पत्रकार और पर्यावरण कार्यकर्ता राजीव नयन बहुगुणा पर हमला, संघ पर हमले का आरोप

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नई दिल्ली/ देहरादून। पत्रकार और पर्यावरण कार्यकर्ता राजीव नयन बहुगुणा पर हमला हुआ है। हमले में उनके चेहरे पर काफी चोट आयी है जिसके चलते उनका चेहरा सूज गया है। उनकी बायीं आंख में काफी चोट लगी है। उन्होंने इसके लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लोगों को जिम्मेदार ठहराया है।

उन्होंने अपने फेसबुक वाल पर लिखा है कि “नीच संघी ने मुझ पर हमला करवाया। मैं ऐसी नीचता से डरता नहीं। अनेक हमले झेल चुका। नीच संघी के विरुद्ध अभियान जारी रहेगा।”

उससे 12 घंटे पहले उन्होंने अपने फेसबुक वाल पर लिखा था कि “क्रूर एवं नीच संघी, मैं तेरी मन की मुराद पूरी न होने दूँगा। तूने गांधी की हत्या की, क्योंकि वह अल्पसंख्यक हिंदुओं को बचाने पाकिस्तान जाने वाला था। ऐ नीच, तेरा मुस्लिम उग्रवादियों से गठबंधन है। आ कभी मेरी हवेली पर, और स्वाद चख मेरी मकई का।”

बताया जा रहा है कि पिछले कुछ दिनों से लगातार उनको फोन पर धमकियां मिल रही थीं। इसके साथ ही उनके फेसबुक इनबॉक्स से भी इसी तरह की धमकी दी गयी थी। इस सिलसिले में उन्होंने एक फोन नंबर सार्वजनिक किया है जिससे उन्हें कई बार धमकी दी गयी। हालांकि उनका कहना है कि फोन करने पर वह शख्स अब फोन नहीं उठा रहा है।

बहुगुणा के फेसबुक पेज पर जाने पर पता चलता है कि यह सिलसिला कई दिनों से चल रहा है जिसमें वह लगातार धमकी देने वाले तत्वों को ललकार रहे थे। इसी कड़ी में उन्होंने एक पोस्ट में विस्तार से अपना परिचय देते हुए कहा था कि “कुछ बाल संघी मेरे इनबॉक्स में धमकी की भाषा प्रयुक्त कर रहे (हैं)। मेरे बारे में बेसिक जानकारी ले लो, तो श्रेयष्कर होगा । मेरा नाम राजीव नयन बहुगुणा है, तथा मैंने अपनी पत्रकारिता का कैरियर बिहार से शुरू किया। वहां मैं 5 वर्ष रहा हूँ। तुम्हारे समझने के लिए इतना पर्याप्त होगा ।
मैं अपना फोन नम्बर सार्वजनिक नहीं करता, पर उत्तराखंड सरकार की सूचना डायरी में मेरा नम्बर छपा है। ज़्यादा खुजली हो तो वहां से ले सकते हो । मैं नित्य देर शाम , बल्कि कभी-कभी देर रात देहरादून स्थित घर से अपने अरण्य निवास पर अकेला लौटता हूँ । कभी भी, कहीं भी मिल सकते हो ।
12 साल अखबार की नौकरी के बाद मैं अपने पिता (महान पर्यावरणविद और आंदोलनकारी सुंदर लाल बहुगुणा) के साथ टिहरी बांध विरोधी आंदोलन में आ कूदा। उसी दौरान एक बार सड़क के पैराफिट पर शाम को लेट कर सुस्ता रहा था, कि शहर कोतवाल आ गए। मुझसे मेरी बुलेट के कागज़ात मांगे, जो मैंने प्रस्तुत कर दिए ।
कुछ देर बाद हमारी कुटिया पर हवलदार जी आ कर बोले कि आपको कोतवाल साहब ने आवश्यक पूछताछ हेतु थाने बुलाया है। मैंने कहा, मेरी झोपड़ी से थाना जितनी दूर है, थाने से मेरी झोपड़ी भी उतनी ही दूर है। मुझे कोतवाल साहब से कोई काम नहीं। उन्हें मुझसे काम हो तो आएं। मैं स्वयं चाय बना कर पिलाऊंगा। हवलदार जी जाते जाते कह गए, आपकी मर्जी । खुद नहीं आओगे, तो हमें ले जाना आता है” ।

उन्होंने आगे लिखा है कि “तब मैंने मुख्यमंत्री मायावती के प्रमुख सचिव पन्ना लाल पुनिया को फोन पर सारी घटना बताई। पुनिया सम्भवतः आजकल कांग्रेस में हैं। मेरी तबसे बात नहीं हुई । रात गए अपनी वर्दी उतार कोतवाल जी मेरे पिता के चरणों मे लोट गए। मेरे पिता ने कहा, मैं तो कभी किसी की शिकायत करता ही नहीं। आप को ग़फ़लत हुई है। तब मैंने कहा, जाओ। हमें सोने दो, और पुनः मुख्य धारा में आने के लिए कुछ साल प्रयास करो। थाने में अपनी वर्दी टंगी रहने दो, और उसे दूर से निहारो। इस बीच संकल्प लो कि गरीब को नहीं सताना है।”  

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