Friday, September 29, 2023

वकीलों के संगठन AILAJ ने चीफ जस्टिस को लिखा पत्र, पुरोला कांड पर स्वत: संज्ञान लेने का अनुरोध

नई दिल्ली। उत्तराखंड के पुरोला में मुसलमानों को बाहर करने की घटना पर ऑल इंडिया लॉयर्स एसोसिएशन फॉर जस्टिस (AILAJ) ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ को पत्र लिखकर मामले को स्वत: संज्ञान लेते हुए याचिका के रूप में पंजीकरण करने की मांग की है। पत्र में यह भी मांग की गई है कि अदालत उत्तराखंड में कानून के शासन की बहाली के लिए और जातीय सफाए के प्रयासों को रोकने के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश दे। ऑल इंडिया लॉयर्स एसोसिएशन फॉर जस्टिस (AILAJ) का मुख्यालय बेंगलुरु में है। एआईएलएजे के अध्यक्ष मैत्रेयी कृष्णन और महासचिव क्लिफटन डी’ रोजरियो हैं।

उत्तराखंड में ‘लव जिहाद’ के नाम पर कुछ लोग मुसलमानों को भगाने का अभियान चला रहे हैं। यह देश के मूलभूत मूल्य बंधुत्व, गरिमा और बहुलवादी लोकतांत्रिक ताने-बाने के खिलाफ है। पत्र में कहा गया है कि जातीय सफ़ाई की मांग को आपके तत्काल संज्ञान में लाने के लिए हम आपको लिख रहे हैं।

ऐसे तत्व उत्तराखंड में मुस्लिमों के विरोध में हिंसा भड़का कर उन्हें गंभीर खतरे में डाल रहे हैं और उन्हें धमकी दे रहे हैं। उत्‍तराखंड विक्षुब्‍ध साम्‍प्रदायिक स्थिति की चपेट में है, जिसमें ऐसी खबरें भी शामिल हैं कि मुसलमानों को गांवों और कस्बों से बेदखल किया जा रहा है। एक युवक पर आरोप है कि एक नाबालिग लड़की को एक युवक के साथ भगाने में उसने मदद की थी। फिलहाल दोनों आरोपियों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। मामला कुछ सप्ताह पहले पुरोला कस्बे का है। उनमें से एक आरोपी मुस्लिम है और बताया जाता है कि एक अन्य आरोपी हिंदू है।

इस घटना को “लव जिहाद” के एक उदाहरण के रूप में पेश किया जा रहा है, जिसके चारों ओर मुस्लिम विरोधी लामबंद हो रहे हैं। विश्व हिंदू परिषद ने टिहरी जिलाधिकारी को पत्र सौंपकर कहा कि “एक विशेष समुदाय के लोग पूरी जौनपुर घाटी छोड़ दें और धमकी दिया कि नहीं तो उन्हें बेदखल कर दिया जायेगा।”

ऑल इंडिया लॉयर्स एसोसिएशन फॉर जस्टिस (AILAJ) ने पत्र में लिखा है कि, देवभूमि के अलग-अलग शहर में मुस्लिमों को अलग-अलग तरीके से अंतिम प्रस्ताव दिये जा रहे है, द इंडियन एक्सप्रेस के रिपोर्ट के अनुसार “पुरोला बाजार में मुस्लिम दुकानदारों को अपनी दुकानें स्थायी रूप से बंद करने और शहर छोड़ने के लिए मजबूर किया गया।” हिंदुस्तान टाइम्स ने अपने एक रिपोर्ट में ये बताया है कि मुस्लिम व्यापारियों को 15 जून तक दुकानें बंद करने की धमकी वाले पोस्टर उत्तरकाशी शहर लगाये गये है।

उत्तराखंड में मुस्लिमों के खिलाफ जो रहा है, उनके मूल को मिटाने कि जो कोशिश की जा रही है, उससे तो यही समझ में आता है कि ऐसी घटनाएं देश के धर्मनिरपेक्षता के चरित्र को कमजोर करता है। सम्मान, आजीविका और आश्रय का अधिकार हर किसी को है, लेकिन मुस्लिम विरोधी पोस्टर लगाना, मुस्लिम संपत्तियों को नुकसान पहुंचाना और जनसंहार की धमकी देना गलत है।

ऑल इंडिया लॉयर्स एसोसिएशन फॉर जस्टिस (AILAJ) ने अपने पत्र में भाजपा को घेरते हुये लिखा है कि, कोई भी पार्टी जब सरकार बनाती है तो उसे अपनी पार्टी की विचारधारा के तहत नहीं बल्कि संवैधानिक नैतिकता के आधार पर शासन करना होता है। हालांकि, उत्तराखंड में मुस्लिम समुदाय के पलायन करने पर  ऐसा लग रहा मानो एक बार फिर से भाजपा सरकार संविधान को बनाये रखने में विफल हो रही है।

7 पन्नों के इस पत्र में वकील संघ ने अलग-अलग अखबारों का संदर्भ देते हुये, उत्तराखंड में जो हो रहा है उसे गलत ठहराया है, और इस मामले को काबू में लाने के लिये आखिरी पन्ने में कुछ जरुरी पॉइंट डाले है। पत्र के आखिरी पन्ने में संघ ने, मौलिक अधिकारों का हवाला देते हुये सर्वोच्चय न्यायलय को लोकतंत्र का प्रहरी बनाकर रखा है। हम ईमानदारी से आशा करते हैं कि, इस मानव त्रासदी के समय में मानवाधिकारों के उल्लंघन को सर्वोच्च न्यायालय को स्वत: संज्ञान लेना चाहिये।

सुप्रीम कोर्ट से मांग के प्रमुख बिंदु:

  • सुप्रीम कोर्ट राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दे कि राज्य में किसी भी प्रकार का कोई सांप्रदायिक, डराने-धमकाने वाला, या फिर नफरत फैलाने वाला अभियान, कार्यक्रम या पंचायत न हो।
  • राज्य सरकार उत्तराखंड में मुस्लिमों के जातीय सफाए की मांग कर रहे संगठन/व्यक्ति के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का निर्देश दें।
  • पुलिस को हिंसक हिंदुत्व की बात करने वालों के खिलाफ अपराधिक मामले दर्ज करने का निर्देश दे, मुसलमानों के खिलाफ अभद्र भाषा और हिंसा में संलिप्त संगठन/व्यक्ति को निष्पक्ष जांच करने का आदेश दे।
  • उत्तराखंड में जिला अधिकारियों को निर्देश दे कि वे मुसलमानों को उनके घरों और वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों में लौटाएं। जरूरत पड़ने पर पुलिस की भी सहायता ले सकते हैं।

(ऑल इंडिया लॉयर्स एसोसिएशन फॉर जस्टिस के पत्र पर आधारित, अनुवाद: राहुल कुमार)

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