नई दिल्ली। मणिपुर में चल रहे राहत शिविरों को न तो केंद्र और न ही राज्य सरकार की तरफ से कोई सहायता मिल रही है। यह बात मणिपुर का दौरा करने के बाद लोटी कारवां-ए-मोहब्बत की टीम ने बताई है। टीम ने इससे संबंधित एक रिपोर्ट भी जारी की है।
इसमें बताया गया है कि राहत शिविरों की स्थिति बेहद दयनीय है। मैतेई समुदाय के इंफाल स्थित कुछ शिविरों तो सरकारी सहायता पहुंची भी है। लेकिन कुकी समुदाय के शिविरों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है। उन्हें चर्चों या फिर अपने समुदाय के लोगों की सहायता पर ही निर्भर रहना पड़ रहा है।
रिपोर्ट के मुताबिक राज्य और केंद्र दोनों सरकारें राहत शिविरों से पूरी तरह से नदारद रही हैं। मणिपुर में फैली मानवीय त्रासदी का आकलन करने और राहत शिविरों में रह रहे विस्थापित लोगों की दिक्कतों और मांगों को सरकार के सामने लाने के लिए ‘कारवां-ए-मोहब्बत’ की टीम ने 25 जुलाई से 28 जुलाई के बीच में राज्य के 5 राहत शिविरों का दौरा किया। इस दौरे के बाद टीम ने 31 पेज की एक रिपोर्ट साझा किया, ‘मणिपुर में मानवीय संकट’ (Humanitarian Crisis in Manipur) शीर्षक से यह रिपोर्ट शनिवार को www.sabrangindia.in पर प्रकाशित की गई।
कारवां की रिपोर्ट के मुताबिक उनकी टीम जब राहत शिविरों का दौरा कर रही थी तो उन्होंने पाया कि इम्फाल की घाटी में स्थित एक राहत शिविर जो पूरी तरह राज्य के द्वारा संचालित किया जा रहा है। इसके अलावा और अन्य सभी राहत शिविरों को राज्य या केंद्र सरकार की तरफ से कोई सहायता नहीं मिल रही है। रिपोर्ट में राज्य सरकार पर आरोप लगाते हुए टीम ने लिखा है कि सरकार ना सिर्फ अपने नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करने जैसे मूल कर्तव्य में विफल रही है बल्कि राहत और पुनर्वास जैसी सुविधा का ख्याल ना रखने के लिए भी दोषी है।
आपको बता दें कि केंद्र और मणिपुर दोनों जगह बीजेपी सत्तारूढ़ है। मणिपुर में 3 मई से शुरू जातीय हिंसा इतनी बढ़ गयी कि लोगों को अपने घर छोड़कर भागना पड़ा। इस जातीय हिंसा में अब तक 192 लोग मर चुके हैं और 67000 से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं, और कई दावों में तो यहां तक कहा गया है कि ये हिंसा राज्य-प्रायोजित थी। मतलब सरकार चाहती थी ऐसा कुछ हो। और शायद यही वजह थी कि मणिपुर से प्रतिनिधिमंडल प्रधानमंत्री से मिलने के लिए जाता है लेकिन उससे मुलाकात करने की जगह देश के मुखिया को अमेरिका जाना ज्यादा जरूरी लगा।
3 मई से शुरू हुई जातीय हिंसा अभी तक जारी है, बीते कुछ दिनों से हिंसा की खबर एक शांत माहौल के बीच सुनने के लिए मिलती रहती है। केंद्रीय बल भारी संख्या में इस वक्त मणिपुर में है लेकिन स्थिति अभी नाजुक है, राज्य में शांति बहाल करने के लिए अभी तक कोई रोडमैप तैयार नहीं किया गया है। हालांकि राज्य में शांति की बहाली थोड़ी मुश्किल है क्योंकि हिंसा के दौरान करीब 35 पुलिस स्टेशन से ऑटोमैटिक हथियारों की चोरी हो चुकी है और इन हथियारों को अभी तक पूरा बरामद नहीं किया जा सका है।
शिविरों को लेकर असमानता
पूर्व आईएएस अधिकारी और सिविल राइट कार्यकर्ता हर्ष मंदर ने बताया कि मैतेई और कुकी समुदाय के राहत शिविरों में एक असमानता देखने को मिला। उनके मुताबिक मैतेई समुदाय के लिए राहत शिविरों की व्यवस्था कॉलेजों और खेल परिसर जैसी सरकारी इमारतों में किया गया था और यहां पर सब कुछ सरकार के समर्थन से या फिर स्थानीय विधायक की मदद से संचालित किया जा रहा था। लेकिन कुकी समुदाय के मामले में ऐसा कुछ देखने के लिए नहीं मिला। कुकी शिविर को चर्चों में बनाया गया है और इन शिविरों का संचालन चर्च और समुदाय के समर्थन से किया जा रहा है।
मणिपुर में हिंसा अभी भी जारी है और इसका कोई भी ओर-छोर पता नहीं चल रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, विस्थापितों को रहने के लिए जिन परिवारों ने अपने घरों में स्थान दिया था वो भी अब उनसे राहत शिविरों में जाने के लिए कह रहे हैं। ऐसी संभावना है कि आने वाले दिनों में राहत शिविरों में लोगों की तादाद बढ़ने वाली है, खासकर पहाड़ी क्षेत्रों में, और इसके परिणामस्वरूप राहत कार्यों के लिए काम कर रहे संगठनों पर दबाव बढ़ने वाला है।
जुलाई में राज्य सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट को सौंपी गई एक रिपोर्ट के मुताबिक, मणिपुर में 354 राहत शिविरों में करीब 54,488 लोगों को स्थान दिया गया था। जिसमें चुराचांदपुर में बने 102 राहत शिविरों में 14,816 लोग रह रहे थे। मणिपुर के राहत शिविरों में रह रहे लोगों के, अलावा मिजोरम में भी आंतरिक रूप से विस्थापित करीब 12,882 लोगों ने शरण लिया था।
युद्ध क्षेत्र
कारवां रिपोर्ट के अनुसार “हम में से कोई भी ऐसा देखने के लिए तैयार नहीं था जिसके हम गवाह बने। हमने देखा कि मणिपुर का ज्यादातर इलाका युद्ध का मैदान बन गया है, आधुनिक और ऑटोमैटिक हथियार, मोर्टार और बम जैसी चीजें वहां के लोगों के पास थीं। आम नागरिकों की बड़े पैमाने पर दैनिक लामबंदी, दोनों समुदायों के बीच हिंसा ने उनके गांवों को राख में बदल दिया था।”
रिपोर्ट में बताया गया है कि राज्य सरकार पक्षपाती हो गयी है वह एक पक्ष के साथ खड़ी है। नतीजतन हिंसा धीरे-धीरे गृहयुद्ध का रूप अख्तियार करती गई। राहत शिविरों में रह रहे लोग चाहे वो मैतेई हों या कुकी दोनों की समस्या और दुख एक-दूसरे के प्रतिबिंबित हैं। रिपोर्ट में राज्य सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा गया है कि, हिंसा के बाद से लोग विस्थापित होने लगे थे लेकिन राज्य सरकार ने राहत शिविर बनाने के लिए कोई समर्थन नहीं किया और खासकर आंतरिक रूप से विस्थापित 20000 कुकी लोगों के लिए।
सुझाव
कारवां रिपोर्ट में कहा गया है कि चूंकि “आज के समय इस बात कि बहुत कम संभावना है कि राहत शिविर खत्म हो जाएंगे और आने वाले महीनों में राज्य में सामान्य स्थिति बहाल हो जाएगी। हमारी रिपोर्ट का ध्यान आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्तियों के मानवीय संकट पर है, और हम इस बात से आश्वस्त हैं कि मणिपुर में मानवीय संकट को खत्म करने के लिए तुरंत पहल करनी होगा।
टीम ने सुझाव दिया है कि केंद्र और राज्य सरकारें “हिंसा से प्रभावित सभी लोगों” के लिए एक व्यापक राहत और पुनर्वास कार्यक्रम की घोषणा करें, मानवीय और सम्मानजनक राहत शिविर का संचालन करें। और हिंसा से प्रभावित लोगों को उनकी इच्छाओं के अनुसार उनके घरों और बस्तियों के पुनर्निर्माण में मदद करें”।
इसमें कहा गया है कि राज्य प्रशासन को घाटी और पहाड़ियों दोनों जगह बने सभी राहत शिविरों का सीधा प्रबंधन करना चाहिए, भोजन और अन्य सुविधाओं की लागत वहन करनी चाहिए और प्रभावितों की मदद के लिए बंगलुरू स्थित निम्हांस जैसे प्रमुख मानसिक स्वास्थ्य संस्थानों की मदद लेनी चाहिए।
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