भारत मालदीव से सेना वापस बुलाने पर सहमत, मोदी से मुलाकात के बाद मोइज्जू का दावा

नई दिल्ली। मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मोइज्जू ने दावा किया है कि भारत ने मालदीव में तैनात लगभग 75 भारतीय सैन्य कर्मियों को वापस बुलाने के उनके अनुरोध को मान लिया है। मोइज्जू ने ये दावा दुबई में हुए COP28 जलवायु सम्मेलन के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात के दो दिन बाद रविवार 3 दिसंबर को किया। मोइज्जू ने मालदीव से भारतीय सैनिकों को हटाने की मांग तभी कर दी थी जब उन्होंने चुनाव के दौरान “इंडिया आउट” का नारा दिया था और अब उन्होंने पीएम मोदी से अपनी बात भी मनवा लेने का दावा किया है।

मालदीव के राष्ट्रपति के कार्यालय ने मोइज्जू के देश लौटने के बाद उनकी प्रेस कॉन्फ्रेंस का हवाला देते हुए एक्स पर एक पोस्ट करते हुए कहा कि “भारत सरकार ने मालदीव के लोगों को आश्वासन दिया है कि वह मालदीव से भारतीय सैनिकों की वापसी के बारे में उनके फैसले का सम्मान करेगी।“

वहीं सरकारी सूत्रों ने रविवार को मोइज्जू के दावे का खंडन करते हुए कहा कि चर्चा अभी भी “जारी” है और मोदी-मोइज्जू बैठक के बाद घोषित “कोर ग्रुप” सभी पहलुओं पर गौर करेगा कि क्या 75 भारतीय नौसैनिक वर्तमान में भारतीय नौसेना पर काम कर रहे हैं।

विदेश मंत्रालय ने इस मामले में कुछ नहीं कहा है लेकिन सूत्रों का कहना है कि जब दोनों नेता दुबई में मिले तो मानवीय सहायता और आपदा राहत (एचएडीआर) कार्यक्रमों पर काम करने वाले भारत के प्लेटफार्मों और कर्मियों के मुद्दे पर “संक्षेप में चर्चा” की गई।

शुक्रवार 1 दिसंबर को पीएम मोदी और राष्ट्रपति मोइज्जू के बीच बातचीत के अंत में दोनों सरकारों की ओर से जारी किए गए रीडआउट में इस मुद्दे का सीधे तौर पर उल्लेख नहीं किया गया था। मोइज्जू के सत्ता संभालने के बाद यह उनकी पहली बैठक थी। मालदीव प्रेसीडेंसी ने मालदीव में भारतीय सैनिकों के विषय पर चर्चा की थी। हालांकि रविवार 3 दिसंबर को मोइज्जू के बयान से यह संकेत मिलता है कि वह पीएम मोदी से मुलाकात के बावजूद अपनी मांग से पीछे हटने को तैयार नहीं हैं।

मालदीव में भारतीय सैनिकों की तैनाती का मुद्दा तब से विवादास्पद रहा है जब मोइज्जू ने अक्टूबर में राष्ट्रपति चुनाव जीता और पूर्व राष्ट्रपति इबू सोलिह को बाहर कर दिया। सोलिह को भारत के अधिक अनुकूल माना जाता था। मोइज्जू ने कहा कि “वह मालदीव की संप्रभुता सुनिश्चित करने के लिए ऐसा कर रहे हैं और अपने वादे को पूरा करेंगे।”

मोइज्जू के बयान का जवाब देते हुए सूत्रों ने कहा, “जैसा कि चर्चाओं में माना गया, भारतीय प्लेटफार्मों की लगातार उपयोगिता को सही दिशा में देखने की जरूरत है। उन्हें कैसे चालू रखा जाए, इस पर चर्चा चल रही है। दोनों पक्ष जिस कोर ग्रुप के गठन पर सहमत हुए हैं, वह इस बात पर गौर करेगा कि इसे कैसे आगे बढ़ाया जाए।“

मोइज्जू के बयान के बावजूद, यह देखना बाकी है कि क्या मालदीव सरकार सभी भारतीय सैनिकों को अद्दू द्वीप छोड़ने के लिए कहने की अपनी योजना पर अमल करेगी या नहीं, जहां उनमें से अधिकांश काम करते हैं। पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने भी मांग की थी कि वहां तैनात सभी भारतीय सैन्यकर्मी मालदीव छोड़ दें, और उनकी सरकार ने उन सभी के वीजा के नवीनीकरण को रोक दिया था।

हालांकि, महीनों की बातचीत के बाद, सैन्य कर्मियों को रहने की अनुमति दी गई, और तब से जीवित बचे लोगों को बचाने और फंसे हुए लोगों को भोजन और पीने का पानी उपलब्ध कराने के लिए उन्होंने कई महत्वपूर्ण अभियान चलाए हैं। सैन्य कर्मियों को वापस भेजना भारत के अपमान के रूप में देखा जाएगा और एक संकेत यह भी है कि राष्ट्रपति मोइज्जू के लिए भारत से जुड़ना उतना आसान नहीं होगा जितना कि उनसे पहले सोलिह की “भारत पहले” नीति के साथ था।

मोइज्जू से पहले मालदीव के राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह के कार्यकाल में भारत और मालदीव काफी करीब आए। भारत ने मालदीव में अच्छा-खासा निवेश किया और इंफ्रास्ट्रक्चर से लेकर कई चीजें डेवलप करने में मदद की। भारत ने मालदीव को दो हेलीकॉप्टर और एक डोनियर एयरक्राफ्ट भी डोनेट किया। जो इमरजेंसी मेडिकल सर्विसेज, रेस्क्यू और समुद्र की निगरानी और पेट्रोलिंग के काम आते हैं।

(‘द हिंदू’ में प्रकाशित खबर पर आधारित।)

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