नई दिल्ली। आज जंतर-मंतर पर मणिपुर के लोगों ने मणिपुर में शांति बहाली की मांग करते हुए प्रर्दशन किया। इस प्रदर्शन में नागरिक संगठनों के कार्यकर्ता और बुद्धिजीवी भी शामिल हुए। सभी ने एक स्वर से कहा कि पिछले 53 दिनों से मणिपुर जल रहा है, हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है। कोई ऐसा दिन नहीं गुजरता जब किसी हत्या की खबर न आती हो। मणिपुर में कानून व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं रह गई है। इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री खामोश हैं। गृहमंत्री गंभीर कोशिश करते नहीं दिख रहे हैं। मणिपुर के मुख्यमंत्री, मुख्यमंत्री की जगह एक समुदाय विशेष के नेता की तरह व्यवहार कर रहे हैं।
प्रदर्शन में शामिल लोगों ने कहा कि केंद्र सरकार मणिपुर के साथ ऐसा व्यवहार कर रही है कि लगता है कि मणिपुर भारत का हिस्सा ही न हो। हम किसी दूसरे ग्रह के प्राणी हों।
प्रदर्शन में शामिल लोग अपने हाथों में अलग-अलग नारों और मांगों का पोस्टर लिए हुए थे। पोस्टरों में मणिपुर में शांति बहाल करो, एन. बिरेन सिंह इस्तीफा दो, ट्राइब्ल लाइफ मैटर्स, आइए भारत में न्याय की कहानी लिखें, आदि नारे लिखे हुए थे। सभी एक स्वर से मणिपुर में शांति बहाली की मांग कर रहे थे। लोग लड़ने और जीतने का संकल्प व्यक्त कर रहे थे।
प्रदर्शन को संबोधित करने वाले लोग बार-बार यह सवाल पूछ रहे थे कि आखिर सैकड़ों लोगों के मारे जाने और हजारों लोगों के विस्थापित होने के बाद भी प्रधानमंत्री चुप क्यों हैं?
वक्ता जोर देकर कह रहे थे कि आप अमेरिका में भारत को लोकतंत्र की मां ( India is the mother of democracy) कहते हैं। लेकिन मणिपुर में लोकतंत्र को खुलेआम तहस-नहस किए जाने के बाद भी आप चुप हैं।
दिल्ली विश्वविद्यालय के डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट की नंदिता नारायण ने कहा कि “मणिपुर में लोकतंत्र को बचाने के लिए जो लोग भी यहां जुटे हैं, उन सभी लोगों को यह समझना चाहिए मणिपुर लोगों के साथ भारत सरकार जो व्यवहार कर रही है, वह अकल्पनीय है। मणिपुर के लोग इसी देश के वाशिंदे हैं। हमारे भाई-बहन हैं। केंद्र सरकार की यह जिम्मेदारी है कि वह वहां के लोगों के जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा करे।” उन्होंने कहा कि मणिपुर सरकार और केंद्र सरकार पूरी तरह असफल रही है।
प्रर्दशनकारियों में शामिल हैवए से जब जनचौक संवाददाता ने यह पूछा कि आप मणिपुर के मामले में केंद्र सरकार की भूमिका को कैसे देखती हैं, तो उन्होंने कहा कि “ यह सरकार सबका साथ, सबका विकास और बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का नारा देती है। लेकिन वह मणिपुर बेटियों को बचाने के लिए नहीं आई। यही सबका साथ का मतलब है? क्या यही सबका विकास है?” उन्होंने आगे कहा कि मणिपुर में जो कुछ हो रहा है क्या वह सबका साथ और सबका विकास है। क्या मणिपुर की बेटियों को बचाने की जिम्मेदारी सरकार की नहीं? क्या हम इस देश के निवासी नहीं हैं?” उन्होंने कहा कि सच यह है कि यदि मणिपुर के मुख्यमंत्री, देश के गृहमंत्री या प्रधानमंत्री चाहते तो चौबीस घंटे के अंदर हिंसा खत्म हो जाती है। लेकिन हमें लगता है कि वे ऐसा नहीं चाहते हैं।”
जब जनचौक संवाददाता ने यह पूछा कि क्या गृहमंत्री द्वारा बुलाई गई सर्वदलीय बैठक से आप को कोई उम्मीद है? तो उन्होंने कहा कि “ हम गृहमंत्री और प्रधानमंत्री से गुहार लगाने के अलावा क्या कर सकते हैं। हम बार-बार उनके सामने पुकार लगा रहे हैं, लेकिन वे अनसुना कर दे रहे हैं। लेकिन हम गुहार लगाना जारी रखेंगे।”
इस प्रर्दशन में शामिल सामाजिक कार्यकर्ता मैमुनुल्ला कहती हैं कि मणिपुर में शांति की मांग केवल मणिपुरी लोगों की जिम्मेदारी नहीं है। यह पूरे देश की जिम्मेदारी है। यहां पर हम अपने मणिपुरी भाई-बहनों के लिए अमन-चैन की मांग करने आए हैं। मणिपुर में कानून व्यवस्था की बहाली के लिए बहरी सरकार को आवाज देने आए हैं। केंद्र सरकार ने मणिपुर के लोगों के उनके हाल पर मरने जीने के लिए छोड़ दिया है। ऐसा लगता है कि सरकार का उनसे कोई रिश्ता ही न हो।” वे आगे बताती हैं कि मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बिरेन सिंह सारी समस्या की जड़ हैं।
प्रदर्शन में शामिल ऑल इंडिया महिला सांस्कृतिक संगठन कि सदस्य रितु कौशिक का कहना था कि मणिपुर की हिंसा स्वत:स्फूर्त हिंसा नहीं है। यह राज्य प्रयोजित है। देश के किसी हिस्से में हिंसक वारदात हो सकती है, लेकिन 53 दिनों तक हिंसा का जारी रहना यह बताता है कि मणिपुर सरकार और केंद्र सरकार इस हिंसा पर लगाम नहीं लगाना चाहती हैं। रितु कौशिक यह भी कहती हैं कि मैतई और कुकी के बीच हिंसा को सरकार ने जानबूझकर भड़काया है। असल बात यह है कि केंद्र सरकार और राज्य सरकार कुकी लोगों से जंगल और जमीन का अधिकार छीनकर उसे कॉर्पोरेट को सौंपना चाहती है।
( आजाद शेखर और राहुल की ग्राउंड रिपोर्ट)