इलेक्टोरल बॉन्ड से अब यूनिक नंबर दिखाओ का निर्देश: वेल प्लेड सुप्रीम कोर्ट

जैसी उम्मीद की जा रही थी, वैसा ही कुछ देखने को मिला। आज जब सुबह सर्वोच्च न्यायालय की खंडपीठ ने चुनाव आयोग की ओर से इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर अपने कर्तव्य निर्वहन और मूल प्रति अदालत को देने की बात कही तो पीठ ने आश्वस्त किया कि सभी प्रतियों को कल तक डिजिटल फॉर्म में तैयार कर मूल प्रति वापस कर दी जायेगी, और साथ ही पूछा कि स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया ने चुनाव आयोग को इलेक्टोरल बॉन्ड के जिन दो सेट में सारा ब्यौरा दिया था, उसमें यूनिक अल्फ़ा न्यूमेरिक संख्या का विवरण मौजूद नहीं है। बैंक ने इसके बगैर ही दोनों सेट चुनाव आयोग को सुपुर्द कर दिए थे। आज खंडपीठ ने अपनी सुनवाई में इसे नाकाफी बताते हुए इलेक्टोरल बॉन्ड के यूनिक डिटेल्स को भी सुपुर्द करने के आदेश दे दिए हैं, ताकि बॉन्ड खरीदने वाले और इसे भुनाने वाली राजनीतिक पार्टी की पहचान सुनिश्चित की जा सके।

सीजेआई ने अपने आदेश में कहा है: संविधान पीठ के फैसले में स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया को चुनाव आयोग को चुनावी बॉन्ड और भुनाए जा चुके सभी विवरणों को प्रस्तुत करने की दरकार थी, जिसमें बॉन्ड खरीद की तारीख, खरीद करने वाले का नाम और खरीद/मोचन की तारीख शामिल थी। इस तथ्य को स्वीकार किया गया है कि एसबीआई ने चुनावी बॉन्ड की यूनिक अल्फा न्यूमेरिक संख्या का खुलासा नहीं किया है। सॉलिसिटर जनरल ने स्वीकारा है कि स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया को नोटिस जारी किया जा सकता है।

इसके साथ ही मुख्य न्यायाधीश, डी वाई चंद्रचूड़ ने स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया को सोमवार तक नोटिस जारी करने का निर्देश जारी कर दिया है। हैरत की बात देखिये, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष, आदिश अग्रवाल चीफ जस्टिस से पूछ बैठते हैं कि, “मैंने इस विषय में सुओ मोटो (स्वतः संज्ञान) के लिए आवेदन किया है।” जिस पर चीफ जस्टिस का जवाब था, सोमवार को याद दिलाएं।

इसके साथ ही पीठ ने रजिस्ट्रार ज्यूडिशियल को इस बात को सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि चुनाव आयोग द्वारा दाखिल किये गये डेटा को कल शाम 5 बजे तक स्कैन और डिजिटाइज़ कर दिया जाए। यह काम पूरा हो जाने पर इसकी मूल प्रतियां ईसीआई को वापस कर दी जाएंगी। स्कैन एवं डिजिटलीकृत फाइलों की एक कॉपी चुनाव आयोग को भी उपलब्ध कराई जाएगी, जिसे इसके बाद चुनाव आयोग इसे अपनी वेबसाइट पर डेटा अपलोड करेगा।

तो कुल-मिलाकर तय पाया गया कि स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया को यूनिक नंबर को लेकर सोमवार को अपना जवाब दुरुस्त करना होगा। यह खबर देखने में साधारण लगे, पर सारा खेल अब इसी यूनिक नंबर में छिपा है। पिछली सुनवाई के दौरान स्टेट बैंक की ओर से खुद स्वीकार किया गया था कि वह 22,000 से अधिक इलेक्टोरल बांड्स के दो सेट को इतने कम समय में मिलान नहीं कर सकती। कल जब चुनाव आयोग ने रात 8 बजे दोनों सेट के विवरणों को अपनी वेबसाइट पर जारी कर दिया, तो उसके दो मिनट बाद ही सारे देश में भूचाल आ गया, और देर आधी रात तक सोशल मीडिया इलेक्टोरल बांड क्रेताओं और किसे कितने वैल्यू के बांड किस संख्या में मिले, पर कई तरह के कयास लगाता नजर आया।

यही कारण है कि आज जब खंडपीठ ने यूनिक नंबर को भी सामने लाने की शर्त रखी तो सरकार की ओर से पेश सालिसिटर जनरल के पास भी कोई जवाब नहीं था। उनका सिर्फ इतना कहना था कि इस मामले में एसबीआई पार्टी नहीं है, उसे भी शामिल किया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि सोमवार को उन्हें उपस्थित होना है। इस प्रकार, सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक बेहद कमजोर दिखने वाले फैसले से देश के सामने इलेक्टोरल बांड की खरीदार फर्मों, कंपनियों, कॉर्पोरेट, गेमिंग ऐप, रियल एस्टेट सहित शेल कंपनियों की फेहरिश्त को बीच बाजार में ला पटका है, कि जितने मुंह उतनी बातें हो रही हैं।

अभी तक इलेक्टोरल बांड और उसके जरिये सत्तारूढ़ दल और चंद राज्य स्तर के क्षत्रपों का क्रोनी कैपिटल और शेल कंपनियों के साथ मिलकर देश की लूट की कथा कुछ लाख लोगों तक ही सीमित थी। लेकिन कल रात के खुलासे के बाद आज यह चर्चा देश के कोने-कोने तक पहुंच चुकी है। आज खंडपीठ के लिए भी एसबीआई और चुनाव आयोग से यूनिक नंबर की मांग करना कहीं अधिक आसान हो चुका है, क्योंकि अब तो पूरा मामला ही सड़क पर आ चुका है। यहां पर सुप्रीम कोर्ट को मोदी सरकार से सीधे टकराहट का भी सवाल नहीं था, वह तो इलेक्टोरल बांड का हिसाब-किताब रखने वाले सार्वजनिक बैंक से निपट रहा था, जबकि बैंक सरकार के निर्देश पर काम कर रहा था। न्यायालय की टेढ़ी उंगली ने एसबीआई के कस-बल ढीले कर दिए, जिसका दर्द बैंक के बजाय सरकार को हो रहा है, लेकिन वह इसका इजहार भी नहीं कर सकती। एक वाक्य में कहें तो, इसे ‘वेल प्लेड सुप्रीम कोर्ट’ कहा जाना चाहिए।

लेकिन कल तक कई विशेषज्ञ पहले से ही यही माने बैठे थे कि शीर्ष अदालत ने स्टेट बैंक को बॉन्ड की खरीद करने वालों और उसे भुनाने वालों का विवरण मांगकर एक बड़ी गलती कर दी है। कहीं न कहीं उनका यह भी मत था कि इस प्रकार सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर थोड़ा खुलासे और महत्वपूर्ण यूनिक संख्या को न जारी करने की अनुमति देकर कहीं न कहीं मोदी सरकार को एक बड़ी फजीहत से बचाने का ही काम किया है।

लेकिन पिक्चर अभी बाकी थी। असल में सर्वोच्च अदालत ने एसबीआई को पहले ढील देकर भारत की राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक सत्ता पर काबिज शक्तियों को मिक्स्ड संकेत देकर किसी बड़े उलटफेर को अंजाम देने से रोक दिया। सभी को इस बात का अहसास होना चाहिए कि इलेक्टोरल बांड में राजनीतिक दलों को फण्ड करने वाले लोग कितने ताकतवर हैं। 90 के दशक में ही जब एक कॉर्पोरेट घराने के मालिक कह चुके हैं कि उनके एक पॉकेट में भाजपा तो दूसरी पॉकेट में कांग्रेस है, तो आज 30 वर्ष बाद तो हालात पूरी तरह से क्रोनी पूंजी के हाथ में चले गये हैं।

एक ऐसे वक्त में, जब सुप्रीम कोर्ट सहित उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति पर खुद देश के पूर्व कानून मंत्री को देश में घूम-घूमकर कॉलेजियम सिस्टम के खिलाफ अभियान चलाते देखा गया हो, देश के न्यायिक तंत्र की स्थिति कितने नाजुक दौर से गुजर रही है, के बारे में देश को अहसास होना चाहिए।

पूरा देश एक व्यक्ति के इशारे पर चल रहा हो, जिसकी पार्टी ही नहीं बल्कि गठबंधन में भी कोई चूं नहीं करता हो। तीन राज्यों में जीतकर जिस पार्टी में जनता की ओर से पसंदीदा मुख्यमंत्रियों को दूध में मक्खी की तरह उठाकर बाहर फेंक दिया जाता हो, कार्यपालिका और मीडिया एक इशारे पर विपक्ष की धज्जियां उड़ा देता हो, ऐसे हालात में न्यायपालिका भला भाड़ में अकेले चने के तौर पर क्या कुछ कर सकती है?

उपर से खुद न्यायपालिका के भीतर बड़े पैमाने पर पोस्ट-रिटायरमेंट बेनिफिट की चाहत देखने को मिले, क्योंकि हाल के वर्षों में सरकार के मनमुताबिक फैसले देने वालों को राज्यसभा सहित देश की विभिन्न संस्थाओं की अध्यक्षता सौंपी गई हो तो अपने बीच भी विश्वास का संकट कितना घनीभूत हो जाता है, इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।

यहां पर हमें डॉ आंबेडकर के उस कथन को याद करने की जरूरत है, जिसमें उन्होंने कहा था, “26 जनवरी, 1950 के दिन हम विरोधाभासों भरे जीवन में प्रवेश करने जा रहे हैं। राजनीतिक जीवन में तो हमारे पास समानता होगी, लेकिन सामाजिक और आर्थिक जीवन में असमानता होगी।”

भले ही भारत ने 26 जनवरी, 1950 को संविधान लागू होने के साथ ख़ुद को एक संप्रभु, लोकतांत्रिक एवं गणतांत्रिक राज्य होने का एलान कर दिया था, लेकिन उस समय भी डॉ आंबेडकर शायद नए गणतांत्रिक राज्य और पुरानी सभ्यता के बीच के अंतर्विरोधों की ओर इंगित कर रहे थे। एक अन्य भाषण में आंबेडकर ने कहा था, आधुनिक लोकतांत्रिक व्यवस्था “भारतीय भूमि के लिए मात्र वाह्य पोशाक’ है। यहां की संस्कृति ‘अनिवार्य तौर पर अलोकतांत्रिक’ है और यहां के गांव ‘स्थानीयता का गंदा नाला, अज्ञानता, संकीर्णता और सांप्रदायिकता के घर’ हैं।

1947 में आजादी पाने पर देश के पास स्वतंत्रता आंदोलन की आग में तपे नेताओं और लोकतंत्र की भूखी जनता थी, जिसने शुरूआती दशकों में निश्चित रूप से देश और आम लोगों के हित के लिए एक के बाद एक कई महत्वपूर्ण कदम उठाये। यही कारण है कि 1950-80 के बीच के 30 वर्ष भारत में आर्थिक असमानता कम हुई थी, भले ही आर्थिक तरक्की की रफ्तार काफी धीमी थी। लेकिन यही वह दौर था जब मुकम्मल लोकतंत्र को लेकर जज्बा कुछ हद तक कम हुआ, और देश में क्षेत्रीय, जातीय, सांप्रदायिक ताकतों ने गठजोड़ स्थापित करने शुरू किये। इससे भी महत्वपूर्ण, देश के भीतर पूंजीपतियों और मध्य वर्ग के बड़े हिस्से को ‘ये दिल मांगे मोर’ ने अधिकाधिक पश्चिमी जगत की चकाचौंध ने पूरी तरह से आकृष्ट कर लिया था।

देश में लोकतंत्र की जड़ों को गहराई से पेवश्त करने के बजाय कांग्रेस और विपक्ष भी जातीय, धार्मिक समीकरण पर जोर देने लगा। हर 5 वर्ष में एक बार लोकतंत्र का प्रहसन, जनता की भूमिका को सीमित करता चला गया, जिसने 80 के दशक से एक निर्णायक मोड़ ले लिया। मंडल की काट के लिए मंदिर के मुद्दे को लाने वाली भाजपा ने आज आजादी के मतलब को ही बदलकर रख दिया है। आज 1950 के गणतांत्रिक राज्य के सपने की तो बात ही छोड़ दें, 2024 में 370 सीट के नारे के पीछे आंबेडकर के द्वारा दिए गये संविधान की मूल प्रस्थापना को ही उलटने की मंशा का खुलासा होता दिख रहा है।

याद रखें, इलेक्टोरल बांड्स में दानदाताओं और लाभार्थी राजनीतिक दलों की पहचान उजागर हो जाने के बाद भी देश में कोई आमूलचूल परिवर्तन नहीं होने जा रहा है। लेकिन इस एक कदम से लोकतंत्र की ताकतों को आवश्यक संजीवनी अवश्य मिल सकती है। ‘एक पत्थर तो तबियत से उछालने से आसमान में सुराख’ हो जाने का विचार ही अंततः एक दिन वास्तविक आकार ग्रहण कर सकता है, इस बात को एक बार फिर गांठ बांधने की जरूरत आज सबसे अधिक है।

(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments