इस्कॉन पर मेनका के संगीन आरोप का आखिर निहितार्थ क्या है?

नई दिल्ली। अपने बयान में भाजपा की वरिष्ठ नेता और सांसद मेनका गांधी ने इस्कॉन मंदिर पर आरोप लगाते हुए कहा है कि “देश में सबसे बड़े धोखेबाज जो हैं, वो इस्कॉन है। उनके पास अपनी गौशालाएं हैं, और इसके लिए उन्हें सरकार से दुनिया-भर का फायदा मिलता है, इन गौशालाओं को चलाने के नाम पर, और बहुत कुछ मिलता है। इसके लिए बड़ी-बड़ी जमीनें उन्हें मिली हुई हैं। मैं अभी उनके अनंतपुर गौशाला होकर आई हूं। एक भी सूखी गाय वहां पर नहीं थी, और एक भी बछड़ा नहीं मिला। सारी की सारी दुधारू गाय वहां पर थीं। इसका मतलब है सब बेच दिए गये हैं। इस्कॉन अपनी सभी बेकार गायों को बूचड़खाने को बेच देता है।

जितना ये करते हैं उतना कोई नहीं करता। ये ही लोग हैं जो सड़क पर जाकर हरे राम, हरे कृष्ण करते हैं। और दूध-दूध-दूध-दूध करते हैं। जितना नुकसान गौ वंश का इन्होंने किया है, जितने गौ वंशों को इन्होंने कसाइयों को बेचा है, शायद ही किसी और ने किया है।

अगर ये कर सकते हैं तो बाकियों का क्या है?

26 सितंबर को मेनका गांधी के इस वायरल वीडियो क्लिप को ऑल्ट न्यूज़ के संस्थापक टीम के सदस्य मोहम्मद जुबेर द्वारा अपने ट्वीट के साथ जारी करने के बाद से अब तक 18 लाख दर्शकों द्वारा देखा जा चुका है, और सोशल मीडिया पर भाजपा नेता के बयान को लेकर तीखी टिप्पणियां की जा रही हैं।

सोशल मीडिया साइट एक्स यूजर इस्कॉन के विभिन्न हैंडल को टैग कर सवाल कर रहे हैं कि क्या मेनका गांधी के द्वारा दिए गये बयान का जवाब उनके पास है या यह बात सही है? तो कुछ लोग इस्कॉन को प्रतिबंधित करने की मांग सरकार से कर रहे हैं। उनका कहना है कि सरकार को इस्कॉन के खिलाफ कार्रवाई कर सारी संपत्ति को अपने अधीन कर लेना चाहिए, और किसी ऐसे संस्थान को सुपुर्द करना चाहिए जो सच में गौ सेवा के काम में लगा हो। इसके साथ ही सरकार को इस्कॉन की संपत्तियों की भी जांच करनी चाहिए और इस पर प्रतिबंध लगाना चाहिए।

इस संबंध में कल शाम इस्कॉन की ओर पीटीआई के माध्यम से से खंडन जारी किया गया है। इस्कॉन के संचार निदेशक वृजेंद्र नंदन दास ने अपने बयान में कहा है, “इस्कॉन मेनका गांधी द्वारा दिए गये झूठे बयान की निंदा और जोरदार खंडन करता है। ये बेहद झूठा और बेहूदा बयान उनकी ओर से दिया गया है। उन्होंने इस्कॉन को लेकर भ्रामक जानकारी फैलाई है। इस्कॉन की अनंतपुर गौशाला में 246 गायें हैं, जो दूध देती ही नहीं हैं। इसके बावजूद उनकी सेवा और देखभाल अन्य गायों की तरह ही बेहद श्रद्धा और प्रेम के साथ की जा रही है।

इसके अलावा वहां पर 76 के आस पास बैल हैं, दुधारू गाय तो सिर्फ 18 हैं। और वहां के जो स्थानीय अधिकारी हैं, जिनमें जिलाधिकारी, माननीय विधायक, पशु चिकित्साधिकारी वहां जा चुके हैं, और उन्होंने खुद बयान दिया है कि जो आरोप लगाये गये हैं झूठे हैं। वे लोग अक्सर गौशाला आते रहते हैं और सारी व्यवस्था देखते हैं।”

2024 आम चुनावों में भाजपा से गांधी परिवार का पूर्ण सफाया 

2019 लोकसभा चुनावों में पहले से भी बंपर जीत पाकर मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा के लिए वैसे भी अन्य क्षेत्रीय दलों के साथ दिखावटी गठबंधन की जरूरत खत्म हो चुकी थी। 1984 से कांग्रेस (आई) और गांधी खानदान से बगावत कर मेनका गांधी ने अपने राजनैतिक करियर की शुरुआत अपने जेठ राजीव गांधी के खिलाफ अमेठी संसदीय सीट से चुनाव लड़कर की थी।

हालांकि मेनका को इस चुनाव में करारी शिकस्त हासिल हुई, लेकिन इसके बाद 1989 में जनता दल के टिकट पर उन्होंने पीलीभीत संसदीय क्षेत्र से जीत दर्ज कर अपना राजनैतिक सफर शुरू किया था। 1995 में एक बार फिर जनता दल से संसद में पहुंचने के बाद 1998 और 1999 में भाजपा के समर्थन से उन्होंने पीलीभीत से अपना चुनाव जीता।

भाजपा को अपने राजनैतिक अभियान को व्यापक आधार देने के लिए कांग्रेस पार्टी से नाराज व्यक्तित्वों की हमेशा से जरूरत रही है, और अभी तक वह इसी नीति पर चलती आई है। मेनका गांधी तो सीधे इंदिरा गांधी के खानदान से ताल्लुक रखती थीं। जिसका राजनीतिक फायदा न सिर्फ पार्टी की इमेज को बढ़ाने बल्कि सिख समुदाय के बीच भी अपनी पैठ बढ़ाने के लिए मायने रखता था। ऊपर से पशु एवं पर्यावरण प्रेमी छवि भी एक नया आयाम प्रदान करने वाली थी।

लेकिन यह उपयोगिता आज के दिन हिंदुत्ववादी उभार और हिंदी प्रदेशों में एकछत्र राज ने लगभग खत्म कर दी है। 1989 से ही पर्यावरण एवं वन राज्य मंत्री के तौर पर मंत्रालय का अनुभव हासिल करने वाली मेनका गांधी को 2014 में भी मोदी मंत्रिमंडल में केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय का पदभार प्रदान किया गया था। लेकिन 2019 के बाद साफ़ हो गया था कि अब संभवतः उनकी जरूरत नहीं रही।

यही वजह है कि पिछले कुछ वर्षों में देखने को मिलता रहा है कि पीलीभीत से भाजपा सांसद और उनके बेटे वरुण गांधी द्वारा मीडिया और समाचारपत्रों में किसानों के समर्थन में लगातार लेख और विचार प्रस्तुत किये जाते रहे हैं। 2019 के बाद जब पीएम नरेंद्र मोदी की नीतियों और कार्यों पर किसी भी भाजपा नेता ने जुबान खोलने का साहस नहीं जुटाया, यह वरुण गांधी ही थे जिन्होंने समय-समय पर खुलकर अपने विचार प्रकट किये हैं।

अमेठी सीट पर स्मृति ईरानी की अग्नि परीक्षा

हाल ही में अमेठी स्थित संजय गांधी अस्पताल को लेकर एक नया विवाद तब खड़ा हुआ, जब अस्पताल में भर्ती एक मरीज की डाक्टरों की लापरवाही के चलते मौत की खबर आई। आनन-फानन में राज्य के स्वास्थ्य मंत्री ने अस्पताल के खिलाफ जांच बिठा दी और 30 दिनों के भीतर रिपोर्ट देने को कहा। लेकिन अगले 24 घंटे में ही संजय गांधी चैरिटेबल अस्पताल के खिलाफ अनियमितताओं का आरोप लगाकर अस्पताल को ही सील कर दिया गया है। इसके चलते 300 से अधिक कर्मचारियों, डाक्टरों और नर्सिंग स्टाफ का जीवन अधर में लटक गया है। माना जाता है कि इस अस्पताल को केंद्रीय कांग्रेस पार्टी के संरक्षण में चलाया जाता है, और अमेठी सहित आसपास के 3-4 जिलों के हजारों मरीजों के लिए इलाज का विश्वसनीय स्रोत रहा है। 

अमेठी में कांग्रेस की लोकप्रियता में इस अस्पताल का सबसे बड़ा हाथ माना जाता है। लेकिन इस विवाद पर कांग्रेस के बजाय पीलीभीत के सांसद वरुण गांधी के कूदने को राजनीतिक विशेषज्ञ अलग तरीके से पढ़ रहे हैं। हालांकि वरुण गांधी और मेनका गांधी के कांग्रेस में शामिल होने को लेकर अभी तक कोई सुगबुगाहट नहीं देखने को मिली है, लेकिन बहुत संभव है कि अपने पिता संजय गांधी की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए इस बार चुनाव में अमेठी से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर वरुण गांधी खुद चुनावी मैदान में उतर जायें।

दक्षिण में वायनाड सीट पर रिकॉर्ड मतों से पिछली बार राहुल गांधी की जीत ही नहीं हुई थी, बल्कि केरल की 20 में से 19 सीटों पर जीत हासिल कर दक्षिण भारत ने एक बार फिर से जता दिया था कि आज भी कांग्रेस के लिए दक्षिण के द्वार स्वागत में खुले हुए हैं। ऐसे में राहुल गांधी शायद ही अमेठी सीट से लडें। निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर वरुण गांधी को कांग्रेस समर्थन देती है, तो यह भाजपा और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के लिए बहुत भारी पड़ सकता है। दूसरी तरफ पीलीभीत से बागी उम्मीदवार के तौर पर सिख प्रभुत्व वाले लोकसभा क्षेत्र से मेनका गांधी आसानी से चुनाव जीत सकती हैं।

इस्कॉन के खिलाफ अभियान छेड़ने के निहितार्थ

मेनका गांधी की पिछले 5 साल की चुप्पी एक ऐसे विषय पर फूटी है, जिसे भाजपा संघ की कमजोर नस माना जाता है। पशु-प्रेमी मेनका गांधी ने इस्कॉन पर हमला कर परोक्ष रूप से भाजपा-आरएसएस की हिंदू धर्म आधारित राजनीति पर कड़ा प्रहार किया है। गौ सेवा के नाम पर देश में पिछले 10 वर्षों से जितनी मारकाट, मॉब लिंचिंग और धार्मिक उन्माद फैला है, उसने देश की अर्थव्यवस्था, विशेषकर यूपी, झारखंड, मध्यप्रदेश, हरियाणा और राजस्थान को झकझोर कर रख दिया है। लेकिन इसकी सबसे बड़ी मार अगर किसी एक राज्य पर पड़ी है तो वह है उत्तर प्रदेश। न सिर्फ करोड़ों किसानों को आवारा पशुओं से अपनी खेती को बचाने के लिए दिन-रात जद्दोजहद करनी पड़ती है, बल्कि ऐतिहासिक औद्योगिक नगरी कानपुर का चमड़ा उद्योग अपने खात्मे की ओर अग्रसर है। सारा बिजनेस एक-एक कर बांग्लादेश शिफ्ट हो रहा है। इसी प्रकार दूसरे बड़े शहर आगरा का जूता एवं चर्म उद्योग सिकुड़ चुका है, और लाखों दलित श्रमिकों के सामने रोजीरोटी का सवाल खड़ा हो गया है।

इस्कॉन के खिलाफ अभियान छेड़ मेनका गांधी ने साफ़ संकेत दे दिया है कि उनकी आगे की लड़ाई अब सोनिया गांधी और उनके परिवार के खिलाफ न होकर इसकी धार भाजपा की ओर मुड़ने जा रही है, जिसने पिछले 3 दशकों से उनके जैसे ही अनेकों विक्षुब्धों से खाद-पानी ग्रहण कर खुद को हमेशा-हमेशा के लिए अजेय मान लिया है। क्या इसे भाजपा-आरएसएस की राजनीति के सर्वोच्च शिखर से अब लुढ़कने के तौर पर चिन्हित किया जाना चाहिए? यह तो अगले कुछ महीनों बाद एक और राजनीतिक महाभारत के चुनावी संग्राम के दौरान ही स्पष्ट होना शुरू होगा, लेकिन एक बात तो तय है, भारत जोड़ो अभियान की राहुल गांधी की मुहिम में अभी ऐसे बहुत से लोगों की घर वापसी संभव है, जो 80 के दशक के बाद से कांग्रेस के पराभव के लिए दिन-रात जुटे हुए थे।  

(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

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