नई दिल्ली। माओवादियों ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कांकेर एनकाउंटर को नरसंहार करार दिया है। और उसके विरोध में 25 अप्रैल को नारायणपुर, कांकेर, मोहला-मानपुर में बंद का आह्वान किया है। 18 अप्रैल को जारी इस प्रेस विज्ञप्ति में कांकेर जिले के आपाटोला-कलपर जंगल में पुलिस द्वारा अंजाम दिए गए कत्लकांड के विरोध में आवाज उठाने की अपील की गयी है। इसके साथ ही 25 अप्रैल के बंद को सफल बनाने का आह्वान किया गया है।
विज्ञप्ति की शुरुआत में ही मारे गए सभी कैडरों के नाम लिखे गए हैं। जिसमें वह किन कमेटियों से जुडे़ थे और उनका क्या वहां पद था उसका पूरा ब्योरा दिया गया है। इस सूची में तकरीबन 10 से ज्यादा महिलाओं का नाम है। इनमें रीता (रामको दर्रो), अनिता उपेंडी, रजिता, गीता (पुन्नाई पूडो), सुरेखा सिडामी, कविता सोडी, शर्मिला पोडियाम, भूमे (सुनिता मडकम), सजंती (लकमी नुरोटी), जेन्नी नुरोटी, जनीला, सीताल माडवी, शीलो आदि नाम प्रमुख रूप से दिए गए हैं।
आगे पूरी घटना का विवरण देते हुए आखिर में कहा गया है कि “हमले में गोलियां लगने की वजह से सिर्फ 12 कॉमरेडों की मौत हुई। बाकी सभी 17 कॉमरेडों को पुलिस ने घायल अवस्था में या जिंदा पकड़ कर निर्मम हत्या कर दी”।
इसके पहले घटना का ब्योरा देते हुए सबसे पहले सभी को श्रद्धांजलि दी गयी है। और मरने वालों के परिजनों के प्रति शोक संवेदना व्यक्त की गयी है। ब्योरे में कहा गया है कि “हमारी पीएलजीए की एक टीम जिसमें अलग-अलग विभागों में कार्यरत कामरेड शामिल थे और उनमें से कुछ लोग निहत्थे थे जब आपाटोला व कलपर के बीच के जंगल में पनाह ली थी।“ पर्चे में कहा गया है कि तभी इसकी सूचना मुखबिरों के जरिये पुलिस को मिली और फिर सुरक्षा बलों के जवानों ने हमला बोल दिया।
विज्ञप्ति में कहा गया है कि कैडरों ने जमकर हमले का मुकाबला किया और कुछ लोग सुरक्षित बचकर निकल भी आए। बाद में पुलिस के जवानों ने घायल 8 कैडरों को यातनाएं देकर उनकी हत्या कर दी। बाकी 11 कैडरों को पहले घसीटकर दूर ले जाया गया और उनकी निर्मम तरीके से पिटाई की गयी और फिर उनको भी गोली मार दी गयी।
विज्ञप्ति में यह भी बताया गया है कि घायल और जिंदा कैडरों को मारने या फिर नहीं मारने को लेकर प्रशासन के बीच मतभेद था। इसमें दावा किया गया है कि इस मामले में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय, उप मुख्यमंत्री विजय शर्मा व पुलिस के आला अधिकारियों के बीच बातचीत हुई जिसमें उन्हें मार देने का फैसला हुआ।
पर्चे में कहा गया है कि इसी वजह से मीडिया में रुक-रुक कर सूचनाएं आयीं। पहले 12 की लाशें मिलने का दावा किया गया फिर इस संख्या को 18 बताया गया और फिर उसके बाद 29 शव मिलने का समाचार प्रसारित किया गया। और फिर यहीं उनका कहना था कि गोलियों से सिर्फ 12 लोगों की मौत हुई बाकी सभी 17 लोगों को पुलिस ने घायलावस्था या फिर जिंदा पकड़ कर उनकी हत्या की।
पर्चे में आदिवासी क्षेत्रों में होने वाली कॉरपोरेट लूट का भी जिक्र है। जिसमें कहा गया है कि सरकार यहां के क्रांतिकारी आंदोलन को खत्म कर पूरे दंडकारण्य की अकूत प्राकृतिक संपत्ति कौड़ियों के भाव देशी-विदेशी कारपोरेट कंपनियों को सौंप देना चाहती है। इसमें कहा गया है कि सूबे में आदिवासी मुख्यमंत्री को बैठाकर अब आदिवासियों का ही नरसंहार किया जा रहा है।
आखिर में सभी जनवादी, प्रगतिशील, धर्मनिरपेक्ष और क्रांतिकारी सामाजिक संगठनों, तबकों और व्यक्तियों से इसके खिलाफ आवाज उठाने की अपील की गयी है। इसके साथ ही जनपक्ष धर मीडिया से घटनास्थल का दौरा कर तथ्यों को सामने लाने की अपील की गयी है। जिससे दुनिया जान सके कि घटना और घटना के पीछे की सच्चाई क्या है। अंत में बंद के संदर्भ में लिखा गया है कि आपातकालीन सेवाओं मसलन अस्पताल, एंबुलेंस, परीक्षार्थियों के वाहनों को इस बंद से छूट मिलेगी।
विज्ञप्ति के आखिर में प्रवक्ता का नाम मंगली लिखा गया है और उस पर उसका हस्ताक्षर भी है।
हालांकि सुरक्षा बलों के जवानों ने इसे मुठभेड़ करार दिया है। और सारी मौतों को उसी दौरान हुई मौत बताया है।
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