संसद में राहुल गांधी: मोदी के लिए मुश्किल दौर की शुरुआत

जिस तरह से ट्रायल कोर्ट ने राहुल गांधी को अधिकतम सजा सुनाई भारत के आम जनमानस में निचली कोर्ट व जज के ऊपर से भरोसा उठना लाज़मी था। लेकिन कल सुप्रीम कोर्ट का फैसला न केवल राहुल गांधी के लिए राहत देने वाला था बल्कि न्यायतंत्र की साख को भी बचा लेने वाला था। उच्चतम न्यायालय की यह टिप्पणी ध्यान देने लायक है कि आखिर राहुल गांधी को अधिकतम सज़ा जो दो साल की है उसके पीछे क्या वजह है क्यों उनको इससे कम सजा नहीं नहीं दी जा सकती थी? कोर्ट की यह टिप्पणी तब और भी महत्वपूर्ण हो जाती है जब उनकी सज़ा की अधिकतम अवधि संसद सदस्यता जाने की न्यूनतम अवधि से मिलान खाती हो। फिलहाल सज़ा पर रोक लगते ही उनकी सदस्यता स्वतः बहाल हो जानी चाहिए।  

अब बहुत ही जरूरी बात ये है कि राहुल गाँधी के संसद मे होने के क्या मायने हैं और उनके न होने के क्या? 

वर्ष 2014 जब से पीएम मोदी की सरकार बनी है उनके तमाम मनमाने कदमों का अगर कोई बिना किसी लाग लपेट के विरोध किया तो वह राहुल गांधी थे। पूरी संसद में यही एक ऐसी आवाज़ थी जिसे पूरा देश सुनता था। चाहे वह नोटबंदी जैसा आर्थिक घातक कदम का विरोध जिससे रियल स्टेट व तमाम असंगठित क्षेत्रों में एकाएक बेरोजगारी का छा जाना हो या GST का विरोध हो। कोरोना में हुई लापरवाही जिसकी वज़ह से देश के सभी नागरिकों को कष्ट झेलना पड़ा उससे ऊपर मजदूरों का मुंबई ,सूरत ,दिल्ली से पूर्वांचल व बिहार तक पैदल जाने का कष्ट हो राहुल गांधी ने पीएम मोदी को हमेशा सही निर्णय लेने के लिए अपनी राय दी।

किसान बिल के विरोध में किसानों के साथ खड़े रहे तो लखीमपुर खीरी का तमाम पुलिसिया दमन के बावजूद गृह राज्य मंत्री के बेटे द्वारा किसानों के ऊपर  गाड़ी चढ़ा देने का मामला हो, राफेल का मुद्दा हो या अडानी को मनमाना सरकारी सहयोग देने की बात हो राहुल गांधी हमेशा देश की आवाज़ बने। जब-जब देश में सरकार की नीतियों के कारण कोई संकट आया राहुल गांधी आम जन की आवाज़ बनकर संसद में प्रधानमंत्री से सवाल पूछते और उनको सचेत करते नज़र आये। 

मणिपुर का मुद्दा इस मानसून सत्र में अभी तक राहुल गाँधी के बिना चल रहा था और ये पूरा देश देख रहा था कि किस तरह विपक्ष के सवाल पर प्रधानमंत्री संसद में न आकर कभी बेलगाम मनोज तिवारी तो कभी स्मृति ईरानी से जवाब दिलवा रहे थे, लेकिन अब ये इस सोमवार से शायद न हो पाए (अगर स्पीकर उनकी सदस्यता बहाल करने की औपचारिकता पूरी कर देते हैं) क्योंकि सोमवार से संसद में जब राहुल जैसा व्यक्तित्व सवाल पूछेगा तो प्रधानमंत्री को जवाब के लिए आना ही पड़ेगा।

अगर राहुल गांधी की सदस्यता बहाल न होती तो शायद वो सब कुछ आगे न होता जो उस शख्स ने बीते समय में किया है। उनकी सदस्यता का जाना लोगों के मन से लोकतंत्र के प्रति विश्वास का उठ जाना था जिसे सुप्रीम कोर्ट के निर्णय ने बचा लिया।

(शशि भूषण तिवारी जेएनयू के पूर्व छात्र हैं।)

1 1 vote
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
1 Comment
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
Pankaj Kumar
Pankaj Kumar
Guest
8 months ago

KATU SATYA HAI YAH