नयी ईस्ट इंडिया कंपनियां: एप्पल, अमेज़न, वालमार्ट, टेसला, मीशो !

भारत सरकार ने 1991 में नयी आर्थिक नीतियों पर हस्ताक्षर किए। इन नीतियों के तहत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और पेटेंट कानून में बदलाव किए गए। जिसके कारण वित्त, इंटरनेट और ट्रिप्स (TRIPS) के लिए भारतीय रुकावटों को हटा दिया गया। भारत को डिजिटलाईजेसन से इंटरनेट के द्वारा पूरी दुनिया से जोड़ दिया गया। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में पहले 49 फीसदी छूट दी थी, अब 80 और 100 फीसदी कर दी है। ट्रिप्स के द्वारा विदेशी कम्पनियां अपनी खोज और इनोवेशन अपने देशों में ही रखने का एकाधिकार प्राप्त कर चुकी है।

वित्त, तकनीक और ट्रिप्स में आए नीतिगत बदलवों का फायदा उठाकर, इन बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने भारत की कहानी ही बदल दी। एक तरह से नए भारत की ईस्ट इंडिया कम्पनियां  बन गयी हैं। जिनमे मुख्यत: एप्पल, अमेज़न,वालमार्ट, टेसला तथा मीशो हैं।

ये कम्पनियां भारत में उत्पादन, वितरण और वित्तीय एकाधिकार के साथ-साथ मुख्यत: निर्यातक कम्पनियां हैं। विश्व बाजार के लिए उत्पादन करवाती हैं। भारत में निचले स्तर के काम करवाना जैसे असंबली,टेस्टिंग, मार्किंग और पकेजिंग आदि। ये काम देशी-विदेशी वेंडर और सप्लायर दोनों करते हैं, जो इनके कनिष्ठ साझीदार बन चुके हैं और लूट में रत्तीभर हिस्सा गटकते रहते हैं।

भारत के वित्त पर कब्जा और साथ ही साथ वित्तीय ऋण का जाल फैलाना,छोटे और मझौले भारतीय व्यापारियों से तैयार माल खरीदना तथा डाटा पर अधिकार प्राप्त करना। अर्थात कच्चा माल, तैयार माल, उत्पादन और वितरण के बने-बनाये ढांचे पर कब्जा जमा रही हैं।

अपने उत्पादन और व्यापार के लिए ये कम्पनियां भारत सरकार से मनमाने बदलाव करवाती हैं। करो में कटौती, 100 फीसदी मालिकाना, लाइसन्स फ्री, सरकार के नियमो की अवमानना,पर्यावरण की अवहेलना, श्रम कानूनों में बदलाव, कम से कम तनख़ाह देना, ज्यादा घंटे काम करवाना, मजदूरों से खराब स्थितियों में काम करवाना, बंधुआ जैसे समझौतों पर हस्ताक्षर करवाना, अपने खिलाफ दुनियाभर में होने वाली मजदूरों की हड़तालों को तोड़ना तथा मजदूरों से हड़तालों और यूनियनों का अधिकार छीनना। ये इनकी समान्य विशेषताएं बन चुकी हैं।

हम इन कंपनियों के विषय में संक्षेप में बातें करेंगे:

1.एप्पल (Apple)

एप्पल भारत में मोबाइल डिस्प्ले असेंबल, कैमरा मोडूल और मकेनिकल पुर्जें बनाता है। जो उसके विश्व उत्पादन का 12-15 फीसदी है। जिसके लिए भारत सरकार अरबों-खरबो की  सब्सिडी देती है। टिम कुक ने भारत सरकार से जीएसटी में 12 फीसदी की कमी करायी, श्रम कानून 8 घंटे से 12 घंटे किए गए,मजदूरों को एप्पल के हॉस्टल में रखने की अनुमति जिनमें अधिकतर 18-25 साल की औरतें होगी, निर्यात पर कस्टम करो में कमी, सप्लाई चेन अच्छी करने की गारंटी, मशीनों पर होने वाले पूंजीगत व्यय पर करो मे छूट और दूसरे कानूनों में स्थायित्व की मांग की।इसके साथ-साथ अल्प मात्रा में उपस्थित लिथियम जैसे मिनरल उपलब्द्ध करने की गारंटी भी दी गयी। ये सारी मांगे सरकार ने सिर झुकाकर मान ली।

देश-दुनिया के कनिष्ठ पूंजीपति लार टपकाते हुए आका की सेवा में दौड़े। टाटा,फोक्सकोन, जापानी और साउथ कोरियन कंपनी  टी डी के, चीनी कंपनी सन्नी ओपोटैक आदि। मुकेश अंबानी के बंबई स्थित मॉल में भी आखिर एप्पल ने बिक्री के लिए दुकान खरीद ही ली।दुनियाभर में सप्लाई के लिए कुछ विदेशी लक्कड़भग्गेभी आकार शामिल हो गयें जिनमें एल  जी इननोटैक,फोक्सकोन और हाँगकाँग स्थित कोवेल मुख्य हैं। एप्पल ब्राज़ील,कनाडा, इंडोनेसिया, मेक्सिको, फिलिपींस, सऊदी अरबिया, टर्की, यू ए इ और वियतनाम आदि देशों में सप्लाईकरता है।

भारत और दुनिया भर के व्यापार से एप्पल के बॉस ने दो सालों में स्टॉक शेयर बेचकर अरबों रुपए कमाएं हैं। सरकार की आर्थिक नीतियां तो एप्पल के पक्ष में बदली ही जा रही है। हद ये है कि एप्पल देश के बाकी नियम-कानून की भी आए दिन अवमानना करता है। यहां हम कुछ नियमों का उल्लेख करेंगे;

(a) सरकार ने इलेक्ट्रॉनिक्स के आयात पर रजिस्ट्रेशन और पर्मिशन लेने संबंधी नियम बनाया। जिसके लिए देश की सुरक्षा का हवाला दिया गया। लेकिन इससे एप्पल फोन के उत्पादन में प्रयोग होने वाले उत्पादों का आयात प्रभावित हो रहा था। बीडेन जी20 की मीटिंग में आया। उसका सबसे महत्त्वपूर्ण मुद्दा इलेक्ट्रॉनिक्स के नियम पर बात करना ही था। जाहीर सी बात है की भारतीय सरकार ने अपना नियम उनके कहें अनुसार बदल लिया।

(b) भारतीय सरकार ने नियम बनाया कि सभी फोन निर्माता कम्पनियाँ यूरोपियन यूनियन के नियमों का अनुसरण करेंगी जिसके तहत सभी अपने मोबाइल सेट में यूएसबी चार्जर का प्रयोग करेगी। सभी ने इस नियम को जून 2025 तक लागू करने पर सहमति दी। लेकिन एप्पल ने अपने नुकसान का हवाला देते हुए कहा कि हम जून या दिसम्बर 2026 तक लागू कर पाएंगे।

(c) भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (trai) के अनुसार सभी दूरसंचार कम्पनियों को अपने मोबाइल सेट में डीएनडी (DND) की सुविधा उपलब्द्ध करानी पड़ेगी। ऐसा नहीं करने पर कंपनी के खिलाफ कार्यवाही की जाएंगी। एप्पल ने अपने ग्राहकों की सुरक्षा का हवाला देते हुए माना कर दिया।

2. अमेजन (Amazon)

(a) अमेजन ने 2025 तक भारत से अरबों रुपए के निर्यात की बात कही है। यह निर्यात भारत के छोटे और मध्यम उत्पादकों से तैयार माल खरीदकर करेगा। अमेज़न ई-कामर्स के क्षेत्र में एकाधिकार जमा चुका है। जिसके पीछे सरकार के नीतिगत बदलाव है। राष्ट्रीय ई-कामर्स नीति के तहत ई-कॉमर्स कम्पनियों को निर्यात पर करो में छूट दे दी गयी।

(b) अमेजन पहली ऐसी ई-कॉमर्स कंपनी है जो अपने उत्पाद की आवा-जाही के लिए जल मार्गो का प्रयोग करेगी। अमेजन ने भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण के साथ अनुबंध किया है।

3. वालमार्ट (Walmart)

वालमार्ट, भारत से सोर्सिंग, फिलिपकार्ट (flipcart), फोन पे (PhonePe) और तकनीक के कामों में शामिल है। वालमार्ट भारत से 4-5 खराब रुपए के वार्षिक निर्यात का आकलन कर रही है। जिसके लिए वालमार्ट फरवरी 2025 में दिल्ली में मेगा विक्रेता शिखर सम्मेलन (Megasellersummit) कर रही है। जो अमरीका के बाहर सबसे बड़ा सम्मेलन है। इस सम्मेलन का ज़ोर निर्यात के लिए तैयार माल के सप्लायरों पर रहेगा। जिसमे भारतीय कंपनियाँ और वालमार्ट के अमरीका स्थित 50-60 व्यापारी हिस्सेदारी करेंगे।

भारत में ई-कॉमर्स के क्षेत्र में वालमार्ट एकाधिकारी भूमिका अदा करता है। फ्लिपकार्ट (Flipcart) का मालिकाना पूरी तरह हस्तगत कर चुका है। फ्लिपकार्ट अपना ढांचा का फैलाव, विक्रेताओं का जाल और नवीनतम तकनीक का भरपूर उपयोग कर रहा है। तकनीक में एआई (AI) और जैनरेटिव एआई (generativeAI) शामिल है। फ्लिपकार्ट के अरबों की संख्या में ग्राहक हैं। जिनसे 2022-23 में फ्लिपकार्ट को 56,013 करोड़ रुपए की आमदनी हुई जिससे इसकी कमाई  में 9 फीसदी का उछाल आया। अपने कारोबार के लिए फ्लिपकार्ट वालमार्ट,सॉफ्ट बैंक और जनरल अटलांटिक जैसे बहुराष्ट्रीय ऋण दाताओं से कर्जा लेता रहता है।

अपने वित्तीय कब्जे के लिए वालमार्ट ने फोनपे (PhonePe) को खरीद लिया है। देश में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए वालमार्ट अपने बोर्ड में सेवानिवृत्त नौकरशाहों को भर्ती कर रहा है।

4. टेसला (Tesla)

टेसला ने भारत में इलैक्ट्रिकल वाहन (Evs) का उत्पादन करने और विदेशों में तैयार वाहन भारत में बेचने का समझौता भारत सरकार से किया है।जिसका उद्देश्य है भारत का सस्ता श्रम प्रयोग करके करोड़ो रुपए बचा लेना। दूसरा भारत को टेसला के आयातित वाहनों पर कर मे छूट देनी पड़ेगी जो 80 और 100 फीसदी से घटकर 15 फीसदी हो जाएगा। टेसला भारत की कंपनियों से एलेक्ट्रिक वाहनों में प्रयोग होने वाले पुर्जों की खरीद बढ़ाएगा जो 15 अरब रुपए के उच्च स्तर तक पहुंच जाएंगी।

इस पर भी तुर्रा ये है कि टेसला भारत सरकार को ना तो अपने उत्पादन शुरू करने की जानकारी मुहैया करा रहा है नाअपनी उत्पादित कारों की क्या कीमत रखेगा ये बता रहा है। ये बता दे कि टेसला की सस्ती से सस्ती कार भी 40-50लाख रुपए से शुरू होती है। ऐसे में भारत सरकार सिवाय रोना-रोने के कुछ नहीं कर पा रही है।

टेलीकॉम डिपार्टमेंट ने स्पेस एक्ष (X) को उपग्रह (satellite) संचार की अनुमति प्रदान कर दी।जिसकी वजह से “उपग्रह संचार” अपने  वितरण के समय “आवंटन” किया गया जबकि मुकेश अंबानी “नीलामी” चाहता था। आवंटन स्पेस एक्ष और वन वेब (OneWeb) के पक्ष में था जो की विदेशी कंपनियाँ हैं और अंबानी के विरोध में।

5. मीशो (Meesho)

 जापान के सॉफ्ट बैंक द्वारा वित्त पोषित कंपनी मीशो है। जो ग्राहक संकलन (costumer acquisition), सरवर (server) और आधारभूत ढांचे (infrastructure) पर एकाधिकार प्राप्त कार रही है। जो वर्तमान समय में सबसे ज्यादा डाउनलोड होने वाला शॉपिंग एप्प है। इसलिए मीशो हमारे डाटा यानि हमारी सूचना पर एकाधिकार करती जा रही है।

संक्षेप में, उत्पादन, वितरण, वित्त, सूचनाए(data) और तकनीक पर ये नयी ईस्ट इंडिया कंपनियां एकाधिकार जमा चुकी हैं। देश का पूरा तंत्र इन बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर निर्भर हो चुका है। प्राकृतिक संसाधनों और श्रम की बेतहासा लूट-खसौट कर रही हैं। भारत की लूट-खसौट से पूरी दुनिया के बाजार में मुनाफा बटोर रही हैं।

देश के नए मीरजाफ़र, इन नयी ईस्ट इंडिया कंपनियों से दुरभिसंधि कर रहे हैं। जिनमे हमारी सरकार और सभी छोटी-बड़ी संसदीय राजनीतिक पार्टियां शामिल हैं, जो इन लुटेरों के लिए नीतिगत बदलाव करते हैं तथा साथ ही देश के नियम-क़ानूनों कि भी धज्जियां उडाते रहते हैं। उनके साथ कुछ गिने-चुने अदानी, अंबानी, टाटा, बजाज, महिंद्रा जैसे चोटी के पूंजीपति तथा कुछ नए टेक्नोक्रेट बहुराष्ट्रीय कंपनियों की जूठन बटोर रहे हैं। मीडिया और अकादमी के कलम घिस्सू बुद्धिजीवी उनकी खिदमत में कसीदें पढ़ते हैं।नौकरशाह उनके ताबेदार बन चुके हैं। इनसे देश को गुलामी के अलावा कोई उम्मीद बाकी नहीं बची है किसी को हो तो वह आजमाकर देखने के लिए आज़ाद है।

गरीब किसान, मजदूर,सप्लायर, छोटे दुकानदार, एजेंट तबाह और बर्बाद हो रहे हैं। छोटे और मझोले कारोबारी अपना सामान बेचने और वित्तीय जरूरतों के लिए नयी ईस्ट इंडिया कंपनियों पर पूरी तरह आश्रित हो रहे हैं। ग्राहक कर्ज में फंसते जा रहे हैं। जलमार्ग और उनमें रहने वाले जीव-जन्तुओं पर खतरा है। छात्रों और नौजवानों के सामने इन लुटेरे तथा विध्वंसक साम्राज्यवादियों की लूट को अपने खून-पसीने से परवान चढ़ाने के सिवाय कोई विकल्प नहीं बचा हैं।  इतिहास हमारे साथ कितना घिनौना मज़ाक कर रहा है कि हम, इस देश के सपूत, अपने हाथों ही अपनी मातृभूमि को लुटवा रहे हैं और उसका चीरहरण करने वालों के लिए तालियां बजाते हैं।

(हरेंद्र लेखक और स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments