चुनाव का महीना नेता करे सोर, सोर नहीं बाबा शोर, शोर। प्रदेश में जैसे-जैसे चुनाव का दिन नज़दीक आ रहा है, चुनावी शोर बढ़ता जा रहा है, इस शोर में नेताओं के वादे हैं, दावे हैं, आरोप हैं और जनता के मुद्दे की भी आवाज़ें शामिल हैं। लेकिन इस सब में जो बात सिरे से ग़ायब है, वो है विधानसभा में विधायकों की परफ़ॉर्मेंस।
आख़िर में संसदीय लोकतंत्र का सबसे प्रमुख आधार सदन है, लेकिन इस विशालकाय लोकतंत्र में सदन की दीवारों के भीतर की गतिविधियों पर गाहे-बगाहे ही चर्चा होती है। इसलिए प्रायः किसी भी विधायक की सदन में परफ़ॉर्मेंस को राजनीतिक मुद्दे की तरह नहीं देखा जाता है।
200 सदस्यों वाली राजस्थान विधानसभा साल 2018-2023 में पन्द्रहवीं बार सजी थी, जिसमें 108 विधायकों के साथ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अपनी सरकार बनाई, वहीं 69 विधायकों वाली भारतीय जनता पार्टी ने मुख्य विपक्षी दल की भूमिका निभाई। इसी विधानसभा के लिए 14 निर्दलीय विधायक, 3 विधायक राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी से, 2 विधायक भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) से, 2 विधायक भारतीय ट्राइबल पार्टी से और 1 विधायक राष्ट्रीय लोक दल से चुना गया था।
राजस्थान की पन्द्रहवीं विधानसभा 8 सत्रों में 147 दिनों तक चली, कोविड महामारी के कारण सामान्य विधानसभा की अपेक्षा विधानसभा की कार्यवाही कम दिवसों तक चली। इस दौरान 176 विधायकों द्वारा 42,454 सवाल पूछे गए साथ ही विधानसभा के सामने 134 बिल रखे गए, जिनमें से 126 बिलों को पारित कर क़ानून बनाया गया।
बीजेपी से अनूपगढ के विधायक संतोष द्वारा सर्वाधिक 550 सवाल पूछे गए वहीं कांग्रेस के नाडबाई से विधायक जोगिंदर सिंह अवाना और बांदीकुई से विधायक गजराज खटाना ने 147 में से 145 दिवसों की कार्यवाही में हिस्सा लेकर सर्वाधिक उपस्थिति दर्ज करवाई।
वहीं सबसे कम उपस्थिति दर्ज करवाने वालों में बीकानेर पूर्व से बीजेपी विधायक सिद्धि कुमारी 5%, पाली से बीजेपी विधायक ज्ञानचन्द्र पारख 7%, और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे 14% शामिल रहे। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे पर विपक्ष के समय निष्क्रिय होने के आरोप हमेशा से लगते रहे हैं, अगर इस बार की विधानसभा कार्यवाही पर गौर करें तो वे आरोप सत्य प्रतीत होते हैं, राजे ने विधानसभा में ना तो किसी बहस में हिस्सा लिया, ना ही उन्होंने कोई सवाल पूछा।
वहीं बीकानेर के तथाकथित राजपरिवार से आने वाली तीसरी बार की विधायक सिद्धी कुमारी की भी छवि निष्क्रिय नेता की ही है, उन्हें देखकर लगता है वह बस शक्ति संरचना में बने रहने के लिए ही विधायक बनती आई हैं। वहीं नेता प्रतिपक्ष तौर पर राजेन्द्र राठौड़ की उपस्थिति 81% रही और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रहे सतीश पूनिया 71% दिवसों को विधानसभा में हाज़िर रहे।
सरकार में मंत्री, मुख्यमंत्री, विधानसभा अध्यक्ष के तौर पर शामिल रहे विधायकों को कार्यपालिका का हिस्सा माना जाता है, इसलिए उनकी उपस्थिति का आंकड़ा उपलब्ध नहीं होता। ज़ाहिर तौर पर कांग्रेस के बड़े नेताओं का सरकार में शामिल होने के कारण डेटा उपलब्ध नहीं है। अगर मतदाताओं द्वारा चुनाव के समय विधायकों की उनकी विधानसभा में उपस्थिति, भागीरदारी, पूछे गए सवालों के आधारपर राजनीतिक जवाबदेहिता तय होती तो इससे हमें लोकतंत्र में गुणात्मक सुधार देखने को मिलेंगे।
(विभांशु कल्ला की रिपोर्ट।)