NRI भारतीयों ने 2022 में 111 अरब डॉलर भेजा, लेकिन 2023 अच्छा नहीं रहने वाला है   

विश्व बैंक की ताजा प्रवासन एवं विकास पर संक्षिप्त नोट में कहा गया है कि वर्ष 2022 में विदेशों में बसे प्रवासी भारतीयों द्वारा जिस रिकॉर्ड मात्रा में रेमिटेंस (प्रेषित धन) देखने को मिला था, वर्ष 2023 में इस प्रदर्शन को दुहरा पाना बेहद दुष्कर होगा।

विश्व बैंक के आकलन के अनुसार 2023 में रेमिटेंस प्रवाह मात्र 0.2% ही बढ़ने की संभावना है। 2022 में भारत को प्राप्त होने वाला रेमिटेंस 2021 की तुलना में 24% की रफ्तार से बढ़ा था। 2022 में रिकॉर्ड 111 अरब डॉलर भारत में आने की आखिर वजह क्या थी?

इसके पीछे की एक बड़ी वजह अमेरिका सहित ओईसीडी देशों में आईटी क्षेत्र जैसे हाई-टेक क्षेत्र में मांग में आये उछाल में खोजी जा सकती है, जिसमें पिछले कुछ महीनों से रफ्तार पर ब्रेक लगा है। इसका असर 2023 में प्रवासी रेमिटेंस पर पड़ने जा रहा है। ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकोनामिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (आईसीडी) 38 उच्च-आय वाले लोकतांत्रिक देशों का एक समूह है, जहां से प्रचुर मात्रा में भारत को रेमिटेंस प्राप्त हो रहा था। इसके अलावा छह अरब देशों के संगठन, गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल (जीसीसी) समूह में तेल की कीमतों में जारी गिरावट ने वहां की अर्थव्यवस्था में वृद्धि की रफ्तार को नुकसान पहुंचाया है, जिसका असर रेमिटेंस पर पड़ेगा। 

पिछले साल विश्व बैंक ने नवंबर में अपने अपडेट में भारत के लिए 2022 के रेमिटेंस का अनुमान 100 अरब डॉलर लगाया था। लेकिन 13 जून को जारी अपने हालिया अपडेट्स में विश्व बैंक ने उच्च-आय वाले देशों में श्रम बाजार में मजबूत मांग एवं वेतन में बढ़ोत्तरी के साथ खाड़ी देशों में तेल की ऊंची कीमत को इसकी वजह बताते हुए अपने आंकड़े में सुधार किया है।  

निम्न एवं मध्य- आय वाले देशों के लिए विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) के बाद रेमिटेंस दूसरा सबसे बड़ा विदेशी वित्तपोषण का स्रोत बना हुआ है। इसके चलते लाखों परिवारों के जीवन की गुणवत्ता में व्यापक सुधार हुआ है, जिसके दस्तावेजी प्रमाण मौजूद हैं। कोविड-19 महामारी के बाद के दौर में कई देशों के लिए रेमिटेंस एक महत्वपूर्ण वित्तीय स्रोत के रूप में उभरा है। प्रवासन एवं रेमिटेंस रिपोर्ट के प्रमुख लेखक दिलीप रथ के अनुसार “कई अर्थव्यवस्थायों के लिए रेमिटेंस एक वित्तीय लाइफ-लाइन बन चुका है, और भविष्य में इसकी और भी प्रभावकारी भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता है।”

2022 में दक्षिण एशिया की जीडीपी में रेमिटेंस का हिस्सा मात्र 4% रहा है, लेकिन विभिन्न देशों की जीडीपी में इसकी हिस्सेदारी अलग-अलग है। नेपाल की कुल जीडीपी में रेमिटेंस की भूमिका 23.1% तक है, जबकि पाकिस्तान में 7.9%, श्रीलंका की जीडीपी में 5.1% और बांग्लादेश की जीडीपी का 4.7% में रेमिटेंस की हिस्सेदारी है। 2022 में सर्वाधिक रेमिटेंस हासिल करने के बावजूद भारत की जीडीपी में उसकी भूमिका मात्र 3.3% थी। 

जहां तक भारत के लिए सर्वाधिक रेमिटेंस भेजने वाले देशों का प्रश्न है, उसमें अमेरिका सहित इंग्लैंड, कनाडा और दक्षिण अफ्रीका जैसी विकसित अर्थव्यस्थाओं की हिस्सेदारी करीब 30% है। इसके बाद खाड़ी के देशों से आने वाले रेमिटेंस का स्थान है। 

आरबीआई की जुलाई 2022 की रिपोर्ट हेडविंड्स ऑफ़ कोविड-19 एंड इंडियाज कोविड रेमिटेंस  में कहा गया है कि हाल के वर्षों में भारतीय प्रवासन में बदलाव देखने को मिल रहा है। इसमें हाई-स्किल्ड व्हाइट-कॉलर युवा बड़ी संख्या में विकसित अर्थव्यवस्था वाले देशों में रोजगार की तलाश में जा रहे हैं। लेकिन केरल और कर्नाटक जैसे पारंपरिक रेमिटेंस हासिल करने वाले राज्यों में विदेशों से हासिल होने वाले रेमिटेंस में कमी आई है। आरबीआई के सर्वेक्षण आंकड़ों के अनुसार 2016-17 की तुलना में केरल को पछाड़कर 2020-21 में महाराष्ट्र रेमिटेंस के मामले में चोटी का राज्य बन गया है। 

मेजबान देशों की गतिकी में बदलाव के अलावा, वेतन में होने वाले अंतर में कमी, रोजगार के पैटर्न में बदलाव के रूप में व्हाइट कॉलर प्रवासियों की खाड़ी देशों में निरंतर बढ़ती संख्या के साथ-साथ अन्य प्रदेशों सहित एशियाई देशों से कम वेतन पर काम करने वाले अर्ध-कुशल श्रमिकों की आवक ने संरचनागत बदलाव को अंजाम दिया है। आरबीआई की रिपोर्ट में पाया गया है कि हाल के वर्षों में उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा और पश्चिमी बंगाल से खाड़ी के देशों में प्रवासन तेज हुआ है।

भारत को हासिल होने वाले रेमिटेंस में करीब 36% हिस्सा अमेरिका, इंग्लैंड और सिंगापुर जैसे उच्च-आय वाले देशों में रह रहे हाई-स्किल्ड प्रवासियों के द्वारा भेजा जा रहा है। कोविड महामारी से उबरने वाले इन देशों के श्रम बाजार की स्थिति काफी टाइट बनी हुई थी, जिसके चलते वेतन में बढ़ोतरी हुई, जिसका असर रेमिटेंस में वृद्धि के रूप में देखने को मिला है।

खाड़ी के देशों से भी 2022 में भारत को भारी रेमिटेंस प्राप्त हुआ है। यूक्रेन-रूस युद्ध के कारण तेल एवं गैस की कीमतों में तेजी बनी रही, जबकि खाद्य वस्तुओं के दाम उतनी तेजी से नहीं बढे। रिपोर्ट में कहा गया है, “उर्जा कीमतों में तेजी अकुशल भारतीय श्रमिकों की आय में वृद्धि का कारण बनी। खाड़ी देशों के द्वारा खाद्य वस्तुओं के दामों में कमी लाने के प्रयासों के कारण भारतीय आप्रवासियों की बचत में बढ़ोत्तरी हुई है। इसका नतीजा देश के कुल रेमिटेंस में 28% का योगदान करने वाले खाड़ी के देशों से 2022 में भी बड़े पैमाने पर रेमिटेंस की प्राप्ति में देखा गया है। 2022 में भारत के बाद रेमिटेंस पाने वाले देशों में मेक्सिको 61 अरब डॉलर, चीन 51 अरब डॉलर, फिलीपिंस 38 अरब डॉलर और पाकिस्तान 30 अरब डॉलर के साथ अन्य चोटी के देश हैं। 

2022 की तुलना में 2023 की तस्वीर उतनी सुहानी नहीं है 

विश्व बैंक की रिपोर्ट बताती है कि भारत के लिए 2022 की तुलना में 2023 में वृद्धि दर मात्र 0.2% रहने वाली है। बाकी के दक्षिण एशियाई देशों के लिए भी यही स्थिति रहने वाली है। तेल की कीमतों में गिरावट के कारण खाड़ी देशों में विकास की रफ्तार धीमी पड़ चुकी है, जहां 2022 में विकास दर 5.3% थी, उसके 2023 में 3% तक सीमित रह जाने का अनुमान है। रिपोर्ट के मुताबिक 2022 में रेमिटेंस में भारी उछाल के कारण हाई-बेस पर आसीन दक्षिण एशिया के लिए उच्च रेमिटेंस की दर को कायम रख पाना संभव नहीं है। अमेरिका एवं यूरोप में आईटी क्षेत्र में गिरावट भी एक बड़ी वजह बना हुआ है। 

भारत के लिए रेमिटेंस में गतिरोध एवं निर्यात में लगातार गिरावट के संकेत शुभ समाचार नहीं है। घरेलू बाजार में खपत लगातार गिर रही है, जो लगातार अर्थव्यस्था की धीमी होती रफ्तार को मंदी की ओर तेजी से ले जा रही है।

( रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

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