेकर गहरी चिंता जताई है। यह सुनवाई 21 सितंबर को हुई। पिछले चार वर्षों से, यूएससीआईआरएफ ने मानवाधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता के गंभीर उल्लंघन के लिए भारत को विशेष चिंता वाले देश (सीपीसी) के रूप में नामित करने की सिफारिश की है। इस सिफ़ारिश को अभी तक अमेरिकी विदेश विभाग द्वारा लागू नहीं किया गया है।
सुनवाई में विशेषज्ञों और कार्यकर्ताओं की गवाही सुनने के बाद, यूएससीआईआरएफ आयुक्त डेविड करी ने कहा, “मुझे विश्वास हो गया है कि किसी भी लोकतांत्रिक सरकार द्वारा धार्मिक अल्पसंख्यकों का सबसे परिष्कृत और व्यवस्थित उत्पीड़न भारत में किया गया है। और मैं इसे हल्के में रूप में नहीं कह रहा हूं।”
यूएससीआईआरएफ के अध्यक्ष रब्बी अब्राहम कूपर ने कहा, “हाल के वर्षों में भारत में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थितियों में उल्लेखनीय गिरावट आई है। मुसलमानों, सिखों, ईसाइयों, दलितों, आदिवासियों पर हमलों और डराने-धमकाने की घटनाओं में वृद्धि हो रही है.. इन प्रवृत्तियों और अमेरिकी विदेश नीति पर उनके निहितार्थों को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।”
उपाध्यक्ष फ्रेडरिक ए. डेवी ने कहा, “नीति निर्माता भारत में बिगड़ती धार्मिक स्थितियों की विदेश नीति और व्यापार पर पड़ने वाले प्रभावों को नजरअंदाज नहीं कर सकते।” उन्होंने कहा कि “यूएससीआईआरएफ के संज्ञान में है कि कई भारतीय राज्यों के धार्मिक रूपांतरण, धार्मिक पोशाक, शैक्षिक पाठ्यक्रम, अंतरधार्मिक विवाह और गोहत्या पर क़ानूनी प्रतिबंध लगाये हैं जो मुसलमानों, ईसाइयों, सिखों, दलितों और अनुसूचित जनजाति के लोगों पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।” अन्य वक्ताओं ने भी अमेरिकी सरकार से भारत की घटती धार्मिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों के उल्लंघन की निंदा करने का आह्वान किया।
अल्पसंख्यक मुद्दों पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष प्रतिवेदक डॉ. फर्नांड डी वेरेन्स ने कहा, “शांति सुनिश्चित करने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका की सरकार को बहुत स्पष्ट होना चाहिए और संकेत देना चाहिए कि भारत की स्थिति चिंताजनक है क्योंकि भारत एक बड़ी खतरनाक स्थिति की ओर बढ़ रहा है, जिसका संयुक्त राज्य अमेरिका पर असर होगा।”
ह्यूमन राइट्स वॉच की वाशिंगटन निदेशक सारा यागर ने चीन का मुकाबला करने के साधन के रूप में मोदी के समर्थन के बिडेन प्रशासन की खुली नीति की आलोचना की। उन्होंने कहा, “जैसा कि हमें याद है, हाल ही में व्हाइट हाउस और कांग्रेस द्वारा वाशिंगटन में प्रधानमंत्री मोदी का गर्मजोशी से स्वागत किया गया था। अमेरिकी अधिकारियों द्वारा समर्थन के इस निरंतर प्रदर्शन को देखते हुए सवाल है कि ऐसा किस कारण हुआ? चीन का उदय अमेरिकी अधिकारियों के लिए अपने दोस्तों के मानवाधिकारों के हनन को नज़रअंदाज़ करने, अनदेखा करने या कम करने का बहाना नहीं हो सकता है।”
हिंदू फॉर ह्यूमन राइट्स की सह-संस्थापक सुनीता विश्वनाथ ने भारतीय अमेरिकी मुस्लिम काउंसिल (आईएएमसी), दलित सॉलिडेरिटी फोरम, फेडरेशन ऑफ इंडियन अमेरिकन क्रिश्चियन ऑर्गेनाइजेशन, हिंदू फॉर ह्यूमन राइट्स, इंडिया सिविल वॉच इंटरनेशनल और न्यूयॉर्क स्टेट काउंसिल ऑफ चर्च की ओर से एक साझा बयान पढ़ा।
सुनीता विश्वनाथ ने कहा, “हम इस बात से निराश हैं कि मुस्लिम, ईसाई, सिख और दलित, जो भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तहत धार्मिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों के उल्लंघन का खामियाजा भुगत रहे हैं, उन्हें इस पैनल में बोलने के लिए आमंत्रित नहीं किया गया है।”
उन्होंने कहा, “यूएससीआईआरएफ ने भारत को तीन साल तक सीपीसी (विशेष चिंता वाले देश) के रूप में नामांकित किया लेकिन पहले ट्रम्प और फिर बाइडेन प्रशासन ने इसे ठुकरा दिया। अगर बाइडेन प्रशासन भारत में धार्मिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों के उल्लंघन के बावजूद मोदी सरकार को बिना सोचे-समझे गले लगाना जारी रखता है, तो इतिहास में उसे ग़लत का साथ देने का बोझ उठाना पड़ेगा।”
जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय में एडमंड ए वॉल्श स्कूल ऑफ फॉरेन सर्विस में भारतीय राजनीति के प्रोफेसर हमद बिन खलीफा अल-थानी, इरफान नूरुद्दीन ने भारत में बढ़ती भीड़ हिंसा पर बात की। उन्होंने कहा- “उग्र समूह अमेरिकी इतिहास के सबसे काले दौर की याद दिलाते हैं- बग़ैर किसी सबूत के गोमांस की तस्करी, एक हिंदू लड़की के साथ डेटिंग, या एक देवता के अपमान की अफवाह पर मुस्लिम पुरुषों को परेशान करना, पीटना और हत्या- यह मोदी शासन की चुप्पी के कारण संभव है।”
उन्होंने कहा कि यह अमेरिकी सरकार के लिए अपने कथित साझेदार को अधिक स्पष्ट रूप से बोलने का समय है। सरकार को धार्मिक अल्पसंख्यकों की रक्षा के लिए अधिक निर्णायक रूप से काम करने की ज़रूरत है।
(चेतन कुमार का लेख।)
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