उत्तराखंड: खस्ताहाल सड़क से गुजरती कन्यालीकोट गांव की जिंदगी, नहीं पहुंच पाती एंबुलेंस

कपकोट। हमारे देश की अर्थव्यवस्था मुख्यतः ग्रामीण क्षेत्रों पर निर्भर करती है। आज भी देश की 74 प्रतिशत आबादी यहीं से है। लेकिन इसके बावजूद ग्रामीण क्षेत्र आज भी कई प्रकार की बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं। इनमें सड़क की समस्या भी अहम है। कुछ दशक पूर्व देश के ग्रामीण क्षेत्रों की सड़कों की हालत काफी खराब थी। लेकिन वर्ष 2000 में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) के लांच होने के बाद से इस स्थिति में काफी सुधार आया है।

इस महत्वाकांक्षी परियोजना के शुरू होने से पूर्व देश के लगभग आठ लाख 25 हजार गांवों और बस्तियों में से करीब तीन लाख 30 हजार गांव और बस्तियां ऐसी थीं जो पूरी तरह से सड़क विहीन थीं। यहां सड़कें केवल नाममात्र की थीं। इसका सीधा असर ग्रामीण जनजीवन और अर्थव्यवस्था पर देखने को मिलता था।

इन क्षेत्रों में उत्तराखंड भी प्रमुख रहा है, जहां के कई दूर दराज ग्रामीण क्षेत्र ऐसे हैं जो आज भी सड़क विहीन हैं। राज्य के गठन के 23 साल बाद भी कई ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कों की हालत खस्ता है। इन्हीं में एक कन्यालीकोट गांव भी है। बागेश्वर जिला से करीब 25 किमी दूर इस गांव में सड़क नाममात्र स्थिति में है। इसकी स्थिति इतनी जर्जर है कि इस पर से गुजरना किसी विपत्ति को आमंत्रण देने जैसा है।

पिछले कई वर्षों से रख रखाव नहीं होने के कारण यह सड़क बिल्कुल ख़राब स्थिति में पहुंच चुकी है। बारिश ने इसकी हालत को और भी बुरा बना दिया है। सड़क पर बड़े बड़े गड्ढे बन चुके हैं। जिससे होकर किसी भी बड़ी गाड़ियों को गुजरना मुश्किल हो जाता है। ग्रामीणों का ऐसा कोई वर्ग नहीं है, जिसे इसकी वजह से कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ता है। चाहे वह बुज़ुर्ग हों, मरीज़ हो, आम आदमी हो या फिर स्कूली छात्र-छात्राएं, सभी यहां की जर्जर सड़क से आए दिन किसी न किसी प्रकार की परेशानियों का सामना करते रहते हैं।

सड़क की खराब स्थिति का खामियाजा ग्रामीणों को दैनिक जीवन में भुगतना पड़ता है। इसकी वजह से कोई भी सवारी गाड़ी गांव में नहीं आती है। लोगों को शहर जाने के लिए गांव से कई किमी दूर पैदल चलकर आना पड़ता है, जहां से फिर उन्हें गाड़ी मिलती है।

अलबत्ता गांव में गढ्ढों के बीच सड़कों के कुछ अंश देखने को अवश्य मिल जाते हैं। इस स्थिति में यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं होगा कि बारिश के दिनों में यहां के लोगों के लिए किस प्रकार की कठिनाइयां आती होंगी? इस दौरान गांव में यातायात की सुविधा लगभग ठप्प होकर रह जाती है। इस कारण लोगों को पैदल ही आना-जाना पड़ता है। इस पैदल सफर में भी उनकी मुश्किल खत्म नहीं होती है। गड्ढों की वजह से अक्सर लोग दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं, जिसमें एक बड़ी संख्या वृद्धों और गर्भवती महिलाओं की है।

अक्सर गांव की गर्भवती महिलाओं को प्रसव के समय जर्जर सड़क का खामियाजा भुगतना पड़ता है। एक तरफ जहां वह प्रसव पीड़ा से गुजरती हैं वहीं दूसरी ओर उनके परिजन निजी वाहनों के लिए पैसों की व्यवस्था में परेशान रहते हैं। राज्य में 108 पर कॉल कर एंबुलेंस बुलाई जा सकती है, लेकिन सड़क नहीं होने के कारण गांव तक एंबुलेंस नहीं पहुंच पाती है।

ऐसे में आर्थिक रूप से सशक्त परिजन किसी प्रकार निजी वाहन की व्यवस्था कर लेते हैं। लेकिन गरीब परिवार जो निजी वाहन की व्यवस्था करने में असमर्थ होते हैं, वह मरीज को खाट पर बांध कर मुख्य सड़क तक लाते हैं। ऐसे में वर्षा के दिनों में क्या स्थिति होती होगी इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।

इस संबंध में गांव की एक महिला का कहना है कि सड़क खराब होने के कारण गांव की महिलाओं और बुजुर्गों को सबसे अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। सबसे ज्यादा कठिनाई तो गर्भवती महिलाओं को होती है। जब उन्हें चेकअप के लिए अस्पताल जाना होता है। वह खराब सड़क की वजह से कभी भी समय पर अस्पताल नहीं पहुंच पाती हैं, जिस कारण कई बार वह चेकअप कराने से वंचित रह जाती हैं। इससे उनका पैसा और समय दोनों ही बर्बाद हो जाता है।

प्रसव के समय महिला को सही सलामत अस्पताल पहुंचाना परिजनों की सबसे बड़ी चुनौती होती है। इसके कारण अक्सर महिलाओं की मौत तक हो जाती है। इन महिलाओं का कहना है कि सड़क की जर्जर स्थिति और मुश्किल समय को देखते हुए निजी वाहन वाले भी मनमाना किराया वसूलते हैं, जो आर्थिक रूप से कमज़ोर परिवारों के लिए आसान नहीं होता है। सड़क की खराब हालत के कारण गांव में कभी भी समय पर एम्बुलेंस नहीं पहुंच पाती है और बारिश के समय तो उसका पहुंचना लगभग असंभव हो जाता है।

सड़क की जर्जर व्यवस्था ने केवल गांव की सामाजिक ज़िंदगी को ही नहीं, बल्कि उसे आर्थिक रूप से भी नुकसान पहुंचाया है। ऐसा लगता है कि गांव का विकास भी इन्हीं किसी गड्ढों में दुर्घटनाग्रस्त हो चुका है। गांव की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण युवा रोजगार के लिए शहरों का रुख करने लगे हैं।

इस संबंध में सामाजिक कार्यकर्ता नीलम ग्रैंडी का कहना है कि सड़क की जर्जर हालत ने कन्यालीकोट के सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था को ठप्प कर दिया है। एक तरफ जहां यह प्रशासनिक उदासीनता का शिकार हुआ है वहीं दूसरी ओर राजनीतिक रूप से भी इसे नजरअंदाज किया जाता रहा है। इस गांव में सड़क का मुद्दा न केवल ग्राम पंचायत चुनाव बल्कि विधानसभा चुनाव में प्रमुख रहा है। सभी उमीदवारों ने जीतने के बाद सड़क की हालत को सुधारने का वादा अवश्य किया, लेकिन गांव वाले आज भी इस वादे के पूरा होने का इंतज़ार कर रहे हैं।

बहरहाल, गांवों के लोगों के लिए सड़क का नहीं होना किसी अभिशाप की तरह है। ऐसा नहीं है कि गांव वाले इसके लिए गंभीर नहीं हैं। लोग सड़क की हालत सुधारने के लिए गुहार लगाते-लगाते थक चुके हैं। धीरे धीरे उनकी उम्मीदें भी टूटने लगी हैं। यही कारण है कि जो ग्रामीण सामर्थ्यवान थे वे परिवार के साथ गांव छोड़ कर शहरों का रुख कर चुके हैं। लेकिन आर्थिक रूप से कमज़ोर और लाचार ग्रामीण आज भी मुसीबत झेलने के लिए विवश हैं।

राज्य गठन के बाद लोगों को उम्मीद थी कि उनके घर या आसपास तक उन्नत सड़क पहुंच जाएगी लेकिन 23 साल बाद भी उनकी यह आस अब तक पूरी नहीं हुई है। देखना यह है कि उनकी उम्मीदें कब पूरी होंगी?

(उत्तराखंड के कपकोट से पुष्पा आर्या की रिपोर्ट।)

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