दूसरों के मल को अपने हाथों से ढोना बेहद अमानवीय है। ये अमानवीय प्रथा सदियों से हमारे देश में एक मान्य प्रथा की तरह चलती आ रही है। सरकार यह कहती रही है कि पिछले कुछ वर्षों में देश में मैला ढोने की प्रथा को समाप्त कर दिया गया है। अब केवल खतरा सीवर और सेप्टिक टैंकों की खतरनाक सफाई है। केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की रिपोर्ट कुछ और कह रही है। मंत्रालय ने कहा है कि देश के कुल 766 जिलों में से केवल 508 जिले मैला ढोने से मुक्त हुए हैं। इसका अर्थ है कि 66 फीसदी जिले मैला ढोने की प्रथा से मुक्त हुए हैं और 34 फीसदी अब भी मैला ढोने की प्रथा को ढो रहे हैं।
मंत्रालय ने 2014 से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अपनी उपलब्धियों की रूपरेखा तैयार करने के लिए एक पुस्तिका तैयार की है। सामाजिक न्याय मंत्रालय ने पिछले दो वर्षों में लगभग हर संसद सत्र में कहा है कि देश भर में मैला ढोने से कोई मौत नहीं हो रही है। इन मौतों के लिए “सीवर और सेप्टिक टैंक की खतरनाक सफाई” को जिम्मेदार ठहराया गया है।
मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने सीवरों की खतरनाक सफाई से हाथ से मैला ढोने को अलग किया है। इस सीधे सवाल के जवाब में कि अन्य जिलों ने खुद को मैला ढोने से मुक्त क्यों नहीं बताया। सामाजिक न्याय मंत्री वीरेंद्र कुमार ने कहा कि “राज्यों, नगर निकायों से जो भी जानकारी मिली है उसके अनुसार सभी ने कहा है कि मैला ढोने की प्रथा अब नहीं है। उन सभी ने सामूहिक रूप से 58,000 से अधिक मैला ढोने वालों की पहचान की है। जिसने भी अपने दम पर कुछ और करने का फैसला किया है, हम उन्हें कौशल प्रशिक्षण केंद्रों से जोड़ रहे हैं।”
देश के 258 जिले अभी भी मैला ठोने की प्रथा से मुक्त होने का इंतजार कर रहे हैं। हाथ से सीवर और मेनहोल की सफाई कई श्रमिकों की जान ले चुकी है। दिसंबर 2022 में, सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास अठावले ने एक सवाल के जवाब में लोकसभा को सूचित किया था कि 2017 से 2022 तक सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई करते हुए 400 से अधिक लोगों की मौत हुई है। अठावले की तरफ से पेश आंकड़ों के अनुसार, सीवर और सेप्टिक टैंक की जोखिमपूर्ण सफाई करने के दौरान वर्ष 2017 में 100 लोगों, वर्ष 2018 में 67 लोगों, 2019 में 117 लोगों, 2020 में 19 लोगों, 2021 में 49 लोगों और 2022 में 48 लोगों की मौत हुई।
एक सवाल के जवाब में केंद्रीय सामाजिक न्याय मंत्रालय ने संसद में बताया था, ‘देश में कुल 58,098 लोग हाथ से मैला साफ करने के काम में लगे हुए हैं। कानून के अनुसार मैनुअल स्कैवेंजर की पहचान के लिए जाति के संबंध में कोई प्रतिबंध नहीं है, लेकिन फिर भी अधिनियम के प्रावधानों के तहत सर्वे कराए गए हैं। इनमें से 43,797 लोगों की ही जातिगत पहचान हुई है। 43,797 लोगों में से 42,594 लोग एससी यानी अनुसूचित जाति समुदाय से आते हैं, इसके अलावा 421 लोग आदिवासी, जबकि 431 लोग ओबीसी समुदाय से हैं, इनके अलावा 351 अन्य वर्गों के लोग शामिल हैं।’
हाथ से मैला साफ करने और ढोने की कुप्रथा पर साल 1993 में रोक लगाई गई थी। इसके लिए सरकार ने Manual Scavenging Prohibition Act 1993 पारित किया था। मैला ढुलवाने को अपराध घोषित करते हुए ऐसा करवाने के लिए सजा का भी प्रावधान है। मैनुअल स्कैवेंजिंग प्रोहिबिशन एक्ट के मुताबिक, कोई व्यक्ति, कंपनी, फर्म या एजेंसी सीवर, सेप्टिक टैंक, नाले वगैरह साफ करवाने के लिए किसी व्यक्ति को बहाल नहीं कर सकती है। कोई व्यक्ति अगर किसी से मैला ढुलवाता है तो उसे 2 साल तक की जेल हो सकती है या 1 लाख का जुर्माना हो सकता है। या फिर दोनों हो सकता है। मैनुअल स्कैवेंजिंग के खिलाफ कानून बने 29 साल से ज्यादा हो गए, लेकिन ये कुप्रथा जड़ से खत्म नहीं हो पाई।
(कुमुद प्रसाद जनचौक की सब एडिटर हैं।)