विपक्षी गठबंधन के खौफ के साये में मोदी ही नहीं, ज्योतिरादित्य भी हैं

विपक्षी दलों की मजबूत एकजुटता ने एनडीए में भारी खलबली मचा दी है। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा की उलटबांसी के बाद अब नागरिक उड्डयन मंत्री और कभी कांग्रेस नेता राहुल गांधी के घनिष्ठ रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया का ट्वीट आज चर्चा का विषय बना हुआ है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कल बेंगलुरु में विपक्षी दलों की बैठक और संकल्प पत्र की घोषणा के बाद गठबंधन का नाम INDIA रखे जाने का उल्लेख करते हुए, अपने ट्वीट में उसका अभिप्राय बताया था। 

इसके जवाब में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने आज जवाबी ट्वीट देते हुए कहा है, “1947 – सत्ता के लिए भारत तोड़ा 

1975 – सत्ता के लिए आपातकाल लागू किया 

2022 – सत्ता के लिए तुष्टीकरण से ओत-प्रोत भारत जोड़ो यात्रा की 

2023 – सत्ता के लिए व भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिए गठबंधन INDIA जोड़ो 

ये जोड़-तोड़ की राजनीति वर्षों से कांग्रेस की विचारधारा का हिस्सा रही है। नए गठबंधन की सूरत भी वही, नीयत भी वही।”

यह ट्वीट काफी वायरल और चर्चा का विषय बनी हुई है। कोई और भाजपा मंत्री इस बात को ट्वीट करता तो उसे लोग माफ़ भी कर सकते थे। लेकिन सिंधिया खानदान के बारे में देश के लोग भली भांति जानते हैं कि यह खानदान 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई से ही अपनी भूमिका के लिए कुख्यात रहा है। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का साथ न देकर अंग्रेजों के पक्ष में सिंधिया परिवार की ऐतिहासिक भूमिका को आज बड़े पैमाने पर सिंधिया के जवाबी ट्वीट के रूप में चस्पा किया जा रहा है। 

कई लोग इसे केंद्रीय मंत्री की मजबूरी बता रहे हैं, जिसे भाजपा के मंत्रियों को व्हाट्सअप मंत्री बना दिया है। कुछ माह पहले जब राहुल गांधी से सिंधिया के कांग्रेस लौटने के बारे में प्रश्न किया गया था, तो राहुल ने स्पष्ट रूप से इसका विरोध कर साफ़ कर दिया था कि अब ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए कांग्रेस के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो गये हैं। सिंधिया के अपने प्रभाव के इलाकों में कांग्रेस कई दशकों बाद मेयर का चुनाव जीतने में सफल रही थी। मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री बनने की चाहत में कांग्रेस तोड़कर भाजपा की सरकार को स्थापित कराने वाले सिंधिया के लिए मुख्यमंत्री की गद्दी सपना ही बनकर रह गई है। कांग्रेस पार्टी इस बार विश्वासघाती सिंधिया से बदला लेने के लिए उतावली है, वहीं भाजपा में भी सिंधिया एवं उनके साथ आये विधायकों और अपने लोगों को टिकट देने की महत्वाकांक्षा आने वाले दिनों में क्या गुल खिलायेगी, इसको लेकर भाजपा नेतृत्व चिंतित है।

लोगों को सबसे बड़ी आपत्ति इस बात से है कि आजादी के बाद पैदा हुए माधव राव सिंधिया के सुपुत्र को जब पता था कि 1947 में भारत विभाजन के लिए कांग्रेस कसूरवार थी तो उन्होंने कांग्रेस में जाना ही क्यों स्वीकार किया? लंबे समय तक कई महत्वपूर्ण पदों पर रहते हुए आखिर में विश्वासघात तो सिंधिया ने किया कांग्रेस के साथ। हाल ही में घर वापसी की राह तलाश रहे सिंधिया को जब पुराने दोस्त राहुल गांधी का कड़ा जवाब मिला तो अब उनके पास ऐसे ही ट्वीट डालने के सिवाय कोई चारा भी नहीं बचा है। 

एक करारा जवाबी ट्वीट अपने आप में सारी बात स्पष्ट कर देता है।

विकास सिंह साईं नाम के एक ट्विटर यूजर ने लिखा है, “1857- सत्ता के लिए ख़ानदान ने अंग्रेजों का साथ दिया, रानी लक्ष्मीबाई को धोखा 

1947- सत्ता के लिए दादा नेहरूजी के राज में राज प्रमुख यानी राज्यपाल बने 

1957-67 – सत्ता के लिए दादी कांग्रेस से सांसद रहीं

1975- 2001 पिता कांग्रेस के सांसद थे, दादी ने आरोप लगाया कि उन्होंने ही गिरफ़्तार करवाया अपनी माताजी को कांग्रेस से सांसद -मंत्री रहे, पार्टी छोड़ी वापस लौटे 

2001-14 सत्ता के लिए ख़ुद कांग्रेस सांसद रहे, सरकार बनी तो मंत्री रहे 

2019- सत्ता के लिए लड़े लेकिन चुनाव हार गये। सिंधिया खानदान से चुनाव हारने वाले पहले व्यक्ति बनने का गौरव मिला। 

2020- सत्ता के लिए पार्टी बदल ली, भाषा बदल गई, जज़्बात बदल गये।”

बहरहाल ज्योतिरादित्य सिंधिया के पास चुनौती वास्तविक है। उनके पास अपने अस्तित्व का संकट गहरा गया है। आगामी मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में यदि वे ग्वालियर क्षेत्र के अपने आधार से अधिकाधिक विधायक जिताने में कामयाब नहीं रहे, तो उनका राजनीतिक भविष्य निपट जायेगा। राहुल गांधी की स्पष्टता और राजनीतिक अवसरवादिता के खिलाफ नफरत कांग्रेस को वैचारिक आधार पर मजबूती प्रदान करती है या नहीं यह तो आने वाला वक्त ही बतायेगा।

(जनचौक टीम की रिपोर्ट।)

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